अनूप भटनागर।
गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिल्ली में कृषि कानूनों के विरोध में किसानों की समानांतर प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली पर रोक लगाने की अर्जी पर उच्चतम न्यायालय से किसी प्रकार की राहत नहीं मिलने के बाद अब गेंद केन्द्र सरकार के पाले में आ गयी है। न्यायालय ने दो टूक शब्दों में कहा है कि यह कानून व्यवस्था का मामला है और इसके लिये पुलिस के पास पर्याप्त शक्तियां हैं। चूंकि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली की कानून व्यवस्था केन्द्र सरकार के अधीन है, इसलिए माना जा रहा है कि न्यायालय की आज की टिप्पणियों के परिप्रेक्ष्य में पुलिस को स्थिति से निबटने के लिये कानून के दायरे में रहते हुए सभी उचित कदम उठाने की खुली छूट मिल गयी है।
समाधान के प्रयासों में खास प्रगति नहीं
इसमें संदेह नहीं है कि कृषि कानूनों के खिलाफ आन्दोलनरत किसानों की शंकाओं और समाधान के प्रयासों में कोई विशेष प्रगति नहीं हुई है और कुछ किसान यूनियन या कहें इनकी आड़ में कुछ विघटनकारी तत्व लगातार नये नये अड़ंगे डाल रहे हैं। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डालने वाली किसान यूनियन और उनके सदस्य पूरे देश के किसानों का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे हैं।
निर्णय लेने का पहला अधिकार पुलिस का
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने दो टूक शब्दों में कहा है कि प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली कानून व्यवस्था का मामला है और यह निर्णय लेने का पहला अधिकार पुलिस का है कि राष्ट्रीय राजधानी में किसे प्रवेश की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं दी जानी चाहिए।
न्यायालय ने बगैर किसी किंतु परंतु के कहा है कि इस तरह के मामले से निपटने का पूरा अधिकार पुलिस के पास है।
केन्द्र सरकार का कहना था कि गणतंत्र दिवस समारोहों में बाधा डालने की कोई भी कोशिश या प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली ‘‘देश के लिये शर्मिंदगी’’ का कारण बनेगी और इसलिये न्यायालय को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए। परंतु केन्द्र को इसमें अपेक्षित सफलता नहीं मिली।
हां, इतना जरूर हुआ कि संक्षिप्त सुनवाई के दौरान न्यायालय ने सारी स्थिति पर आश्चर्य व्यक्त करते हुये अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल से यह जरूर कहा, ‘‘क्या उच्चतम न्यायालय बताएगा कि पुलिस की क्या शक्तियां हैं और वह इनका इस्तेमाल कैसे करेगी? हम आपको यह नहीं बताने जा रहे कि आपको क्या करना चाहिए। दिल्ली में प्रवेश का मामला कानून व्यवस्था से जुड़ा है और पुलिस इस पर फैसला करेगी।’’
समाधान की दिशा में कुछ उम्मीद
न्यायालय ने हालांकि, किसानों से जुड़े सारे मामले की सुनवाई 20 जनवरी को करने का निश्चय किया है, लेकिन इस बीच कृषि कानूनों को लेकर चल रहे विवाद के समाधान की दिशा में कुछ उम्मीद उस समय नजर आयी जब वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने पीठ को सूचित किया कि वह कुछ किसान संगठनों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
समिति के कुछ सदस्य बदलने का अनुरोध
इस बीच, एक अन्य किसान यूनियन की ओर से पेश अधिवक्ता एपी सिंह ने कहा कि उन्होंने न्यायालय द्वारा गठित चार सदस्यीय समिति के कुछ सदस्यों को बदलने का अनुरोध करते हुए एक हलफनामा दाखिल किया है। उनका कहना है कि इस विवाद के समाधान के लिये जरूरी है कि समिति में ऐसे लोगों को शामिल किया जाये जो परस्पर सद्भाव के आधार पर काम कर सकें।
न्यायालय ने किसानों की समस्याओं और शंकाओं पर विचार कर अपने सुझाव देने के लिये 12 जनवरी को चार सदस्यीय समिति गठित की थी। इस समिति में भारतीय किसान यूनियन के भूपेंद्र सिंह मान, अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान के दक्षिण एशिया के निदेशक डॉ. प्रमोद कुमार जोशी, कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और शेतकरी संगठन के अध्यक्ष अनिल घनवत को शामिल किया गया था।
समिति को अपनी पहली बैठक की तारीख से दो महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट न्यायालय को सौंपनी थी। लेकिन समिति का काम शुरू होने से पहले ही भारतीय किसान यूनियन भूपेंद्र सिंह मान ने इससे खुद को अलग कर लिया।
कृषि कानूनों के अमल पर अंतरिम रोक
इस समिति का गठन करने संबंधी आदेश में न्यायालय ने अगले आदेश तक इन कृषि कानूनों के अमल पर अंतरिम रोक लगा दी थी। साथ ही उसने स्पष्ट किया था कि फसलों के लिये नये कानून लागू होने से पहले प्रभावी न्यूनतम समर्थन मूल्य अगले आदेश तक जारी रहेंगे और नये कानूनों की वजह से किसी भी किसान को उसकी जमीन से बेदखल नही किया जायेगा और न ही इससे उन्हें उनकी जमीनों के मालिकाना हक से वंचित किया जायेगा।
इतने स्पष्ट और किसानों के हितों की रक्षा करने वाले न्यायालय के अंतरिम आदेश के बावजूद कुछ किसान यूनियनों ने समिति के समक्ष पेश होने से इंकार कर दिया। इन यूनियनों और कुछ विपक्षी दलों ने समिति के सदस्यों की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुये कहा था कि ये सभी नये कृषि कानूनों के हिमायती हैं।
अब चूंकि एक किसान यूनियन ने समिति के सदस्यों में बदलाव करने का अनुरोध करते हुये आवेदन दाखिल किया है और कुछ किसान यूनियनों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता , जो उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष भी हैं, दुष्यंत दवे पेश हुए हैं, अब इस गतिरोध को दूर करने की दिशा में सकारात्मक प्रगति होने की उम्मीद है।
फिलहाल तो यह देखना है कि दिल्ली पुलिस और केन्द्र सरकार उच्चतम न्यायालय ने आज मिली झिड़की के बाद किसानों की प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली की चुनौती से निबटने के लिये क्या कदम उठाती है।