आपका अखबार ब्यूरो।

पुणे के कोरेगांव पार्क में ओशो आश्रम में ओशो की समाधि पर जाने के लिए प्रतिदिन का शुल्क 970 रुपया वसूला जा रहा है।

यह सब एक अवैध विदेशी संगठन की सांठगांठ से हो रहा है।

पुणे के कोरेगांव पार्क में ओशो का आश्रम एक विश्वस्तरीय ध्यान केंद्र है। यह हमेशा श्री रजनीश आश्रम के नाम से प्रसिद्ध रहा है। यह आश्रम गत बीस वर्षों से ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिसोर्ट के नाम से जाना जाता है जहाँ लगभग 100 देशों के लोग हज़ारों की संख्या में आते रहे हैं।

इस केंद्र का संचालन ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन (OIF) नाम से भारतीय ट्रस्टी करते रहे हैं।

इसी नाम का एक दूसरा ट्रस्ट करीब 25 वर्ष पहले जूरिख (Zurich, Switzerland) में रजिस्टर्ड किया गया। जूरिख में इस ट्रस्ट के 5 सदस्य हैं जिन्होंने मिलकर इस ट्रस्ट को ओशो का मुख्यालय घोषित कर दिया। उन्होंने ओशो की समूची बौद्धिक सम्पदा पर एकाधिकार कर लिया और भारत में स्थित ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन को भी अपने अधीन कर लिया है। भारत में यह सब काम बहुत गुप्त तरीके से कोविड के दौरान रान किया गया। जूरिख वालों ने ओशो का एक फ़र्ज़ी वसीयतनामा भी बनवा लिया, जिसकी फॉरेंसिक क्राइम ब्रांच में जांच हुई और पता चल गया था कि ओशो के हस्ताक्षर नकली हैं।

गत 25 वर्षों से ओशो की 650 पुस्तकों की 60 -70 भाषाओँ में अनुवादित पुस्तकों की बिक्री का धन विदेश में इन ट्रस्टियों की निजी कंपनियों में रख लिया जाता है। और भारत में ओशो का आश्रम इससे वंचित रह जाता है। अब यह प्रचारित किया गया कि चूँकि अब बहुत लोग आश्रम नहीं आते, आश्रम घाटे में चल रहा है। अतः इसके एक हिस्से को बेचना ज़रूरी हो गया है। बजाज ग्रुप के मालिक श्री राजीव नयन बजाज से सौदा कर लिया गया 107 करोड़ रुपये का. जिसमें से 50 करोड़ रुपये की अग्रिम राशि भी ले ली गयी।

भारत में रहने वाले ओशो शिष्यों को इस बात से बहुत चोट लगी है कि उनके गुरु के आश्रम के एक हिस्से को बेचा जा रहा है। भारत में कहीं भी ऐसा नहीं होता कि जहाँ गुरु की समाधि के दर्शन करने के लिए अथवा वहां मौन ध्यान में आधा घंटा बैठने के लिए शुल्क देना पड़े।

 

इस बारे में ओशो वर्ल्ड पत्रिका के संपादक स्वामी चैतन्य कीर्ति ने शुक्रवार 24 फरवरी को लखनऊ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की।
इसमें मीडिया के लोगों के अलावा तमाम ओशो प्रेमी भी एकत्रित हुए।

इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्वामी चैतन्य कीर्त ने भारत सरकार से अपील की कि पुणे के इस ओशो आश्रम को राष्ट्रीय धरोहर बनाया जाए। और ओशो की समूची बौद्धिक सम्पदा की मिल्कियत भारत को मिले। ऐसा करने से पहले की भांति विश्वभर से ओशो प्रेमी पुणे में फिर आने लगेंगे और ओशो आश्रम में जीवंतता लौटेगी।

आज के तनावग्रस्त विश्व में शान्ति और ध्यान बढ़ाने में भारत की भूमिका बहुत सकारात्मक हो सकती है – यही ओशो का स्वप्न था।