अजय गोस्‍वामी।

फाल्गुन का महीना चल रहा है। पूर्णिमा की अर्ध रात्रि को होली दहन किया जाएगा। वैसे तो होलिका दहन के पीछे भक्‍त प्रहलाद की कहानी प्रमुख है, लेकिन इसके अलावा भी होलिका दहन में कच्चा सूत चढ़ाने की परंपरा भी है। साथ कुछ चीजें भी अर्पित करने की परंपरा है। होलिका दहन की अग्नि में कच्चा सूत चढ़ाने से क्या होता है यह सवाल भी उठता है। हालांकि पूर्णिमा की रात्रि को होलिका दहन के बाद दूसरे दिन होली खेली जाती है। हिंदू धर्म के शास्‍त्र, पुराण होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक बताते हैं। साथ ही होलिका दहन की आग को नकारात्मकता नष्‍टकारी भी कहा जाता है। आपने देखा होगा कि होलिका दहन की आग को नकारात्मकता नष्‍टकारी मानते हुए लोग कई चीजें अर्पित करते हैं ताकि शुभ प्रभाव असर करे और जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाएं। होलाष्टक के चलते होलिक दहन किया जाता है। होली का त्‍योहार आठ दिन पहले से ही शुरू हो जाता है। लोग होलिका दहन के लिए लकड़ियां, उपले इकट्ठा करते हैं।

होलिका दहन की रात महत्‍वपूर्ण

होलिका दहन की रात का बड़ा महत्व बताया जाता है, ठीक उसी तरह जिस तरह दीपावली और शिवरात्रि की रात को महत्‍वपूर्ण माना जाता है। प्राचीन काल से ही कहा जाता रहा है कि इस रात को भी देवी शक्तियां जागृत होती हैं। और उनकी आराधना, साधना का शुभफल भी मिलता है। जो जीवन में ऊर्जा भर देता है। रोग, ताप, कलह से निजात दिलाता है। इसी मानता के चलते लोग इस रात होलिका दहन के लिए इकट्ठा की गई लकड़ियों और उपलों पर कच्चा सूत लपेटते हैं। इसके बाद उसकी पूजा करते हैं। यही नहीं होलिका दहन से पहले उसकी पूजा की जाती है और सात बार परिक्रमा भी की जाती है। ऐसा इसलिए भी किया जाता है कि होलिका भक्‍त प्रहलाद को गोदी में लेकर आग में बैठती है। प्रहलाद भगवान विष्‍णु का भक्‍त था, कहा जाता है पूजा करके भगवान विष्‍णु को मनाया जाता है ताकि भक्‍त प्रहलाद को कुछ न हो। होलिका राक्षसी भक्त प्रहलाद की बुआ थी। जब हिरण्यकश्यपु कई तरीकों से भक्त प्रहलाद को न मार पाया तब अपने भाई के आदेश पर प्रहलाद को मारने के लिए आग में बैठ गई थी। उसके पास भगवान ब्रह्मा का दिया हुआ एक खास चादर था, जो जलता नहीं था। होलिका को ब्रह्मदेव से वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसका कुछ नहीं बिगाड़ पायेगी अर्थात अग्नि में जलेगी नहीं। पर वो जल जाती है और प्रहलाद जीवित बच जाता है।

होलिका पर क्‍यों चढ़ाया जाता है कच्चा सूत

ज्योतिष शास्त्रों में कच्चे सूत को बेहद पवित्र माना गया है। लगभग सभी देवी, देवताओं की पूजा अनुष्‍ठान में कच्‍चे सूत का प्रयोग किया जाता है। इसीलिए होलिका दहन करने से पहले उसके चारों ओर कच्चे सूत को सात या तीन परिक्रमा कर लपेटा जाता है। होलिका दहन के दौरान भी अग्नि की परिक्रमा करते हुए भी कच्चे सूत को तोड़-तोड़कर अग्नि में अर्पित किया जाता है। ऐसा विधान बताया जाता है। साथ ही माना जाता है कि कच्चे सूत का संबंध शनि ग्रह से होता है। कच्‍चे सूत को बीमारियों का नाश और सभी बाधाओं को दूर करने वाला कहा जाता है। इसलिए भी होलिका दहन में कच्‍चे सूत का प्रयोग किया जाता है।

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गेहूं की बालियां डालने की वजह

होलिक दहन की आग में गेहूं की 7 बालियों की आहुति देने यानी अर्पित करने की परंपरा भी है। बहुत से ऐसे लोग होंगे जिन्हें इन 7 बालियों के पीछे की मान्यता नहीं पता होगी। दरअसल 7 का अंक शुभ माना जाता है इसलिए सप्ताह में 7 दिन होते हैं और विवाह में 7 फेरे। यही वजह है कि होलिका की आग में गेहूं की 7 बालियां डाली जाती हैं।

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार है।)  (एएमएपी)