यह दिन देखना पड़ेगा- ऐसी कल्पना भी नहीं की होगी गांधी परिवार ने

प्रदीप सिंह।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पिछले कुछ महीनों से लगातार गांधी परिवार के तीनों सदस्यों सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा को चुनौती दे रहे हैं। और समय का फेर देखें कि तीनों में से कोई कुछ करने की स्थिति में नहीं है। इनमें से कोई उनकी इस बगावत का, चुनौती का जवाब देने की स्थिति में नहीं है।

चाहतें अपनी अपनी

जब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होना था तो सोनिया गांधी चाहती थीं कि अशोक गहलोत चुनाव लड़ें। अशोक गहलोत चुनाव लड़ना और कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना नहीं चाहते थे। वह राजस्थान के मुख्यमंत्री बने रहना चाहते थे- या फिर दोनों पदों पर रहना चाहते थे। जब स्पष्ट हो गया कि वह दोनों पदों पर नहीं रह पाएंगे तो उन्होंने चुनाव लड़ने से मना कर दिया। और उसके बाद विधायक दल की बैठक के लिए दिल्ली से कांग्रेस के दो ऑब्जर्वर राजस्थान भेजे गए। उनमें से एक थे मौजूदा कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे- और दूसरे थे अजय माकन, जिन्होंने राजस्थान के कांग्रेस प्रभारी पद से इस्तीफा दे दिया है। अशोक गहलोत ने इन दोनों का अपमान किया। जब दोनों ऑब्जर्वर खड़गे और माकन जयपुर पहुंचे तो गहलोत के समर्थक 80 से ज्यादा विधायक  बैठक स्थल पर जाने के बजाय विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के यहां चले गए। उनहोंने वहां जाकर सामूहिक इस्तीफा दे दिया। इतना कुछ हो गया और इसके बाद कुछ नहीं कर पाए राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका वाड्रा। यहां तक कि अशोक गहलोत ने यह पैंतरा चला कि जिस दिन ऑब्जर्वरों ने विधायक दल की बैठक बुलाई उस दिन वह जयपुर से बाहर चले गए। गहलोत ने पार्टी ने अपने समर्थक विधायकों के रुख पर कहा कि “यह सब बहुत गलत किया और मुझसे पूछे बिना किया। मैं तो पार्टी का वफादार हूं। मैं ऐसी बात कभी सोच भी नहीं सकता।” उनहोंने हाईकमान को कहा कि आपने कैसे सोच लिया कि मैं बगावत करूंगा आपके खिलाफ।” तब यह लगा था कि इन विधायकों के खिलाफ एक्शन होगा, पार्टी कोई सख्त कार्रवाई करेगी। लेकिन अशोक गहलोत के किसी व्यक्ति के खिलाफ आज तक कोई एक्शन नहीं हुआ। इसी को मुद्दा बनाकर अजय माकन ने इस्तीफा दे दिया।

हमले का समय

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खैर, यह बात तो पुरानी हो गई। नई बात यह है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा राजस्थान पहुंचने वाली है। जिस समय यह यात्रा राजस्थान पहुंचने वाली है ऐसे समय पर अशोक गहलोत ने फिर से सचिन पायलट पर हमला किया है। गहलोत ने हमले का यह समय जान बूझकर चुना। यहां आप टाइमिंग पर ध्यान दीजिए क्योंकि राजनीति में टाइमिंग का बहुत महत्व होता है। गहलोत ने पायलट पर ऐसे समय पर हमला किया जबकि कोई प्रोवोकेशन नहीं था, कोई ऐसा कारण नहीं था कि सचिन पायलट के खिलाफ गहलोत कुछ बोलें। लेकिन गहलोत को मालूम है कि प्रोवोकेशन क्या है। गहलोत को मालूम है कि जैसे ही हिमाचल और गुजरात के चुनाव नतीजे आएंगे उसके बाद फिर से राजस्थान में मुख्यमंत्री बदलने की कोशिश शुरू होगी। वह इसलिए, क्योंकि सोनिया, राहुल और प्रियंका इस बात को भूले नहीं हैं कि अशोक गहलोत ने उनको किस तरह से जवाब दिया था। अशोक गहलोत ने कहा कि सचिन पायलट गद्दार हैं और गद्दार को कभी राजस्थान का मुख्यमंत्री नहीं बनाया जा सकता। इस पर सचिन पायलट के पास बोलने को कुछ नहीं है। वह कह रहे हैं कि अशोक गहलोत बहुत सीनियर लीडर हैं, उनसे इस तरह की बात की अपेक्षा नहीं थी। और कांग्रेस पार्टी की प्रतिक्रिया भी लगभग ऐसी ही है। कांग्रेस पार्टी की आधिकारिक प्रतिक्रिया है कि गहलोत का सचिन पायलट के बारे में बयान अप्रत्याशित है- इसकी उनसे उम्मीद नहीं थी। इससे ज्यादा कुछ नहीं कहा गया पार्टी की तरफ से। छोटी से छोटी बात पर लोगों को पार्टी से निकाल देने वाले गांधी परिवार के लोग अशोक गहलोत के खिलाफ कुछ नहीं कर पा रहे हैं।

निशाना कहां, वार कहां

दरअसल, जब राहुल गांधी राजस्थान में पहुंचने को हैं तो अशोक गहलोत उनको चुनौती दे रहे हैं कि अगर सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं तो बनाकर दिखाएं। वह प्रियंका वाड्रा को चुनौती देना चाहते हैं और सोनिया गांधी को भी चुनौती दे रहे हैं कि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनने दूंगा चाहे कुछ भी कर लो। बताया जाता है कि इन तीनों ने ही सचिन पायलट से उनको राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया था।

गहलोत और पायलट दोनों आरपार के मूड में

खुदमुख्तारी का ऐलान

इस समय अशोक गहलोत के जो तेवर हैं उनसे वह पैरलल पावर सेंटर यानी शक्ति के एक समानांतर केंद्र के रूप में उभर रहे हैं। जो गांधी परिवार की सुनने को तैयार नहीं है- कांग्रेस के किसी और नेता की सुनने को तैयार नहीं है। उन्होंने एक तरह से आजादी की घोषणा कर दी है और खुद मुख्तार हो गए हैं कि राजस्थान में जो कुछ होगा वह अशोक गहलोत तय करेंगे- राजस्थान के बारे में फैसला वही करेंगे। अगर गांधी परिवार या कांग्रेस हाईकमान कोई फैसला करने की या कोई फैसला थोपने की कोशिश करता है तो उसका विरोध होगा- यह बात चीख चीख कर कह रहे हैं अशोक गहलोत।

गुबार ही गुबार

अशोक गहलोत ने एक काम तो कर ही दिया है कि फिलहाल सचिन पायलट की राजनीति खत्म कर दी है। अब सचिन पायलट से गांधी परिवार ने जो उनको इसी विधानसभा में मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया था, वह पूरा होता हुआ नजर नहीं आ रहा है। सचिन पायलट के लिए एक तरफ कुआं, दूसरी तरफ खाई वाली स्थिति है। पायलट अगर उस समय अपने बगावत के अभियान को पूरा करते और पार्टी से निकल गए होते तो उनकी स्थिति शायद बेहतर होती।

दूसरों के लिए मिसाल

राजस्थान में इस समय जो कुछ हो रहा है उसको आप राजस्थान तक सीमित मत मानिए। अशोक गहलोत ने कांग्रेस के दूसरे नेताओं के लिए उदाहरण प्रस्तुत किया है कि अगर तुममें ताकत है, हिम्मत है तो गांधी परिवार को चुनौती दे सकते हो। तो इस तरह गांधी परिवार के बुरे दिन शुरू हो गए हैं। गांधी परिवार की यह जो अवस्था है इसमें कांग्रेस बिखराव की ओर बढ़ रही है। गांधी परिवार को चुनौती देने वाले अभी और लोग सामने आने वाले हैं। मुझे नहीं लगता कि गांधी परिवार छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल पर अपनी कोई शर्त थोप सकता है। वहां भी यही होने वाला है। वहां भी कोई नेतृत्व परिवर्तन नहीं होने वाला। छत्तीसगढ़ के बारे में जो कुछ फैसला होगा वह मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ही तय करेंगे।

राजस्थान में कांग्रेस के झगड़े का असर गुजरात के चुनाव पर!

थोड़ा इंतज़ार

बगावत… यह एक छूत की बीमारी होती है। जब यह फैलती है तो बहुत तेजी से फैलती है। जनता के बीच तो गांधी परिवार का रुक्का चलना बहुत पहले ही बंद हो गया था, अब पार्टी में भी चलना बंद हो गया है। यानी गांधी परिवार के बुरे दिनों की शुरुआत हो चुकी है। यह मामला कहां तक जाएगा और इसकी परिणति क्या होगी- 2024 के चुनाव से पहले कांग्रेस में क्या परिस्थिति बनेगी- क्या झगड़े और बढ़ेंगे- वे क्या रूप लेंगे… यह सब अभी कहना मुश्किल है। लेकिन गुजरात और हिमाचल विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद आप मान कर चलिए कि कांग्रेस में फिर कुछ बड़ा होगा ,बगावत की सुर फिर सुनाई देंगे। तो अशोक गहलोत कांग्रेस में ‘परिवार विरोधी’ लोगों के अगुवा बन रहे हैं- जो गांधी परिवार से ऊब चुके हैं, आजिज आ चुके हैं- जो गांधी परिवार की ‘वफादारी’ से, दासता से मुक्ति चाहते हैं। इसलिए अशोक गहलोत को पार्टी के एक वर्ग का समर्थन मिलेगा। यह लड़ाई आर-पार की होती है या बीच में रुक जाएगी- यही देखना है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ न्यूज पोर्टल एवं यूट्यूब चैनल के संपादक हैं)