प्रदीप सिंह

नरेंद्र मोदी, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी ने समझा कि महिलाओं का वोट होता है सबसे निर्णायक। अन्य दल अभी भी इस बात को समझ नहीं पाए हैं।

जब बात चुनाव की होती है, चुनावी सर्वेक्षण, चुनावी विश्लेषण, मतदाता के व्यवहार की बात होती है, किस तरफ वोट जाएगा, किस पार्टी को जाएगा, कितना जाएगा, इन सारे विमर्श और बहस में एक पक्ष की निरंतर उपेक्षा होती है और वह है आधी आबादी यानी महिलओं की। जो सर्वेकरने जाते हैं तो बहुत कम ऐसा होता है कि वे महिलाओं से बात करें, खासकर ग्रामीण महिलाओं से। ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं से बात करने तो बहुत ही कम लोग जाते हैं। उनकी क्या समस्या है,उनका राजनीति के बारे में क्या सोचना है, वह किस आधार पर तय करती हैं कि वोट किसे देंगी,किसे नहीं देंगी। किस पार्टी को अच्छा मानती हैं, किसे खराब मानती हैं, पार्टी के आधार पर वोट करती हैं या फिर उम्मीदवार के आधार पर या फिर परिवार के मुखिया के कहने पर या परिवार के सब लोग जहां वोट कर रहे हैं उसके आधार पर वोट करती हैं। ये सब ऐसे मसले हैं जिन पर सबसे कम चर्चा होती है जबकि सबसे निर्णायक वोट महिलाओं का होता है।

नारी केंद्रित योजनाओं का मिला फायदा

नरेंद्र मोदी नेगुजरात में 12 साल इस बात को प्रमाणित करके दिखाया है। गुजरात में उनके कार्यकाल के दौरान भारतीय जनता पार्टी के समर्थन का जो आधार बढ़ा, उसका जो विस्तार हुआ उसमें सबसे अहम भूमिका महिलाओं की थी। इस बात को नरेंद्र मोदी ने बहुत पहले पहचान लिया था। फिर इस बात को पहचाना बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब उन्होंने शराबबंदी की। उन्होंने जब शराबबंदी का फैसला किया तो सबसे पहले उनके ध्यान में आधी आबादी थी।शराब की वजह से महिलाओं को जो तकलीफ होती है, जो पारिवारिक कष्ट होता है, जो मानसिक कष्ट होता है, सामाजिक रूप से उनको जो यातना सहनी पड़ती है, आर्थिक रूप से जिन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, यह सब उनके दिमाग में सबसे पहले था। तीसरी नेता जिन्होंने महिला मतदाताओं पर ध्यान दिया वह हैं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी। उन्होंने महिलाओं को केंद्र में रखकर बहुत सारी योजनाएं शुरू की जिसका लाभ उनको मिला और तीसरी बार चुनकर आईं। पश्चिम बंगाल चुनाव के विमर्श में भी इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया कि महिलाएं क्या सोचती हैं, महिलाओं का झुकाव किस ओर है।

शौचालय से बढ़ा आत्म-सम्मान

Government Of India To Give Rs.4,000 To Every Household For Construction Of A Toilet - The Better India

इसलिए अगर आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली देखें तो उनकी जितनी योजनाएं हैं उनके केंद्र में महिलाएं हैं। जब उन्होंने लाल किले से स्वच्छ भारत अभियान की घोषणा की और इसके तहत देश भर में शौचालयों के निर्माण की घोषणा की तो उनका मजाक उड़ाया गया। राहुल गांधी ने एमबीए के छात्रों के एक कार्यक्रम में पूछा कि क्या आप लोगों को लगता है कि स्वच्छता अभियान ऐसा मुद्दा है जिसकी बात प्रधानमंत्री को लाल किले से करनी चाहिए? लगभग शत-प्रतिशतबच्चों ने कहा- हां यह महत्वपूर्ण है। यह बात वे लोग नहीं समझ सकते जो जन्म से ही शहरों में रहे हैं, शहरोंमें जो सुख सुविधाएं हैं उनमें पले-बढ़े हैं। जिन लोगों ने गांवों में महिलाओं की स्थिति नहीं देखी है कि घर में शौचालय नहीं होने का अर्थ क्या होता है, उनके पूरे जीवन पर,उनके स्वास्थ्य पर, मानसिक स्वास्थ्य पर, हर तरह से जिस तरह की प्रताड़ना उनको झेलनी पड़ती है, जिस तरह का कष्ट उनको झेलना पड़ता है उसे ग्रामीण महिलाएं ही समझ सकती हैं।शौचालय के बाहर जाने पर उनका जीवन खतरे में पड़ता है, उनकी इज्जत-आबरू खतरे में पड़ती है, उन पर हर तरह का अत्याचार होने की आशंका बनी रहती है। शौचालय ऐसी चीज है जो देखने में छोटी लगती है मगर जिनके घर में बना है उन सभी के लिए सुविधाजनक है खासकर उस घर की महिलाओं के लिए।इससे महिलाओं के जीवन में एक तरह का आमूल बदलाव आया है। इस बात को महिलाएं कैसे भूल सकती हैं।

उज्जवला से उज्जवल हुई जिंदगी

10 अगस्त से उज्ज्वला 2.0 की होगी शुरुआत, अब तक 8 करोड़ परिवार को मिल रहा लाभ - News on AIR

इसी तरह उज्जवला योजना के तहत रसोई गैस के मुफ्त कनेक्शन से सबसे ज्यादा फायदा अगर किसी को हुआ है तो वो हैं महिलाएं। एक समय था जब रसोई गैस का कनेक्शन लेने के लिए शहरी मध्यवर्ग को भी मंत्री, सांसद की सिफारिश लेनी पड़ती थी। उनके पीछे-पीछे घूमना पड़ता था। अब यह सहज उपलब्ध है। उज्जवला योजना के तहत लगभग 9 करोड़ घरों को रसोई गैस का मुफ्त कनेक्शन मिल चुका है।साढ़े 11करोड़ से ज्यादा शौचालय बन चुके हैं। वैसे तो किसी भी व्यक्ति के लिए पक्का घर एक सपना होता है लेकिन खासतौर से महिलाओं के लिए यह उनका सबसे बड़ा सपना होता है। उनके इस सपने को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पूरा किया जा रहा है। और घर यूं ही नहीं मिला है। घर के साथ बिजली का कनेक्शन, उसके साथ शौचालय, गैस का कनेक्शन और नल से जल। नल से जल की बात करें तो यह सिर्फ ग्रामीण महिलाओं के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि शहरी परिवारों के लिए भी आज यह बहुत बड़ी समस्या है। बहुत से शहरी इलाकों में इसका अभाव है। जितनी तेजी से नल से जल का यह अभियान चल रहा है, लोगों के घरों में नल से जल पहुंच रहा है, यह उनके जीवन में बदलाव लाने वाला काम है। मुफ्त बिजली देने की घोषणाएं या हर महीने किसी तरह का भत्ता देने की घोषणाओं से जीवन में उतना बड़ा बदलाव नहीं आता है जितना इन सब स्थायी बदलाव वाले कामों से आता है। हालांकि गरीब आदमी को कुछ भी मिले यह अच्छी बात है इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन ये स्थायी बदलाव लाने वाले काम हैं।

महिलाओं की सुरक्षा सर्वोपरि

उत्तर प्रदेश में चुनाव हो रहा है। उत्तर प्रदेश में पिछले पांच साल में दस लाखमहिला स्वयं सहायता समूह बने हैं या उनको मदद मिली है।इनके जरिए लगभग एक करोड़ महिलाओं को रोजगार मिला है। सरकारी नौकरी की बात नहीं कर रहा हूं। रोजगार मिला है, स्वरोजगार। लगभग 55 हजारसे ज्यादा महिलाएं बैंक सखी बनी हैं। कन्या सुमंगला योजना के तहत लड़कियों को ग्रेजुएशन तक मुफ्त शिक्षा मिल रही है। इन सब योजनाओंनेउनके जीवन में बदलाव लाया है। लेकिन उत्तर प्रदेश में जो सबसे बड़ा बदलाव आया है जिसे कहते हैं पैराडाइम शिफ्ट, उस तरह का बदलाव अगर आया है तो वह है सुरक्षा का, कानून व्यवस्था का। हालांकि पिछले पांचसाल में कुछ घटनाएं बहुत दुखद हुई हैं, बड़ी शर्मनाक रही हैं, वह नहीं होनी चाहिए थी। लेकिन आम महिलाओं की दृष्टि से सोचिये, आम लोगों के नजरिए से सोचिये तो सरकार बनते ही योगी आदित्यनाथ ने जो रोमियो स्क्वैड बनाया उसने बड़ा परिवर्तन किया। मैं पहले भी कह चुका हूं कि 2012 से 2017 के बीच हालत यह हो चुकी थी कि लोगों ने अपनी बेटियों को घर से बाहर भेजना बंद कर दिया था। स्कूल-कॉलेज भेजना बंद कर दिया था। जोलोग सक्षम थे उन्होंने अपनी बेटियों को दूसरे राज्यों में पढ़ने भेज दिया था। पूरे उत्तर प्रदेश में खासतौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 2013 के दंगे के बाद से या उससे पहले भी जो स्थिति थी उसमें कोई भी परिवार ऐसा नहीं था चाहे वह पैसे वाला हो या किसी और मामलों में सक्षम हो, रसूख वाला हो, कुछ भी हो, अपनी बहू-बेटियों को, परिवार की महिलाओं को शाम पांच बजे के बाद बाहर रहने नहीं देता था।

शाम पांच बजे से पहले घर लौट आना यह पुरुषों के लिए भी था। एनसीआर के इलाके के रहने वाले युवक जो रोजाना दिल्ली-नोएडा काम के लिए आते हैं उन लड़कों को अगर लौटने में रात हो जाती थी तो उनके घर से फोन आ जाता था कि घर मत आना। वहीं कहीं रुक जाना। रात में चलना जोखिम भरा था। रात में अगर आप चल रहे हैं तो अपनी जान जोखिम में डालकर चल रहे हैं। आज पांचसाल होने जा रहे हैं। रात में आप दसबजे जाएं,बारहबजे जाएं,दोबजे जाएं कोई चिंता की बात नहीं है। यह इतनी बड़ी बात है किसी भी मनुष्य के लिए, किसी भी समाज के लिए जो उसके मन पर बहुत भारी असर डालता है।यह ऐसी चीज है किसी के लिए भी कि भाई जान है तो बाकी चीजें तो बाद में है। इसीलिए विपक्षी दल जो मुद्दा उठाते हैं बेरोजगारी का, महंगाई का और दूसरी जो समस्याएं उठाते हैं लोग उनको सुनने को तैयार नहीं है क्योंकि अगर असुरक्षा की भावना न होती 2012से 2017 के बीच में यह माहौल न बना होता तो शायद ये मुद्दे ज्यादा प्रभावी होते।  सिर्फ महिलाओं की बात नहीं है, गरीब आदमी जो ठेले पर सामान बेचता है, जो रेहड़ी-पटरी पर सामान लगाकर बेचता है उसकी स्थिति यह थी कि उसका पैसा कब छीन लिया जाएगा कुछ पता नहीं। वह दिनभर की जो कमाई लेकर घर जा रहा है उसे लेकर घर पहुंच पाएगा या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं थी। इसमें बदलाव हुआ है।

महिलाओं को महत्व

अभी चार-पांच महीने से अखिलेश यादव राजनीतिक रूप से सक्रिय हुए हैं। चार-साढ़े चार साल से निष्क्रिय थे। समाजवादी पार्टी की जो एमवाई (मुस्लिम-यादव) की छवि है उसको बदलने के लिए उसके बारे में कहा कि एमवाई का मतलब हमारे लिए महिला और यूथ है।अगर यह बदलाव पार्टी ला रही है तो यह अच्छी बात है लेकिन उसके बाद से उन्होंने इसका जिक्र कभी नहीं किया। चुनाव लड़ना हुआ तो वे खुद यादवों की शरण में चले गए। जो यादव बहुल इलाका है वहां से लड़ने चले गए। समाजवादी पार्टी की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि  महिलाओं में पार्टी का प्रभाव लगभग नहीं के बराबर है। जो परिवार समाजवादी पार्टी से जुड़े हुए हैं उन परिवारों की महिलाएं अगर परिवार के दबाव में वोट देती हैं तो यह अलग बात है।टिकटों के बंटवारे में भी यह साफ झलकता है। पार्टी में किसी महत्वपूर्ण पद पर कोई महिला नहीं है। दूसरी तरफ अब आप देखिए कि किस तरह से युवा महिलाएं भाजपा से जुड़ रही हैं। नए लोग जुड़ रहे हैं। अपर्णा यादव,अदिति सिंह और प्रियंका वर्मा जैसी युवा महिलाएं भाजपा का प्रचार करने निकली हैं। समाजवादी पार्टी के स्टार प्रचारकों में किसी महिला का नाम भी है यह मुझे याद नहीं है। हो सकता है शायद एकाध हो अन्यथा कोई नहीं है। अखिलेश यादव ऐसी पार्टी से मुकाबला कर रहे हैं जिसके प्रधानमंत्री ने कैबिनेट की सबसे महत्वपूर्ण कमिटी कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्योरिटी (सीसीएस) उसमें महिला को भी रखा है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को। एक समय था जब सुषमा स्वराज जीवित थीं और मंत्री थीं तो दो महिलाएं इस समिति में थीं। इस समिति में प्रधानमंत्री जो इसके चेयरमैन होते हैं के अलावा गृहमंत्री, रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री और वित्त मंत्री होते हैं। तो इससे आप अंदाजा लगाइए महिलाओं को महत्व देना।

राजनीति ही नहीं विकास में भी भागीदार

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महिलाओं की राजनीति में सिर्फ भागीदारी ही नहीं बल्कि विकास में महिलाओं की भागीदारी का जो सिलसिला नरेंद्र मोदी ने शुरू किया है अभी तक किसी सरकार ने उस तरह से शुरू नहीं किया था। केंद्र सरकार की जितनी योजनाएं आप देख लीजिए सबके केंद्र में महिलाएं नजर आएंगी क्योंकि घर वह चलाती हैं, परिवार वह चलाती हैं। उनको आप महत्व नहीं देंगे, उनका सम्मान नहीं करेंगे तो आप सत्ता में रहें या ना रहें कोई बहुत बड़ा फर्क आप देश के जीवन में या समाज के जीवन में नहीं ला सकते। सरकारें आती-जाती रहती हैं। बदलाव आता है तो इन चीजों से आता है। सामाजिक बदलाव धीरे-धीरे आता है लेकिन इन्हीं चीजों से आता है कि आपकी सोच क्या है। जब विजन की बात होती है तब यही होता है कि आप किस तरह का बदलाव लाना चाहते हैं, किस तरह का समाज बनाना चाहते हैं। अभी जो केंद्र सरकार की और राज्य सरकार की योजनाएं दिख रही हैं उससे लग रहा है कि महिला प्रधानता वाला समाज बनाना चाहते हैं जहां महिला का सम्मान सबसे ऊपर हो, उसकी सुरक्षा सबसे पहले हो। इसलिए आधी आबादी जिस तरफ होगी सत्ता की बागडोर उसी के हाथ में होगी। इस बात को अब तक ज्यादातर गैर भाजपा दल (दो की बात ऊपर कर चुका हूं) नहीं समझ पाए हैं।  यह बात नरेंद्र मोदी ने समझी और उसको लागू किया। ऐसा नहीं है कि केवल नारा दिया, उसको उन्होंने अपनी योजनाओं में उतार कर दिखाया।महिलाओं की बेहतरी के लिए किए गए काम का लाभ उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को मिलता हुआ दिख रहा।

मेरी जितनी राजनीतिक समझ है उस आधार पर मैं कह सकता हूं कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में महिलाओं का सबसे ज्यादा वोट भाजपा को मिलने वाला है। अब वह समय चला गया जब महिलाएं परिवार के मुखिया के कहने पर वोट देती थीं। जहां कहा जाता था वहां ठप्पा लगाकर या बटन दबाकर आ जाती थीं। अब महिलाएं अपना स्वतंत्र निर्णय करती हैं। हो सकता है कि पति एक पार्टी को वोट दे रहा हो और पत्नी दूसरी पार्टी को वोट दे रही हो। महिलाओं की वोट देने की जो यह आजादी आई है वह बदलाव ला रही है। यह बदलाव इस चुनाव में और ज्यादा दिखाई देगा क्योंकि पिछले पांचसाल में लाभार्थियों का जो एक बड़ा वर्ग तैयार हुआ है उसमें सबसे ज्यादा महत्व महिलाओं को मिला है। उसका असर चुनाव नतीजों पर दिखाई देगा।