कलाकारः राजकुमार राव, जाह्नवी कपूर, वरुण शर्मा, मानव विज, सरिता जोशी, एलेक्स ओ’नील
निर्देशकः हार्दिक मेहता
निर्माताः दिनेश विजन, मृगदीप सिंह लांबा
संगीतः सचिन-जिगर
राजीव रंजन ।
पिछले साल कई फिल्में बन कर तैयार थीं रिलीज के लिए, लेकिन कोरोना के कारण उनकी रिलीज अटक गई। कई निर्माताओं ने ज्यादा इंतजार करने की बजाय अपनी फिल्म को ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज करने का निर्णय लिया, जिसकी शुरुआत हुई शुजीत सरकार निर्देशित अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना स्टारर ‘गुलाबो सिताबो’ से, जो अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज की गई। इसके बाद अनु मेनन निर्देशित और विद्या बालन स्टारर ‘शकुंतला देवी’ (अमेजन प्राइम वीडियो), शरण शर्मा निर्देशित और जाह्नवी कपूर स्टारर ‘गुंजन सक्सेनाः द कारगिल गर्ल’ (नेटफ्लिक्स), सुशांत सिंह राजपूत की आखिरी फिल्म ‘दिल बेचारा’, जो प्रसिद्ध कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा की बतौर निर्देशक पहली फिल्म थी, डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज हुई। करीब दो दशक के लंबे अंतराल के बाद निर्देशन में वापस लौटे महेश भट्ट ने अपनी फिल्म ‘सड़क 2’ को डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर ही रिलीज किया, जिसमें उनकी बेटी आलिया भट, संजय दत्त जैसे बड़े सितारे थे। यहां तक कि अक्षय कुमार जैसे बड़े सितारों ने भी थियेटर फिर से खुलने का इंतजार करने की बजाय ओटीटी की राह चुनी। राघव लॉरेंस निर्देशित उनकी फिल्म ‘लक्ष्मी’ डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज हुई। इसके बाद अनुराग बसु निर्देशित और अभिषेक बच्चन, राजकुमार राव तथा पंकज कपूर जैसे सितारों वाली ‘लूडो’ नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई। डेविड धवन निर्देशित गोविंदा की सुपरहिट फिल्म ‘कुली नंबर वन’ की बहुप्रतीक्षित रीमेक को भी दर्शकों ने ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेजन प्राइम वीडियो पर ही देखा। इस फिल्म के निर्देशक भी डेविड धवन ही थे और हीरो थे उनके स्टार बेटे वरुण धवन, जबकि हीरोइन थीं एक और स्टार सैफ अली खान की बेटी सारा अली खान। इनके अलावा भी कई मध्यम और छोटी बजट की फिल्में ओटीटी प्लेटफॉर्मों पर रिलीज हुईं।
लेकिन कई निर्माता ऐसे थे, जिन्होंने थियेटरों के फिर से खुलने का इंतजार किया। ‘रूही’ ऐसी ही एक फिल्म है। यह बॉलीवुड की पहली बड़ी फिल्म है, जो कोरोना काल में थियेटरों में रिलीज हुई है। यह एक साल से ज्यादा समय से बन कर तैयार थी। पहले यह 20 मार्च 2020 को रिलीज होने वाली थी, लेकिन कोरोना की वजह से इसकी रिलीज टलती गई। इस बीच इसका नाम भी ‘रूही अफजाना’ से बदल कर ‘रूही’ हो गया। खैर, करीब एक साल बाद 11 मार्च 2021 को यह फिल्म आखिरकार थियेटरों में रिलीज हो गई।
जब फिल्म के टाइटल्स शुरु होते हैं, तो उस पर लिखा आता है- ‘फ्रॉम द मेकर्स ऑफ स्त्री’ यानी इस फिल्म का निर्माण भी उन्हीं लोगों ने किया है, जिन्होंने ‘स्त्री’ बनाई थी। जाहिर है, यह निर्माताओं द्वारा ‘स्त्री’ से बनी साख को भुनाने की कोशिश है। राजनीति में तो साख कुछ दिनों तक काम दे देती है, लेकिन फिल्मों के साथ ऐसा नहीं है। यहां साख फिल्म की रिलीज से पहले तक या ज्यादा से ज्यादा रिलीज के एक-दो दिन बाद तक ही काम आ सकती है। उसके बाद फिल्म की गुणवत्ता ही उसे आगे ले जा सकती है। हालांकि यह कहना बहुत मुश्किल है कि दर्शकों को कब क्या पसंद आ जाए, फिर भी पिछले सालों के चलन को देखते हुए कहा जा सकता है कि दर्शक अब आमतौर पर अच्छी कहानियां देखना चाहते हैं। खैर, ‘स्त्री’ की तरह ‘रूही’ भी ‘हॉरर-कॉमेडी’ शैली की फिल्म है।
एक गांव है बागड़पुर। बोली से ऐसा लगता है कि यह संभवतः बुंदेलखंड इलाके का कोई गांव होगा। यहां ‘पकड़ाई शादी’ का खूब चलन है। दबंग लोगों को कोई लड़की पसंद आ जाती है, तो उसका अपहरण कराके शादी कर लेते हैं। अपहरण करने का ठेका लेता है शकील गुनिया (मानव विज), जो अपने इलाके का बड़ा गुंडा है। भंवरा पांडे (राजकुमार राव) और कट्टानी कुरेशी (वरुण शर्मा) उसके लिए ये काम करते हैं। हालांकि भंवरा का सपना एक बड़े चैनल में बड़ा एंकर और रिपोर्टर बनना है, इसीलिए वह एक स्थानीय अखबार में रिपोर्टर का भी काम करता है। शकील गुनिया दोनों को एक लड़की रूही (जाह्नवी कपूर) की फोटो भेजकर अपहरण करने का आदेश देता है। दोनों रूही को उठा लेते हैं, लेकिन अचानक दुल्हे के एक करीबी रिश्तेदार की मौत हो जाती है और शादी टल जाती है। शकील के कहने पर भंवरा और कट्टानी, रूही को जंगल में बनी एक फैक्ट्री में लेकर जाते हैं। वहीं भंवरा को पता लगता है कि सीधी-सादी, डरी-सहमी रूही का एक अलग रूप भी है। उसमें एक और लड़की रहती हैं- अफ्जाना। भंवरा को सीधी-सादी रूही से प्यार हो जाता है और कट्टानी को अफ्जाना से। इसके बाद कुछ विचित्र प्रकार के घटनाक्रम शुरू हो जाते हैं…
फिल्म की स्टोरीलाइन ठीक है, लेकिन स्क्रिप्ट बहुत कमजोर है। कहानी में संभावनाएं होने के बावजूद लेखक और निर्देशक विषय को ढंग से आगे नहीं बढ़ा पाए हैं। कमजोर पटकथा की वजह से यह फिल्म प्रभाव नहीं छोड़ पाती है। किसी किसी दृश्य के देखकर लगता है कि शायद आगे कुछ अच्छा और रोचक देखने को मिलेगा, लेकिन अगले ही दृश्य में फिल्म पटरी से उतर जाती है। ऐसा एक बार नहीं, बार-बार होता है। ‘कामयाब’ से हार्दिक मेहता ने एक अच्छे निर्देशक के रूप में संभावनाएं जगाई थीं, लेकिन ‘रूही’ में वे बेरंग नजर आते हैं। फिल्म पर उनकी पकड़ सीन-दर-दर ढीली पड़ती जाती है। क्लाइमैक्स तो समझ में ही नहीं आता है। हालांकि इसमें कमजोर पटकथा का भी पूरा योगदान है।
फिल्म में कुछ अच्छी चीजें भी हैं, लेकिन ज्यादातर चीजें सिर के ऊपर से गुजर जाती हैं। ऐसा इसलिए नहीं, कि उनमें कोई बहुत दार्शनिकता है, बल्कि इसलिए कि उनका कोई ओर-छोर ही पता नहीं चलता। तर्क की बात तो छोड़िए, कहानी में तारतम्य भी नहीं दिखाई पड़ता। हां, फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक जरूर असरदार है। फिल्म में थोड़ा-बहुत जो भय पैदा होता है, वह म्यूजिक की वजह से ही पैदा होता है, स्क्रिप्ट की वजह से नहीं। एक बात और, इस फिल्म के लेखकों ने एक हिम्मत का काम किया है। उन्होंने भूत-प्रेत झाड़ने वाले सिर्फ हिन्दू तांत्रिक-ओझाओं को ही नहीं दिखाया है, बल्कि चंगाई सभा करने वाले पादरी और मुसलमान फकीर के भी मजे भी लिए हैं।
जाह्नवी कपूर को छोड़ दें, तो इस फिल्म का अभिनय पक्ष ठीक है। राजकुमार राव अच्छे अभिनेता हैं और इस फिल्म में भी उनका काम बढ़िया है। कॉमेडी उन्होंने अच्छी की है, उनका लहजा प्रामाणिक लगता है। लेकिन वे जिस क्षमता के अभिनेता हैं, वैसे नजर नहीं आए हैं। इसमें दोष उनका नहीं, एक बार फिर से स्क्रिप्ट का ही है। जाह्नवी के किरदार पर इस फिल्म का नाम है। लेकिन उनके किरदार को ठीक से गढ़ा ही नहीं गया है। उनके जिम्मे संवाद बहुत कम आए हैं। अफ्जाना वाली भूमिका में तो वे फिर भी ठीकठाक हैं, लेकिन रूही वाली भूमिका में उनका अभिनय बहुत साधारण है। इस फिल्म में सबसे बढ़िया काम किया है वरुण शर्मा ने। उनकी कॉमिक टाइमिंग शानदार है। इस फिल्म में हंसी और राहत के ज्यादातर पल वही लेकर आए हैं। वरुण के पास कॉमेडी की कला है, उन्होंने लगभग अपनी हर फिल्म में इस बात को साबित किया है। बुढ़िया की छोटी-सी भूमिका में सरिता जोशी शानदार लगी हैं। मानव विज का अभिनय भी ठीक है, उनके किरदार में ज्यादा संभावनाएं थीं भी नहीं।
कुल मिलाकर, यह फिल्म न तो डरा पाती है, न ठीक से हंसा पाती है और न ही प्रभावी तरीके से अपना संदेश दे पाती है। लेखक और निर्देशक ने महिला विमर्श को लेकर फिल्म का ताना-बाना बुना है, लेकिन वह विमर्श बस स्टोरी आइडिया तक ही सिमट कर रह गया है, पर्दे पर नहीं उतर पाया है। इस फिल्म में बारे में निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि यह ‘स्त्री’ के आसपास भी नहीं ठहरती।