#santoshtiwariडॉ. संतोष कुमार तिवारी।

मैं पहले भी वंदे भारत ट्रेन के बारे में एक लेख लिख चुका हूँ। उसमें यह बताया गया था कि किस प्रकार यह ट्रेन हवाई जहाज का मुक़ाबला करती है। और यह ट्रेन भारतीय रेल क्षेत्र में नई क्रांति है। उस लेख का शीर्षक था: लखनऊ के सुधांशु मणि की देन है वंदे भारत ट्रेन। वह लेख प्रधानत: वंदे भारत ट्रेन के बारे में था। उस लेख को इस URL पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता है:

लखनऊ के सुधांशु मणि की देन है वंदे भारत ट्रेन 

वर्तमान लेख प्रधानत: सुधांशु मणिजी के बारे में है। यह उनकी अंग्रेजी पुस्तक My Train 18 Story और उनसे टेलेफोन पर की गई बातचीत पर आधारित है। यह पुस्तक उन्होंने रिटायर होने के बाद लिखी।

आज सुधांशु मणिजी के जीवन को इस ट्रेन से अलग करके देखना बहुत मुश्किल है। एक बात और है कि सुधांशु मणिजी शेक्सपियर और गालिब के भी दीवाने हैं। बात-बात में वह शेक्सपियर के किसी नाटक का कोई डायलाग सुना देंगे। या फिर उर्दू का  कोई शेर सुना देंगे, जबकि उन्हें उर्दू पढ़ना भी नहीं आता है। वह उर्दू रोमन भाषा में पढ़ते हैं। यह सब तब है जब कि सुधांशु मणिजी कभी साहित्य अर्थात लिटेरचर के विद्यार्थी नहीं रहे।

Hi-tech machines, 9,000+ workforce — inside Integral Coach Factory making Vande Bharat trains

सुधांशु मणिजी के बारे में मार्क टुली की राय

सुधांशु मणिजी की अंग्रेजी पुस्तक My Train 18 Story के प्रारम्भ के दो-तीन पेजों में प्रसिद्ध पत्रकार मार्क टुली (Mark Tully) ने लिखा कि जब भारत स्वतंत्र हुआ था तब ट्रेनों के मामले में चीन भारत से बहुत पीछे था। परन्तु चीन धीरे-धीरे पिछले 70-75 वर्षों में बहुत आगे निकल गया और भारत में आज भी भारत की ट्रेनों की स्पीड ब्रिटिश जमाने से बहुत अधिक नहीं बढ़ पाई है। चीन की पटरियों पर आज हाई स्पीड ट्रेनें दौड़ रही हैं, जब कि भारत में सेमी हाई स्पीड ट्रेन वंदे भारत की शुरुआत अब हुई है। मार्क टुली ने सुधांशु मणि की तारीफ की और कहा कि किस प्रकार उन्होंने तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने  वंदे भारत ट्रेन को तैयार किया और पटरी पर दौड़ाया।

वंदे भारत के विरोध में आई थी विदेशी ट्रेन-निर्माताओं की लॉबी

सुधांशु मणिजी ने अपनी पुस्तक में लिखा कि जब इस ट्रेन को भारत में तैयार करने का प्रस्ताव हमने रेलवे बोर्ड को भेजा, तब कुछ विदेशी ट्रेन-निर्माताओं की लॉबी सक्रिय हो गई, ताकि यह ट्रेन भारत में न बन सके। जब ट्रेन का निर्माण अपने अंतिम पड़ाव था तब हमारी कोर टीम के कुछ सदस्यों के खिलाफ विजिलेंस का मामला बनाया गया ताकि डर के कारण हम लोग ट्रेन का निर्माण बंद कर दें। जब ट्रेन का ट्रायल-रन होना था तब मीडिया के जरिए कुछ लोगों ने ऐसी खबरें दीं कि अभी इस ट्रेन के लिए कुछ आधिकारिक-एप्रूवल्स बाकी हैं। कहने का मतलब यह कि जगह-जगह अड़ंगेबाजी की गई।

सुधांशु मणिजी के बारे में स्वामीनाथन गुरुमूर्ति की राय

तमिल साप्ताहिक तुगलक (Thuglaq) के संपादक और स्वदेशी जागरण मंच के सह-संयोजक स्वामीनाथन गुरुमूर्ति (Swaminathan Gurumurthy) ने भी सुधांशु मणिजी के साहस और इस ट्रेन को बनाने के अपने दृढ़ निश्चय की सराहना की है।

रेलवे बोर्ड ने ट्रेन निर्माण का ट्रेन निर्माण का एप्रूवल्स सन् 2017 के प्रारम्भ में दिया।  इसके बाद फौरन ही बाद इसके निर्माण का प्रोजेक्ट प्रारम्भ हो गया और 18 महीने में अर्थात अक्टूबर 2018 में यह ट्रेन बन कर तैयार हो गई। और दिसंबर 2018 में सुधांशु मणिजी रिटायर हो गए। रेलवे बोर्ड के सामने जब इस ट्रेन के निर्माण का एप्रूवल देने का प्रस्ताव आया, तो ए.के. मित्तल बोर्ड के चेयरमैन थे। वह चाहते तो एप्रूवल नहीं देते और इसके खिलाफ चल रहे दुष्प्रचार से बच जाते। परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। आज मित्तल साहब इस दुनिया में नहीं हैं परन्तु उनके इस कार्य के लिए सुधांशु मणिजी ने उनका आभार व्यक्त किया है। उन्होंने अश्वनी लोहणीजी का भी आभार व्यक्त किया जो मित्तल साहब के बाद रेलवे बोर्ड के चेयरमैन बने। लोहणीजी ने ही त्वरित गति से काम करके इस सेमी-हाई स्पीड ट्रेन का टेस्ट कराया और एप्रूवल दिलाया।

वंदे भारत के लिए सुधांशु मणिजी की कोर टीम

सुधांशु मणिजी ने बताया कि उन्होंने रिटायरमेंट के ठीक पहले स्वयं अपना ट्रांसफर इंटीग्रल कोच फैक्ट्री, चेन्नई के जनरल मैनेजर के पद पर मांगा था। आम तौर से ऐसे में लोग अपना ट्रांसफर  वहाँ करना चाहते हैं  जहां उन्हें रिटायरमेंट के बाद रहना होता है। सुधांशु मणिजी को रिटायरमेंट के बाद रहना तो लखनऊ में था, परन्तु उन्होंने अपना ट्रांसफर चेन्नई में मांगा था।  वहाँ इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में उन दिनों जनरल मैनेजर की पोस्ट खाली थी। सन् 2017 में उनकी नियुक्ति इस पद पर हुई और दिसम्बर 2019 में वह वहीं रेलवे की अपनी लगभग 35 वर्षों की सेवा से रिटायर हुए। जब उनकी नियुक्ति  इंटीग्रल कोच फैक्ट्री, चेन्नई में हुई तब वहाँ लगभग 12 हजार कर्मचारी थे। उन्होंने नई ट्रेन बनाने के लिए कोई नई नियुक्ति नहीं की।

ट्रेन बनाने के लिए सुधांशु मणिजी ने एक कोर टीम बनाई, जिसमें थे: एल.सी. त्रिवेदी प्रिन्सिपल चीफ़ मेकैनिकल इंजीनियर, शुभ्रांशु जो उनके बाद चीफ़ मेकैनिकल इंजीनियर हुए, सुशील वावरे चीफ डिजाइन इंजीनियर (इलेक्ट्रिकल), एस. श्रीनिवास चीफ डिजाइन इंजीनियर (मेकैनिकल), डी.पी. दाश चीफ इलेक्ट्रिकल इंजीनियर, शशि भूषण चीफ वर्कशाप इंजीनियर/शेल, मनीष प्रधान चीफ वर्कशाप इंजीनियर/फर्निशिंग।

इनके अतिरिक्त लगभग ढाई सौ अन्य कर्मचारियों का भी वंदे भारत ट्रेन बनाने में अमूल्य योगदान रहा।

वंदे भारत के निर्माण के लिए विदेश से किसी टेक्नोलोजी का ट्रांसफर (TET) नहीं किया गया है। और इस ट्रेन का Intellectual Property Rights (IPR) इंटीग्रल कोच फैक्ट्री, चेन्नई के पास है।

सुधांशु मणिजी कहाँ पढ़े, कहाँ बड़े हुए

रिटायरमेंट के बाद सुधांशु मणिजी अपने गृह नगर लखनऊ में वापस आ कर बस गए। उन्होंने इसी शहर के काल्विन तालुकेदार कालेज से इंटर्मीडिएट की परीक्षा पास की थी। बाद में उनका सेलेक्शन कानपुर आई.आई.टी. में हो गया। यह वर्ष 1975 की बात है। परन्तु आई.आई.टी. में उनको मेटलरजी सबजेक्ट मिला। इसमें उनकी रुचि नहीं थी। फिर उनका सेलेक्शन रुड़की यूनिवर्सिटी में हो गया। वहाँ उन्हें अपने मन का विषय मिला – इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग। रुड़की से पास होने के बाद उनका चयन Special Class Railway Apprentice में हुआ। और यहीं से उनका रेलवे में सफर शुरू हुआ। वह हावड़ा, सियालदाह, अंडाल (आसनसोल के निकट), बनारस बीएमडब्लू, सिकंदरबाद, आरडीएसओ लखनऊ आदि स्थानों में पोस्टेड रहे। वह बंगलोर में डीआरएम के पद पर भी रहे। तीन वर्ष उनकी पोस्टिंग जर्मनी में भारतीय दूतावास में भी रही। इस पूरे अनुभव के दौरान उनकी इच्छा एक विश्व स्तरीय ट्रेन बनाने की रही, जो कि इंटीग्रल कोच फैक्ट्री, चेन्नई में फलीभूत हुई। इंटीग्रल कोच फैक्ट्री में उन्होंने और उनकी टीम ने तमाम बाधाओं के बावजूद इतनी स्पीड से काम किया कि 18 महीनों ट्रेन बन कर खड़ी हो गई।

शायद ऐसी ही स्पीड और पक्के इरादे के लिए बशीर बद्र का यह शेर है: 

जिस दिन से चला हूँ मेरी मंजिल पर नज़र है

आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा।

सुधांशु मणिजी का परिवार

सुधांशु मणिजी के पूरा नाम सुधांशु मणि त्रिपाठी है। परन्तु वह सिर्फ सुधांशु मणि ही लिखते है। उनका एक बेटा है जोकि अमेरिका में काम कर रहा है। उनकी पत्नी अनुपमाजी पत्रकार हैं।  वह इंडियन एक्सप्रेस चंडीगढ़, न्यू इंडियन एक्सप्रेस हैदराबाद, हिंदुस्तान टाइम्स लखनऊ, समाचार एजेंसी यूएनआई, आदि में काम कर चुकी हैं।

सुधांशु मणिजी का पैत्रक आवास इन्दिरा नगर लखनऊ में है। उनके माता पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं। इस पैत्रक आवास को उन्होंने ललित कला संबंधी बैठकों, गोष्ठियों आदि के लिए रखा हुआ है। मुझे ऐसी ही एक गोष्ठी के लिए सुधांशु मणिजी ने आमन्त्रित किया है।  इसमें भारतीय फिल्मों में राग विषय पर श्री के.एल. पांडे जी का विशेष व्याख्यान होगा। सुधांशु मणिजी स्वयं गोमती नगर लखनऊ में एक फ्लैट में रहते हैं।

(इस लेख के लेखक सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं।)