गणेशोत्सव (7 से 17 सितम्बर ) पर विशेष

रमेश शर्मा।
शिवाजी महाराज से लेकर लोकमान्य तिलक तक सामाजिक जाग्रति के लिये गणेशोत्सव सबसे बड़ा माध्यम रहा है। उनके जन्म की कथा से गणनायक बनने तक प्रत्येक घटना व्यक्तित्व निर्माण, समाज सशक्तीकरण और कुटुम्ब समन्वय का अद्भुत संदेश है।

गणेश जी गणनायक हैं। नायक अर्थात मुखिया, नेतृत्व करने वाला। जब भी किसी वस्तु को बहुत ध्यान से देखते हैं या एकाग्रता से देखते हैं तब हमारी आँखे सिकुड़ती हैं। यदि आँखे फैलाकर देखेंगे तो वस्तु का आकार थोड़ा धुँधला सा दीखता है। गणपति जी की आँखे छोटी हैं। अर्थात नेतृत्वकर्ता को हर वस्तु , हर बात और हर घटना को एकाग्रता से समझना चाहिए। एकदम पैनी नजर से। आँखों के छोटी होने का यह संदेश है।

गणेश जी सूँढ अर्थात नाक लंबी है। नेतृत्व कर्ता की सूंघने की शक्ति तीक्ष्ण होनी चाहिए। परिवार में, समाज में या राष्ट्र में कहाँ क्या कुछ घट रहा, यह सब नेतृत्व कर्ता को दूर से ही सूंघ लेना चाहिए। गणेश जी के कान लंबे हैं। यानी नेतृत्वकर्ता का सूचना तंत्र तगड़ा हो और हर बात को सुनने की क्षमता होनी चाहिए।  बड़ा पेट इस बात का प्रतीक है कि जो भी अधिक से अधिक बात सुनी है उसे अपने पेट में डाल लेना चाहिए और उसे पचाने की क्षमता होनी चाहिए। ऐसा न हो कि इधर सुना और उधर सुनाया। एक सफल नेतृत्वकर्ता वही होता है जो अपनी प्रभाव सीमा की हर घटना,  हर व्यक्ति पर पैनी नजर रखे। कहाँ क्या घट रहा उसे सूंघ ले, हर बात को सुने और अपने भीतर छिपा कर रखे। माथा चौड़ा प्रतीक है कि नेतृत्वकर्ता की छवि प्रभावशाली होनी चाहिए।

समन्वय के सूत्र

गणपति जी शिव परिवार के समन्वयक (कोऑर्डिनेटर) हैं। शिव परिवार विविधता से भरा है। शिवजी का वाहन नंदी है। नंदी अर्थात बैल। और देवी पार्वती का वाहन सिंह है। सिंह का आहार होता है बैल। कुमार कार्तिकेय का वाहन मयूर है जिसका आहार नाग है। वहीं भगवान शिव का श्रृंगार हैं नागदेव। गणेश जी का वाहन मूषक। शिवजी सिंह चर्म पर समाधि लगाते हैं। मूषकराज का वश चले तो आसन कुतर दें। फिर भी इस परिवार में टकराहट का कोई प्रसंग किसी कथा में नहीं मिलता। शिव परिवार में यह अद्भुत समन्वय गणपति जी के कारण है। संदेश यह है कि जो समन्वयक हैं, नेतृत्वकर्ता हैं उनमें विषम और विपरीत स्वभाव वाले लोगों के बीच भी समन्वय कर सकने की क्षमता होनी चाहिए… जिससे परिवार, समाज या देश का आदर्श स्वरूप में निखार हो।

हमारे हीरो या लीडर की शैली, व्यक्तित्व और व्यवहार कैसा हो यह भी गणेशजी के माध्यम से समझाया गया है। जैसे है उनकी पसंद दूब को समझें। दूब पैरों तले रहती है। न केवल इंसान के बल्कि जानवरों के पैरों तले भी। फिर भी गणपति जी को दूब क्यों पसंद है। हमारे देश में परंपरा है कि सामान्य जन भी जब अपने नायक के पास जाता है तो कुछ भेंट लेकर जाता है। पुराने समय में भी लोग राजाओं, ऋषियों, आचार्यों और गुरु के पास खाली हाथ नहीं जाते थे। कुछ न कुछ लेकर ही जाते थे। इसलिए संदेश दिया गया कि यदि आप नायक हैं और भेंट लेने के अधिकारी हैं तो आप ऐसे बनें कि सामान्य जन कोई सस्ती सी वस्तु लेकर आये उसे ऐसे स्वीकार करें जैसे वही आपको सबसे प्रिय है। अब दूब से सस्ता क्या होगा। वह भी कोई लेकर आये तो उसे भी अत्यंत प्रिय वस्तुओं की भांति स्वीकार करें। नेतृत्वकर्ता की सादगी और सहजता का प्रभाव जनसाधारण पर भी पड़ता है। वह दिखावट सजावट से दूर सरल जीवन शैली की ओर प्रवृत्त होता है। गणपति जी को दूब बहुत श्रृद्धा से अर्पित करने का संदेश है कि वरिष्ठजनों को दी जाने वाली भेंट का मूल्य नहीं, भाव महत्वपूर्ण होता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)