वो गरीब थी, धनवान कैसे हो गई

#santoshtiwariडॉ. संतोष कुमार तिवारी।

लखनऊ में मेरे घर में एक औरत रहती थी। नाम था उसका रानी। परन्तु थी वह नौकरानी। लखनऊ से कोई साठ किलोमीटर दूर गंगा के किनारे शुक्लागंज, उन्नाव की रहने वाली थी। सोमवार से शुक्रवार या शनिवार तक हमारे घर पर रहती थी, फिर एक दो दिन के लिए अपने घर शुक्लागंज चली जाती थी। और एक दो दिन बाद फिर हमारे यहां वापस लौट आती थी।

वह बहुत गरीब थी और जीवन में पहली बार अपने घर से बाहर कहीं काम करने निकली थी। उसकी छह बेटियां थीं और एक बेटा। उन दिनों मेरे घर में  लोहे के पाइप वाला एक पुराना बेड था। वह उसे दिया गया। वह बेड वजनदार था। फिर भी वह उतना वजन उठा कर ढो कर अपने घर शुक्लागंज ले गई। ऐसी ही कुछ अन्य चीजें भी उसको दी गईं, जिन्हें वह अपने घर ले गई।

हम लोग उसको कोई बहुत ज्यादा पैसे नहीं देते थे। उसने कभी अपनी तनख्वाह बढ़ाने को भी नहीं कहा। वह बहुत मन लगा कर ठीक से ईमानदारी से काम करती थी और जो मिलता था उससे संतुष्ट थी।

वह दान भी करती थी

एक दिन बातचीत में वह कह गई कि जो थोड़े से पैसे उसे हमारे यहां मिलते थे, उनसे कुछ हिस्सा निकाल कर वह दान भी करती थी। हम लोगों को यह सुन कर बड़ा अच्छा लगा और थोड़ा आश्चर्य भी हुआ कि कैसे इतने कम पैसों में उसके घर की गाड़ी चलती होगी। उसने हमारे घर में कोई डेढ़ साल तक  काम किया।

फिर उसकी नौकरी कानपुर के एक अस्पताल में लग गई। कानपुर गंगा के दूसरे किनारे पर है और शुक्लागंज, उन्नाव से बहुत नजदीक है। इसलिए वह वहां काम करने लगी।  फिर उसकी बेटियां भी काम लग गईं। धीरे-धीरे उसके घर में जरूरत की सब चीजें हो गईं। वह मेरी पत्नी को फोन पर एक बार बता रही थी: “भाभी, अब हमें किसी चीज की जरूरत नहीं है। हमारे पास सब कुछ है।“

उसकी छह में से एक बेटी का निधन हो गया था। चार बेटियों की वह शादी कर चुकी है। एक पुत्र और एक पुत्री का विवाह करना अभी बाकी है। पति का भी निधन हो चुका है। शुक्लागंज, उन्नाव में उसका अपना घर है।

स्कन्दपुराण‘ में क्या कहा गया है

स्कन्दपुराण‘ में कहा गया है-

न्यायोपार्जितवित्तस्य दशमांशेन धीमता।

कर्तव्यो विनियोगश्च ईशप्रीत्यर्थमेव च॥

इस श्लोक में न्यायपूर्वक और ईमानदारी से अर्जित धन का कम-से- कम दसवाँ अंश दान करने की प्रेरणा दी गयी है।

आदि शंकराचार्य के जीवन की एक घटना

Adi Shankaracharya Jayanti 2020 Birth Story Behind Adi Shankaracharya - Amar Ujala Hindi News Live - Adi Shankaracharya Jayanti 2020:आदि शंकराचार्य ने धर्म की रक्षा के लिए किए चार मठों की स्थापना

सन् 788 और 820 के बीच की बात है। आदि शंकराचार्य के जीवन में एक  बहुत महत्वपूर्ण घटना घटी। तब वह संन्यास ग्रहण कार चुके थे वह केरला के एक गांव की झोपड़ी के सामने भिक्षा मांग रहे थे। उस झोपड़ी में गरीब ब्राह्मण महिला  रहती थी। उस महिला के पास भिक्षा में देने के लिए कुछ भी नहीं था। किन्तु उसने लज्जा को छुपाया और घर में भिक्षा के लिए कुछ ढूंढा। अंत मेंवो केवल एक आंवला ही ढूंढ पाने में सफल हो पाई। उस महिला ने शंकराचार्य से अनुरोध किया कि वे इस आंवले को भिक्षा के रूप में स्वीकार करें।

शंकराचार्य ने देवी लक्ष्मीजी के आह्वान में श्लोक रचे

शंकराचार्य को ब्राह्मण महिला की यथा-स्थिति और गरीबी पर दया आ गयी। वे महिला के स्वार्थहीन और दयालु आचरण से भी काफी प्रभावित हुए। प्रभावित होकर शंकराचार्य ने देवी लक्ष्मीजी  का आह्वान करते हुए कुछ श्लोक रचे। ये छंद संस्कृत भाषा में थे। शंकराचार्य ने अपनी वाणी में इन श्लोकों का पाठ किया जिसको सुन कर  देवी लक्ष्मीजी प्रसन्न हुईं और शंकराचार्य के समक्ष प्रकट हुईं।

देवी लक्ष्मी ने शंकराचार्य से पूछा कि उन्होंने उनका आह्वान क्यों कियातब शंकराचार्य ने देवी लक्ष्मीजी से प्रार्थना की कि वे इस गरीब ब्राह्मण महिला के परिवार को धन-धान्य से सुसज्जित कर उनकी गरीबी और दरिद्रता को समाप्त करने की कृपा करें।

देवी लक्ष्मीजी  ने शंकराचार्य की प्रार्थना को ठुकरा दिया और कहा कि ये महिला पूर्वजन्म में परोपकारी नहीं थी और अपने अपने पूर्वजन्मों के कर्मों के नियमों से बंधी होने के कारण इस वर्तमान जन्म में इसे गरीबी और दरिद्रता को भोगना आवश्यक है।

इस पर शंकराचार्य ने देवी लक्ष्मीजी  से अनुरोध किया कि महिला में पूर्ण निस्वार्थ भाव होने के कारण उसे पूर्वजन्म में किए गए बुरे कर्मों और उनके बंधनों से मुक्त कर दिया जाना चाहिए। शंकराचार्य ने देवी लक्ष्मीजी  से प्रार्थना की कि केवल आप ही  ब्रह्माजी द्वारा लिखित भविष्य को सम्पादित व निष्पादित करने में समर्थ हैं। आपके अतिरिक्त और कोई इस कार्य को नहीं कर सकता है। तब देवी लक्ष्मीजी  ने शंकराचार्य की बात से प्रसन्न होकर गरीब ब्राह्मण महिला के घर पर शुद्ध सोने से बने आंवले की वर्षा की।

बाद में आदि शंकराचार्य द्वारा रचित इन श्लोकों को ‘कनकधारा स्तोत्रम’ के नाम से जाना जाने लगा। ये श्लोक लक्ष्मीजी को बहुत प्रिय हैं और दीपावली, धनतेरस, अक्षय तृतीया, आदि जैसे त्योहारों इनका पाठ किया जाता है। कुछ लोग प्रतिदिन इनका पाठ करते हैं।

बहुत से पाठकों को संस्कृत भाषा में प्रवीणता हासिल नहीं है। वे देवी लक्ष्मीजी का आह्वान करने के लिए YouTube पर इन श्लोकों को प्रख्यात गायिका भारतरत्न एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी (M.S. Subbulakshmi) और उनकी  पुत्री  राधा विश्वनाथन (Radha Vishwnathan) की मधुर वाणी  में जब चाहें तब  सुन सकते हैं। इसके लिए उन्हें इस URL पर क्लिक करना होगा:

‘कनकधारा’ के कुछ श्लोक संस्कृत भाषा में हिन्दी अर्थ सहित  इस प्रकार हैं:

ॐ अङ्गं हरै (हरेः) पुलकभूषण-माश्रयन्ती भृङ्गाऽगनेव मुकुला-भरणं तमालं|
अंगीकृता-ऽखिलविभूतिर-पॉँगलीला-माँगल्य-दाऽस्तु मम् मङ्गलदेवतायाः||

जैसे भ्रमरी अधखिले कुसुमों से अलंकृत तमाल-तरु का आश्रय लेती हैउसी प्रकार जो प्रकाश श्रीहरि के रोमांच से सुशोभित श्रीअंगों पर निरंतर पड़ता रहता है तथा जिसमें संपूर्ण ऐश्वर्य का निवास हैसंपूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी भगवती महालक्ष्मी की वह दृष्टि मेरे लिए मंगलदायी हो।

मुग्धा मुहुर्विदधी वदने मुरारेः प्रेमत्रपा प्रणि-हितानि गताऽगतानि ।
मला-र्दशोर्म-धुकरीव महोत्पले या सा में श्रियं दिशतु सागर सम्भवायाः ||

जैसे भ्रमरी महान कमल दल पर मंडराती रहती हैउसी प्रकार जो श्रीहरि के मुखारविंद की ओर बराबर प्रेमपूर्वक जाती है और लज्जा के कारण लौट आती है, समुद्र कन्या लक्ष्मी की वह मनोहर मुग्ध दृष्टिमाला मुझे धन संपत्ति प्रदान करे।

विश्वामरेन्द्र पद-विभ्रम-दानदक्षमा-नन्दहेतु-रधिकं मुरविद्विषोपि |
ईषन्निषीदतु मयि क्षण मीक्षणार्धं-मिन्दीवरोदर सहोदर-मिन्दीरायाः ||

जो देवताओं के स्वामी इंद्र को पद का वैभव-विलास देने में समर्थ हैमधुहंता नाम के दैत्य के शत्रु भगवान विष्णु को भी आप आधिकाधिक आनंद प्रदान करने वाली हैंनीलकमल जिसका सहोदर है अर्थात भाई हैउन लक्ष्मीजी के अर्ध खुले हुए नेत्रों की दृष्टि किंचित क्षण के लिए मुझ पर पड़े।

आमीलिताक्ष-मधिगम्य मुदा-मुकुन्दमा-नन्द कंद-मनिमेष-मनंगतन्त्रं |
आकेकर स्थित कनीतिक-पद्मनेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजङ्ग शयाङ्गनायाः ||

जिसकी पुतली एवं भौहें काम के वशीभूत हो अर्धविकसित एकटक आँखों से देखने वाले आनंद सत्चिदानन्द मुकुंद भगवान को अपने निकट पाकर किंचित तिरछी हो जाती होंऐसे शेष पर शयन करने वाले भगवान नारायण की अर्द्धांगिनी श्रीमहालक्ष्मीजी के नेत्र हमें धन-संपत्ति प्रदान करें।

बाह्यन्तरे मुरजितः (मधुजितः) श्रुत-कौस्तुभे या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला कल्याण-मावहतु में कमला-लयायाः॥

जो भगवान मधुसूदन के कौस्तुभमणि-मंडित वक्षस्थल में इंद्रनीलमयी हारावली-सी सुशोभित होती हैं तथा उनके भी मन में प्रेम का संचार करने वाली हैंवह कमल-कुंजवासिनी कमला की कटाक्षमाला मेरा कल्याण करें।

कालाम्बुदालि ललितो-रसि कैटभारे-र्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव|
मातुः समस्त-जगतां महनीय-मूर्तिर्भद्राणि में दिशतु भार्गव-नंदनायाः||

जिस तरह से मेघों की घटा में बिजली चमकती हैउसी प्रकार मधु-कैटभ के शत्रु भगवान विष्णु के काली मेघपंक्ति की तरह सुमनोहर वक्षस्थल पर आप एक विद्युत के समान देदीप्यमान होती हैंजिन्होंने अपने अविर्भाव से भृगुवंश को आनंदित किया है तथा जो समस्त लोकों की जननी है वो भगवती लक्ष्मी मेरा  कल्याण करें।

प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत प्रभावा-न्मांगल्य-भाजि मधुमाथिनी मन्मथेन|
मय्यापतेत्त-दिह मन्थर-मीक्षणार्धं मन्दालसं च मकरालय-कन्यकायाः||

समुद्रकन्या कमला की वह मन्दअलसमन्थर और अर्धोन्मीलित दृष्टिजिसके प्रभाव से कामदेव ने मंगलमय भगवान मधुसूदन के हृदय में प्रथम बार स्थान प्राप्त किया थावह मुझ पर पड़े।

दद्याद दयानु-पवनो द्रविणाम्बु-धारामस्मिन्न-किञ्चन विहङ्ग-शिशो विषण्णे|
दुष्कर्म-धर्म-मपनीय चिराय दूरं नारायण-प्रणयिनी-नयनाम्बु-वाहः॥

भगवान नारायण की प्रेयसी लक्ष्मी का नेत्र रूपी मेघ दयारूपी अनुकूल पवन से प्रेरित हो दुष्कर्म (धनागम विरोधी अशुभ प्रारब्ध) रूपी धाम को चिरकाल के लिए दूर हटाकर विषाद रूपी धर्मजन्य ताप से पीड़ित मुझ दीन रूपी चातक पर धनरूपी जलधारा की वृष्टि करें।

इष्टा-विषिश्टम-तयोऽपि यया दयार्द्र-दृष्टया त्रिविष्ट-पपदं सुलभं लभन्ते ।
दृष्टिः प्रहष्ट-कमलोदर-दीप्ति-रिष्टां पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्कर-विष्टरायाः ||

विशिष्ट बुद्धिवाले मनुष्य जिनके प्रीतिपात्र होकर उनकी दयादृष्टि के प्रभाव से स्वर्गपद को सहज ही प्राप्त कर लेते हैंउन्हीं पद्मासना पद्मा की वह विकसित कमल गर्भ के समान कान्तिमती दृष्टि मुझे मनोवांछित पुष्टि प्रदान करें।

गीर्देव-तेति गरुड़-ध्वज-सुन्दरीति शाकम्भ-रीति शशि-शेखर-वल्लभेति |
सृष्टि-स्थिति-प्रलय-केलिषु संस्थि-तायै तस्यै नमस्त्रिभुवनै-कगुरोस्तरुण्यै ||

जो माँ भगवती श्री सृष्टिक्रीड़ा में अवसर अनुसार वाग्देवता (ब्रह्मशक्ति) के रूप में विराजमान होती हैपालनक्रीड़ा के समय लक्ष्मी के रूप में विष्णु की पत्नी के रूप में  विराजमान होती हैप्रलयक्रीड़ा के समय शाकम्भरी (भगवती दुर्गा) अथवा चन्द्रशेखर वल्लभा पार्वती (रूद्रशक्ति) भगवान शंकर की पत्नी के रूप में विद्यमान होती हैउन त्रिलोक के एकमात्र गुरु पालनहार विष्णु की नित्य यौवना प्रेमिका भगवती लक्ष्मी को मेरा सम्पूर्ण नमस्कार है।

श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभ-कर्मफल-प्रसूत्यै रत्यै नमोऽस्तु रमणीय गुणार्ण-वायै|
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्र-निकेतनायै पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तम-वल्लभायै||

हे माता ! शुभ कर्मों का फल देनेवाली श्रुति के रूप में आपको प्रणाम है। रमणीय गुणों की सिन्धुरूप रति के रूप में आपको नमस्कार है। कमलवन में निवास करनेवाली शक्तिस्वरूपा लक्ष्मी को नमस्कार है तथा पुरुषोत्तमप्रिया पुष्टि को नमस्कार है।

नमोऽस्तु नालीकनि-भाननायै नमोऽस्तु दुग्धो-दधि-जन्म-भूत्यै|
नमोऽस्तु सोमा-मृत-सोदरायै नमोऽस्तु नारायण-वल्लभायै||

कमल वदना कमला को नमस्कार है। क्षीरसिंधु सभ्यता श्रीदेवी को नमस्कार है। चंद्रमा और सुधा की सगी बहन को नमस्कार है। भगवान नारायण की वल्लभा को नमस्कार है।

नमोऽस्तु हेमाम्बुज पीठिकायै नमोऽस्तु भूमण्डल नयिकायै ।
नमोऽस्तु देवादि दया-परायै नमोऽस्तु शारङ्ग-युध वल्लभायै ||

सोने के कमलासन पर बैठने वालीभूमण्डल नायिकादेवताओं पर दया  करने वालीशाङ्घायुध विष्णु की वल्लभा शक्ति को नमस्कार है।

नमोऽस्तु देव्यै भृगुनन्दनायै नमोऽस्तु विष्णोरुरसि संस्थितायै ।
नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायै नमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै ||

भगवान् विष्णु के वक्षःस्थल में निवास करनेवाली देवीकमल के आसनवालीदामोदर प्रिय लक्ष्मीआपको मेरा नमस्कार है।

नमोऽस्तु कान्त्यै कमलेक्षणायै नमोऽस्तु भूत्यै भुवनप्रसूत्यै |
नमोऽस्तु देवादिभिरर्चितायै नमोऽस्तु नन्दात्मजवल्लभायै ॥

भगवान् विष्णु की कान्ताकमल के जैसे नेत्रों वालीत्रैलोक्य को उत्पन्न करने वालीदेवताओं के द्वारा पूजितनन्दात्मज की वल्लभा ऐसी श्रीलक्ष्मीजी को मेरा नमस्कार है।

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रिय-नंदनानि साम्राज्य-दान-विभवानि सरो-रुहाक्षि ।
त्वद्वन्द-नानि दुरिता-हरणो-द्यतानी मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये ||

कमल सदृश नेत्रों वाली माननीय मां! आपके चरणों में प्रणाम। आप संपत्ति प्रदान करने वालीसंपूर्ण इंद्रियों को आनंद देने वालीसाम्राज्य देने में समर्थ और सारे पापों को हर लेने के लिए सर्वथा उद्यत हैंआप सदा ही मुझे अवलम्बन (सहारा) दें। मुझे आपकी चरण वंदना का शुभ अवसर सदा प्राप्त होता रहे।

यत्कटाक्ष-समुपासना-विधिः सेव-कस्य सकलार्थ-सम्पदः ।
सन्त-नोति वचनाङ्ग-मानसै-स्त्वां मुरारि-हृदयेश्वरीं भजे ॥

जिनके कृपा कटाक्ष के लिए की गई उपासना उपासक के लिए संपूर्ण मनोरथों और संपत्तियों का विस्तार करती हैश्रीहरि की हृदयेश्वरी लक्ष्मी देवी का मैं मनवाणी और शरीर से भजन करता हूं।

सरसिज-निलये सरोज-हस्ते धवल-तमांशुक-गन्धमाल्य-शोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवन-भूतिकरि प्रसीद मह्यं॥ 

हे भगवती नारायण की पत्नी आप कमल में निवास करने वाली हैंआप के हाथों  में नीलकमल शोभायमान है। आप श्वेत वस्त्रगंध और माला आदि से सुशोभित हैंआपकी झांकी बड़ी मनोहर हैअद्वितीय है। हे त्रिभुवन के ऐश्वर्य प्रदान करने वाली आप मुझ पर भी प्रसन्न हो जाइए।

दिग्ध-स्तिभिः कनककुम्भ-मुखावसृष्ट-स्वर्वाहिनी-विमलचारु-जलप्लु तांगीं ।
प्रात-र्नमामि जगतां जननी-मशेष-लोकाधिनाथ-गृहिणी-ममृताब्धि-पुत्रीं ||  

दिग्गजों द्वारा स्वर्ण कलश के मुख से गिराए गएआकाशगंगा के स्वच्छ और मनोहर जल से जिन भगवान के श्रीअंगो का अभिषेक (स्नान) होता हैउस समस्त लोकों के अधीश्वर भगवान विष्णु की गृहिणीसमुद्र तनया (क्षीरसागर पुत्री)जगतजननी भगवती लक्ष्मी को मैं प्रातःकाल नमस्कार करता हूं।

कमले कमलाक्ष-वल्लभे त्वां करुणा-पूरतरङ्गी-तैर-पारङ्गैः।
अवलोक-यमां-किञ्चनानां प्रथमं पात्रम-कृत्रिमं दयायाः||

कमल नयन केशव की कमनीय कामिनी कमले! मैं अकिंचन (दीन-हीन) मनुष्यों में अग्रगण्य हूंअतएव तुम्हारी कृपा का स्वाभाविक पात्र हूं। तुम उमड़ती हुई करुणा की बाढ़ की तरह तरंगों के समान कटाक्षों द्वारा मेरी ओर देखो।

केरल में पैदा हुए और केदारनाथ में शरीर त्यागा

आदि शंकराचार्य का जन्म सन् 788 में केरल के कालड़ी गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था और उन्होंने बत्तीस वर्ष की आयु में सन् 820 में केदारनाथ में अपना शरीर त्याग किया था।

(लेखक सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं।)