श्रद्धांजलि : बजाज समूह के पूर्व चेयरमैन और दिग्गज उद्योगपति राहुल बजाज का 83 वर्ष की उम्र में निधन।
अभिषेक राजा।
1980 के दशक के अंतिम सालों में टीवी पर एक बड़ा ही मधुर जिंगल वाला विज्ञापन आता था “हमारा कल हमारा आज, बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर- हमारा बजाज।” उस समय सिर्फ एक ही टीवी चैनल हुआ करता था, दूरदर्शन। दूरदर्शन पर आने वाले इस विज्ञापन ने हर भारतवासियों के दिल में अपनी जगह बना ली थी। शायद ही किसी दूसरे विज्ञापन ने करोड़ों लोगों के दिलों में ऐसी जगह बनाई हो। यह विज्ञापन था बजाज ऑटो के चेतक स्कूटर का। तब स्कूटर का मतलब ही बन गया था बजाज, जिसने हर मध्यवर्गीय घर में अपनी पहुंच बना ली थी। आम आदमी को दोपहिया गाड़ी पर चलने की ताकत देने का श्रेय जाता है देश के जानेमाने उद्योगपति राहुल बजाज को जिनका शनिवार को पुणे में 83 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वे लंबे समय से कैंसर से पीड़ित थे और पिछले एक महीने से अस्पताल में भर्ती थे।
50 साल से ज्यादा समय तक बजाज समूह के चेयरमैन रहे राहुल बजाज ने शनिवार दोपहर ढाई बजे आखिरी सांस ली। उनके निधन से न सिर्फ कारोबार जगत में बल्कि देश में शोक की लहर फैल गई। उनके निधन पर राजनीति और कॉरपोरेट जगत सहित तमाम क्षेत्र के लोगों ने शोक जताया है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए ट्वीट किया कि उनके चले जाने से उद्योग की दुनिया में एक शून्य रह गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राहुल बजाज के निधन पर दुख जताया है। उन्होंने उनके उद्योग जगत को दिए गए योगदान को याद किया। पीएम मोदी ने कहा कि कारोबार के अलावा सामुदायिक सेवा के प्रति भी वे समर्पित रहे।
वर्ष 2001 में उन्हें देश के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म भूषण से नवाजा गया था। ‘नाइट ऑफ द नेशनल ऑर्डर ऑफ द लीजन ऑफ ऑनर’ नामक फ्रांस के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से भी नवाजा गया है। वे वर्ष 2006 से 2010 तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे। देश के प्रमुख उद्योग संगठन सीआईआई के वे दो बार अध्यक्ष रहे। 1979-80 और 1999-2000 में वे भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के अध्यक्ष चुने गए थे। यह संगठन देश के पांच हजार कंपनियों का प्रतिनिधित्व करती है। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें 2017 में लाइफटाइम अचीवमेंट के लिए सीआईआई राष्ट्रपति पुरस्कार प्रदान किया था।
देश की धड़कन बन गया था हमारा बजाज
उनका जन्म 10 जून, 1938 को कोलकाता में मारवाड़ी बिजनेसमैन कमलनयन बजाज और सावित्री बजाज के घर हुआ था। राहुल बजाज ही वो शख्स थे जिन्होंने हर मध्यवर्गीय परिवार को दोपहिया पर चलने का सपना दिखाया और उसे पूरा भी किया। 20वीं सदी के 70 और 80 के दशक में जन्मा शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसके अनगिनत सपनों को पूरा करने में बजाज स्कूटर की भूमिका न रही हो। तब घर में बजाज का स्कूटर होना पड़ोस और रिश्तदारों के बीच परिवार की हैसियत बढ़ाता था। उस समय बजाज समूह को भारत की धड़कन कहकर पुकारा जाने लगा था। राहुल बजाज ने बजाज स्कूटर को घर-घर पहुंचाया तो उनके बेटे राजीव बजाज ने बजाज बाइक्स को नए मुकाम तक पहुंचाया। 2005 में उन्होंने राजीव को कंपनी की कमान सौंपनी शुरू की थी। तब उन्होंने राजीव को बजाज ऑटो का मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया था। इसके बाद ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में कंपनी के प्रोडक्ट की मांग न सिर्फ घरेलू बाजार में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी बढ़ गई।
27 की उम्र में बजाज का जिम्मा, 30 में बने सीएमडी
राहुल बजाज ने 1965 में सिर्फ 27 साल की उम्र में बजाज ग्रुप की जिम्मेदारी संभाली और 1968 में 30 साल की उम्र में समूह के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर बन गए। उनकी अगुआई में बजाज ऑटो का टर्नओवर 7.2 करोड़ से 12 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया और यह स्कूटर बेचने वाली देश की अग्रणी कंपनी बन गई। तब का दोपहिया बाजार आज के मुकाबले काफी अलग था। बजाज का मुकाबले करने वाली कोई दूसरी कंपनी नहीं थी। तब बाजार में लैंब्रेटा और विजय सुपर इसके मुकाबले में थे। लेकिन ये दोनों स्कूटर बजाज के मुकाबले कहीं नहीं ठहरते थे। कम मूल्य और कम रखरखाव के साथ छोटे परिवार और छोटे ट्रेडर्स के लिए बेहद उपयुक्त बजाज ब्रांड के स्कूटर बहुत जल्दी इतने लोकप्रिय हो गए कि 70 और 80 के दशक में बजाज स्कूटर खरीदने के लिए लोगों को 10-15 साल इंतजार करना पड़ता था। कई लोगों ने तो उन दिनों बजाज स्कूटर के बुकिंग नंबर बेचकर खूब कमाए। राहुल बजाज ने अपनी शुरुआती पढ़ाई कैथेड्रल एंड जॉन कॉनन स्कूल से पूरी की। इसके बाद दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से ग्रेजुएशन की डिग्री ली। बाद में मुंबई से लॉ और हावर्ड से एमबीए की डिग्री ली। पिछले साल 29 अप्रैल को बजाज ऑटो के चेयरमैन पद से उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने बढ़ती उम्र का हवाला देते हुए यह पद छोड़ा था। अब समूह की कमान उनके बेटे राजीव बजाज के पास है।
बजाज की जड़ें स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी हुई हैं। जमनालाल बजाज (1889-1942) अपने युग के यशस्वी उद्योगपति थे जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया था। आजादी की लड़ाई के दौरान वे महात्मा गांधी के ‘भामाशाह’ थे। उन्हें महात्मा गांधी अपना पांचवा बेटा कहते थे। जमनालाल बजाज मूलतः राजस्थान के सीकर जिले के काशी का बास गांव के रहने वाले थे। वे एक गरीब परिवार में पैदा हुए थे जो सिर्फ चौथी क्लास तक पढ़े। उन्हें वर्धा के सेठ बछराज ने गोद लिया था। इसी गांव से निकलकर जमनालाल बजाज ने बिजनेस में एक के बाद एक कई कीर्तिमान स्थापित किए। आज बजाज ग्रुप एक लाख करोड़ के मार्केट कैपिटल वाला ग्रुप बन चुका है। राहुल बजाज पर भी जमनालाल बजाज का प्रभाव रहा।
गैरेज शेड में बना था पहला स्कूटर
जमनालाल बजाज ने सेठ बछराज के नाम पर ट्रेडिंग करने के लिए 1926 में एक फर्म बनाई बछराज एंड कंपनी। 1942 में 53 वर्ष की उम्र में उनके निधन के बाद उनके दामाद रामेश्वर नेवटिया और दो पुत्रों कमलनयन और रामकृष्ण बजाज ने बछराज ट्रेडिंग कॉरपोरेशन की स्थापना की। 1948 में इस कंपनी ने आयातित कॉम्पोनेंट्स से असेम्बल्ड टू-व्हीलर और थ्री व्हीलर लाॉन्च किए थे। बजाज का पहला स्कूटर गुड़गांव के एक गैरेज शेड में बना था। इसके बाद बछराज ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ने कुर्ला में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाया, जो बाद में आकुरडी में शिफ्ट किया गया। फिरोदिया परिवार के साथ मिलकर बजाज परिवार ने टू-व्हीलर और थ्री-व्हीलर वाहन बनाने के लिए अलग-अलग प्लांट्स लगाए। 1960 में कंपनी का नाम पड़ा बजाज ऑटो।
राहुल बजाज किसी के अधीन काम करने वाले कभी नहीं रहे। यही वजह थी कि राहुल बजाज व फिरोदिया परिवार में कारोबार के विभाजन को लेकर विवाद हुआ। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सितंबर 1968 में फिरोदिया परिवार को बजाज टेम्पो मिला और राहुल बजाज बजाज ऑटो के चेयरमेन व मैनेजिंग डायरेक्टर बने। तब उनके प्रतिस्पर्धी थे- एस्कॉर्ट, एनफील्ड, एपीआई, एलएमएल व काइनेटिक। इन सबकी दो पहिया वाहन मार्केट में 25% व तिपहिया वाहन मार्केट में 10% हिस्सेदारी थी। शेष हिस्सेदारी बजाज की हुआ करती थी।
सियासत पर भी बेबाकी से बोलते थे
आमतौर पर उद्योग जगत की हस्तियां खुद को इंडस्ट्री से जुड़े मुद्दों के दायरे में ही रखती हैं। लेकिन राहुल बजाज उनमें से नहीं थे। वह देश के राजनीतिक मसलों पर भी खुलकर अपनी राय रखते थे। मंच भले ही बिजनेस से जुड़ा हो, राहुल बजाज अपने सरल और सधे अंदाज में बेबाक तरीके से अपनी बात रख देते थे। यही वजह थी कि उन्होंने न सिर्फ इंदिरा गांधी सरकार के लाइसेंस राज के खिलाफ आवाज उठाई, बल्कि मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार की भी भरी सभा में आलोचना करने से परहेज नहीं किया। नेहरू-गांधी परिवार और बजाज परिवार में काफी घनिष्ठता थी। राहुल के पिता कमलनयन बजाज और इंदिरा गांधी कुछ समय तक एक ही स्कूल में पढ़े थे। राहुल बजाज का नामकरण खुद जवाहरलाल नेहरू ने किया। इंदिरा गांधी को जब यह पता चला कि कमलनयन बजाज ने अपने बच्चे का नाम राहुल रखा है तो वो नाराज हो गईं। दरअसल, वो खुद अपने बच्चे का नाम राहुल रखना चाहती थीं।
कहा जाता है कि जब इंदिरा गांधी की सरकार थी, उस वक्त उन्होंने देश में लाइसेंस राज के खिलाफ आवाज उठाई थी। इस नियम की वजह से स्कूटर खरीदारों को बुक कराने के बाद भी स्कूटर हासिल करने में महीनों लग जाते थे। लाइसेंस राज के विरोध में उन्होंने एक इंटरव्यू में यहां तक कहा था कि अगर इसके लिए मुझे जेल भी जाना पड़े तो चला जाऊंगा। कोई परवाह नहीं करूंगा। इसी लाइसेंस राज को बाद में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री रहते खत्म कर दिया था जिसके बाद से देश में आर्थिक सुधारों की शुरुआत हुई। इसी तरह, 2019 का वह कार्यक्रम भी लोगों को याद आ रहा होगा जिसमें उन्होंने तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष और वर्तमान गृह मंत्री अमित शाह को बहुत कुछ सुनाया था। साध्वी प्रज्ञा, असहिष्णुता, लिंचिंग को लेकर भी उनके सवाल काफी चर्चा में रहे थे।
कई पुरस्कारों से हुए सम्मानित
राहुल बजाज को 2001 में भारत सरकार ने उद्योग एवं व्यापार क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। उन्हें ‘नाइट ऑफ द नेशनल ऑर्डर ऑफ द लीजन ऑफ ऑनर’ नामक फ्रांस के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से भी नवाजा गया था। उन्हें आईआईटी रुड़की सहित सात विश्वविद्यालयों द्वारा डॉक्ट्रेट की मानद उपाधि प्रदान की गई थी।
- एफआईई फाउंडेशन ने 1996 में राष्ट्र भूषण सम्मान से पुरस्कृत किया।
- 1990 में उन्हें बॉम्बे मैनेजमेंट एसोसिएशन पुरस्कार प्रदान किया गया।
- साल 1985 में बिजनेसमैन ऑफ ईयर अवार्ड से सम्मानित किया गया।
- हार्वर्ड बिजनेस स्कूल द्वारा अलुमिनी (पूर्व छात्रों) अचीवमेंट पुरस्कार दिया गया।
- 1975 में राष्ट्रीय गुणवत्ता एश्योरेंस ने ‘मैन ऑफ़ द ईयर’ पुरस्कार दिया।