संसद टीवी के लिए प्रदीप सिंह की केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से खास बातचीत-3 ।
आपका अख़बार ब्यूरो।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनीति और सत्ता के कई स्थापित चलन और मुहावरों को बदलने का सहस दिखाया है। तमाम कड़े फैसले किये। कुछ फैसले जनता के लिए भी काफी कड़े थे। इसके बावजूद पिछले सात सालों में उनकी लोकप्रियता घटी नहीं। जनता कष्ट सहकर भी उनके साथ क्यों खड़ी नजर आती है। प्रस्तुत है वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह की लंबे समय तक प्रधानमंत्री के सहयोगी और उनकी राजनीतिक यात्रा के सहयात्री रहे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से ‘संसद टीवी’ के लिए खास बातचीत के कुछ अंश।
प्रदीप सिंह- पचास-पचपन साल तक कांग्रेस का शासन रहा। उसमें एक बहुत बड़ा योगदान उस वोटर का रहा जो समाज का वंचित व्यक्ति रहा है। वो कांग्रेस को अपनी पार्टी मानता रहा। पिछले सात साल मे आप लोगों ने इसे बदल दिया है। आज मोदी जी ने भाजपा को वंचित वर्ग की पार्टी के रूप मे पहचान दिलाई है। ये जो परिवर्तन हुआ, सामाजिक समीकरण बनाया आपने- जिसे सोशल इंजीनियरिंग कहें या जो भी नाम देना चाहें- इसकी योजना कब से थी मोदी जी के मन में… ये जब वह प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार बने उसके बाद से शुरू हुआ प्रोजेक्ट है या उसके पहले से…?
गुजरात में ही कर लिए थे ये सारे एक्सपेरीमेंट
अमित शाह- नहीं ,नहीं। ये सारे एक्सपेरीमेंट तो उन्होंने गुजरात में ही राज्य के स्तर पर, राज्य की रिक्वायरमेंट्स के आधार पर और वहां की परिस्थितियों के अनुकूल किये थे। मैं आपको एक बात बताना चाहता हूँ। लगभग 54 मंत्रालयों की अलग-अलग योजनाएं हैं जो जनता, गरीबों, वंचितों, पिछड़ों और दलितों-आदिवासियों के लिए हैं। आज 43 करोड़ बैंक खातों में इन सारी योजनाओं के लाभार्थियों को उनकी धनराशि डीबीटी के माध्यम से मिल रही है। एक भी बिचौलिए के बिना सीधा चेक पांच तारीख को उसको बैंक खाते में मिल जाता है। आप मुझे बताइए कि इससे बड़ा भला उस गरीब का क्या हो सकता है? उस बुढ़िया को जिसको छह सौ रुपया पाने के लिए पचास रुपया छीन जाता था… बच्चे के वजीफे से 10 परसेंट कोई काट लेता था… आज वे सारी चीजें खत्म हो गई हैं। और ये सब करने के बाद भी कॉर्पोरेट टैक्स घटाकर यहाँ इन्वेस्टमेंट का माहौल बनाया है, हम इसे 17 प्रतिशत पर ले आये हैं। ये सब करने के बाद भी राहुल गाँधी जी को (हमारी आलोचना में) बोलने के लिए तो ठीक है… एकबार आपको साक्षात्कार करने का मौका मिले तो इतना जरुर पूछना कि भईया आपका शासन था तो इसमें से क्या-क्या कर पाए थे? आप 10 साल तो सत्ता में रहे, उस दौरान आप सांसद भी थे, आपकी माता जी पार्टी अध्यक्षा थीं… मनमोहन सिंह जी प्रधानमन्त्री थे… तो क्या क्या कर पाए थे? एक बार पूछियेगा उनसे, वैसे साक्षात्कार तो वे देते नहीं, लेकिन अगर कभी आपको दें तो जरुर पूछना।
विपक्ष में रहकर भी आप कर सकते हैं जनता के काम
प्रदीप सिंह- गुजरात से दिल्ली तक के सफर में, कोई ऐसा मोड़, कोई ऐसा मौका, जब ये लगा कि ऐसा करेंगे तो सत्ता से बाहर हो जायेंगे। बाहर हो जायेंगे तो फिर काम कैसे करेंगे? ये सब काम, जो आपने योजनायें गिनायीं, सरकार की उपलब्धियां गिनायीं, ये तभी संभव है जब आप सत्ता में हों। ये जनतान्त्रिक राजनीति की या चुनावी राजनीति की एक सच्चाई है।
अमित शाह- देखिये, मैं ऐसा नहीं मानता। विपक्ष में रहकर भी जनता का काम तो किया ही जा सकता है। हां, इतना जरूर है कि यहां आप फैसले करके परिवर्तन कर सकते हैं, वहां आप फैसलों के अन्दर जो छिद्र होते हैं, उनको उजागर करने का काम करते हैं। तो सिस्टम सुधार के लिये, सिस्टमेटिक सुधार के लिय़े तो आप काम कर ही सकते हैं, परन्तु, हमने फैसले लेते वक्त ये कभी नहीं सोचा कि ये करने से हम चुनाव जीतेंगे या नहीं जीतेंगे। और न मोदी जी की पालिसी बनाते वक्त ये सोच रहती है। पालिसी बनाते वक्त एक ही सोच रहती है कि ये अच्छे परिणाम देगी या नहीं देगी… और जो लाभार्थी है, उसका कल्याण होगा या नहीं होगा? कई बार ऐसा होता है कि जनता में पहले रिएक्शन आता है औऱ उसका कई बार राजनीतिक खामियाजा भी भुगतना पड़ता है। मगर, हम राजनीति में राजनीतिक पार्टी को जिताने को नहीं हैं। हम राजनीति में देश को आगे बढ़ाने, देश की समस्याओं का परमानेन्ट साल्यूशन लाने, विश्व में देश को सम्मानजनक स्थान दिलाने और देश को सुरक्षित व शिक्षित करने के लिए हैं। देश की संस्कृति को पूरे विश्व में उच्च स्थान मिले, उसके लिए हम राजनीति में हैं। हाँ, स्वाभाविक रूप से राजनीति में चुनाव तो हम जीतना ही चाहते हैं, प्रयास तो करते ही हैं, यत्न भी करते हैं उसके लिए- परन्तु लक्ष्य वो नहीं है।
प्रदीप सिंह- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मेरी समझ से देश के अकेले नेता हैं जिनके खिलाफ बीस साल से लगातार अभियान चल रहा है और जो अभियान चलाने वाले हैं, वो थक नहीं रहे हैं, उनकी कोशिश लगातार जारी है। कभी उससे विचलित होते हैं?
हर विरोध के बाद मजबूत होते हैं मोदी
अमित शाह- जरा भी नहीं, क्योंकि हर विरोध के बाद मोदीजी मजबूत होते हैं। मोदीजी का हौसला औऱ बढ़ता है क्योंकि जनता का आशीर्वाद और समर्थन उनके साथ है। जनता चट्टान की तरह नरेन्द्र मोदी जी के साथ खड़ी है। लोकतंत्र में इससे बड़ी उपलब्धि क्या हो सकती है कि पूरे देश की जनता उस व्यक्ति के साथ खड़ी होती है जो कई बार कटु और कड़े फैसले लेता है। कई बार तो जनता के लिये भी कड़े फैसले होते हैं। काले धन पर जब आप नकेल कसते हैं, जब आप आर्थिक सुधार करते हैं, टैक्स इरोजन के सारे लूपहोल्स को सील करते हैं, तो कष्ट तो कुछ लोगों को होता है। हो सकता है कि हमें बहुत सालों तक वोट देने वाले भी कुछ लोगों को कष्ट होता हो, मगर वो भी समझते हैं कि इसमें मोदी को कुछ नहीं मिलने वाला है, इसमें देश का भला होने वाला है। इसलिए, अन्ततोगत्वा सब लोग मोदीजी के साथ जुड़ते हैं।
प्रदीप सिंह- शुरू से अबतक नजर डालिये और नेहरूजी का काल थोड़े समय के लिये छोड़ दीजिये, तो अब तक अपना कार्यकाल पूरा करने वाले जितने भी प्रधानमंत्री हुए, वे चुने जाने के दूसरे-तीसरे साल में अलोकप्रिय हो गये… कोई बड़ी राजनीतिक घटना हो गई, भ्रष्टाचार का आरोप लग गया। उनके खिलाफ आंदोलन शुरु हो गया। इंदिरागांधी को ले लीजिये, राजीव गांधी, नरसिम्हा राव, आप इस तरह से देखिये। लेकिन मोदीजी अकेले प्रधानमंत्री हैं, सात साल हो गये, लोकप्रियता घटने की बजाय ऐसा लगता है बढ़ रही है। जिस तरह से चुनाव के नतीजे आ रहे हैं, क्योंकि जनतंत्र में लोकप्रियता को नापने का यही मानक है। तो ऐसा क्या है उनमें जो..।
कितने आरोप लगाए- एक नहीं चिपका
अमित शाह- इसमें एक ही चीज है। मैं सवाल में थोड़ा सा एमेंडमेंट चाहता हूं जवाब देते वक्त कि भ्रष्टाचार के आरोपों से लोग अलोकप्रिय हो जाते हैं। भ्रष्टाचार के आरोपों से नहीं, भ्रष्टाचार से अलोकप्रिय होते हैं। आरोप तो हम पर भी लगाने का प्रयास किया, मगर वह चिपकता नहीं है क्योंकि पारदर्शिता है। सार्वजनिक जीवन में जनता की एक करोड़ आंखें होती हैं जो आप को बारीकी से देखती हैं। मोदीजी को देखती है। किसी को भी बख्शती नहीं है जनता। मगर, सार्वजनिक जीवन में जब ये मालूम पड़ता है कि इसमें कुछ नहीं है। कितने भी आरोप लगा दो, कुछ भी नहीं चिपकते हैं आपसे। आजादी के बाद भारत के लोकतंत्र में नरेन्द्र मोदी ही एक ऐसी राजनीतिक शख्सियत हैं जिन पर हर प्रकार के गंदे-घिनौने आरोप लगाने का प्रयास किया गया, भ्रष्टाचार से लेकर कम्युनल राइट्स तक सब प्रकार के आरोप लगाए गए लेकिन एक भी नहीं चिपका। इसका एकमात्र कारण है कि जीवन पारदर्शी है, निजी कुछ भी नहीं है। और हर फैसले के पीछे जब खुद का कुछ नहीं होता है, तो गलती भी हो, जनता इसको स्वीकारती है।