यहूदी धर्म दुनिया के कुछ सबसे पुराने धर्मों में से एक है. जब आप इस धर्म के बारे में थोड़ा गहराई में जा कर पढ़ेंगे तो आपको पता चलेगा कि इसका इतिहास लगभग 3000 साल पुराना है. कहा जाता है कि ईसाई, इस्लाम और यहूदी धर्म लगभग लगभग एक ही काल के आसपास शुरू हुए। यही वजह है कि इनमें काफी समानता है. वहीं अगर आप यहूदी धर्म की तुलना हिंदू धर्म से करेंगे तो कुछ चीजों को छोड़ कर आपको इनमें कोई समानता नजर नहीं आएगी।

यहूदी कैसे करते हैं पूजा

यहूदी धर्म के अनुसार, इसे मानने वाले लोग दिन में तीन बार प्रार्थना करते हैं. यहूदी दुनिया में कहीं भी रहें, लेकिन प्रार्थना करते वक्त वो यरूशलेम की ओर मुंह करके ही प्रार्थना करते हैं. यहूदी धर्म मूर्ती पूजा में विश्वास नहीं करता. इसके साथ ही ये लोग हर चीज के लिए अपने ईश्वर का शुक्रिया अदा करते हैं. हालांकि, ये प्रैक्टिस आपको हर धर्म में देखने को मिल जाएगी. वहीं यहूदियों के लिए खबाद हाउस बेहद खास होता है। ये आपको ज्यादातर देशों में मिल जाएगा. यहां यहूदी लोग अपनी प्रार्थना करते हैं. आपको बता दें, भारत के मुंबई, दिल्ली के पहाड़गंज, अजमेर, हिमाचल के धर्मकोट और राजस्थान के पुष्कर मे भी इनके लिए खबाद हाउस बनाए गए हैं. विदेश से भी जो इजराइली घूमने आते हैं वो यहां प्रार्थना करते हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला के धर्मकोट स्थित खबाद हाउस में इजरायल से हर साल हजारों पर्यटक घूमने और प्रार्थना करने आते हैं।

पूजा से जुड़ी है यहूदियों की टोपी

आपको बता दें, यहूदी लोग पूजा करते समय एक बात का खास ख्याल रखते हैं कि उनके सिर पर किप्पा जरूर हो. किप्पा उस टोपी को कहते हैं जो हर यहूदी खास मौकों पर पहनता है. आपने देखा होगा कि ज्यादातर धार्मिक यहूदी अपने सिर पर एक खास प्रकार की छोटी टोपी पहनते हैं. दरअसल, इनके धर्म में माना जाता है कि पूजा करते समय या कोई भी धार्मिक अनुष्ठान करते समय अपना सिर किप्पा से जरूर ढकना है. हालांकि, ऐसा हिंदू और इस्लाम धर्म में भी देखा जाता है. आपको बता दें, हिंदू धर्म में भी पूजा पाठ करते समय अपने सिर पर कोई कपड़ा रखने का रिवाज है. वहीं इस्लाम में भी नामज पढ़ते वक्त टोपी पहनना आनिवार्य माना जाता है।

एकेश्वरवाद में करते हैं यकीन, मूर्ति पूजा है पाप

यहूदी धर्म काफी पुराना माना जाता है. यहूदी धर्म की सबसे अधिक संख्या इजरायल में मौजूद है. जिसकी स्थापना का आधार भी यही रहा है. धर्म के लोग एक ईश्वर की पूजा करते हैं. खास बात है कि मुस्लिम धर्म की तरह यहां भी मूर्ति पूजा को पाप माना जाता है. बताया जाता है कि 973 ईसा पूर्व में यहूदी धर्म की एंट्री भारत में भी हुई थी. उन्होंने केरल के मालाबार तट के जरिए प्रवेश किया था. तब उनके राजा सुलेमान हुआ करते थे. हालांकि, जब इजरायल की स्थापना हुई, तो अधिकतम लोग वहां चले गए। यहूदियों की धार्मिक भाषा इब्रानी है, जिसे हिब्रू भी कहा जाता है. प्रमुख धर्मग्रंथ तनख है. इसे हिब्रू में ही लिखा गया है. वहीं, जब इस धर्मग्रंथ में क्रिश्चयंस के बाइबिल को शामिल किया जाता है, तो उसे ओल्ड टेस्टामेंट कहा जाता है. यहूदी अपने देवता का नाम यहोवा बताते हैं. उनके मुताबिक, यहूदियों के पहले पैगंबर हजरत मूसा ने इस नाम सुनाया था।

इस्लाम और क्रिश्चयंस से क्या है कनेक्शन

इन सभी धर्मों का कनेक्शन दरअसल, उनके पैगंबरों से जुड़ा हुआ है. यहूदी धर्म की शुरुआत पैबंगर अब्राहम (इब्राहिम) से मानी जाती है, जो 2000 ईसा पूर्व में आए थे. अब्राहम के पोत का नाम हजरत अलै. याकूब था. याबूक को ही इजरायल कहा जाता था. बताया जाता है कि याकूब ने 12 अलग-अलग जातियों को मिलाकर एक पूर्ण राष्ट्र इजरायल को बनाया था. याकूब के एक बेटे का नाम यहूदा था. उनके वंशज को आगे चल कर यहूदी कहलाए. दरअसल, हजरत अब्राहम को यहूदी, मुस्लिम और ईसाई तीनों ही अपना पितामह मानते हैं. यहां तक अब्राहम से लेकर मूसा तक सबके पैंगबर भी एक हैं. मूसा के बाद यहूदियों का कोई पैगंबर अभी तक नहीं आए।
यरूशलम में क्या है

10000 सैनिक, सैकड़ों टैंक, इजरायल के लिए हमास को मिटाना इतना आसान नहीं

यरूशलम जिस पर फिलिस्तीन और इजरायली दोनों दावा करते हैं. दरअसल, उसे सबसे पवित्र शहर माना जाता है. यहां यहूदियों का सुलेमानी मंदिर हुआ करता था, जिसकी अब सिर्फ दीवार बची है.  यहीं, मूसा ने यहूदियों को धर्म की शिक्षा दी थी. वहीं, माना जाता है कि मुस्लिमों के अराध्य हजरत मुहम्मद यहीं से जन्नत को गए थे. इसके अलावा ईशा मसीह के यरूशलम कर्म भूमि थी।हिंदुत्व और यहूदीवाद

इस सिलसिले में पिछले कुछ सालों से हिंदुत्ववादी और ज़ायनिज़्म या यहूदीवाद (फ़लीस्‍तीन में यहूदी राष्‍ट्र स्‍थापित करने का आंदोलन चलाने वाली विचारधारा) के बीच सकारात्मक समानताएं खोजने की कोशिशें जारी हैं। जयदीप प्रभु एक ऑनलाइन मैगज़ीन ‘स्वराज्य’ के कंसल्टिंग एडिटर हैं. वो कहते हैं, “हिंदू और यहूदी धर्म में तीन मूल समानताएं हैं. दोनों विचारधाराएं बेघर रही थीं. दोनों का दुश्मन एक है (इस्लाम) और दोनों ने सियासी लक्ष्य हासिल करने के लिए सांस्कृतिक पुनरुद्धार का सहारा लिया.”जयदीप प्रभु कहते हैं, “हिंदुत्व को बेघर कहना थोड़ा अजीब-सा ज़रूर लगता है, लेकिन ये भौतिक स्थान की बात नहीं है. मुग़ल आए. उनके राज में हिंदू संस्कृति को प्रोत्साहन नहीं मिला. ऐसा नहीं कि बिल्कुल नहीं मिला, लेकिन हिंदू राजाओं के मुक़ाबले में कम हुआ.”उनके अनुसार इस मायने में हिंदुत्व बेघर था. हिंदुत्व शब्द का इस्तेमाल पहली बार 1923 में हुआ था, लेकिन जयदीप प्रभु के अनुसार ये विचारधारा पहले से मौजूद थी।

यहूदीवाद का आंदोलन यूरोप में 19वीं शताब्दी में शुरू हुआ जिसका मक़सद यूरोप और दूसरी जगहों में रहने वाले यहूदियों को उनके ‘अपने देश इसराइल’ वापस भेजना था. यहूदियों का अपना कोई देश नहीं था. यहूदियों को यूरोप के अलग-अलग देशों में रहना पड़ रहा था जहाँ उनके लिए यहूदियत को महफूज़ रखना मुश्किल हो रहा था.बाद में, यानी 1948 में यहूदियों के लिए अलग देश इसराइल की स्थापना हुई. जयदीप प्रभु के अनुसार हिंदुत्व ने अपना सियासी मक़सद अब तक पूरा नहीं किया है यानी भारत को एक हिंदू राष्ट्र अब तक नहीं बनाया है।हैदराबाद में हिंदुत्व पर काम करने वाले प्रसिद्ध विशेषज्ञ ज्योतिर्मय शर्मा ने इस विचारधारा पर किताबें भी लिखी हैं. वे कहते हैं कि हिंदुत्व और यहूदीवाद में समानता तो है, लेकिन वो नकारात्मक है. उन्होंने दो समानताओं का ज़िक्र किया, “बहुमत का वर्चस्व और दूसरा असुरक्षा का एहसास.”ज्योतिर्मय शर्मा का कहना है कि भारत की तरह ही इसराइल में भी बहुमत हर चीज़ अपने तरीके से चलाना चाहता है. दोनों विचारधाराएं इस पर यक़ीन करती हैं कि लोगों के दिल और दिमाग़ में एक तरह की असुरक्षा की भावना पैदा कर दी जाए जिससे फिर आप उनसे कुछ भी करवा सकते हैं। उनके अनुसार इसराइल तो फिर भी असुरक्षित महसूस कर सकता है क्योंकि वो फ़लीस्तीन और दूसरे विरोधी देशों से घिरा है, लेकिन भारत को असुरक्षित महसूस करने का कोई कारण नहीं है।

ज्योतिर्मय शर्मा के अनुसार हिंदुत्ववादी विचारधारा और यहूदीवाद के बीच समानता खोजना बेकार है. ये केवल सतही तुलना है. दोनों विचारधाराओं के बीच साझे इतिहास और साझे अनुभव की मिसाल नहीं मिलती. दोनों के असर का दायरा दुनिया के दो अलग-अलग क्षेत्रों में है.जयदीप प्रभु स्वीकार करते हैं कि दोनों विचारधाराएं अलग-अलग जगहों पर पनपी हैं, लेकिन उनके अनुसार भारत में यहूदी 2000 से रहते चले आ रहे हैं. उन्हें भारत में रहने का अनुभव है.जयदीप प्रभु का कहना है कि हिंदुत्व और यहूदीवाद के बीच समानताएं हैं, लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि “हर मामले में हमारा दृष्टिकोण एक ही हो। कुछ विशषज्ञ मानते हैं कि दोनों विचारधाराओं में असमानता समानताओं से अधिक है.उनके विचार में रक्षा के मामले में इसराइल भारत का सामरिक पार्टनर तो बन सकता है, लेकिन भारत का असली हित अरब देशों से संबंध रखने में है।  (एएमएपी)