पटना में हुई एकता अब अनेकता में बदल चुकी ।

#pradepsinghप्रदीप सिंह।
हिंदी फिल्म ‘बहू बेगम’ का एक गीत है- निकले थे कहां जाने के लिए, पहुंचे हैं कहां मालूम नहीं, अब अपने भटकते कदमों को मंजिल का निशां मालूम नहीं। विपक्षी एकता का हाल भी कुछ वैसा ही हो गया है। जब पटना में मिले थे तो पता नहीं था इतनी जल्दी दिशा भ्रम का शिकार हो जाएंगे। पटना में जो एकता दिखी थी वह अब अनेकता का स्वरूप से ले चुकी है। साथ चलने की कम परस्पर विरोध की बातें ज्यादा हो रही हैं। सवाल है कि ऐसा क्यों हो रहा है। जवाब बड़ा स्पष्ट है नीयत साफ नहीं है।

भाजपा से ज्यादा खतरा कांग्रेस से

नीयत साफ न हो तो कोई नीति बन नहीं पाती। किसी तरह बन भी जाय तो चल नहीं पाती। पटना में जो पंद्रह पार्टियां मिली थीं, वह कहने को तो एक होने के लिए मिली थीं। पर सबके मन यह बात यह थी कि दूसरे को रोकने और अपने को बढ़ाने का रास्ता खोजने की कितनी गुंजाइश है। कई क्षेत्रीय पार्टियों को कांग्रेस मगरमच्छ नजर आती है। उन्हें लगता है साथ रहे तो मगरमच्छ खा जाएगा। इस वर्ग में तीन पार्टियां हैं। तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी। इन तीनों पार्टियों को दरअसल भाजपा से ज्यादा खतरा कांग्रेस से नजर आता है। भाजपा का विरोध करने से उनकी ताकत बढ़ती है और कांग्रेस के साथ जाने से उनकी ताकत घटने के पूरे आसार नजर आते हैं।
यह बात सही है कि कांग्रेस को धुरी बनाए बिना किसी भी तरह की विपक्षी एकता की बात का कोई मतलब नहीं है। पर यह बात भी उतनी ही सही है कि कांग्रेस के साथ जाने का मतलब अपने घर में सिकमी किराएदार को न्यौता देना। जिसकी नजर दोस्ती पर कम और मकान पर कब्जे की ज्यादा है। यही वजह है कि जब राहुल गांधी तेलंगाना के खम्मम में दहाड़ रहे थे कि जहां भारतीय राष्ट्र समिति होगी, कांग्रेस वहां कभी नहीं जाएगी। तो उसके अगले ही दिन अखिलेश यादव तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के मेहमान थे। और कह रहे थे कि जो भी भाजपा का विरोध करे उसे साथ लेना चाहिए।

विपक्षी खेमे में खलबली

विपक्षी एकता की गाड़ी को पटरी से उतारने का काम अट्ठाईस जून को ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कर दिया था। विपक्षी एकता की बैठक के सिर्फ पांच दिन बाद। भोपाल में प्रधानमंत्री ने कहा कि एक देश में दो कानून कैसे चल सकते हैं। देश की एकता अखंडता के लिए समान नागरिक संहिता जरूरी है। उनके इस बयान से विपक्षी खेमे में खलबली मच गई कि क्या करें। समर्थन करें या विरोध। आम आदमी पार्टी ने पहल की और कहा हम सैद्धांतिक रूप से इसका समर्थन करते हैं। मायावती और उद्धव ठाकरे ने भी समर्थन कर दिया। उम्मीद के मुताबिक डा. फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने कहा कि समान नागरिक संहिता का कानून बना तो तूफान आ जाएगा। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इमरजेंसी बैठक बुलाकर कहा इसका पुरजोर विरोध करेंगे। कांग्रेस पार्टी को सांप सूंघ गया। वह कुछ बोलने की हालत में नहीं है। सोमवार को संसद स्थाई समिति की बैठक से पहले कांग्रेस कोरग्रुप की बैठक हुई पर कोई स्पष्ट राय सामने नहीं आई।

महाराष्ट्र का राजनीतिक भूकंप

इस बीच कुछ और घटनाएं हो गई। केरल में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष दिनकरण को केरल की मार्क्सवादी सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। मार्क्सवादियों के मुद्दे पर ही ममता बनर्जी बंगाल में कांग्रेस से नाराज हैं। पर सबसे बड़ा राजनीतिक भूकंप आया महाराष्ट्र में। भारतीय राजनीति के चाणक्य के रूप में अपनी छवि बनाने वाले शरद पवार अपनी ही पार्टी नहीं बचा पाए। भतीजे अजित पवार ने न केवल पार्टी तोड़ दी, बल्कि पूरी पार्टी पर दावा कर रहे हैं। अजित को तो रोक नहीं पाए पर भाजपा को उसकी हैसियत बताने का दावा कर रहे हैं शरद पवार। बात केवल अजित पवार तक सीमित नहीं है। उनके सबसे विश्वस्त माने जाने वाले प्रफुल्ल पटेल, छगन भुजबल, दिलीप वल्से पाटिल, सुनील तटकरे समेत तमाम नेता भी उन्हें छोड़कर चले गए। तो विपक्षी एकता का एक और खम्भा गिर गया।

यूपी-बिहार तक असर

इस राजनीतिक भूकंप का एपीसेन्टर तो महाराष्ट्र था पर इसके झटके पूरे देश में सुनाई दिए, खासतौर से बिहार में। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार डरे हुए हैं कि उनकी पार्टी का हश्र भी एनसीपी जैसा न हो जाय। वे अपने सांसदों, विधायकों से एक एक करके मिल रहे हैं। जनता दल यूनाइटेड के टूटने का आधार तो काफी समय से बना हुआ है। नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित करके समस्या को और बढ़ा लिया। जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय जनता दल में विलय की चर्चाओं से नीतीश की पार्टी के विधायकों, सांसदों की बेचैनी बढ़ती जा रही है। संकट में राष्ट्रीय जनता दल भी है। तेजस्वी यादव के खिलाफ सीबीआई ने चार्जशीट फाइल कर दी है। किसी को पता नहीं है कि तेजस्वी बंगलुरु में रहेंगे या जेल में। जेल तो जाना ही पड़ेगा। आरोप लगने पर इस्तीफा मांगने वाले नीतीश कुमार अब चार्जशीट दाखिल होने के बाद क्या बोलेंगे। वैसे हल्के फुल्के झटके तो समाजवादी पार्टी में भी महसूस किए जा रहे हैं। सपा में टूट का कोई खतरा तो नहीं दिख रहा लेकिन बेचैनी तो है।

बैठक विपक्ष की, एजेंडा तय कर रही भाजपा

छत्तीसगढ़ में टीएस सिंह देव को मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ का दुर्ग सुरक्षित कर लिया है। उन्हें छत्तीसगढ़ का ज्योतिरादित्य सिंधिया नहीं बनने दिया। पर बात छत्तीसगढ़ की नहीं है। असली मुद्दा यह है कि कांग्रेस को कर्नाटक विधानसभा चुनाव की जीत से जो संजीवनी मिली थी वह भाजपा के आक्रामक रवैए से हवा में उड़ गई है। कांग्रेस को समझ में  नहीं आ रहा है कि इस स्थिति का मुकाबला कैसे करें। समान नागरिक संहिता बनाने की बात संविधान के अनुच्छेद 44 में की गई है। सुप्रीम कोर्ट कई बार कह चुका है कि सरकार को समान नागरिक संहिता पर कानून बनाना चाहिए। ऐसे में विरोध करें तो मुश्किल और समर्थन करना और कठिन।
अब 17-18 जुलाई को बंगलुरु में होने वाली बैठक का एजेंडा ही डीरेल हो गया है। या यों कहें कि एजेंडा विपक्ष की बजाय भाजपा तय कर रही है। ऐसा हो नहीं सकता कि बैठक में समान नागरिक संहिता, महाराष्ट्र में एनसीपी की टूट और तेजस्वी पर मंडरा रहे खतरे के बारे में बात न हो। अभी आम आदमी पार्टी का मसला तो हल हुआ ही नहीं है। किसी को पता नहीं है कि केजरीवाल बैठक में जाऐँगे या नहीं। ऐसे में सीट बंटवारे की बात कौन और कैसे करेगा। समस्या यह है कि घाव पर मरहम लगाएं या युद्ध में उतरें।
(आलेख ‘दैनिक जागरण’ से साभार। लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ न्यूज पोर्टल एवं यूट्यूब चैनल के संपादक हैं)