डॉ. संतोष कुमार तिवारी
गीता प्रेस अपनी पुस्तकों की बढ़ती मांग को देखते हुए विश्व प्रसिद्ध जर्मन कम्पनी Muller Martini के साथ किताबों की जिल्दसाजी के क्षेत्र में एक नया परीक्षण करने जा रहा है।इस परीक्षण में गीता प्रेस उस जर्मन कम्पनी को अपनी लेई अर्थात glue/ adhesive भेजेगा। गीता प्रेस की लेई में कोई भी पशु तत्व अर्थात animal content नहीं होता है। जर्मन कम्पनी यह परीक्षण करेगी कि क्या गीता प्रेस की पशु तत्व मुक्त लेई से उसकी आटोमेटिक जिल्दसाजी की मशीन चल पाती है या नहीं। यदि यह परीक्षण सफल रहा, तो गीता प्रेस का कोई व्यक्ति उस जर्मन कम्पनी में अपनी लेई लेकर विदेश जाएगा और अपने सामने उस परीक्षण पुन: कराएगा। यदि उसके सामने भी परीक्षण सफल रहता है, तो गीता प्रेस जिल्दसाजी की उस जर्मन मशीन को खरीदने का आर्डर दे देगा।
गीता प्रेस दो करोड़ से अधिक पुस्तकें प्रतिवर्ष छापता है। इनमें से भारी संख्या में हार्ड कवर वाली पुस्तकें होती हैं। जैसे कि रामचरितमानस, महाभारत, भागवत, कल्याण के विशेषांक।हार्ड कवर से तात्पर्य उन पुस्तकों से है जिनमें दफ्ती की एक मोटी जिल्द का कवर होता है और उस कवर पर भूरे या कत्थई रंग का एक कपड़ा चिपकाया जाता है, और फिर उस कवर के ऊपर एक रंगीन ग्लासी-चमकीले कागज का एक और कवर लगाया जाता है। अब तक गीता प्रेस में पिछले लगभग एक सौ वर्षों से यह सारा कार्य हाथ से किया जाता है।जब कि दूसरी ओर दुनिया के लगभग सभी बड़े प्रिंटिंग प्रेसों में यह काम आटोमेटिक मशीन द्वारा होता है।
पशु तत्व अर्थात animal content से पूर्ण परहेज
गीता प्रेस में जिल्दसाजी का यह यह काम हाथ से इसलिए होता रहा है, क्योंकि ऑटोमेटिक मशीनों में जो लेई या glue/ adhesive इस्तेमाल होते हैं उनमें पशु तत्व अर्थात animal content का इस्तेमाल होता है।
गीता प्रेस में पशु तत्व अर्थात animal content जैसी किसी भी अपवित्र वस्तु का कहीं भी इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
सन् 1923 में गीता प्रेस की स्थापना
सन् 1923 में जब गीता प्रेस की गोरखपुर में स्थापना हुई थी, तब उसके पास प्रिंटिंग के लिए हाथ से चलाई जाने वाली सिर्फ एक ट्रेडिल मशीन थी। इस मशीन पर तीन व्यक्ति मिलकर एक घण्टे में लगभग एक सौ पेज छाप पाते थे। धीरे-धीरे समय के साथ गीता प्रेस का आधुनिकीकरण होता गया। पुस्तक छपाई, आदि का तमाम काम आटोमेटिक मशीनों से होने लगा, लेकिन जिल्दसाजी का काम आज भी हाथ से ही होता है। इसका कारण ऊपर इस लेख में बताया गया है।
जो ट्रेडिल मशीन गीता प्रेस में सन् 1923 में लगाई गई थी, वह आज भी वहां लीला चित्र मन्दिर में शीशे के एक फ्रेम में प्रदर्शन के लिए रखी है।
नौ करोड़ की तीन और मशीनें भी खरीदी जा रही हैं
गीता प्रेस सनातन धर्म से संबंधित पुस्तकें पन्द्रह भाषाओँ में प्रकाशित करता है। आज इन पुस्तकों की मांग इतनी अधिक बढ़ गई है कि उसे पूरा करने के लिए गीता प्रेस नौ करोड़ रुपए की तीन नई मशीनें लगाने जा रहा है। इनमें से दो मशीनें भारत से खरीदी जा रही हैं और एक जापान से आएगी। गीता प्रेस की पुस्तकों की मांग भविष्य में और बढ़ने वाली है।
रामचरितमानस को अब लोग गिफ्ट में देने लगे हैं।
गीता प्रेस की पुस्तकों की मांग अपने देश में ही नहीं विदेशों में भी बढ़ी है। तुलसीदासकृत रामचरितमानस और भगवद्गीता लोग एक दूसरे को गिफ्ट में देने लगे हैं। देश के कोने कोने से अयोध्या में आने वाले लाखों लोग रामचरितमानस, अयोध्या दर्शन और अयोध्या माहात्मय पुस्तकें खरीदने की इच्छा रखते हैं।इन पुस्तकों की डिमांड ज्यादा है सप्लाई कम है।
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अयोध्या के हनुमानगढ़ी मन्दिर को अब कोई भी 251 या 551 रूपए का ई-मनी आर्डर करके प्रसाद मंगा सकता है। यह प्रसाद डाकखाने के जरिए स्पीड पोस्ट से भेजा जाएगा।मन्दिर की योजना है कि उस प्रसाद के साथ गीता प्रेस की पुस्तक ‘अयोध्या दर्शन’ भी भेजी जाए।
(लेखक सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं।)