आपका अखबार ब्यूरो।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) के बृहत्तर भारत और क्षेत्रीय अध्ययन विभाग ने ‘बुद्ध के पदचिह्न’ प्रदर्शनी आयोजित की है। यह प्रदर्शनी बुद्ध के जीवन और एशिया में उनकी शिक्षाओं के दूरगामी प्रभाव की एक चिंतनशील यात्रा प्रस्तुत करती है। ‘बुद्धशासनं चिरं तिष्ठतु’ अर्थात् बुद्ध की शिक्षाएं सिद्धांत चिरस्थायी की शाश्वत आकांक्षा पर आधारित यह प्रदर्शनी सावधानीपूर्वक तैयार किए गए फाइबर मानचित्र को दिखाती है, जो एक वर्ष के शोध और कलात्मक संलग्नता का परिणाम है। इसमें कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धर्थ गौतम द्वारा स्थापित धर्म के भारत और एशिया के विमिन्न क्षेत्रों में प्रसार को दिखाया गया है। यह प्रदर्शनी 15 अगस्त तक जनता के लिए खुली रहेगी।
इस अवसर पर आदरणीय गेशे दोरजी दामदुल मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। अन्य विशिष्ट अतिथियों में केन्द्रीय संस्कृति मंत्रालय की संयुक्त सचिव लिली पांडेय, आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी, अकादमिक आईबीसी के निदेशक रवींद्र पंत, सेवा इंटरनेशनल के अंतरराष्ट्रीय समन्वयक और अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद् के महासचिव श्याम परांडे, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के बाल मुकुंद पांडे, आईजीएनसीए की निदेशक डॉ. प्रियंका मिश्रा और आईजीएनसीए के बृहत्तर भारत एवं क्षेत्रीय अध्ययन के प्रमुख प्रो. धर्म चंद चौबे शामिल थे। इस अवसर पर मंगोलिया और वियतनाम के आदरणीय भिक्षु और भिक्षुणियां भी उपस्थित थे।
यह मानचित्र भगवान बुद्ध से जुड़े चार पवित्र स्थलों- लुम्बिनी (जन्मस्थान), बोधगया (ज्ञान प्राप्ति स्थल), सारनाथ (धर्मचक्रप्रवर्तन स्थल) और कुशीनगर (महापरिनिर्वाण स्थल) को केवल भौगोलिक बिंदुओं के रूप में ही नहीं, बल्कि जागृति, आध्यात्मिक संचार और स्मृति के जीवंत स्थलों के रूप में भी सामने लाता है। इसके बाद भगवान बुद्ध के परिभ्रमण स्थलों, जैसे- राजगृह, वैशाली, श्रावस्ती, संकाश्यनगर और मथुरा को दिखाया गया है। भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद सम्राट अशोक ने पाटलिपुत्र में भगवान बुद्ध के उपदेशों के संगठित रूप में प्रकाशन और प्रसारण के निमित्त बौद्ध विद्वानों की एक बड़ी सभा बुलाई थी, जिसमें निर्णय हुआ कि भगवान बुद्ध के चार आर्य सत्यों, उनके पवित्र सिद्धान्तों और उपदेशों को दिक् दिगन्त में प्रसारित करने के लिए धम्म प्रचारकों को विश्व भर में भेजा जाएगा। फलतः इसमें भारत और समस्त एशिया के उन स्थलों को प्रदर्शित किया गया है, जहां-जहां ये धम्म प्रचारक गए और इनके बाद एशिया में कई स्थान, जो आगे चलकर बौद्ध धर्म के बड़े केन्द्र के रूप में उभरे, उनको दिखाया गया है। यह मथुरा, गांधार, खोतान, लुओयांग, दुनहुआंग, यांगून, अंगकोर वाट, बोरोबुदुर और उसके आगे के क्षेत्रों से होते हुए धर्म की यात्रा का पता लगाता है और इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे बुद्ध का संदेश रेगिस्तानों, समुद्रों और सभ्यताओं से होकर गुज़रा, भिक्षुओं, तीर्थयात्रियों, विद्वानों और दूतों द्वारा पहुँचाया गया, जिनके प्रयासों ने एशिया के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक ताने-बाने को आकार दिया। यह प्रदर्शनी 15 अगस्त तक जनता के लिए खुली रहेगी।
इस अवसर पर बोलते हुए आदरणीय गेशे दोरजी दामदुल ने कहा कि बुद्ध के संदेश को दुनिया तक पहुंचाने की बात करना ही पर्याप्त नहीं है, हमें पहले इसे अपने भीतर आत्मसात करना होगा। उन्होंने कहा कि करुणा को बाहर फैलाने से पहले, हमें यह पूछना चाहिए- क्या मैं खुश हूं, क्या मेरा परिवार खुश है? यदि घर में करुणा नहीं है, तो कोई भी बाहरी प्रयास धर्म के सच्चे सार को नहीं पहुंचा सकता। परम पावन दलाई लामा की 90वीं जयंती के उपलक्ष्य में और इस वर्ष को करुणा वर्ष के रूप में मनाते हुए उन्होंने सभी से अपने हृदय और घरों में करुणा का विकास करने का आग्रह किया।
लिली पांडेय ने कहा कि यह भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण और गौरवपूर्ण क्षण है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि एक उल्लेखनीय घटनाक्रम में, अंतरराष्ट्रीय नीलामी में प्राप्त बुद्ध के पवित्र अवशेषों (पिपरहवा अवशेष) को, सांस्कृतिक कलाकृतियों की वापसी के माननीय प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण के अनुरूप, सम्मानपूर्वक भारत वापस लाया गया है। उन्होंने कहा, “हम एक बड़ी प्रदर्शनी की दिशा में काम कर रहे हैं, जो इन पवित्र अवशेषों को आईजीएनसीए के मानचित्र मॉडल के साथ प्रदर्शित करेगी, जो बौद्ध धर्म के वैश्विक प्रसार को दर्शाता है।” उन्होंने कहा कि यह पहल भगवान बुद्ध के शाश्वत संदेश- शांति, करुणा और संवाद के प्रति भारत की स्थायी प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
इस अवसर पर डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों की वापसी और प्रदर्शनी का एक साथ उद्घाटन अत्यंत आनंद का क्षण होगा, सोने पर सुहागा की तरह। उन्होंने कहा कि यह प्रदर्शनी विशेष रूप से युवा पीढ़ी के लिए बनाई गई है। उन्होंने संस्थानों, स्कूलों और कॉलेजों से आग्रह किया कि वे इसे देखें और जानें कि शांति, सुख और करुणा का भगवान बुद्ध का संदेश एक समय में विभिन्न सभ्यताओं में कैसे फैला और आज भी इसकी प्रासंगिकता कितनी गहरी है।
इससे पूर्व प्रदर्शनी के बारे में बताते हुए प्रो. धर्मचंद चौबे ने कहा कि यह प्रदर्शनी राजकुमार सिद्धार्थ के बुद्ध में रूपांतरण और उनकी शिक्षाओं के दूरगामी प्रसार का एक सम्मोहक दृश्य आख्यान प्रस्तुत करती है। यह मानचित्र दर्शाता है कि कैसे भिक्षुओं और विद्वानों की भक्ति के माध्यम से धर्म भारत से आगे तक पहुंचा। उन्होंने कहा कि यह केवल एक मानचित्र प्रदर्शनी नहीं है, बल्कि उन लोगों के प्रति श्रद्धांजलि है जिन्होंने बुद्ध के संदेश को पूरे एशिया में पहुंचाया। साथ ही नैतिकता, विज्ञान, कला और ज्ञान प्रणालियों में भारत की सभ्यतागत समृद्धि को भी पहुंचाया, जिसने सांस्कृतिक रूप से भारतीयकृत एशिया को आकार देने में मदद की।
इस अवसर पर अन्य अतिथियों ने भी अपने विचार व्यक्त किए। अंत में डॉ. अजय मिश्र ने धन्यवाद ज्ञापन किया। इस प्रदर्शनी के माध्यम से, आईजीएनसीए एक बार फिर विश्वमित्र के रूप में भारत की भूमिका की पुष्टि करता है और हमारे समय में चिंतन, एकता और वैश्विक सद्भाव के मार्गदर्शक के रूप में बुद्ध के चिरस्थायी ज्ञान को प्रस्तुत करता है।