divya prakash dubeyदिव्य प्रकाश दुबे।
होली वाले दिन अपने हिंदी वाले मास्साब की बहुत याद आती है… अपने शुक्ला जी। जब भी कोई त्यौहार पड़ता था वह हम लोगों को निबंध लिखने के लिए दे देते थे। और हम लोग हर बार निबंध एक कॉमन लाइन से शुरू करते थे कि ऐसे तो भारत में कई राष्ट्रीय और सांस्कृतिक त्योहार हैं लेकिन ‘फलाने वाला’ त्यौहार प्रमुख है …और जो भी त्यौहार पड़ रहा होता था उसे ‘फलाने’ की जगह फिट कर देते थे।

होली पर शुक्ला जी ने हमें निबंध लिखकर लाने के लिए दिया। उन्होंने पहले ही बता दिया कि कोई नकल करके नहीं लिख कर लाएगा। अब हिंदुस्तान के हर स्कूल का लड़का अपने आपको हिंदी वाले मास्साब से तो स्मार्ट ही समझता है। मैं भी ऐसा ही समझता था। मैं घर गया, कुंजी उठाई और पूरा का पूरा निबंध वहां से चेप दिया।
इसके बाद शुक्ला जी ने मुझसे अगले दिन कहा कि जो लिख कर लाए हो वह पूरी क्लास को पढ़ कर सुनाओ …और मैं भी फुल कॉन्फिडेंस में पढ़ने के लिए तैयार हो गया। मैंने पढ़ना शुरू किया कि होली हिंदुओं का धार्मिक त्योहार है। इसको वसंत ऋतु में मनाया जाता है और सारे हिंदू इसको बहुत धूमधाम से मनाते हैं।
मैं अभी यह बोल ही रहा था कि इतने में शुक्ला जी ने मुझे रोका और कहा कि- क्या नकल करके लिख कर लाए हो। मैंने कहा कि- नहीं सर, मैंने तो खुद लिखा है। यह सुनते ही वह मेरे पास आए और मुझे बहुत जोर से एक थप्पड़ लगाया। वह बोले- अगर नकल करने वाली बात मान लेते तो नहीं मारता …लेकिन अगर तुम खुद ऐसा लिख कर लाए हो कि होली को केवल हिंदू मनाते हैं तो इस बात के लिए तुम्हें मार पड़नी ही चाहिए।
इसके बाद उन्होंने मेरे पड़ोस में बैठने वाले अब्दुल को खड़ा किया और पूछा- यह बताओ अब्दुल, होली वोली खेलते हो। अब अब्दुल जवाब देता इससे पहले विवेक बोला- अरे सर, सबसे ज्यादा यही खेलता है …इसके तो बैग में भी रंग पड़े हैं।
शुक्ला जी ने ब्लैक बोर्ड पर एक कविता लिख दी और हम सब से कहा कि कल सब लोग इस को याद करके आएं…
और एक तरफ़ दिल लेने को, महबूब भवइयों के लड़के,
हर आन घड़ी गत फिरते हों, कुछ घट घट के, कुछ बढ़ बढ़ के,
कुछ नाज़ जतावें लड़ लड़ के, कुछ होली गावें अड़ अड़ के,
कुछ लचके शोख़ कमर पतली, कुछ हाथ चले, कुछ तन फड़के,
कुछ काफ़िर नैन मटकते हों, तब देख बहारें होली की।। 
महबूब नशे में छकते हों, तब देख बहारें होली की।।
सीनों से रंग धड़कते हों, तब देख बहारें होली की।।
Holi goes online as coronavirus fears keep people at home | Business Insider India
कविता लिखने के बाद शुक्ला जी ने पूछा- पता है यह कविता किसने लिखी है।
अब क्लास में किसी को नहीं पता था। उन्होंने बताया कि यह कविता नजीर अकबराबादी ने लिखी है।
फिर उन्होंने दोबारा पूछा- पता है नजीर अकबराबादी कौन थे? 
यह भी क्लास में किसी को नहीं पता था इतने में पीछे से एक आवाज आई किसी लड़के की… उसने बोला कि ‘नाम से तो कोई मुसलमान लग रहा है।’
शुक्ला जी ने उस लड़के को आगे बुलाया और उसके कान  उमेठते हुए कहा- ‘नजीर अकबराबादी हिंदुस्तान के बहुत बड़े शायर थे और शायर हिंदू या मुसलमान नहीं होता। शायर का मजहब शायर होता है। जैसे मास्टर मास्टर होता है। जैसे हमारे त्योहार हैं। त्योहार हिंदू या मुसलमान थोड़े ही होते हैं। त्योहार तो त्योहार होता है।’
फिर शुक्ला जी ने आपने लाल पेन से मेरी कॉपी पर ‘होली हिंदुओं का एक धार्मिक त्यौहार है’ को काटकर- ‘होली हिंदुस्तानियों का एक प्रमुख त्योहार है’- कर दिया। शुक्ला जी ने उस दिन केवल निबंध को सही नहीं किया… मुझे भी जिंदगी भर के लिए सही कर दिया। हैप्पी होली।
(लेखक नई हिंदी के सशक्त और लोकप्रिय कथाकार हैं)