आपका अखबार ब्यूरो।
बंद मुट्ठी लाख की, खुल गई तो फिर खाक की। किसानों के भारत बंद के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। दिल्ली की सीमा पर तेरह दिन से डटे किसान संगठनों और उनके सदस्यों का आंदोलन सरकार पर अच्छा खासा दबाव बनाने में कामयाब हो गया था। सरकार से बातचीत सकारात्मक दिशा में बढ़ रही थी। इससे अति उत्साहित किसान संगठनों ने नौ दिस्म्बर की बैठक से पहले ही आठ दिसम्बर को भारत बंद का आह्वान कर दिया। जो आंदोलन राष्ट्रव्यापी लग रहा था उसकी हवा निकल गई। बंद नाकाम हो गया।
कांग्रेस पूरी तरह एक्सपोज़
बंद कराने के लिए कांग्रेस कार्यकर्ता निकले। वे बंद तो नहीं करवा पाए लेकिन मोदी-मोदी के नारे सुनकर आ गए। यह नारे उन्हें भाजपा शासित ही नहीं कांग्रेस शासित राज्यों में सुनना पड़ा। कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता और राहुल गांधी के करीबी रणदीप सिंह सुरजेवाला को तो हरियाणा में उनके अपने ही चुनाव क्षेत्र से लोगों ने भगा दिया। राजस्थान में दुकानें बंद कराने गए कांग्रेस कार्यकर्ताओं के सामने व्यापारी डट गए और साफ बोल दिया कि दुकानें तो बंद नहीं होंगी। इस बंद ने कांग्रेस पार्टी को पूरी तरह एक्सपोज कर दिया। ये वही पार्टी है जो चाहते हुए भी सत्ता में रहते हुए इन कानूनों को बनाने की राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं जुटा पाई।
कानून वापस नहीं लेगी सरकार
इस बीच बंद के नाकाम होते ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने किसान संगठनों को बातचीत के लिए बुला लिया। बातचीत का कोई नतीजा तो नहीं निकला पर कुछ बातें साफ हो गईं। एक, सरकार तीन कृषि कानूनों में किसान संगठनों के सुझाव के मुताबिक संशोधन के लिए तैयार है। दूसरा, सरकार इसके लिए किसान संगठनों को एक लिखित प्रस्ताव देगी। जिस पर संगठन नौ तारीख को विचार करेगा। तीसरी, सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि अमित शाह ने साफ कर दिया कि सरकार इन तीन कानूनों को वापस नहीं लेगी।
What has been lacking in Indian farming is commensurate return for all the blood and toil put in by our farmers. The new structure brought by these farm and labour reforms will significantly increase the profitability of our farmers: PM @narendramodihttps://t.co/dod9wrCCnd
— Amit Shah (@AmitShah) October 29, 2020
लौटना शुरू कर दिया किसानों ने
सरकार के रवैए और देश में आम किसानों के अलावा बाकी वर्गों का समर्थन न मिलने से आंदोलनकारी किसानों का मनोबल कमजोर हुआ है। यही कारण है कि दिल्ली सीमा पर जहां किसानों का जमावड़ा है वहां ट्रैक्टर ट्रालियों की संख्या घट रही है। यानी किसानों ने लौटना शुरू कर दिया है। हालांकि किसान संगठन कह रहे हैं बुजुर्गों और बच्चों को वापस भेजा जा रहा है। वास्तविकता यह कि सरकार के इस प्रस्ताव को किसान संगठन ठुकरा चुके थे।
अगली बातचीत दस दिसम्बर को
असली बात यह है कि सरकार ने साफ संदेश दे दिया है कि कानून तो संसद में ही बनेगा सड़क पर नहीं। सरकार किसी भी हालत में तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए तैयार नहीं है। सरकार और किसान संगठनों की अगली बातचीत दस दिसम्बर को होगी।