गिलोय के हेपटोप्रोटेक्टिव (लिवर को स्वस्थ रखने की क्षमता) और अन्य लाभकारी प्रभाव को अब यूनाइटिड किंगडम ने भी स्वीकार किया है, जिसे रॉयल फार्मास्यूटिकल सोसाइटी ऑफ ग्रेट ब्रिटेन के प्रसिद्ध रिसर्च जर्नल ‘जर्नल ऑफ फार्मेसी एण्ड फार्माकोलॉजी में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने प्रकाशित किया है। यह जानकारी उत्तराखंड के हरिद्वार स्थित पतंजलि योग पीठ की ओर से दी है।

यूके के जर्नल ऑफ फार्मेसी एण्ड फार्माकोलॉजी ने स्वीकार किया है कि गिलोय पर अनुसंधान में पाया कि यह लिवर को स्वस्थ रखने के साथ शरीर की कोशिकाओं का क्षरण रोकने तथा लिवर को सुरक्षा प्रदान करने में सहायक है। साथ ही गिलोय शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि करता है। गिलोय के प्रयोग को दैनन्दिन (खाद्य के रूप में) प्रयोग करके अनेक रोगों में लाभ प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि गिलोय का प्रयोग लिवर को सुरक्षा प्रदान करने वाले पूरक खाद्य के रूप में किया जा सकता है। इस अवसर पर आचार्य बालकृष्ण ने बताया कि गिलोय को परंपरागत रूप से रक्त शोधन व रोग प्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि के लिए प्राचीनकाल से ही गिलोय प्रयोग किया जाता था। गिलोय एक हेपेटोप्रोटेक्टिव एजेंट है।

हरिद्वार स्थित पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि आयुर्वेद को कुलचने का भरसक प्रयास किया गया किन्तु पतंजलि ने सदैव आयुर्वेद को गौरव प्रदान किया है। कोरोना काल में गिलोय को लेकर भ्रांति पैदा करने का प्रयास किया गया कि गिलोय के अधिक सेवन से लिवर पर दुष्प्रभाव पड़ता है। किन्तु पतंजलि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने गिलोय पर अनुसंधान कर उसे एविडेंस के साथ प्रस्तुत किया। कहा कि यह भी प्रासंगिक है कि कोरोना के खिलाफ प्रमुख औषधि कोरोनिल का एक प्रमुख घटक गिलोय है। पतंजलि के प्रयासों से आज दुनियाभर के वैज्ञानिक आयुर्वेद का लोहा मान रहे हैं।(एएमएपी)