बायोफ्लाक विधि से मत्स्य पालन कर स्वावलंबी बन रहे मत्स्य पालक। 
टैंक में छह माह में ही बाजार के लायक तैयार होती हैं मछलियां। 

जल संरक्षण में बायोफ्लाक विधि से मत्स्य पालन वरदान बन रहा है। कम जगह में टैंक बनाकर कम पानी में मत्स्य पालन होता है। टैंक में मछली महज छह माह में ही बाजार में बेचने के लायक तैयार हो जाती है। इस विधि से मत्स्य पालन कर लोग आर्थिक स्वावलंबी बनने के साथ ही जल संरक्षण में मददगार बन ही रहे हैं। विकास खंड राजगढ़ के हिमांशु सिंह, राजशेखर सिंह, बालेंद्र सिंह के साथ ही कमला देवी और प्रिया सिंह बायोफ्लाक विधि से मत्स्यपालन करअन्य लोगों के लिए नजीर बन रही हैं।बायोफ्लाक तकनीक से महज आठ मीटर व्यास के तरपोलिन शीट में सुगमता से मत्स्य पालन कर सकते हैं। इससे कम पानी में मत्स्य पालन होने के कारण जल संरक्षण को भी बढ़ावा मिल रहा है। उप निदेशक मत्स्य डीएस बघेल के अनुसार प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत बायोफ्लाक विधि से मत्स्य पालन को बढ़ावा देने की तैयारी चल रही है। बायोफ्लाक पद्धति में 8 मीटर व्यास के पालीशीट तथा लाइनर लगा के पंगेसियस प्रजाति का पालन किया जाता है। इसमें 0.1 हेक्टेअर जमीन में टैंक की स्थापना कर सघन पद्धति से मत्स्य पालन किया जाता है। इस पद्धति की खूबी है कि इसमें जो भी मछलियों की गंदगी निकलती है, उसे उसी पानी में बैक्टीरिया को बढ़ाकर गंदगी को दूर किया जाता है। इसमें अमोनिया को नाइट्रेट तथा नाइट्राइट में बदल कर फिर साफ कर दिया जाता है। इससे बहुत ही कम जगह लगभग आठ बिस्वे में स्थापित कर मत्स्य पालन कर अच्छी आय कर सकता है।

प्रति टैंक से दो टन मछली उत्पादन

मत्स्य विकास अधिकारी अभिषेक वर्मा ने बताया कि प्रत्येक टैंक से 1.5-2 टन मछली का उत्पादन किया जाता है। छोटे मत्स्यपालक अच्छी आमदनी कर सकते है। एक टैंक से लगभग एक से 1.5 लाख रुपये की आय प्राप्त की जा सकती है। इसमें पानी का तापमान, घुलित आक्सीजन, पीएच और अन्य पैमाने पूरी तरह से नियंत्रण में रहते है। इसमें छह से आठ महीने में 800 ग्राम से 1.25 किलोग्राम तक की मछली उत्पादित की जाती है। इन टैंक के पानी को यदि खेतों में सिचाई की जाए तो फसलों में यूरिया और डीएपी डालने की जरूरत ही नहीं होगी और पूरी फसल कार्बनिक हो जाएगी।

साल भर में 12 से 15 लाख रुपये का मुनाफा

बायोफ्लाक के एक बड़े जार में साल भर लगभग 25 टन मछली का पालन व उत्पादन किया जाता है, जिससे लगभग साल भर में 12 से 15 लाख रुपये का मुनाफा होता है। बायोफ्लाक में लगभग 14 लाख रुपये खर्च आता है।

विंध्याचल मंडल के 56 स्थानों पर मत्स्य उत्पादन

मुख्य कार्यकारी अधिकारी मत्स्य विवेक तिवारी ने बताया कि वर्तमान में विंध्याचल मंडल के मीरजापुर में 32, सोनभद्र में 12 और भदोही में 12 सहित 56 स्थानों पर बायोफ्लाक विधि से मत्स्य उत्पादन किया जा रहा है।(एएमएपी)