बीकेएस के अखिल भारतीय महामंत्री ने आन्‍दोलन को बताया राजनीतिक

डॉ. मयंक चतुर्वेदी।

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले किसानों का विरोध प्रदर्शन क्यों शुरू हुआ? यह प्रश्‍न हर उस भारतीय के मन में है जो अपने देश भारत से प्‍यार करते  हैं और उसे विकसित देश के रूप में देखना चाहते हैं । इन्‍हें यह किसान नहीं, राजनीतिक आन्‍दोलन अधिक दिखाई देता है। जिसका कुल उद्देश्‍य मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनने से रोकना और बीजेपी को केंद्र की सत्‍ता से दूर करना है । यदि ऐसा नहीं होता तो जिस प्रकार से अपनी मांगों को लेकर विश्‍व का सबसे बड़ा किसान संगठन जिसकी कि सदस्‍यता वर्तमान में 50 लाख से अधिक है और मार्च 2024 के अंत तक 1 करोड़ तक सदस्‍यता हो जाने का अनुमान है, आज वह ‘‘ भारतीय किसान संघ’’ इस किसान आन्‍दोलन से अपने को बाहर कभी नहीं रखता।क्‍यों यह किसान आन्‍दोलन पंजाब के किसानों तक सीमित है और राजनीतिक है ? दरअसल, इसके कई उदाहरण अब एक के बाद एक सामने आ चुके हैं। अन्‍नदाता कभी इस तरह से आन्‍दोलन में नहीं उतरता जैसा कि युद्ध के मैदान जैसी तैयारी करते हुए लोग इस बार के किसान आन्‍दोलन के नाम पर देखे जा रहे हैं । आप देखिए; किसान आंदोलन-2 में पंजाब और हरियाणा के शंभू और खानौरी सीमाओं पर जो लोग फिर से हर हाल में दिल्‍ली पहुंचने की जिद में अड़े हैं वे कितनी अधिक तैयारी के साथ आए हैं। हद यह है कि संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा के आह्वान पर 13 फरवरी से जारी इस किसान आंदोलन ने आज अपने को पहले से और अधिक हिंसक बना लेने का निर्णय लिया है। अब यह कह रहे हैं कि 10 मार्च को देश भर में ‘रेल’ रोक दी जाएंगी।

किसानों का यह आन्‍दोलन सिर्फ एक राज्‍य पंजाब तक है सीमित

वास्‍तव में अपने को किसान नेता कहनेवाले सरवन सिंह पंढेर और जगजीत सिंह दल्लेवाल की कई बातें आज हास्‍यास्‍पद लगती हैं, जिसमें वे दावा करते हैं कि दो सौ से अधिक संगठनों का उनका यह देशव्यापी आंदोलन है । वह कहते हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और फसल खरीद गारंटी अधिनियम, स्वामीनाथन रिपोर्ट के कार्यान्वयन, किसानों की पूर्ण ऋण माफी और मांगों के पूरे चार्टर का समाधान नहीं होने तक संघर्ष जारी रहेगा। यह किसान आंदोलन हरियाणा और पंजाब के अलावा उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, हिमाचल प्रदेश सहित अन्य राज्यों में फैल गया है और आने वाले दिनों में किसान नेता इस अभियान को अन्य राज्यों में भी ले जाएंगे।

दरअसल, इन दोनों ही  किसान नेताओं सरवन सिंह पंढेर और जगजीत सिंह दल्लेवाल का यह दावा जूठा है कि किसान  आंदोलन-2 कई राज्‍यों के किसानों का संयुक्‍त आन्‍दोलन है। इस संबंध में रिपोर्टर ने भारत के दक्षिणी राज्‍य कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना, केरल के विविध क्षेत्रों, महाराष्‍ट्र, गुजरात, मध्‍यप्रदेश, उत्‍तरप्रदेश, हिमाचल, उत्‍तराखण्‍ड, पूर्वी भारत के असम समेत कई राज्‍यों में किसानों से बात की और पूछा कि क्‍या आप इस किसान आन्‍दोलन के समर्थन में हैं? कहना होगा कि अधिकांश राज्‍यों के किसानों का उत्‍तर लगभग एक समान आया।

केंद्र की सत्‍ता से भाजपा को दूर करना है इस आन्‍दोलन का लक्ष्‍य

इस संबंध में अधिकांश किसानों का मानना यही है कि केंद्र की मोदी सरकार को सत्‍ता से दूर करने के लिए यह आन्‍दोलन आप, कांग्रेस पार्टी, माओवादी, वामपंथियों और कुछ पंजाब के खालिस्‍तानी तत्‍वों का मिलाजुला आयोजन है।  इस आन्‍दोलन का भारत के संपूर्ण किसानों की भलाई से कोई लेना देना नहीं है। इनका कहना तो यहां तक है कि अन्‍य जिन भी राज्‍यों से इस किसान आन्‍दोलन में लोग भाग लेने जा रहे हैं, वे भाजपा के विरोधी किसी न किसी अन्‍य राजनीतिक पार्टी के सदस्‍य या अन्‍य किसी बीजेपी विरोधी संगठन के कार्यकर्ता हैं। उन्‍हें किसानों की मांगें पूरी हों इससे अधिक इस बात से मतलब है कि बीजेपी को केंद्र की सत्‍ता से दूर रखने में वे सफल हो जाएं।

भारतीय किसान संघ (बीकेएस) के अखिल भारतीय महामंत्री मोहिनी मोहन मिश्रा ने  इस बार के किसान आन्‍दोलन को पूरी तरह से राजनीतिक करार दिया है। इनका साफ कहना है कि  यह आन्‍दोलन सिर्फ अराजकता फैलाने, आम जनता को भ्रमित करने वाला है। ऐसे आंदोलनों से अक्सर हिंसा, अराजकता और राष्ट्रीय संपत्ति का नुकसान होता है। अच्‍छा हो अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा पूरी करने के लिए राजनीतिक दल देश के आम लोगों के मन में किसानों के प्रति नकारात्मक भावनाएं पैदा न करें।

किसान आन्‍दोलन-2 के नाम पर पहले दिन से मची हुई है अराजकता

मिश्रा ने कहा, अपनी मांगों को लेकर किसान किस तरह से आन्‍दोलन करते हैं, यह बीकेएस ने कई अवसरों पर करके दिखाया है। विश्‍व का सबसे बड़ा संगठन भारतीय किसान संघ एक अनुशासित और शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने भरोसा करता है, इसीलिए जब 19 दिसंबर 2023 को दिल्ली के रामलीला मैदान में लाखों किसानों की रैली हुई, जिसे किसान आक्रोश रैली के नाम से जाना जाता है। उसमें देश भर से किसान दिल्ली आए, शांतिपूर्ण ढंग से सरकार तक अपनी बात पहुंचाई और बिना किसी को परेशान किए वापस अपने राज्‍यों को लौट गए। यहां तो किसान आन्‍दोलन-2 के नाम पर पहले दिन से अराजकता मची हुई है।

भारतीय किसान संघ के आल इंडिया जनरल संक्रेटरी मोहिनी मोहन मिश्रा कहते हैं, ‘‘ऐसा नहीं है कि किसानों के बीच समस्‍याएं नहीं है, आज कई समस्‍याएं मौजूद हैं और जिन्‍हें किसी भी लोककल्‍याणकारी राज्‍य में दूर होना ही चाहिए, किंतु वह अराजकता फैलाकर दूर नहीं हो सकती हैं, इसके लिए बातचीत ही सबसे अच्‍छा तरीका है। पिछली बार हमारे संगठन ने भी अपने आन्‍दोलन के दौरान सरकार के समक्ष किसानों की समस्‍याओं को उठाया था, जिसमें से कई का आज समाधान हो चुका है। कुछ का नहीं हुआ, उसके लिए सरकार से लगातार बातचीत चल रही है।

आन्‍दोलनकारियों ने सही से नहीं पढ़ी स्‍वामीनाथम कमेटी की रिपोर्ट

बातचीत में एक अहम बात जो मोहिनी मोहन मिश्रा ने कही, वह है कि जिस स्‍वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट को लागू करने के नाम पर आज जो किसान आन्‍दोलन की अराजकता फैलाई जा रही है, उसका सच यह है कि जो आन्‍दोलन कर रहे हैं उन्‍होंने भी यह रिपोर्ट नहीं पढ़ी है। यदि पढ़ी होती तो शायद इस तरह से हिंसक आन्‍दोलन करने लोग सड़कों पर नहीं उतरते और न ही इस रिपोर्ट के हवाले से देश के आम लोगों को गुमराह करने की कोशिश की जाती ।

मिश्रा कहते हैं कि स्वामीनाथन के हवाले से जिस सी 2 + 50 प्रतिशत की न्यूनतम समर्थन मूल्य  (एमएसपी) के बारे में जो बात हो रही है, उसकी व्‍यवहारिकता भी आज सभी लोगों को समझनी होगी। इसमें हर राज्य में जितना कॉस्ट आफ प्रोडक्शन यानी खर्चा होता है उसको इकट्ठा करके उसका एवरेज निकाला जाता है और इसके बाद प्राइस डिक्लेअर किया जाता है ।  लेकिन आपको समझना होगा कि हर राज्‍य में लागत अलग-अलग है । कहीं कम और कहीं अधिक फर्टिलाइजर की कास्ट आती है ।

उन्‍होंने कहा कि फसल की कटाई और बुआई में लगनेवाली लागत भी एक समान नहीं है।  यहां तक कि मजदूरों के श्रम का मूल्‍य भी एक समान नहीं, 300 से 800 रुपए तक का प्रतिदिन लेबर चार्ज है । खाद और बीज से लेकर कई जगह प्रत्‍येक राज्‍य की अपनी नीति और वहां प्रति एकड़ आनेवाली लागत है । जिसके कारण से कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन हर राज्य का अलग-अलग आता है । इसलिए मैक्सिमम रिटेल प्राइस पर किसान अपने सामान को बेच सके, यह बात आज सरकार से होनी चाहिए न कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर अड़ने की आज आवश्‍यकता है।

सभी समझें; कृषि अकेले केंद्र का विषय नहीं है, लाभकारी मूल्‍य किसान का हक, वह उसे मिले

बीकेएस के अखिल भारतीय महामंत्री मिश्रा कहते हैं कि केंद्र सरकार कितने अनाजों पर एमएसपी तय करेगी। क्‍या कृषि अकेले केंद्र सरकार का विषय है ? राज्‍य सरकारों को इससे कोई सरोकार नहीं? और यदि राज्‍य का कृषि विषय है तो फिर केंद्र की मोदी सरकार के नाम पर आम आदमी और सामान्‍य किसान को आज क्‍यों भ्रमित किया जा रहा है ? भारतीय किसान संघ किसानों की उपज की लागत के आधार पर लाभकारी मूल्य की मांग को लेकर लगातार संघर्ष कर रहा है। लागत के आधार पर लाभकारी मूल्य किसान का हक है और वह उसे मिलना ही चाहिये।

किसान सम्‍मान निधि 12 हजार रुपए तक कम से कम की जाए

उन्‍होंने हाल ही में पिछले माह 23-25 फरवरी तक राजस्‍थान में सम्‍पन्‍न हुई भारतीय किसान संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में आए दो प्रस्‍तावों का हवाला देकर बताया कि किसानों के हित में हमारी प्रमुख मांगे इसमें सर्व सम्‍मति से पास की गई हैं। भारतीय किसान संघ का मानना है कि किसान सम्मान निधि में बढ़ोतरी की जानी चाहिए। अभी जो छह हजार रुपए दी जाती है, उसे कम से कम 12 हजार रुपए तक किया जाना चाहिए, तभी गरीब किसानों का कुछ हित होगा।  फर्टिलाइजर सब्सिडी के नाम पर कंपनियों को पैसा नहीं दिया जाना चाहिए, बल्‍कि यह भी किसान के खाते में डाला जाए, ताकि वह अपनी सुविधानुसार  इस राशि का उपयोग कर सके।

किसानों के लिए जीएसटी इनपुट समाप्‍त हो, क्रेडिट इनपुट मिले

भारतीय किसान संघ का स्‍पष्‍ट मानना है कि ‘‘किसान मंडी में और मंडी के बाहर भी टैक्स दे रहे हैं, जोकि अनुचित है। इसको सरकार द्वारा समाप्‍त किया जाना चाहिए।  ट्रैक्टर,पंप, और दूसरे खेती के इनपुट पर जीएसटी लग रहा है।  कानून के हिसाब से किसानों को इनपुट क्रेडिट मिलना चाहिए। जोकि अभी नहीं मिल रहा है।  भारतीय किसान संघ ने मांग की है कि जीएसटी इनपुट पर खत्म करके किसानों को क्रेडिट इनपुट देना चाहिए।  कुल मिलाकर कृषि आदानों पर जीएसटी समाप्त की जाये। घोषित समर्थन मूल्य से बाजार भाव नीचे न जाए। इसको सरकार सुनिश्चित करे।’’

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जीएम बीज की अनुमति नहीं मिले, जैविक खेती को बढ़ावा देनेवाली नीति लागू हो

मोहिनी मोहन मिश्रा कहते हैं, ‘‘जीएम बीज की अनुमति नहीं दी जाये। जैविक खेती पर जोर हो और सरकार की नीतियां इस प्रकार की हों कि देश के सभी राज्‍यों में जैविक खेती को बढ़ावा मिल सके। आज बीज और बाजार किसानों की मुख्य समस्या है। चाहे बाजार के अंदर हो या बाहर, बीज और बाजार में किसानों का शोषण बंद होना चाहिए। बीज किसान का अधिकार है, यह किसी कंपनी या सरकार का हक नहीं, यह भी सभी राज्‍यों की सरकारों को आज समझना होगा।’’

उन्‍होंने कहा कि जिस तरह से इस आन्‍दोलन को देश व्‍यापी बताने का प्रयास हो रहा है, वह भी पूरी तरह से गलत है; क्‍योंकि देश की राजधानी दिल्‍ली से लगे राज्‍य हरियाणा के किसान भी इस आन्‍दोलन से खुश नहीं हैं। वह इस आन्‍दोलन का समर्थन नहीं कर रहे। अभी का आंदोलन एक दूसरी दिशा में जा रहा है, जिसका कि सीधे तौर पर किसानों के हित से नहीं पूरी तरह से अपना राजनीतिक हित साधना उद्देश्‍य है।

बीकेएस के राष्‍ट्रीय महामंत्री मोहिनी मोहन मिश्रा कहते हैं, ‘भारतीय किसान संघ आज विश्‍व का सबसे बड़ा किसान संगठन है, हम इस आन्‍दोलन का समर्थन नहीं करते, इसी से आप समझलीजिए कि जिसे आज किसान आन्‍दोलन-2 कहा जा रहा है, उसे देश के कितने किसानों का समर्थन प्राप्‍त है। फिर भी जो है ; सरकार आन्‍दोलनकारियों से लगातार बातचीत करती रहे और समाधान का कोई हल निकाले, लगातार हिंसक होते इस आन्‍दोलन को जितना जल्‍द समाप्‍त किया जाएगा, देश का हित उसी में है।’(एएमएपी)