~ कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल
#WATCH | Mumbai: On his new series, ‘The Railway Men’ releasing on Netflix, Actor Babil Khan says, “I haven’t seen my work, this is the first time I properly saw myself working in ‘The Railway Men’…I’m very happy at this moment” pic.twitter.com/W6NrAFNpgJ
— ANI (@ANI) November 22, 2023
हाल ही में Netflix पर The Railway Men ( The untold story of Bhopal 1984 ) रिलीज़ हुई । इसमें प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में देश भर में हुए सिख नरसंहार (दंगे ) के दौरान राजीव गांधी का द्वारा दिए गए बयान – “जब भी कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती थोड़ी हिलती है।” के साथ साथ सिख समुदाय के लोगों के नरसंहार की कहानी की झलक भी दिखती है। यानी दो वीभत्स खूनी मंजर एक साथ सिनेमा के एक पर्दे पर।
इस सीरीज को देखने बाद लगा कि – हमारा सिनेमा जगत इतने वर्षों तक इस विषय पर खामोश क्यों था ? हालांकि समाज को भूलने की आदत होती है लेकिन क्या 1984 की त्रासदी किसी भी तरह से भुलाने जैसी थी ? फिर भी कूटरचित और प्रायोजित ढंग से इसका नार्मलाईजेशन कर दिया गया। ताकि कोई सच की ओर आंख भी न फेर सके। लेकिन सच तो एक दिन अवश्य ही सामने आता है चाहे कितना भी समय लग जाए।
#WATCH | Mumbai: On his new series, ‘The Railway Men’ releasing on Netflix, Actor Divyendu says, “There was a friend whose father was at the Bhopal station that night, he used to work with Railways. So, he served his duty throughout the Bhopal Gas leak tragedy and lost his life.… pic.twitter.com/qrHQfboJSz
— ANI (@ANI) November 22, 2023
इसी सन्दर्भ में यह कहना समीचीन है कि लोग मानें या न माने लेकिन इस देश में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ये तो जरूर हुआ कि अब लोग खुलकर सत्य कहने और दिखाने लगे हैं। बात चाहे ‘ द काश्मीर फाईल्स की हो याकि द केरला स्टोरी की और अब चाहे द रेलवेमैन की हो। सच अब बड़ी मुखरता के साथ सामने आ रहा है।
1984 में हुई चाहे बात भोपाल गैस त्रासदी की हो याकि बात सिख नरसंहार की हो । इन सबको देखने पर यही समझ आता है कि ये था कांग्रेस के सत्तानशीं चेहरे का रक्त चरित्र जिसके लिए — जनता के जान की कीमत कुछ भी नहीं थी। उनके लिए तो जनता कीड़े मकोड़े की तरह मरने के लिए होती है। इसके पहले 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा देश के लोकतंत्र की हत्या कर ही दी गई थी। जब देश को – संविधान को बंधक बनाकर ‘आपातकाल’ थोप दिया गया था और जनता पर अत्याचारों की झड़ी लगी हुई थी। न अपील न दलील जारी थी सिर्फ़ सत्ता की कुटिल कील ।
द रेलवे मैन को देखने के बाद पत्रकार और पत्रकारिता दोनों का नया आदर्श भी हमें दिख जाता है। इन सबके के बीच खोजी पत्रकार स्व. राजकुमार केसवानी का साहस कांग्रेसी सरकार के सत्तानशीं चेहरे के विरुद्ध – मजबूत दीवार बनकर खड़ा मिलता है। वो सरकार और प्रशासन के दमन के आगे नहीं झुके और उन्होंने बताया कि पत्रकार और पत्रकारिता क्या होती है।
3 दिसम्बर 1984 मध्यप्रदेश के हिस्से में त्रासदी का इतना भयावह मंजर जिसने भोपाल में हजारों लोगों को मौत का शिकार बना लिया। भोपाल के निरीह लोग कांग्रेस सरकार और एंडरसन के मौत के फरमान के आगे घुटने टेकने को विवश थे। सरकार, कंपनी और प्रशासन के ने जिस तरह से जनता की जान का सौदा कर उन्हें बेमौत मौत के घाट उतारा था, वह बर्बरता की पराकाष्ठा थी। ऐसे में इसे आतंक और प्रायोजित हत्या न कहें तो क्या कहें ?
इधर भोपाल के लोग कांग्रेस सरकार और वारेन एंडरसन के गैस त्रासदी के कत्लेआम से मर रहे थे।उधर सरकार अपराधियों को बचाने पर , त्रासदी पर पर्दा डालने पर जुटी हुई थी। रेलवे से लेकर जितने भी लोग त्रासदी से बचाव के लिए जुटने वाले थे। उन सब पर कांग्रेस की क्रूर सत्ता का प्रहार चल रहा था।
आखिरकार! वफादारी निभाने वाली कांग्रेस ने यूनियन कार्बाइड के वारेन एंडरसन को बकायदे प्लेन से सुरक्षित भारत से बाहर भिजवाया था। भोपाल गैस त्रासदी हर वर्ष केवल फौरी तौर पर श्रद्धांजलि और शोक संवेदना का विषय बन चुका है। जबकि इस पर गहन शोध और उस त्रासदी से जुड़े हुए एक एक गवाह और घटनाक्रम का दस्तावेजीकरण, सिनेमैटोग्राफी होनी चाहिए। ताकि वर्तमान और भविष्य देख सके कि – किस तरह से आम जनता को सरकारें अपने स्वार्थों के लिए काल का ग्रास बना देती हैं।
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इन्वेस्टगेटिव पत्रकार – स्व.राजकुमार केसवानी के सहारे इस कहानी ने हर व्यक्ति को फिर से सोचने के लिए विवश कर दिया है। देश को एक स्वर में कहना चाहिए कि भोपाल वालो – मध्यप्रदेश वालो जरा! कांग्रेस से पू़ंछिए आम जनता का क्या गुनाह था जो उनकी मौत का सौदा किया गया? वारेन एंडरसन जैसे मौत कै सौदागर को अमेरिका भिजवाने का प्रबंध करने वाले क्या मौत के सौदागर नहीं थे ?(एएमएपी)