आपका अख़बार ब्यूरो।
कवि-कथाकार ध्रुव शुक्ल ने सोशल मीडिया पर लिखा- ‘भारत के गांवों के दुख का कथा-इतिहास रचने वाले कथाकार प्रेमचंद की याद गांधी जी के साथ आती है। ग्रामवासिनी भारत माता की व्यथा का भार उठाती उनकी कहानियों के पात्रों के जीवन को संवारने के लिए ही तो बापू ने आज़ादी की कल्पना की थी। प्रेमचंद की कथाओं की पगडण्डियों पर होरी किसान और ईदगाह जाते हामिद के साथ चलते गांधी जी के कदमों की आहट सुनायी देती है। हम आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए उन्हें क्या जवाब देंगें? दस चुभते सवाल रखते हुए उन्होंने चुनौती दी कि कोई तो सोचे कि इन प्रश्नों का उत्तर क्या होगा? तभी साहित्यकार व कला समीक्षक सत्यदेव त्रिपाठी तीखे जवाबी तीर लेकर मैदान में आ डटे।

सत्यदेव त्रिपाठी (बाएं) ध्रुव शुक्ल (दाएं)

 

साहित्य के दोनों महारथियों का जोश हाई था। सवाल-जवाब की मिसाइलों का आप भी आनंद लीजिए।

1. अभावग्रस्त वोटरों की असहाय बस्तियां
ध्रुव शुक्ल: काम-धंधों में लगी हमारी जाति व्यवस्था, जो अपने हस्तकौशल और हुनरमंदगी की मिसाल थी, वह कैसे अभावग्रस्त होकर मात्र वोटरों की असहाय बस्तियों के बाड़ों में क़ैद होकर रह गयी?
सत्यदेव त्रिपाठी: अछूतों के अपने कुएं और नल हैं। गांव जाके देखिए – मैं हर साल तीन महीने रहता हूँ।

2. ठंड से ठिठुरता किसान
ध्रुव शुक्ल: ‘पूस की रात’ में कड़कड़ाती ठण्ड में ठिठुरते हल्कू किसान का क्या हुआ?
सत्यदेव त्रिपाठी: किसान ठिठुरता कोई नहीं। सबके पास कम्बल रजाई हैं और बीसों साल से हैं।

3. ठाकुर का कुआं
ध्रुव शुक्ल: अछूत गंगी ‘ठाकुर के कुआं’ से जोखू के लिए पानी ला पायी कि नहीं?
सत्यदेव त्रिपाठी: पहले सवाल में बात हो गयी। दुहराव है।

4. हीरा-मोती
ध्रुव शुक्ल: चारे को तरसते ‘हीरा-मोती’ बैलों का क्या हुआ?
सत्यदेव त्रिपाठी: 21वीं सदी से बैल हैं नहीं किसी के पास… ट्रैक्टर से खेती हो रही है

5. ‘गोदान’ का होरी
ध्रुव शुक्ल: ‘गोदान’ के होरी का क्या हुआ?
सत्यदेव त्रिपाठी: अधिकांश होरी खुशहाल हैं। दूध के लिए मज़दूरी करते मरा था होरी। आज दिन भर का 200 रुपये देने पर भी किसी को मज़दूर नहीं मिल रहे। गोदान के 20 साल बाद ही अलग अलग वैतरणी का सरूप भगत अपने पुरवे के लोगों के साथ घूम घूम कर दूसरे गांवों में अपनी शर्तों पर काम करने लगा था। आपको पता न होगा कि आजकल पानी बरस गया है। रोपनी के लिए मज़दूर नहीं मिल रहे हैं। सरूप की तरह बिहार के दल आये हैं। अभी परसों ही लाने वाले ठाकुर से फोन पर कह के मैंने काम पर लगाया।

होरी, गोबर ,धनिया जस के तस सब जिंदा…

6. ग़रीब दुखिया
ध्रुव शुक्ल: ‘सद्गति’ के लिए ग़रीब दुखिया को जीने का मुहूर्त मिला कि नहीं?
सत्यदेव त्रिपाठी: पंडित लोग इंतज़ार कर रहे हैं कि कब बुलाने आये दुखिया नहीं, सुखिया। अच्छे पैसे मिल रहे हैं ब्राह्मण को। और अब ब्राह्मणों ने ग्रुप बनाके ठीके पर पूजा करना शुरू कर दिया है – दसों साल से। अभी मई में घर था, तो मेरे पिता के ज्योतिषी गुरु के बेटे बीमार होकर कलकता से घर आ गये थे। मुझसे उम्र में दस साल बड़े हैं। तो अपने खानदान के पोते का भी पंडित ग्रुप है। उसके साथ उन्हें लगाया। अब वह अपने स्कूटर पर ले जाया व लाया करेगा। …तो ब्राह्मण व यजमान का हाल यह है। सद्गति भी अपवाद ब्राह्मण है। कहानी में थोड़ी अतिरंजना भी है। आम ब्राह्मण तब भी वैसा न था।

7. शराब पीते घीसू-माधव
ध्रुव शुक्ल: ‘कफ़न’ के पैसे से शराब पीते घीसू-माधव का क्या हुआ?
सत्यदेव त्रिपाठी: पूरी की पूरी बस्ती शराब में डूबी है। काम करने वाले ऐसे भी हैं, जो 100/ सुबह लेके पउवा खरीद के तब काम पर आते हैं। शाम को सारा पैसा लेके जाते हैं। मटन मछली लेके घर जाते हैं। घरों पर छप्पर नहीं है, पर रोज़ दारू चाहिए। तीन साल पहले घर बनवाते हुए मैने पैसे उनकी औरतों को देने की बात की, तो मेरा काम बंद कर दिया। हारकर काम कराना पड़ा। एक काम शुरू करके अधूरा छोड़कर दूसरा करने चले जाते हैं। कितने दिन उन काम कराने वालों को मना के मैं कारीगरों-बेगारी वालों को अपने काम पर लाया।

8. ‘ईदगाह’ का हामिद
ध्रुव शुक्ल: ‘ईदगाह’ के हामिद का क्या हुआ?
सत्यदेव त्रिपाठी: हामिदों का दुनिया देख रही है…

9. पंचायत
ध्रुव शुक्ल: ‘पंच परमेश्वर’ जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की पंचायत का क्या हुआ?
सत्यदेव त्रिपाठी: आपको गांव का ककहरा मालूम नहीं। कोई पंचायत नहीं है चार दशकों से। सबके केस कोर्ट में चल रहे हैं। प्रधान हैं सिर्फ फंड खाने के लिए। हर वोटर को 200 से 500 तक देकर प्रधान वोट ले रहे हैं। फिर 5 साल खा रहे हैं… सबने इसको मान लिया है।

10. ‘भारत माता ग्रामवासिनी’
ध्रुव शुक्ल: हम ‘भारत माता ग्रामवासिनी’ का गीत गाते रहे पर उसके आंचल में बंधती चली गयी पीड़ाओं को हरने के उपाय का क्या हुआ?
सत्यदेव त्रिपाठी: पीड़ाएँ बदल गयी हैं। 80 साल पुरानी किताब से सवाल पूछ के आप आज के उत्तर नहीं पा सकते। उसके लिए प्रेमचंद की तरह गांव में जाके प्रश्नों से जूझना होगा।