नीरज बधवार।
पर्थ टेस्ट में टॉस जीतकर बुमराह ने जब बैटिंग ली तो ज़्यादातर एक्सपर्ट्स इस फैसले पर सवाल उठा रहे थे। पहले बैटिंग करते हुए टीम जब 150 पर ऑल आउट हो गई तो इन्हीं एक्सपर्ट्स ने अपनी तलवार को धार देने शुरू कर दिया। सवाल उठाया जा रहा था कि जिस पिच पर इतनी घास थी.. जहां तेज़ गेंदबाजों को इतनी मदद मिलती है, उस पिच पर बुमराह ने टॉस जीतकर पहले बैटिंग क्यों चुनी?
मगर बुमराह को पता था कि इस पिच पर चौथी इनिंग में बैटिंग करना सबसे मुश्किल होता है। यहां खेले गए 4 टेस्ट में सिर्फ एक बार चौथी इनिंग में 200 से ज़्यादा रन बने थे। इसलिए तेज गेंदबाज़ होने के बावजूद बुमराह पिच पर हरी घास देखकर ललचाए नहीं…अपने बल्लेबाज़ों को चौथी इनिंग में चेज़ करने के झंझट में नहीं डाला…और बोल्ड डिसीजन लेते हुए पहले बैटिंग चुनी।
टीम इंडिया चाहती तो टेस्ट के चौथे दिन फर्स्ट सेशन तक खेलकर 650 रन का टारगेट भी दे सकती थी…मगर बुमराह जानते थे कि इन हालात में ऑस्ट्रेलिया के लिए तीसरे दिन के अंत में आखिरी आधा घंटा खेलना बहुत मुश्किल होगा…दिन ढल रहा होगा…बड़े Optus stadium की छाया पिच पर पड़ रही होगी…बैट्समैन सर्वाइव करने के मूड में होंगे और यही बेस्ट चांस होगा एक आध विकेट लेने का…इसलिए नीतीश रेड्डी के साथ ही बुमराह ने कोहली को भी ये संदेश भेजा कि आज ही डिक्लेयर करना है…आधा घंटा और है जो करना है अभी कर लो…कोहली को शतक होते ही बुमराह ने इनिंग डिक्लेयर कर दी…टीम इंडिया को बॉलिंग करने के लिए 5 ओवर मिले…और इस पांच ओवर में 3 इंडिया ने तीन विकेट ले लिए…इन तीन विकेटों के साथ ही ऑस्ट्रेलिया की जीत की दस लाख में से एक की संभावना भी ख़त्म हो गई…अगले दिन एक घटा और खेलकर सौ रन बना लेने का इतना फायदा नहीं होता जितना फायदा उन तीन विकेटों से हो गया।
फिर चौथे दिन जब खेल शुरू हुआ तो बुमराह ने साथी बॉलर्स को उस एंड से बॉल करने दी जहां से पिच पर बॉल ज़्यादा नीची रह रही थी, ताकि उन्हें इसका फायदा मिले…उन्होंने कप्तान होने के नाते अपने नहीं, अपने साथी बॉलर्स के बारे में सोचा । और सबसे खास बात… टी टाइम के बाद जब टीम इंडिया मैदान में उतरी तो ऑस्ट्रेलिया के 8 विकेट गिर चुके थे…बुमराह मैच में आठ विकेट पहले चुके थे…उनके पास मौका था कि वो टेल एंडर्स को आउट कर अपने दस विकेट पूरे कर लें मगर उन्होंने हर्षित राना और वॉशिंगटन सुंदर को बॉलिंग करने दी…राना को दूसरी इनिंग में तब तक एक भी विकेट नहीं मिला था, कप्तान शायद चाहते थे कि उसे एक विकेट मिल जाए तो उसका कॉन्फिडेंस बढ़़े और जिस सुंदर को अब तक ज़्यादा विकेट नहीं मिले थे और यही सोचकर उन्हें भी बॉलिंग करने दी।
बुमराह ने बॉलिंग कैसी की या वो कैसी बॉलिंग करते हैं इस पर तो कुछ कहने की जरूरत ही नहीं है मगर बतौर कप्तान अपने पहले ही मैच में बुमराह ने जिस selfless तरीके से कप्तानी की…हर कदम पर खुद से आगे टीम को रखा…टीम जब डेढ़ सौ पर आउट हुई तो अकेले दम पर ऑस्ट्रेलिया को सौ पर समेट कर उसे मुश्किल से निकाला…टॉस जीतकर बोल्ड डिसीज़न लिया…उसने हर किसी का दिल जीत लिया है…ऐसे दौर में जहां ऑफिसों से लेकर राजनीति तक, शो बिज की दुनिया से लेकर सोशल मीडिया तक हर जगह इतने असुरक्षित लोग भरे पड़े हैं…एक प्रतिभाशाली गेंदबाज़ की ज़िंदादिली, खुद को लेकर आश्वासन,उनकी विनम्रता ने दिल जीत लिया। मशहूर अमेरिका लेखक और मोटिवेशनल स्पीकर मार्क मैनसन की बेस्ट सेलिंग किताब है-Leaders Eat Last…उस किताब में मैनसन ने एक आदर्श नेता के जिन गुणों का ज़िक्र किया है, चार दिन की कप्तानी में बुमराह में वो सारे गुण नज़र आए।