प्रदीप सिंह।
पहले ‘द कश्मीर फाइल्स’ और अब ‘द केरला स्टोरी’, इन दोनों फिल्मों में एक ही चीज कॉमन है, वह यह कि दोनों फिल्में अत्याचार और दमन के खिलाफ आवाज उठाती हैं। उन लोगों को आवाज देती है जिनकी आवाज दबा दी गई थी, जिनकी आवाज की सुनवाई नहीं हुई। इन दोनों से एक ही वर्ग परेशान है जिसको इस देश में लेफ्ट-लिबरल कहते हैं। यह बिरादरी इस देश तक ही सीमित नहीं है इस देश के बाहर भी है। इस बिरादरी का सबसे बड़ा शिकार यूरोप हो चुका है। पूरा यूरोप खत्म होने की कगार पर है, कैसे, बताता हूं। तलवार की जोर पर हिंदू महिलाओं पर कब्जा करना और उनका धर्म परिवर्तन कराने की शुरुआत मोहम्मद बिन कासिम के राज में हुई थी। उस समय हुकूमत में थे और ताकतवर थे तो तलवार के जोर पर करते थे। आज हुकूमत में नहीं हैं और उतने ताकतवर नहीं हैं तो आज उनकी ताकत है लव जिहाद। केरला स्टोरी इसी लव जिहाद के अत्याचार को उजागर करती है।
ऐसा नहीं है कि यह मुद्दा पहली बार उठाया जा रहा है। यूरोप में यह मुद्दा पहले से उठता रहा है। 2015 में एक फिल्म बनी थी ‘ब्रिटेंस जिहादी गाइड’ उसके बाद 2020 में नेटफ्लिक्स ने एक फिल्म बनाई ‘कैलिफेट’। इनमें भी इसी बारे में दिखाया गया है। ‘द केरला स्टोरी’ रिलीज होने के बाद पूरी लेफ्ट-लिबरल बिरादरी हथियार लेकर खड़ी हो गई है कि यह मुसलमानों पर अत्याचार है, यह इस्लाम पर हमला है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने फिल्म पर प्रतिबंध लगा दिया है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने थिएटरों में इसके चलने पर रोक लगा दी कि इसे कोई नहीं दिखाएगा। यह हवाला दिया गया कि इससे कानून व्यवस्था की स्थिति खराब हो सकती है। थिएटर मालिकों से कहा गया कि आप मना कीजिए, यह मत कहिए कि सरकार ने कहा है। इसके खिलाफ एक माहौल बनाने की कोशिश हो रही है और सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दायर हो चुकी है। पूरी लेफ्ट-लिबरल बिरादरी सक्रिय हो गई है। उनको लग रहा है कि पहले द कश्मीर फाइल्स और अब द केरला स्टोरी को जिस तरह का जनसमर्थन मिल रहा है उससे उनकी सल्तनत खतरे में है। उनको लग रहा है कि उनका साम्राज्य खतरे में है इसलिए परेशान हैं। 75 साल में पहली बार लेफ्ट-लिबरल बिरादरी परेशान है और उसके पैरोकार भी परेशान हैं।
ईसाई संस्थाओं ने सबसे पहले उठाया था लव जिहाद का मुद्दा
यह मुद्दा पहली बार सामने आया 2009 में जब केरल के ईसाई संस्थाओं ने इसे उठाया था। उसके बाद 2010 में उस समय के केरल के मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन ने कहा था कि अगर लव जिहाद का सिलसिला इसी तरह चलता रहा और इसी तरह से हिंदू और ईसाई लड़कियों का धर्म परिवर्तन होता रहा तो 20 साल में केरल इस्लामी राज्य बन जाएगा। उसके बाद 2012 में कांग्रेस के मुख्यमंत्री ओमान चांडी ने विधानसभा में आंकड़े पेश किए और कहा कि 2009 से 2012 के तीन साल के दरम्यान 2195 हिंदू लड़कियों और 492 ईसाई लड़कियों का धर्मांतरण लव जिहाद के जरिये कराया गया। यह मुद्दा पहले बीजेपी ने नहीं उठाया था। यह मुद्दा ईसाई संगठनों ने उठाया, फिर सीपीएम की सरकार के मुख्यमंत्री और कांग्रेस की सरकार के मुख्यमंत्री ने उठाया। उसके बाद बीजेपी, आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद सामने आए। इसलिए यह कहना कि हिंदूवादी संगठनों की इस्लाम पर हमला करने और मुसलमानों के खिलाफ माहौल बनाने की योजना है तो इसमें कोई दम नहीं है। इसलिए परेशानी और ज्यादा है।
आईएसएस के खिलाफ बोलना मुसलमानों पर हमला कैसे
हिंदुत्व पर हमला करते हैं तो कहते हैं कि हिंदुत्व पर हमले का मतलब यह नहीं है कि हम हिंदू धर्म के खिलाफ हैं। लेकिन इस्लाम पर हमला करने पर आप कहते हैं कि इस्लाम पर हमला है यानी आईएसएस के खिलाफ बोले तो वह मुसलमानों के खिलाफ हो जाता है। कैसे हो जाता है, क्योंकि उनके हाथ में नैरेटिव बनाने की ताकत है और दुनिया भर में उनका तंत्र है। यूरोप की हालत के बारे में आप जानेंगे तो आपको और ज्यादा आश्चर्य होगा। हालत यह है कि लेफ्ट-लिबरल नीतियों के कारण, ह्यूमन राइट्स, वूमेन राइट्स और इमिग्रेंटस राइट्स इन तीन कानूनों के कारण यूरोप का इस्लामीकरण हो रहा है। बड़े-बड़े विशेषज्ञों और समाजशास्त्रियों का मानना है कि यूरोप में अभी जो पीढ़ी है उसके बाद यूरोप में इस्लाम का राज होगा। इससे आप समझ गए होंगे कि दुनिया भर में यह स्थिति कितनी भयावह है। इतनी बड़ी समस्या को भारत में कोई समझने को तैयार नहीं है। सर तन से जुदा का नारा लगाने वाला विक्टिम हो गया, यह इस्लाम के खिलाफ अभियान है, मुसलमानों पर हमला है लेकिन सर तन से जुदा नारे का जो शिकार है, जो पीड़ित है वह असल में दोषी ठहराया जाता है। इस तरह की आवाजें आप इस देश के आम लोगों से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक से सुन सकते हैं।
लेफ्ट-लिबरल बिरादरी को मिल रही चुनौती
आपको याद होगा कि नूपुर शर्मा के मामले में सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ ने क्या टिप्पणी की थी। इससे आप अंदाजा लगाइए कि इनके तंत्र कितने फैले हुए हैं। पहली बार कोई इनको चुनौती दे रहा है। चुनौती देने वाले की सबसे बड़ी ताकत यह है कि वह सच्चाई पर खड़ा है। वह सच के साथ है और जो सच के साथ है उसका साथ देने के लिए लोग भी तैयार हैं। आजादी के बाद से देश में ऐसा माहौल बना था कि लेफ्ट-लिबरल बिरादरी के लोग जो भी बोलते हैं अगर उसके खिलाफ कुछ कहा तो आप उस समाज से बहिष्कृत कर दिए जाएंगे। जो अपने को उदार कहते हैं दुनिया के सबसे बड़े अनुदार हैं। जो अपने को सबसे बड़े सहिष्णु बताते हैं वह सबसे बड़े असहिष्णु हैं। बहिष्कृत किए जाने का डर लोगों को चुप रहने के लिए मजबूर करता था। मैंने आपको पहले बताया था कि ब्रिटेन में कैसे रोमिंग गैंग काम कर रहा है। यह गैंग यूरोप की, ब्रिटेन की नाबालिग लड़कियों को नशे के धंधे में, वेश्यावृत्ति में, आतंकवाद के धंधे में ले जा रहा है। लव जिहाद के जरिये लड़कियों को, खासतौर से कम उम्र की लड़कियों को फंसाया जाता है, उनको आतंकवाद से जुड़ी गतिविधियों में लगाया जाता है या आतंकवादियों का सेक्स स्लेव बनाया जाता है। यह काम बड़े धड़ल्ले से चल रहा था। कोई बोलता नहीं था। बोलने का मतलब था कि आप मुस्लिम विरोधी हैं, आप इस्लाम विरोधी हैं। आप इस्लाम विरोधी हैं तो आपका साथ देने को कौन तैयार होगा।
भारतीय समाज में हो रहा बड़ा बदलाव
जो लोग मानते थे कि यह गलत हो रहा है वह भी यह सब कुछ देख कर चुप्पी साधे हुए थे। जब ब्रिटेन जैसे देश में ऐसा हो सकता है कि वहां की पुलिस बोलने की हिम्मत नहीं कर सकती, वहां की पुलिस की हिम्मत नहीं थी कि ऐसे अपराधी को पकड़ कर उसके खिलाफ एफआईआर लिखे, उसे जेल भेजें क्योंकि उनको यह डर था कि उनको रेसिस्ट मान लिया जाएगा। अब जाकर ब्रिटेन की गृहमंत्री ने यह बोला है तो उसके प्रधानमंत्री ने एक कमेटी बनाई है और कानून बनने जा रहा है। भारत के लेफ्ट-लिबरल यूरोप और अमेरिका के लेफ्ट-लिबरल को अपना आका मानते हैं। वह जो करते हैं उसी की नकल करते हैं। भारत में भी उसी तरह के कानून बनवाने की कोशिश लगातार हो रही है। सुप्रीम कोर्ट में जितनी भी रिट याचिकाएं दायर की जा रही हैं उसे आप ध्यान से पढ़ें और देखें तो पता चलेगा कि इसकी कोशिश कितने बड़े पैमाने पर चल रही है। लेकिन सवाल यह है कि मैं द केरला स्टोरी का जिक्र क्यों कर रहा हूं, द कश्मीर फाइल्स का जिक्र क्यों किया था। इन दोनों फिल्मों ने दर्शाया है कि भारतीय समाज में बहुत बड़ा बदलाव हो रहा है जिसको देख सकने और समझ सकने में लेफ्ट- लिबरल बिरादरी पूरी तरह से नाकाम है। जो राजनीतिक पार्टियां हैं इनका समर्थन करती हैं और इनसे समर्थन लेती हैं उनको भी यह बात समझ में नहीं आ रही है।
इस परिवर्तन का स्वागत कीजिए
आपने एक किताब का नाम सुना होगा ‘विस्पर्स’। यह लिखा गया था स्टालिन के राज पर। स्टालिन के राज में यूएसएसआर (सोवियत संघ रूस) में इतना आतंक था कि लोग निजी बातचीत करने में भी डरते थे। वह फुसफुसा कर बोलते थे। उसी के आधार पर इस किताब का नाम रखा गया था। इन मुद्दों पर भारत में भी यही स्थिति थी। लोग ज्यादा से ज्यादा अपने बेडरूम में और ड्राइंग रूम में इस पर बात कर लेते थे लेकिन उससे बाहर बात करने से बचते थे। यह मुद्दा सार्वजनिक रूप से कहीं उठे तो कतरा कर निकल जाते थे। आज मुखर हैं, यह सबसे बड़ा परिवर्तन आया है। इन दबे हुए लोगों को आवाज दी है इन दो फिल्मों ने। सच्चाई पर बनी फिल्म हो तो समाज में कितना बड़ा परिवर्तन ला सकती है, ये दो फिल्में बता रही हैं। जिस तरह का जनसमर्थन द कश्मीर फाइल्स को मिला था उसी तरह का समर्थन द केरला स्टोरी को मिल रहा है। उसकी जिस तरह से चर्चा हो रही है और जिस तरह से अलग-अलग राज्यों की सरकारें उसको टैक्स फ्री कर रही हैं, उत्तर प्रदेश, असम, मध्य प्रदेश की सरकारों ने किया, आने वाले समय में और सरकारें कर सकती हैं। भारतीय समाज, सनातन संस्कृति और हिंदू धर्म के खिलाफ इतने बड़े अभियान के खिलाफ उठने वाली आवाज को अब आम लोगों का साथ मिलने लगा है। अब लोग बोलने की हिम्मत करने लगे हैं। यह फिल्म इस बात का प्रमाण है। इसलिए इस परिवर्तन का स्वागत कीजिए और इसके भागीदार बनिए। किसी से डरने की, हिचकिचाने की जरूरत नहीं है। जिस बात को आप सच समझते हैं उसको धड़ल्ले से बोलिए। बोलने से बहुत कुछ बदल जाता है। जब आप चुप रहते हैं तो एक तरह से आपका समर्थन होता है उन बुराइयों के लिए।
गैर-मुस्लिम लड़कियों पर हो रहे अत्याचार जिसका नाम लव जिहाद है उसके खिलाफ देशभर में माहौल बने, एक अभियान और आंदोलन चले, तब इस फिल्म की वास्तविक मायने में सफलता होगी। इस फिल्म का शायद उद्देश भी यही है कि दबी हुई सच्चाई को लोगों के सामने लाना जिसको कहने में लोगों को डर लगता था, जिसको बहुत से लोग सुनना भी नहीं चाहते थे। उनको सुनाना, उनको बताना और उनको दिखाना है कि देखो यह है सच्चाई, आंखें खोलो।
लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ न्यूज पोर्टल एवं यूट्यूब चैनल के संपादक हैं ।