पाकिस्तान के हाथों भारत की क्रिकेट में हार का मुद्दा

प्रमोद जोशी।
भारतीय टीम की हार मुझे भी अच्छी नहीं लगी। मैं भी चाहता हूँ कि हमारी टीम जीते। खेल के साथ राष्ट्रीय भावना भी जुड़ती है, पर मैं अच्छा खेलने वालों का भी प्रशंसक हूँ, भले ही वे हमारी टीम के खिलाड़ी हों या किसी और टीम के। खराब खेलकर हमारी टीम जीते, ऐसा मैं नहीं चाहता। पर टी-20 विश्व कप क्रिकेट प्रतियोगिता में रविवार 24 अक्तूबर को भारत की हार के बाद मिली प्रतिक्रियाओं को देखने-सुनने के बाद चिंता हो रही है कि खेल को अब हम खेल के बजाय किसी और नजरिए से देखने लगे हैं।

यह विषयांतर है, पर मैं उसे यहाँ उठाना चाहूँगा। बहुत से लोगों के मन में सवाल आता है कि भारत में जनता पार्टी के उभार के पीछे वजह क्या है? क्या वजह है कि हम जिस गंगा-जमुनी संस्कृति और समरसता की बातें सुनते थे, वह लापता होती जा रही है? जो बीजेपी के राजनीतिक उभार को पसंद नहीं करते उनके जवाब घूम-फिरकर हिन्दू-साम्प्रदायिकता पर केन्द्रित होते हैं। उस साम्प्रदायिकता को पुष्टाहार कहाँ से मिलता है, इस पर वे ज्यादा ध्यान नहीं देते। वे भारतीय इतिहास, मुस्लिम और अंग्रेजी राज तथा राष्ट्रीय आंदोलन वगैरह को लेकर लगभग एक जैसी बातें बोलते हैं। दूसरी तरफ बीजेपी-समर्थकों के तर्क हैं, जो घूम-फिरकर दोहराए जाते हैं, पर नई घटनाएं उनके क्षेपक बनकर जुड़ी जाती हैं।
मुझे तमाम बातें अर्ध-सत्य लगती हैं। खेल के मैदान, साहित्य, संस्कृति, संगीत समेत जीवन के हर क्षेत्र में निष्कर्ष एकतरफा हैं। इतिहास के पन्ने खुल भी रहे हैं, तो इन एकतरफा निष्कर्षों को समर्थन मिल रहा है। अफगानिस्तान में तालिबान की विजय और उसके बाद भारत सरकार की नीतियों, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाने के फैसले, नागरिकता कानून, शाहीनबाग आंदोलन, किसान आंदोलन, लखीमपुर खीरी की हिंसा, डाबर का विज्ञापन और शाहरुख खान के बेटे की गिरफ्तारी सब कुछ इसी नजर से देखा जा रहा है। मीडिया की कवरेज और उनमें होने वाली बहसों की भाषा और तथ्यों की तोड़मरोड़ से बातें कहीं से कहीं पहुँच जाती हैं। टी-20 क्रिकेट भी इसी नजरिए का शिकार हो रहा है।
बहरहाल आप क्रिकेट देखें और इस घटनाक्रम पर विचार करें। सम्भव हुआ, तो इस चर्चा को आगे बढ़ाने का प्रयास करूँगा। फिलहाल क्रिकेट के इस घटनाक्रम पर मैं कुछ बातें स्पष्ट करना चाहूँगा:

एक मैच हारे, टूर्नामेंट से बाहर नहीं हुए

1.हमारी टीम एक मैच हारी है, टूर्नामेंट से बाहर नहीं हुई है। हो सकता है कि हमें पाकिस्तान के साथ फिर खेलने का मौका मिले। हो सकता है कि दोनों देश फाइनल में हों। हम यह प्रतियोगिता नहीं भी जीते, तब भी भविष्य की प्रतियोगिताएं जीतने का मौका है। इस हार से टीम ने कुछ सीखा हो, तभी अच्छा है।
2.टीम के कप्तान या किसी भी खिलाड़ी को कोसना गलत है। टीम जीत जाए, तो जमीन-आसमान एक करना और हार जाए, तो रोना नासमझी है। खासतौर से उनका विलाप कोई मायने नहीं रखता, जिन्हें खेल की समझ नहीं है।
3.इसके विपरीत जो लोग भारतीय टीम को भारतीय जनता पार्टी की टीम मानकर चल रहे हैं, वे भी गलत हैं। यह दृष्टि-दोष है। मीडिया की अतिशय कवरेज और कुछ खेल के साथ जुड़े देश-प्रेम के कारण ऐसा हुआ है। पर इस हार पर खुशी मनाने का भी कोई मतलब नहीं है।
4.हो सकता है लोग कहें, हम खुशी नहीं मना रहे हैं, केवल भक्तों का मजाक बना रहे हैं, उनकी प्रतिक्रिया भी मुझे समझ में नहीं आती। ऐसे वीडियो सोशल मीडिया में आए हैं, खासतौर से कश्मीर और पंजाब के शिक्षा-संस्थानों के जिनमें पाकिस्तानी टीम की विजय के क्षणों पर खुशी का माहौल नजर आता है। पर क्या यह राजद्रोह है? इस किस्म की प्रतिक्रियाओं की विपरीत प्रतिक्रिया होती है, जो ‘अतिशय या आक्रामक-राष्ट्रवाद’ को जन्म देती हैं।

सांप्रदायिक टिप्पणियां चिंताजनक

Several Pakistan Fans Think India Lost On Purpose, Many Indian Fans Felt We Should Intentionally Lose. This Is One Crazy World We Live In!

5.इस परिणाम पर हर्ष या विषाद के बजाय जिस तरह से साम्प्रदायिक टिप्पणियाँ हुईं, वे चिंताजनक हैं। मोहम्मद शमी को निशाना बनाने वाले ट्रोल नहीं जानते कि वे इतनी गलत बात क्यों बोल रहे हैं। अच्छा हुआ कि शमी के पीछे देश के तकरीबन ज्यादातर सीनियर खिलाड़ियों ने ट्वीट जारी किए।
6.क्या वास्तव में शमी को ट्रोल किया गया?  चर्चा इस बात की भी है कि सोशल मीडिया पर कुछ ऐसे हैंडलों ने इस ट्रोलिंग को शुरू किया, जो पाकिस्तान से संचालित होते हैं। ऐसा क्यों किया होगा? ताकि भारत में हिन्दू-मुस्लिम विभाजन बढ़े।
7.पाकिस्तान की जीत हर लिहाज से बड़ी थी। इसका वहां के क्रिकेट प्रेमियों को पिछले 29 सालों से इंतजार था। जीत का जश्न तो मने तो इसमें हैरत की बात नहीं है। कुछ लोग इसे पाकिस्तान के स्वाभिमान और इस्लाम से भी जोड़ें, तो विस्मय नहीं, क्योंकि पाकिस्तान की पहचान वही है, पर पाकिस्तान के गृहमंत्री शेख रशीद ने बहुत खराब तरीके से खेल को देखा है।
8.शेख रशीद की अनदेखी की जा सकती है, क्योंकि उनकी प्रसिद्धि वैसी ही है, जैसी भारत में गिरिराज सिंह की। वकार युनुस को विस्फोटक पारी के बजाय रिज़वान का हिंदुओं के बीच नमाज पढ़ना सबसे अच्छी बात लगी थी। एक टीवी न्यूज चैनल पर युनुस ने कहा, ‘सबसे अच्छी बात जो रिज़वान ने की कि माशाल्लाह… उसने ग्राउंड में खड़े होकर नमाज पढ़ी जो कि हिंदुओं के बीच में खड़े होकर… तो वह बहुत स्पेशल था।’ अच्छी बात यह है कि उन्होंने इस बात के लिए माफी माँग ली है। शायद उनका इरादा वही नहीं था, जो समझ लिया गया।
9.शेख रशीद के बयान के बाद मैंने सोशल मीडिया पर अनेक भारतीय मुसलमानों की प्रतिक्रिया देखी जिसमें उनकी जबर्दस्त आलोचना की गई है।

संतुलित, शालीन बर्ताव

10.मुझे भारतीय टीम के खेल को लेकर शिकायत है, पर विराट कोहली और टीम के सदस्यों का बर्ताव संतुलित और शालीन रहा है। भारत की हार के बाद मोहम्मद रिज़वान के गले लगते विराट कोहली तस्वीर अच्छा संदेश देती है। यों भी पाकिस्तान की टीम अच्छा खेलकर जीती थी। खेल में जीतने वाले को बधाई दी ही जाती है।

गेंद-बल्ले, धर्म-संप्रदाय की जंग

इस सिलसिले में बीबीसी हिन्दी की एक रिपोर्ट पढ़ने को मिली, जिसमें कहा गया है कि क्रिकेट के जुनून को ज़ाहिर करने के लिए अक्सर भारतीय उपमहाद्वीप में कहा जाता है कि क्रिकेट धर्म है, लेकिन भारत-पाकिस्तान के बीच मैच होता है तो यह धर्म कई बार अफ़ीम की तरह आता है। पाकिस्तान के मंत्री शेख़ रशीद के अलावा असद उमर का बयान और भारत में मोहम्मद शमी के ख़िलाफ़ ऑनलाइन टिप्पणियों से यही ज़ाहिर होता है। शेख़ रशीद ने यहाँ तक कह दिया था, ”दुनिया के मुसलमान समेत हिन्दुस्तान के मुसलमानों के जज़्बात पाकिस्तान के साथ हैं। इस्लाम को फ़तह मुबारक हो। पाकिस्तान ज़िंदाबाद।”
पाकिस्तान की ओर से इस तरह का बयान पहली बार नहीं आया है। 2007 के टी-20 विश्व कप फाइनल में भारत से हारने के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन कप्तान शोएब मलिक ने मुस्लिम दुनिया से माफ़ी मांगी थी। तब शोएब मलिक की भारत की टेनिस स्टार सानिया मिर्ज़ा से शादी नहीं हुई थी और भारत में बीजेपी की सरकार भी नहीं थी। हार के बाद शोएब मलिक ने कहा था, ”मैं अपने मुल्क पाकिस्तान और दुनिया भर के मुसलमानों को समर्थन के लिए धन्यवाद देता हूँ। बहुत शुक्रिया और मैं वर्ल्ड कप नहीं जीत पाने के लिए माफ़ी मांगता हूँ।” संयोग देखिए कि उस मैच में भारत के इरफान पठान मैन ऑफ़ द मैच बने थे। शोएब मलिक को आउट इरफान पठान ने ही किया था। तब शोएब मलिक के बयान की भारत के मुस्लिम नेताओं और खिलाड़ियों ने भी कड़ी निंदा की थी।

सांप्रदायिक संदर्भ की खबरें

हो सकता है कि शोएब मलिक ने जल्दबाजी में ऐसी बात कह दी हो, पर इन बातों के व्यापक निहितार्थ होते हैं। संयोग है कि इस समय हम मोहम्मद शमी के बारे में बात कर रहे हैं, जिन्हें लेकर शोएब मलिक की एक और टिप्पणी 2017 में चर्चा का विषय बनी थी। खेल हो या राजनीति जैसे ही संदर्भ साम्प्रदायिक होते हैं, खबरों का मतलब बदल जाता है और उन्हें लोग गौर से पढ़ते हैं।
अफगानिस्तान में तालिबानी शासन आने के बाद की बात है, गत 5 अक्तूबर को तालिबानी नेता अनस हक्कानी ने महमूद गज़नवी की कब्र का दौरा किया और उसके बाद एक ट्वीट किया, ‘आज, हमने 10वीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध मुस्लिम योद्धा और मुजाहिद सुल्तान महमूद गज़नवी की दरगाह का दौरा किया। गज़नवी ने (अल्लाह की रहमत उस पर हो) गजनी से क्षेत्र में एक मजबूत मुस्लिम शासन स्थापित किया और सोमनाथ की मूर्ति को तोड़ा था।’
भारत का विभाजन ऐसी परिघटना है, जो इस इलाके के जीवन और समाज को गहराई से प्रभावित कर रही है। उसके आगे-पीछे की बातों को समझने की जरूरत है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। आलेख ‘जिज्ञासा’ से)