जाति-जाति का शोर मचाते केवल कायर क्रूर

#pradepsinghप्रदीप सिंह।
पिछले कुछ महीनों से देश में एक अजीब सा वातावरण बना हुआ है, खासतौर से उत्तर भारत में। गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस को लेकर तरह-तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं। उनकी चौपाइयों-दोहों को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं और विमर्श यह तैयार किया जा रहा है कि यह दलितों और पिछड़ों के खिलाफ है। उसको जातिवादी रंग देने की कोशिश हो रही है। एक साहित्यिक रचना, एक धार्मिक ग्रंथ को इस रूप में पेश करना जो ग्रंथ हिंदुस्तान के घर-घर में है, जिसका सम्मान पीढ़ी दर पीढ़ी होता आ रहा है, उसको लेकर अपने राजनीतिक हित के लिए सवाल उठाए जा रहे हैं। सवाल उठाने वालों को न रामचरितमानस की जानकारी है, न उसके अंदर की जानकारी है, न उसमें जो लिखा है उसकी समझ है। यह विवाद काफी दिन से चल रहा था जिसकी शुरुआत बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव ने की थी। उन्होंने मनुस्मृति, रामचरितमानस और  हेडगेवार की किताब बंच ऑफ थॉट्स को लेकर कहा था कि ये तीनों नफरत फैलाने वाली किताबें हैं।
क्रांतिकारी काव्य और साहित्य के ज़रिये आज भी अमर है 'दिनकर' - Ramdhari singh Dinkar
रामचरितमानस के बारे में इस तरह की बात बोलने के लिए जो बुद्धिमत्ता, जो अधिकार होना चाहिए वह इनमें से किसी के पास नहीं है। चाहे चंद्रशेखर हों या समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य जो इस समय अखिलेश यादव के सबसे चहेते हैं। इस मुद्दे को उठाने के बाद अखिलेश यादव ने उन्हें प्रमोशन दिया कि जैसे उन्होंने बहुत बड़ा काम किया हो, बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल की हो। लंबे समय से यह सब चल रहा था जिसका जवाब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में दिया है। मुझे लगता है कि उनका यह जवाब रामचरितमानस को मानने वाले, बल्कि दुनिया भर में जहां भी जो भी हिंदू हैं उसके मन को संतुष्ट करने वाला, उसके मन को आश्वस्त करने वाला, उसके मन को गर्व से भर देने वाला है। उन्होंने एक संत की तरह, एक समाज सुधारक की तरह और एक राजनेता की तरह जवाब दिया। उनके पूरे शब्दों और शैली में कहीं भी कटुता नहीं थी, कहीं भी विद्वेष का भाव नहीं था लेकिन हिंदू धर्म के प्रति हो रहे इस तरह के अपमानजनक व्यवहार की पीड़ा जरूर थी।

संदर्भ और कालखंड को समझाना जरूरी

उन्होंने अपनी बात की शुरुआत राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता की कुछ पंक्तियों से की। वह कविता है, “मूल जानना बड़ा कठिन है नदियों का, वीरों का, धनुष छोड़कर और गोत्र क्या होता रणधीरों का? पाते हैं सम्मान तपोबल से भूतल पर शूर, जाति जाति का शोर मचाते केवल कायर क्रूर”। रामधारी सिंह दिनकर ने यह लिखा है। वह भारतीय जनता पार्टी के नेता नहीं थे, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक नहीं थे और न ही मोदी भक्त थे। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि जिस कालखंड में यह रचना रची गई है, जिस भाषा-बोली में यह लिखी गई है उसको समझने की जरूरत है। उस समय की जो प्रचलित सामाजिक मान्यताएं थीं उसको समझने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि तुलसीदास जी को तो अकबर ने अपने दरबार में बुलाया था। वह चाहता था कि वह उनके दरबार का हिस्सा बनें लेकिन तुलसीदास ने टका सा जवाब दिया था, “हम चाकर रघुवीर के पढ़यो लिखो दरबार, तुलसी अब का होंगे नर के मनसबदार” यानी हम तो भगवान राम के चाकर हैं और यह दरबार तो पढ़े-लिखे लोगों का है। भगवान की चाकरी छोड़कर क्या तुलसी मनुष्य के चाकर बनेंगे। यह वह समय था जब महिलाओं पर सबसे ज्यादा खतरा था। भारतीय संस्कृति के इतिहास में महिलाएं अगर सबसे ज्यादा असुरक्षित थीं तो वह मुस्लिम और मुगल शासकों के राज में थीं। उस समय यह लिखा गया और इसका संदर्भ भी योगी आदित्यनाथ ने समझाया।

भय बिन होत न प्रीत

संदर्भ यह है कि भगवान राम लंका पर चढ़ाई की तैयारी कर रहे थे और समुद्र से रास्ता देने की प्रार्थना कर रहे थे। अब आप देखिए कि भगवान कुछ भी कर सकते थे, उनका भक्त जो कर सकता था वह भी भगवान ने अपनी शक्ति से नहीं किया। भगवान के भक्त यानी हनुमान जी, हनुमान जी को लंका जाने के लिए पुल की जरूरत नहीं पड़ी थी, वह समुद्र लांघ कर गए थे। भगवान चाहते तो क्षण भर में यह सब हो सकता था लेकिन वह तीन दिन तक समुद्र की प्रार्थना करते रहे। इस दौरान लक्ष्मण बड़े अधीर हो रहे थे कि यह नहीं करना चाहिए। तीन दिन बाद भी जब समुद्र पिघला नहीं और मार्ग देने को तैयार नहीं हुआ तब भगवान राम ने कहा- “विनय न मानत जगत जन, गए तीन दिन बीत, बोले राम सकोप तब, भय बिन होत न प्रीत”। लक्ष्मण का चेहरा खिल गया, वह चाहते थे कि यही होना चाहिए। ताकतवर की ही बात सुनी जाती है। जब भगवान राम ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई तो सागर देवता प्रकट हुए, “प्रभु भल कीन्हीं बल्कि मोही दीजै सीख, मर्यादा पूरी तुम्हरे की जय, ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी”। यह पूरा संदर्भ है। समुद्र कह रहा है कि अच्छा हुआ आपने मुझे सीख दे दी, अच्छा हुआ आपने मुझे समझा दिया, अच्छा हुआ आपने मेरी आंखें खोल दी और अपनी मर्यादा को कायम रखा। अब इसका जो भाष्य किया जाता है जिनको रामचरितमानस को बुरा बताना है, जिनको हिंदू धर्म को गाली देना है, जिनको सनातन धर्म के खिलाफ एक विमर्श खड़ा खड़ा करना है, जिनको हिंदुओं को जातियों में बांटना है, जो जाति की राजनीति करना चाहते हैं क्योंकि वह हिंदुत्व से लड़ नहीं सकते। वह जाति की राजनीति करना चाहते हैं क्योंकि वह भारतीय संस्कृति से लड़ नहीं सकते। ऐसे लोगों के लिए एक ही आसरा है कि समाज में विभेद पैदा करो, उसके लिए ऐसी रचनाओं का भाष्य करो जो उनका मूल अर्थ हो ही नहीं, उसे गलत रूप में पेश करो।

ताड़ना का मतलब और संदर्भ अलग-अलग

ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी, इस पंक्ति में जो प्रश्न उठता है वह एक शब्द ताड़ना पर उठता है। यह रचना रची गई है चित्रकूट में। चित्रकूट बुंदेलखंड में आता है इसलिए वहां की बोली का भी प्रभाव है। मुख्यमंत्री ने इसका उदाहरण भी दिया कि बुंदेलखंड में अगर कहें कि मोर लड़का को ताड़े रहियो तो इसका क्या मतलब है, उसको पीटना। इसका मतलब है उसकी देखभाल करना, उसको संरक्षण देना, उसका ध्यान रखना। उन्होंने दूसरा उदाहरण दिया, भैया एतनी देर से एका ताड़ताहा, मतलब इतनी देर से इसको देख रहे हैं। ताड़ना को जिस संदर्भ में बताने की कोशिश हो रही है और उसका इस्तेमाल जिस संदर्भ में रामचरितमानस में किया गया है दोनों अलग-अलग हैं। अब सवाल यह है कि इन लोगों के लिए क्यों ऐसा कहा गया है। ढोल को जब पीटते हैं तब वह बजता है और उससे धुन निकलता है तो उसकी देखभाल करना जरूरी है। सिर्फ उसको बजाते रहेंगे, उसकी देखभाल नहीं करेंगे तो एक दिन काम नहीं आएगा। गंवार का मतलब अशिक्षित व्यक्ति है जिसको देखभाल की जरूरत है, उसको समर्थन की जरूरत है। शूद्र शब्द को सीधे जोड़ दिया जाता है दलितों से। शूद्र का मतलब वर्ण व्यवस्था में वह जो श्रमजीवी हैं, जो श्रम का काम करते हैं, जो श्रमिक हैं उनके लिए है। योगी जी ने कहा भी कि डॉ. अंबेडकर ने इसीलिए कहा था कि दलितों को शूद्र कहना बंद कीजिए, दलित शूद्र नहीं हैं। पशु का मतलब आप समझ ही रहे हैं कि उनको रक्षा की, संरक्षण की जरूरत होती है। वह अपनी व्यथा तो व्यक्त भी नहीं कर सकते। नारी के बारे में मैंने शुरू में ही जिक्र किया कि जिस कालखंड में यह लिखा गया है उस समय नारी सबसे असुरक्षित थी। उसको सुरक्षा की बहुत ज्यादा जरूरत थी।

बुद्धि विरासत में नहीं मिलती

समुद्र कह रहा है कि इन सबको संरक्षण की जरूरत है। वह हाथ जोड़कर कहता है कि यह आपकी मर्यादा के अनुरूप है कि आपने मुझे इसकी शिक्षा दी, इसके बारे में बताया। संदर्भ को समझे बिना, शब्द का अर्थ समझे  बिना अनर्थ करने की कोशिश हो रही है क्योंकि हिंदू धर्म के खिलाफ बोलना बहुत आसान है। योगी जी ने कहा कि किसी और मत-मजहब के बारे में ऐसा बोलकर दिखाइए। सिर्फ और सिर्फ हिंदुओं के अपमान और पूरे हिंदू समाज के अपमान के लिए ऐसा किया जा रहा है। फिर उन्होंने एक किस्सा सुनाया कि वह पार्लियामेंट्री डेलिगेशन में मॉरीशस गए थे। जो लोग गिरमिटिया बनकर वहां गए थे अब वे सामाजिक रूप से बड़ी अच्छी स्थिति में हैं। कोई प्रधानमंत्री है, कोई मंत्री है, कोई राष्ट्रपति बना है। उनसे पूछा कि भारत से जब आए थे उसके बाद से कुछ बचा है, तो उन्होंने कहा कि एक ही चीज बची है रामचरितमानस का गुटखा। रामचरितमानस के महत्व को इससे समझिए कि सैकड़ों साल से जिन लोगों ने इतना संघर्ष किया, इतनी पीड़ा सही उन्होंने रामचरितमानस को बचाकर रखा और उसको गाली कौन दे रहे हैं, उसकी प्रतियां कौन फाड़ रहे हैं। योगी जी ने कहा कि उत्तर प्रदेश राम-कृष्ण की धरती है, गंगा-जमुना की धरती है, इस बात पर हमें गर्व होना चाहिए कि रामचरितमानस की रचना उत्तर प्रदेश में हुई। इसके विपरीत हिंदुओं को अपमानित करने का काम हो रहा है। फिर उन्होंने व्यंग किया कि विरासत में और बहुत सी चीजें मिल सकती हैं लेकिन बुद्धि विरासत में नहीं मिलती। उन्होंने अपने भाषण का अंत यह कहते हुए किया, “जाको विधि दारुण दुख दीन्हा ताकि मति पहले हर लीना”।
यह समाजवादी पार्टी का हाल है, उत्तर प्रदेश और बिहार की मंडलवादी पार्टियों का हाल है। इसका रोग बढ़ रहा है उन लोगों के बीच में जो सनातन धर्म के विरोधी हैं, जो सनातन धर्म को खलनायक बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उसी रास्ते पर कांग्रेस भी जा रही है। कांग्रेस ने तय किया है कि 2024 के लोकसभा चुनाव का जो विमर्श होगा उसमें प्रमुख होगा जाति। जाति की बात जो भी करे तो समझ लीजिए कि वह हिंदू धर्म को तोड़ने की कोशिश कर रहा है, हिंदुओं को बांटने की कोशिश कर रहा है क्योंकि इन लोगों को लगता है कि इनकी राजनीति तभी फल-फूल सकती है जब हिंदू विभाजित हों, जिस तरह से मुगल, मुस्लिम, ब्रिटिश और नहेरू काल में था, उसी तरह से हिंदू विभाजित रहें। हिंदुओं की एकता इनकी राजनीति के लिए एक तरह से मौत का फरमान है। इसलिए हिंदू धर्म के खिलाफ हैं कि इनकी राजनीति चलती रहे हिंदू धर्म भले ही खत्म हो जाए। ऐसे लोगों से बहुत सावधान रहने की जरूरत है। ऐसे लोगों की नीयत को समझने की जरूरत है। उनकी नीयत समझेंगे तब उनकी नीति समझ में आएगी।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ न्यूज पोर्टल एवं यूट्यूब चैनल के संपादक हैं)