डॉ. संतोष कुमार तिवारी।
महात्मा गांधी धर्म परिवर्तन के सख्त खिलाफ थे। जब जवाहरलाल नेहरू की बेटी इन्दिरा नेहरू की शादी एक पारसी युवक फिरोज से होने को थी, तब इस विवाह के विरुद्ध कई लोगों ने महात्मा गांधी को पत्र लिखे। इन लोगों ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि महात्मा गांधी को नेहरू परिवार के बहुत निकट समझा जाता था। इतने लोगों के ढेर सारे पत्रों का जवाब देना महात्मा गांधी के लिए संभव नहीं था, तो उन्होंने इस अन्तर्जातीय विवाह के विषय पर एक लेख लिखा, जोकि हरिजन सेवक (हिन्दी साप्ताहिक) और हरिजन (अंग्रेजी साप्ताहिक) के 8 मार्च 1942 के अंक में प्रकाशित हुआ। हरिजन सेवक में यह लेख ‘कुमारी इन्दिरा नेहरू की सगाई’ शीर्षक से प्रकशित हुआ। प्रस्तुत है महात्मा गांधी का हरिजन सेवक में छपा लेख:
कुमारी इन्दिरा नेहरू की सगाई
श्री फिरोज गांधी के साथ कुमारी इन्दिरा नेहरू की सगाई के सवाल को लेकर इधर मेरे पास ढेरों पत्र आये हैं। कई पत्र क्रोध और गाली से भरे हैं और कुछ में दलीलें देने की कोशिश की गई हैं। एक भी पत्र ऐसा नहीं है, जिसमें श्री फीरोज गांधी की अपनी योग्यता के बारे में कोई शिकायत हो। पत्र-लेखकों की दृष्टि में उनका एकमात्र अपराध यही है कि वह पारसी हैं। मैं हमेशा से इस बात का घोर विरोधी रहा हूं कि स्त्री-पुरुष सिर्फ व्याह के लिए अपना धर्म बदलें। मेरा यह विरोध आज भी कायम है। धर्म कोई चादर या दुपट्टा नहीं, कि जब चाहा, ओढ़ लिया, जब चाहा उतार दिया। इस व्याह में धर्म बदलने की कोई बात ही नहीं है। श्री फीरोज का नेहरू-परिवार के साथ बरसों पुराना घरोपा है; स्व० श्रीमती कमला नेहरू की बीमारी में श्री फीरोज ने अर्से तक उनकी तीमारदारी की थी। और इसीलिए कमलाजी के मन में फीरोज के लिए आत्मीय का-सा भाव था। युरोप में कुमारी इन्दिरा की बीमारी के वक्त भी इनकी बड़ी मदद रही थी। यहां से दोनों में मित्रता पैदा हुई। यह मित्रता संयमवाली थी। इसमें से आपसी चाह पैदा हुई। मगर दोनों में से किसी ने यह नहीं चाहा कि वे पण्डित जवाहरलाल की सम्मति और आशीर्वाद के बिना व्याह कर लें। जब जवाहरलाल जी को विश्वास हो गया कि इस आकर्षण की तह में स्थिरता है, तो उन्होंने अपनी स्वीकृति दे दी। लोग जानते हैं कि नेहरू परिवार के साथ मेरा कितना घना सम्बन्ध है। मैंने दोनों से बातचीत की। अगर यह सगाई स्वीकार न की जाती, तो वह क्रूरता होती। जैसे-जैसे समय बीतता जायगा, इस तरह के विवाह बढ़ेंगे, और उनसे समाज को फायदा ही होगा। फिलहाल तो हममें आपसी सहिष्णुता का माद्दा भी पैदा नहीं हुआ है। लेकिन जब सहिष्णुता बढ़कर सर्वधर्म-समभाव में बदल जायगी, तो ऐसे विवाह स्वागत-योग्य माने जायंगे। आनेवाले समाज की नवरचना में जो धर्म संकुचित रहेगा और बुद्धि की कसौटी पर खरा नहीं उतरेगा, वह टिक न सकेगा। क्योंकि उस नवनिर्माण में हरएक चीज का मूल्य नये ढंग से ही कूता जायगा। मनुष्य की कीमत उसके चरित्र के कारण होगी; धन, पदवी या कुल के कारण नहीं। मेरी कल्पना का हिन्दूधर्म, मात्र एक संकुचित सम्प्रदाय नहीं। वह तो एक महान् और सतत विकास का प्रतीक है, और काल की तरह ही सनातन है। उसमें जरथुस्त्र, मूसा, ईसा, मुहम्मद, नानक और ऐसे दूसरे कई धर्म-संस्थापकों के उपदेशों का समावेश हो जाता है। उसकी व्याख्या इस प्रकार है-
विद्वद्भिः सेवितः सर्भिनित्यमद्वेषरागिभिः
हृदयेनाभ्यनुज्ञातो यो धर्मस्तं निबोधत॥
अर्थात् जिस धर्म को राम-द्वेषहीन, ज्ञानी सन्तों ने अपनाया है, और जिसे हमारा हृदय और बुद्धि भी स्वीकार करती है, वही सद्धर्म है।
अगर धर्म ऐसा न रहा, तो वह बच नहीं सकेगा। मैं अपने पत्र लेखकों को अलग-अलग जवाब नहीं दे सका हूं, इसके लिए वे मुझे क्षमा करें। मैं उनसे निवेदन करता हूं कि वे गुस्सा छोड़ें और इस व्याह को अपने आशीर्वाद दें। मुझे मिले हुए पत्रों से अज्ञान, असहिष्णुता और अरुचि के भाव टपकते हैं, उनमें एक प्रकार की ऐसी अस्पृश्यता है, जिसे कोई ठीक नाम देना मुश्किल है, लेकिन इसीलिए वह भयंकर भी है।
महात्मा गांधी का उपर्युक्त लेख हरिजन (अंग्रेजी साप्ताहिक) में इस प्रकार प्रकाशित हुआ:
INDIRA NEHRU’S ENGAGEMENT
I have received several angry and abusive letters and some professing to reason about Indira’s engagement with Feroz Gandhi. Not a single correspondent has anything against Feroz Gandhi as a man. His only crime in their estimation is that he happens to be a Parsi. I have been, and I am still, as strong an opponent of either party changing religion for the sake of marriage. Religion is not a garment to be caste off at will. In the present case there is no question of change of religion. Feroz Gandhi has been for years an inmate of the Nehru family. He nursed Kamala Nehru in her sickness. He was like a son to her. During Indira’s illness in Europe he was of great help to her. A natural intimacy grew up between them. The friendship has been perfectly honourable. It has ripened into mutual attraction. But neither party would think of marrying without the consent and blessing of Jawaharlal Nehru. This was given only after he was satisfied that the attraction had a solid basis. The public know my connection with the Nehrus. I had also talks with both the parties. It would have been cruelty to refuse consent to this engagement. As time advances such unions are bound to multiply with benefit to society. At present we have not even reached the stage of mutual toleration, but as toleration grows into mutual respect for religions such unions will be welcomed. No religion which is narrow and which cannot satisfy the test of reason will survive the coming reconstruction of society in which the values will have changed and character, not possession of wealth, title or birth, will be the sole test of merit. The Hinduism of my conception is no narrow creed. It is a grand evolutionary process as ancient as time, and embraces the teachings of Zoroaster, Moses, Christ, Mohammed, Nanak and other prophets that I could name. It is thus defined :
विद्वद्भिः सेवितः सर्भिनित्यमद्वेषरागिभिः
हृदयेनाभ्यनुज्ञातो यो धर्मस्तं निबोधत॥
Know that to be (true) religion which the wise and the good and those who are ever free from passion and hate follow and which appeals to the heart. If it is not that, it will perish. My correspondents will pardon me for not acknowledging their letters. I invite them to shed their wrath and bless the forthcoming marriage. Their letters betray ignorance, intolerance and prejudice—a species of untouchability, dangerous because not easily to be so classified.
यह लेख हरिजन बन्धु (गुजराती साप्ताहिक) में भी प्रकाशित हुआ था। इन तीनों – हिन्दी, अंग्रेजी और गुजराती- पत्रिकाओं के संस्थापक महात्मा गांधी ही थे और इनका प्रकाशन हरिजन सेवक संघ द्वारा किया जाता था।
(लेखक सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर हैं।)