डॉ. संतोष कुमार तिवारी

समय समय पर कुछ संगठित असामाजिक तत्व सोशल मीडिया पर यह झूठी सूचना प्रसारित करते रहते हैं कि आर्थिक संकट के कारण गीताप्रेस बंद हो रही है।एक बार फिर गीताप्रेस साम्यवादियों और छद्म सेकुलर शक्तियों के निशाने पर है। गीताप्रेस बंद होने का दुष्प्रचार करके गीताप्रेस को सहयोग के नाम पर लोगों को ठगा जा रहा है।


 

आर्थिक संकट के कारण गीताप्रेस बंद हो रही है- मंगलवार एक सितम्बर को एक बार फिर गीताप्रेस को इन बातों का खंडन करना पड़ा है। गीताप्रेस, गोरखपुर के व्यवस्था विभाग द्वारा जारी पत्र में कहा गया है कि गीताप्रेस का काम सुचारु रूप से चल रहा है। संस्था किसी से भी किसी प्रकार का अनुदान नहीं लेती है। पत्र में गीताप्रेस के शुभचिंतकों से कहा गया है कि वे इस प्रामाणिक सूचना का इतना प्रचार प्रसार करें कि भ्रामक प्रचार करने वालों के निहित स्वार्थ की कोशिश नाकाम हो जाए।

गीता प्रेस के बारे में तरह-तरह के झूठ फैलाये जाते हैं। इन साम्यवादियों और छद्म सेकुलरों को पहचानना बहुत आसान है। उनका गीताप्रेस के खिलाफ भ्रामक प्रचार वर्षों से जारी है।

छद्म सेकुलरों को कैसे पहचाने

अभी हाल में पालाघर, महाराष्ट्र में दो साधुओं की पीट-पीट कर भीड़ द्वारा हत्या (माब लिचिंग) कर दी गई और पुलिस वहाँ मौजूद थी। अभी हाल में कश्मीर में एकमात्र हिन्दू सरपंच अजय पंडित की आतंकवादियों ने हत्या कर दी। इन  घटनाओं पर ये साम्यवादी और छद्म सेकुलर चुप रहेंगे या फिर उन साधुओं या अजय पंडित पर ही दोषारोपण करेंगे।

गीता प्रेस से नाराजगी का कारण

इनकी गीता प्रेस से नाराजगी इस कारण से है।  क्योंकि गीता प्रेस की हिन्दी मासिक पत्रिका ‘कल्याण’ ने पाकिस्तान बनने का विरोध किया था। क्योंकि उसने नोआखाली में वर्ष 1946 में हुए हिन्दू नरसंहार होने पर ‘कल्याण’ के मालवीय-अंक में महात्मा गांधी के विचार छापे थे। शीर्षक था: बहादुर बनो। साम्यवादी और छद्म सेकुलर इतिहासकार और राजनीतिज्ञ इसे हिन्दू-मुस्लिम दंगा कहते हैं, जबकि यह हिंदुओं का नरसंहार था। इसमें हजारों  हिन्दू मारे गए थे।  हिंदुओं का जबरन धार्मिक कनवर्ज़न कराया गया था। सैकड़ों हिन्दू महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ था।  मालवीय-अंक पर सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था।

साम्यवादियों और छद्म सेकुलरों की ‘कल्याण’ से इस लिए भी नाराजगी है क्योंकि यह पत्रिका बार-बार यह मांग करती रही है कि देश में गोह्त्या बंद की जाये। ‘कल्याण’ ने हिन्दू कोड बिल का भी विरोध किया था। नेहरू सरकार ने हिन्दुओं के लिए तो पारिवारिक कानून बना दिया है। ये साम्यवादी  और छद्म सेकुलर इस बात का विरोध करते हैं कि भारत में समान नागरिक संहिता लागू की जाए। जबकि समान नागरिक संहिता लागू करने की बात हमारे संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों में कही गई है।

गीता प्रेस से सबसे बड़ी परेशानी

गीता प्रेस से सबसे बड़ी परेशानी यह है कि वह हिन्दू धर्म के ग्रन्थ कम मूल्य में जनता को उपलब्ध करता है। इन लोगों को कुरान और बाइबिल को मुफ्त में बांटे जाने पर कोई आपत्ति नहीं होती। हिन्दुओं के अधिकतर धर्मग्रंथ संस्कृत में हैं। इन्हें जनता की भाषा में उपलब्ध कराने का कार्य गीता प्रेस ने किया है। गीता प्रेस के किसी भी प्रकाशन या पुस्तक में किसी भी धर्म की बुराई नहीं की जाती।

साम्यवादी और छद्म सेकुलर इस बात से डरते हैं कि गीता प्रेस का साहित्य कहीं हिन्दू पुनरुत्थान का कारण न बन जाए और उनकी राजनीतिक दुकान के पकवान फीके न हो जाएं।

हिन्दू धर्म क्या है

भारत का नाम मुसलमानों ने हिंदुस्तान रखा। यहाँ की जनता को हिन्दू कहा। तब यहाँ की संस्कृति भी हिन्दू संस्कृति कहलाने लगी। यानी भारतीय संस्कृति का दूसरा नाम है हिन्दू संस्कृति। हिन्दू संस्कृति वही है जो सनातन धर्म की संस्कृति है। सनातन धर्म विश्व का सबसे पुराना धर्म है। धर्म शब्द संस्कृत का शब्द है। जैन और बौद्ध ग्रन्थ प्राकृत और पालि भाषा में हैं। ये दोनों भाषाएँ संस्कृत के बाद आईं। और भारत के अंदर इनका प्रचलन उत्तरी भारत तक रहा। इनमें संस्कृत के धर्म शब्द के स्थान पर धम्म शब्द है। पर इसको वे सुविधा के लिए धर्म कहने लगे हैं। ईसाई रेलीजन है। मुस्लिम मजहब है। इन सबको वे बाद में सुविधा के लिए धर्म कहने लगे हैं। एक बात और है कि सनातन धर्म का कोई प्रवर्तक नहीं है। सनातन धर्म आदि काल से है। बाकी सब धर्मों के प्रवर्तक हैं। प्रवर्तक का मतलब है वह व्यक्ति जिसने वह धर्म शुरू किया।

वाल्मिकी रामायण ईसा से सकड़ों वर्ष पूर्व की है। वाल्मिकी रामायण और भगवद्गीता दोनों संस्कृत में हैं। और ये दोनों सनातन धर्म के महत्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। इनके अतिरिक्त भी सनातन धर्म के दो हजार से अधिक ग्रन्थ हैं। जबकि ईसाइयों के लिए सिर्फ बाइबिल है और मुसलमानों के लिए सिर्फ कुरान।

वाल्मिकी रामायण के आधार पर सोलहवीं शताब्दी में गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस लिखी अवधी भाषा में। उस रामचरितमानस की टीका (भावार्थ) हिन्दी, अंग्रेजी व अन्य कई भारतीय भाषाओं में गीता प्रेस ने प्रकाशित की।

साम्यवादियों और छद्म सेकुलरों ने झूठा इतिहास गढ़ा

हमारे देश के बच्चों को आज तक जो इतिहास पढ़ाया जाता है वह अधिकतर यह है कि यहाँ मुस्लिम शासक आए, फिर अंग्रेज़ आए, और फिर कांग्रेस पार्टी ने देश को आजाद कराया।  ये इतिहास इन्हीं साम्यवादियों और छद्म सेकुलरों ने गढ़ा है। हमारे बच्चों को यह नहीं बताया जाता कि मुगलों के  लगभग 350 वर्ष के और और अंग्रेजों के लगभग 100 वर्ष के शासन काल के पहले सैकड़ों वर्ष तक मौर्य वंश, गुप्त वंश, आदि का शासन था। दक्षिण भारत में लगभग एक हजार साल तक चोला वंश का शासन था। उत्तर पूर्व में लगभग 600 वर्ष तक अहोम वंश का शासन था। सिक्किम में 300 से ज्यादा वर्षों तक चोग्याल वंश का शासन था।  इनमें से कुछ राजाओं का शासन अफगानिस्तान तक था। कुछ का शासन दक्षिण पूर्व एशिया में इंडोनेशिया और मलेशिया तक था। ये साम्यवादी  और छद्म सेकुलर इतिहासकार यह नहीं बताते हैं कि कांग्रेस के अलावा भी तमाम लोगों ने देश की आजादी के लिए अपनी जान गंवाई है और कुर्बानियाँ दी हैं। ये साम्यवादी  और छद्म सेकुलर इतिहासकार यह भी नहीं बताते हैं कि वीर सावरकर को दो बार अंडमान में काला पानी की सजा हुई थी जिसकी कुल सजा अवधि पचास साल थी।  कांग्रेस के किसी भी नेता को एक बार भी कालापानी की सजा नहीं हुई थी।

इन्हीं कारणों से गीता प्रेस साम्यवादियों और छद्म सेकुलरों के निशाने पर है। ये लोग वे सारे तीन-तिकड़म करते हैं कि गीता प्रेस किसी प्रकार से बन्द हो जाए।  फिर भी आज तक ईश्वर ने गीता प्रेस का साथ दिया है।

(लेखक झारखंड केन्द्रीय विश्वविद्यालय के सेवा निवृत्त प्रोफेसर हैं)

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