प्रदीप सिंह।
एक राज्य की एक कहानी बताता हूं। राज्य का नाम बताने की जरूरत नहीं पड़ेगी। आप सब समझ जाएंगे कि किस राज्य की बात हो रही है। दो बहनें, दोनों की शादी दो भाइयों से हुई। दोनों निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से हैं। दोनों भाई ने एक राजनीतिक दल की सदस्यता ले ली और उस राजनीतिक दल के स्थानीय स्तर के नेता बन गए। दोनों की पत्नियां भी उस पार्टी के लिए चुनाव में काम करने लगीं। दोनों भाई एक मुस्लिम कंस्ट्रक्शन ठेकेदार के यहां काम करते थे। 24 नवंबर,2021 को वे घर से निकले काम के लिए और लौटकर नहीं आए। लौटकर नहीं आए तो उनकी पत्नियां परेशान हो गईं। वे पता करने के लिए ठेकेदार के यहां गईं। वहां बताया गया कि दोनों काम करके शाम में लौट चुके हैं। उसके बाद का उन्हें मालूम नहीं कि कहां गए।
पुलिस थाना, एसपी सब खामोश
दोनों बहनों ने पहले अपने घर के पास के पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई, कुछ नहीं हुआ। फिर दूसरे पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई, वहां भी कुछ नहीं हुआ। दोनों शिकायतों पर जब कुछ नहीं हुआ तो उन्होंने मालदा जिला के एसपी को चिट्ठी लिखी, फिर भी कुछ नहीं हुआ। मालदा से आप समझ गए होंगे कि मैं पश्चिम बंगाल की बात कर रहा हूं। उससे भी कुछ नहीं हुआ तो फिर मानवाधिकार आयोग को चिट्ठी लिखी। उसके बाद यह मामला आया कलकत्ता हाईकोर्ट में। हाई कोर्ट में जो किस्सा बयान किया गया वह आपको बता रहा हूं। दोनों की पत्नियों ने जब पुलिस में शिकायत दर्ज कराई तो उस शिकायत को एक सिविक वॉलिंटियर ने फाड़ कर फेंक दिया और उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। उस वॉलिंटियर ने बताया कि दोनों भाइयों ने धर्म परिवर्तन कर लिया है। एक का नाम गौरांग मंडल है जिसका नाम बदलकर गौशल जमां रख दिया गया। दूसरे का नाम बुद्धू मंडल है। उसका नाम मोहम्मद इब्राहिम रख दिया गया। उस वॉलिंटियर और पुलिस दोनों का कहना है कि ये दोनों दूसरी जगह पर रह रहे हैं और अपने घर लौटना नहीं चाहते हैं। अदालत में जब मामला पहुंचा तो हाईकोर्ट में पश्चिम बंगाल सरकार के वकील ने जो कहा उसे सुनकर आप चौंक जाएंगे। पश्चिम बंगाल सरकार के वकील मोहम्मद गालिब ने हाईकोर्ट में दो एफिडेविट पेश किए। एक1 अक्टूबर, 2021 का है और दूसरा 1 नवंबर, 2021 का। दोनों भाइयों के अलग-अलग एफिडेविट में कहा गया है कि दोनों ने अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन कर लिया है।
धर्म परिवर्तन करने वाला एफिडेविट क्यों बनवाएगा?
जिसने धर्म परिवर्तन कर लिया हो वह एफिडेविट क्यों बनवाएगा? यही सवाल हाई कोर्ट ने पूछा कि ये एफिडेविट क्यों बना है और किसके लिए बना है। सरकार पेशबंदी कर रही थी यह बताने के लिए कि उन्होंने अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन किया है। मालदा की पुलिस और एसपी ने दोनों बहनों की शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की। जबकि सुप्रीम कोर्ट का 2014 का फैसला है ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के मामले का। उसमें कहा गया है कि अगर इस तरह की कोई शिकायत आती है तो शिकायत को तुरंत एफआईआरमें बदला जाना चाहिए। यह मामला 2021 का है और अभी मई 2022 चल रहा है। इन मामलों की अभी तक एफआईआर दर्ज नहीं हुई है। अब आप देखिए कि पश्चिम बंगाल में पुलिस व्यवस्था, कानून व्यवस्था और संवैधानिक व्यवस्था कैसे चल रही है। लेकिन असली बात यह नहीं है। असली बात यह है कि उन्होंने धर्म परिवर्तन किस वजह से किया या उनके सामने क्या समस्या आई।
सीबीआई-एनआईए को सौंपी जांच
उनके सामने समस्या आई भारतीय जनता पार्टी का साथ देने की वजह से। दोनों स्थानीय स्तर पर भाजपा के नेता थे और उनकी पत्नियों ने भाजपा के लिए चुनाव में काम किया, वोट मांगा और समर्थन किया। विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही उनको धमकियां मिल रही थी कि धर्म परिवर्तन कर लो नहीं तो मुश्किल होगी। उन लोगों ने उन धमकियों को अनसुना कर दिया और उस पर कोई ध्यान नहीं दिया। दोनों भाइयों को भाजपा का समर्थन करने की सजा दी गई। आपने ऐसा कहीं सुना है। आपने औरंगजेब, मोहम्मद गोरी, गजनवी, हुंमायू, बाबर, अकबर, शाहजहां सबके दौर में धर्म परिवर्तन के किस्से सुने होंगे। लोगों को मार दिया गया, जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया लेकिन किसी का समर्थन करने की सजा के तौर पर उसका धर्म बदल दिया जाए और वह भी लोकतांत्रिक आजाद भारत में- यह अकल्पनीय है। यह पूरी व्यवस्था के लिए, पूरे समाज के लिए शर्मनाक है। किसी पार्टी का समर्थन करना- विरोध करना, उसके साथ काम करना- नहीं करना… यह किसी भी व्यक्ति का मौलिक अधिकार है जिसे संविधान ने दिया है। इसके लिए किसी को सजा दी जाए, जबरन उसका धर्म परिवर्तन कर दिया जाए- यह कल्पना से परे है। दोनों बहनों का यह आरोप है कि सजा देने के लिए जबरन उनका धर्म परिवर्तन कराया गया है। कोलकाता हाईकोर्ट ने इस मामले को सीबीआई और एनआईए को जांच के लिए सौंप दिया है। चुनाव बाद पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा की जांच एनआईए और सीबीआई पहले से कर रही है।
कानून व्यवस्था पर हाई कोर्ट की गंभीर टिप्पणी
हाईकोर्ट ने इस मामले की जांच तो सीबीआई को सौंपी ही, साथ ही कहा कि अचानक धर्म परिवर्तन हो रहा है, लालच देकर या धमकी देकर जबरन धर्म परिवर्तन किया जा रहा है। ह्यूमन ट्रैफिकिंग हो रही है, बड़ी मात्रा में हथियारों का जखीरा इकट्ठा किया जा रहा है और नकली नोटों का धंधा चल रहा है। अदालत ने इसकी भी जांच करने को कहा है। ममता बनर्जी सरकार पर किसी राजनीतिक दल या किसी नेता का ये आरोप नहीं है बल्कि हाई कोर्ट की टिप्पणी है। इसका संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट ने इसकी भी जांच के आदेश दिए हैं। अदालत ने पुलिस को इसकी जांच नहीं सौंपी है बल्कि सीबीआई और एनआईए से जांच करने को कहा है। इससे ज्यादा कानून व्यवस्था बिगड़ने का और गंभीर मामला क्या हो सकता है। हाईकोर्ट ने मालदा के एसपी से कहा है कि शिकायत मिलने के बाद आपने क्या-क्या किया उसका एक एफिडेविट अगली सुनवाई तक दीजिए। सवाल यह है कि राज्य सरकार ने उस एसपी और उन दोनों थानों के पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की। उनसे कम से कम जवाब-तलब तो किया जा सकता था। उनको सस्पेंड या बर्खास्त करना तो दूर की बात है- उनसे जवाब-तलब तक नहीं हुआ है। जिस तरह से पूरे मामले को पश्चिम बंगाल सरकार के वकील ने पेश किया है उससे शक की कहीं कोई गुंजाइश नहीं रह जाती है कि इस मामले में सरकारी पार्टी का समर्थन हासिल नहीं है।
मकसद भाजपा को सबक सिखाना
जिन्होंने भाजपा को वोट दिया- भाजपा के लिए चुनाव प्रचार किया- उनको सबक सिखाना है। सबक सिखाने का पहला दौर चला चुनाव नतीजे आने के बाद। हजारों लोगों को अपना घर छोड़कर भागना पड़ा। या तो उनके घर जला दिए गए या उनकी हत्या कर दी गई। महिलाओं से बलात्कार हुआ। ये सब कुछ हुआ अदालत, राज्य सरकार, केंद्र सरकार और सबके जानते देखते हुए। अभी तक इसमें किसी को सजा नहीं मिली है। एक साल से ज्यादा का समय हो चुका है। 2 मई, 2021 को पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजे आए थे। तब से अब तक किसी को कोई सजा नहीं मिली है। इस मामले में कोर्ट की निगरानी में जांच हो रही है लेकिन इसे लेकर सरकार पर किसी तरह का दबाव हो, ऐसा कहीं से दिखाई नहीं दे रहा है। जिस दिन देश के गृहमंत्री पश्चिम बंगाल में थे उसी दिन भाजपा के एक कार्यकर्ता की हत्या कर दी गई। उस कार्यकर्ता को सबक सिखाने के लिए यह हत्या नहीं की गई। यह भाजपा को सबक सिखाने के लिए और यह बताने के लिए किया गया कि अगर यह पार्टी सक्रिय रहेगी, टीएमसी का विरोध करेगी तो इसके कार्यकर्ताओं के साथ ऐसा ही होगा।
टीएमसी का विरोध मतलब जान पर आफत
पश्चिम बंगाल की स्थिति यह है कि वहां अगर आप शांति से रहना चाहते हैं, जीवित रहना चाहते हैं, अपने परिवार की सुरक्षा चाहते हैं, परिवार की महिलाओं की इज्जत बचा कर रखना चाहते हैं तो आपको टीएमसी का समर्थन करना पड़ेगा। अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो कभी भी आपके साथ कुछ भी हो सकता है। दो भाइयों और दो बहनों की इस घटना से यह बात प्रमाणित होती है कि राज्य में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं है। अगर हाई कोर्ट को संज्ञान लेकर इस तरह की जांच का आदेश देना पड़े तो आप इससे अंदाजा लगाइए कि स्थिति कितनी खराब हो चुकी है। शिकायत मिलने पर एफआईआर नहीं लिखी जाती, कोई जांच नहीं की जाती और जब मामला अदालत में पहुंचता है तो सरकार लीपापोती करती है, उसका बचाव करने की कोशिश करती है। उन लोगों का बचाव किया जा रहा है जिन्होंने जबरन धर्म परिवर्तन कराया। उनको गिरफ्तार करने, उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की बजाय उनका बचाव करने की कोशिश हो रही है एक फर्जी एफिडेविट के जरिये। वह गरीब व्यक्ति एफिडेविट बनवाने क्यों जाएगा। मान लीजिए कि उसने स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन किया है तो सैकड़ों लोग ऐसा करते हैं लेकिन कोई एफिडेविट बनवा कर यह बताता है कि मैंने धर्म परिवर्तन कर लिया है। यह सरकार का बनवाया हुआ एफिडेविट है। जबरन धर्म परिवर्तन की तरह यह एफिडेविट भी जबरन बनवाया गया है। इसके लिए सरकार के कौन लोग दोषी हैं उनकी भी जांच होनी चाहिए, उनको भी सजा मिलनी चाहिए। मगर जिस तरह से सब कुछ चल रहा है उसमें बहुत कुछ उम्मीद नजर नहीं आ रही है।
टीएमसी के गुंडों का राज
पश्चिम बंगाल में टीएमसी के गुंडों का राज चल रहा है। उनके खिलाफ न पुलिस बोलती है, न सरकार बोलती है। बेरोकटोक जिसका चाहें धर्म बदलवा दें, जिसका चाहे घर लूट लें, जिसकी चाहे हत्या कर दें, महिलाओं की इज्जत लूट लें, यह सब कुछ पश्चिम बंगाल सरकार की नाक के नीचे हो रहा है। मैं यह मान सकता हूं कि जिन लोगों ने ये किया वे गुंडे थे। उनका टीएमसी से कोई संबंध नहीं है, किसी नेता ने ऐसा नहीं कराया, किसी सरकार ने नहीं कराया लेकिन सवाल है कि उसके बाद कार्रवाई क्या हुई। इससे साबित होता है कि इसमें सरकार की, सत्तारूढ़ दल की, उसके नेताओं की मिलीभगत है। जिस तरह से इस मामले का बचाव करने की कोशिश हो रही है वही चीख-चीख कर कह रहा है कि सरकार कठघरे में खड़ी है, सरकार ही दोषी है। मगर सरकार निश्चिंत है। उसको मालूम है कि कुछ नहीं होने वाला है। कुछ दिन हो-हल्ला मचेगा, मीडिया में खबर आएगी और मामला शांत हो जाएगा। मगर मेरी नजर में यह बहुत बड़ी खबर है। दिल्ली के किसी अखबार में आपको यह खबर नहीं दिखी होगी। अगर यही काम बीजेपी शासित किसी राज्य में हुआ होता तो दिल्ली के अखबारों की मुख्य खबर होती पहले पन्ने पर।
लेफ्ट-लिबरल-इंटेलेक्चुअल्स का शिकंजा
अब आप देख लीजिए कि लेफ्ट-लिबरल-इंटेलेक्चुअल्स का शिकंजा कितना मजबूत है। वे अभी भी नैरेटिव सेट करते हैं। वे तय करते हैं कि क्या खबर छपेगी- क्या नहीं छपेगी। इसी मुद्दे पर आप देख लीजिए कि अगर यह मामला हाईकोर्ट में न जाता तो हमको आपको भी पता नहीं चलता है कि क्या हुआ था। पता नहीं ऐसे कितने मामले होंगे। इन दोनों बहनों ने हिम्मत दिखाई है। बहुत से ऐसे लोग होंगे जिन्होंने हिम्मत नहीं दिखाई, वे हिम्मत नहीं जुटा सके। वे चुपचाप इस दर्द को, त्रासदी को झेल रहे हैं। इसे देखकर गुस्सा भी आता है मन में, आक्रोश भी होता है, दुख भी होता है लेकिन सवाल यही है कि इन मुद्दों पर बोलने, कहने और इनको उठाने के अलावा हम ज्यादा कुछ कर नहीं सकते। जिनको करना है वे उनके साथ खड़े हैं।