डॉ. संतोष कुमार तिवारी
जब से अयोध्या में श्री राम मन्दिर में प्राण प्रतिष्ठा की तारीख तय हुई थी, तब से गीता प्रेस दवारा प्रकाशित श्रीरामचरित मानस की मांग तेजी से बढ़ने लगी थी। 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा के बाद तो इतनी अधिक बढ़ गई कि गीता प्रेस ने हाथ खड़े कर दिए कि इतनी अधिक पुस्तकें तुरन्त छापना और उनकी बाइंडिंग करा कर भेजना हमारे लिए सम्भव नहीं है।
इस बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए गीता प्रेस नौ करोड़ रुपए की तीन नई छपाई और बाइंडिंग मशीनें लगाने जा रहा है। इनमें से दो मशीनें भारत से खरीदी जा रही हैं और एक जापान से आएगी।
गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरित मानस की बढ़ती हुई मांग को देखते हुए गीता प्रेस ने अपनी वेबसाआइट पर एक माह के लिए श्रीरामचरित मानस (दस भाषाओँ में) और दो अन्य पुस्तकें फ्री डाऊनलोड करने की इजाजत दे दी थी। तब इस सुविधा का का लाभ देश-विदेश के लाखों लोगों ने उठाया। इस दौरान 17 लाख से अधिक लोगों ने इन्हें सर्च किया; लगभग सवा दो लाख लोगों ने पढ़ा; 68 हजार से अधिक लोगों ने डाउनलोड किया। भारत के बाद इस सुविधा का सबसे अधिक लाभ अमेरिका में उठाया गया, जहां 17 हजार से अधिक लोगों ने डाउनलोड किया।
गीता प्रेस पन्द्रह भाषाओँ में पुस्तकें प्रकाशित करता है।
गीता प्रेस के मैनेजर श्री लालमणि तिवारी ने बताया कि पछले वर्ष तक हम लोग श्रीरामचरित मानस की औसतन प्रतिमाह पचहत्तर हजार प्रतियाँ छापते थे। इसे इस वर्ष बढ़ा कर एक लाख कर दिया गया। फिर भी जितनी डिमांड है हम उसको पूरा करने में असमर्थ हैं। अभी हाल में जयपुर से श्रीरामचरित मानस की पचास हजार प्रतियों की अचानक मांग आई। इसी तरह भागलपुर से दस हजार प्रतियां माँगी गईं।
श्री लालमणि तिवारी ने यह भी बताया कि हमारे पास पुस्तकों के रख-रखाव आदि के लिए स्थान भी पर्याप्त नहीं है।
हनुमान चालीसा और सुन्दर काण्ड की मांग भी बढ़ी
यह बढ़ती मांग श्रीरामचरित मानस तक ही सीमित नहीं है। श्रीहनुमानचालीसा और सुन्दर काण्ड की मांग भी बहुत बढ़ गई है। कुछ दिन पहले गुजरात से मांग आई कि पचास लाख प्रतियाँ श्रीमद्भगवद्गीता की चाहिए। इतनी प्रतियाँ तुरन्त छाप पाना और बाइंडिंग करा कर भेजना किसी भी प्रेस के लिए एवरेस्ट पर चढ़ने जैसा मुश्किल काम है।
सनातन धर्म से जुड़ी पुस्तकों की बढ़ती मांग का एक कारण यह है कि लोगों की रूचि सनातन धर्म में तेजी से बढ़ी है। दूसरा कारण यह है कि लोगों के यह समझ में आने लगा है कि इन पुस्तकों को पढ़ कर और उनके अनुसार आचरण करके अपने जीवन और परिवार में सुधार लाया जा सकता है तथा और अधिक सकारात्मक ऊर्जा के साथ जीवन जिया जा सकता है। तीसरा कारण यह है कि इन पुस्तकों के प्रति नवयुवकों की भी रूचि काफी बढ़ी है। चौथा कारण यह है कि अब लोग श्रीरामचरितमानस को दूसरों को भेंट या गिफ्ट में देने लगे हैं। और सबसे बड़ा कारण यह है कि अपनी पुस्तकों के मूल पाठ की शुद्धता के लिए गीता प्रेस जाना जाता है।
सनातन धर्म की इन पुस्तकों को कोई भी छाप सकता है और दूसरे अन्य प्रकाशक छापते भी हैं। लेकिन गीता प्रेस की पुस्तकों की छपाई आकर्षक होती है, बाइंडिंग बहुत अच्छी होती है और मूल्य भी कम होता है। इस सबका कारण यह है कि गीता प्रेस का उद्देश्य लाभ कमाना नहीं है।
श्रीरामचरित मानस (दस भाषाओँ में) के अतिरिक्त जिन दो अन्य पुस्तकों के फ्री डाऊनलोड की अनुमति गीता प्रेस ने दी थी, वे थीं – अयोध्या दर्शन तथा अयोध्या माहात्म्य।
अयोध्या नाम क्यों पड़ा
अयोध्या दर्शन में ‘कल्याण’ के आदि सम्पादक श्री हनुमान प्रसादजी पोद्दार (1892-1971) का एक लेख है ‘दशरथ के समय की अयोध्या’। इस लेख में यह बताया गया है कि दशरथजी के समय में इस नगर का नाम इसलिए ‘अयोध्या’ पड़ गया था, क्योंकि वहां कोई भी शत्रु युद्ध के लिए नहीं आ सकता था।
‘अयोध्या दर्शन’ पुस्तक का प्रथम संस्करण संवत् 2078 को निकला था। अब जनवरी-फरवरी 2024 में संवत् 2080 चल रहा है। तब से अब तक इस पुस्तक के कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं और लगभग एक लाख प्रतियाँ छप चुकी हैं। इस पुस्तक में एक सौ से अधिक पृष्ठ हैं और मूल्य 25 रूपए है। अयोध्या मन्दिर ट्रस्ट ने प्राण प्रतिष्ठा के दिन आए सभी अतिथियों को प्रसाद के साथ अयोध्या दर्शन पुस्तक देने के लिए इसकी दस हजार प्रतियों की योजना थी।
हनुमान गढ़ी की महिमा
इस पुस्तक में अयोध्या स्थित हनुमान गढ़ी के बारे में श्री भागीराथरामजी मिश्र ‘ब्रह्मचारी’ और श्री रामजी दुबे का एक लेख है। इस लेख में बताया गया है कि एक बार लखनऊ और फैजाबाद के प्रशासक नवाब मंसूर अली का एक पुत्र किसी भयंकर रोग से अत्यन्त पीड़ित हो गया. कई बड़े-बड़े वैद्यों और हकीमों के इलाज से भी जब वह ठीक नहीं हुआ, तब वह हनुमान गढ़ी कि श्री हनुमानजी के शरण में आया तब उसे उस भीषण रोग से मुक्ति मिल गई। नवाब ने हनुमानजी की श्रद्धा में 52 बीघा जमीन मन्दिर को दान कर दी थी और साधुओं की सुविधा के लिए एक विशाल इमली का बाग लगवा दिया था। आज तक हिन्दुओं के साथ-साथ मुसलमान बन्धु भी इस मन्दिर में आकर श्रद्धापूर्वक पूजा भेंट अर्पित करते हैं।हनुमान गढ़ी की स्थापना स्वामी अभयारामदस जी ने की थी, जो कि एक सिद्ध महात्मा थे।
अयोध्या फैसला: कुछ अनकही बातें
‘अयोध्या दर्शन’ पुस्तक में इस लेख के लेखक का भी एक लेख है ‘अयोध्या फैसला – कुछ अनकही बातें’. अयोध्या में विवादित मस्जिद का क्षेत्रफल मात्र 1500 वर्ग गज ही था। 9 नवम्बर 2019 को भारत के सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के पृष्ठ संख्या 922 पर यह 1500 वर्ग गज वाली बात कही गयी है। परन्तु इस फैसले से मुस्लिम पक्षकारों को पाँच एकड़ जमीन मिली है। एक एकड़ में 4840 वर्ग गज होते हैं। अर्थात इस फैसले से उन्हें 5X4840=24,200 वर्ग गज जमीन मिली है। साथ ही इस जमीन पर उनको मालिकाना हक भी मिला है। बाबर या औरंगजेब जिस किसी ने भी जब रामजन्मभूमि पर मस्जिद बनवाने का प्रयास किया था, तो उन्हें उस स्थान का मालिकाना हक कभी नहीं दिया था। रामजन्मभूमि पर अपने मालिकाना हक के बारे में मुस्लिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट को संतुष्ट नहीं कर पाया।
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अयोध्या माहात्म्य
इस पुस्तक में अयोध्या यात्रा-दर्शानादि का माहात्म्य, अयोध्या तीर्थ सर्वोत्कृष्ट क्यों है, सरयू नदी की उत्पत्ति का इतिहास और उसका माहात्म्य, आदि के बारे में बताया गया है. इसमें यह भी बताया गया है कि अयोध्या देवी के अनुग्रह से किस प्रकार पांच महापपियों का उद्धार हुआ। पांच सौ से अधिक पृष्ठों की इस पुस्तक के इस पुस्तक का मूल्य १०० रुपए है।
अयोध्या दर्शन तथा अयोध्या माहात्म्य दोनों ही पुस्तकों में भगवान श्री राम और अयोध्या से जुड़े अनेक स्थानों के मनमोहक रंगीन चित्र भी हैं।
(लेखक सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं।)