2014 से सबके मन में था कि आखिर सरकार PFI पर बैन क्यों नहीं लगा रही

#pradepsinghप्रदीप सिंह।

केंद्र सरकार ने पीएफआई यानी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर 5 साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया है। 2014 से बहुत से लोग यह सवाल पूछ रहे थे और सबके मन में था कि आखिर केंद्र सरकार पीएफआई पर बैन क्यों नहीं लगा रही है? यह संगठन आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त है, आतंकवाद की, हथियार चलाने की, बम बनाने की ट्रेनिंग देता है, यह गजवा-ए-हिंद की बात करता है। इस संगठन के लोगों का संबंध आईएसएस से, पाकिस्तान की इंटेलिजेंस एजेंसी आईएसआई से है। देश में जितने भी दंगे और सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने का काम हो रहा है उन सबके पीछे यह संगठन मौजूद है। इस्लाम के नाम पर जो हत्याएं हो रही हैं उसके पीछे यह संगठन है, इसके बावजूद प्रतिबंध क्यों नहीं लग रहा है- ये सवाल बार-बार पूछे जाते थे।

पहले जरा पीएफआई पर हुई छापेमारी और उनके नेताओं की गिरफ्तारी के बारे में बता देता हूं कि यह ऑपरेशन कैसे- किस पैमाने पर हुआ। इस ऑपरेशन की तैयारी छह महीने से ज्यादा समय से चल रही थी, किसी को कानों-कान हवा नहीं लगी। ऑपरेशन के पहले चरण में 20 राज्यों में 90 जगहों पर छापे पड़े और पीएफआई के 100 नेताओं की गिरफ्तारी हुई। छापे से पहले जांच एजेंसियों को पता था कि पीएफआई का कौन सा नेता कहां ठहरा हुआ है। अगर वह ट्रेन में सफर कर रहा है तो ट्रेन की किस बोगी में, किस बर्थ पर है- यह बात भी उन्हें पता थी। ऑपरेशन शुरू हुआ सुबह 3 बजे। पीएफआई के जो नेता पकड़े गए उन्हें बिस्तर से उठाकर सीधे पुलिस वैन में ले जाया गया। पीएफआई के कार्यकर्ताओं को जब तक इसका पता चलता तब तक वे कस्टडी में जा चुके थे। 20 राज्यों की सरकारों से तालमेल कर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत कुमार डोभाल ने इस ऑपरेशन को अंजाम दिया। जाहिर है कि इन सबमें प्रधानमंत्री की मंजूरी, उनकी योजना यह सब शामिल है यह कहने की जरूरत नहीं है क्योंकि नेतृत्व तो प्रधानमंत्री का ही है। लेकिन इन दोनों लोगों ने जो काम किया वह तारीफ के काबिल है। भारत में इस तरह का ऑपरेशन इससे पहले कभी नहीं हुआ।

सहयोगी संगठनों पर भी प्रतिबंध

बड़े पैमाने पर पीएफआई नेताओं की गिरफ्तारी के बाद संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया गया। प्रतिबंध लगाने के साथ ही गृह मंत्रालय ने देश भर के सारे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के जिलाधिकारियों से पीएफआई नेताओं की अचल संपत्ति की सूची बनाने को कहा है। बहुत जल्दी ही बाबा का बुलडोजर चलने वाला है, इंतजार कीजिए। इसके अलावा पीएफआई के जो सहयोगी संगठन हैं उन पर भी प्रतिबंध लगाया गया है। ये हैं रिहैब इंडिया फाउंडेशन, ऑल इंडिया इमाम्स काउंसिल, नेशनल कन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स, नेशनल वुमेन्स फ्रंट, जूनियर फ्रंट और एम्पावर इंडिया फाउंडेशन। अब बहुत से लोगों के मन में यह सवाल उठेगा कि 5 साल के लिए प्रतिबंध लगाने का क्या मतलब है- आजीवन क्यों नहीं लगाया। उन्हें यह पता होना चाहिए कि UAPA  (गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम) के तहत किसी भी संगठन पर इससे ज्यादा प्रतिबंध नहीं लगा सकते। अब सवाल यह भी है कि प्रतिबंध पहले क्यों नहीं लगा, क्योंकि प्रतिबंध लगाने के बाद अदालत में जाना होगा और तय मानिए कि बिना पूरी तैयारी के प्रतिबंध लगाने के बाद वह सुप्रीम कोर्ट से खारिज हो जाता और वे हंसते हुए बाहर निकलते। पूरा लेफ्ट-लिबरल इको सिस्टम मोदी सरकार पर टूट पड़ता कि यह मुसलमानों के खिलाफ एक्शन था, हिंदू-मुसलमानों को बांटने की कार्रवाई थी, देश में सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने और चुनाव जीतने के लिए एक्शन था। इस तरह के तमाम आरोप लगते।

सबूत जुटा कर हुई कार्रवाई

सरकार ने प्रतिबंध लगाने से पहले इनके बारे में सबूत इकट्ठा किए, लगातार इनकी गतिविधियों पर नजर रखी और उसके बाद छापा डाला गया। छापे में जो दस्तावेज मिले हैं उसके आधार पर दुनिया की कोई भी अदालत उन पर प्रतिबंध लगाने के फैसले पर रोक नहीं लगा सकती है। यह प्रतिबंध सुप्रीम कोर्ट से किसी भी हालत में रद्द नहीं हो सकता है। इस एक्शन से पहले पिछले एक-डेढ़ महीने से सोशल मीडिया पर इस तरह की खबरें चल रही थीं कि अजीत कुमार डोभाल रिटायर होने वाले हैं, उनकी तबीयत ठीक नहीं है, उनकी उम्र हो गई है, उनकी जगह नया राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार आने वाला है। यह सब दुश्मनों को झांसा देने के लिए था। दुश्मनों को अंधेरे में रखने के लिए था कि अब तो वे कुछ कर नहीं सकते हैं। उनसे बड़ा फील्ड इंटेलिजेंस ऑफिसर शायद इस देश में कोई नहीं हुआ। वे इस सरकार की सबसे बड़ी थाती हैं। अगर आप कानून व्यवस्था की बात करें, आतंकवाद, खासतौर से आंतरिक सुरक्षा की बात करें तो उनकी रणनीति देखिए कि किस तरह से झांसे में रखा। पहले दौर की जो छापेमारी और गिरफ्तारियां हुई उसके बाद दो-तीन दिन का विराम लिया गया ताकि बाकी बचे लोगों को लगे कि अब छापेमारी हो चुकी है, अब इसके बाद कुछ नहीं होगा। फिर से छापेमारी हो गई। दो दौरमें करीब 300 गिरफ्तारियां हुई हैं और इन लोगों के खिलाफ 1300 एफआईआर दर्ज की जा चुकी हैं। अब सभी को अदालत में पेश किया जाएगा।

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सिर्फ 45 मिनट में हुआ पूरा ऑपरेशन

पहले दौर का ऑपरेशन सिर्फ 45 मिनट में पूरा किया गया था। अब आप देखिए कि 20 राज्यों से तालमेल कर कितनी चुस्ती, मुस्तैदी और कितनी बारीकी से पूरा ऑपरेशन किया गया। इतना बड़ा ऑपरेशन देश भर के पैमाने पर इससे पहले कभी नहीं हुआ। वह भी तब जब आपस में राजनीतिक पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ लड़ रही हों, राज्य सरकारें केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। 20 राज्यों की सरकारों से तालमेल करके और पूरी गोपनीयता को बरकरार रखते हुए यह ऑपरेशन करना कोई मामूली बात नहीं थी। बिना मोदी के यह मुमकिन नहीं था। किसी और के समय में यह हो नहीं सकता था। इसके बाद देखिएगा कि पाकिस्तान, सीरिया, तुर्किए में विलाप शुरू होगा। भारत में पीएफआई का बचाव करने की कोशिश शुरू हो चुकी है। सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने प्रतिबंध लगने के बाद कहा कि आरएसएसपर भी तीन बार प्रतिबंध लग चुका है, क्या हुआ। इसका मतलब यह है कि वे कहना चाहते हैं कि आप प्रतिबंध लगाकर कुछ नहीं कर सकते। ये ओवरग्राउंड सपोर्टर हैं पीएफआई के। मेरा मानना है कि सरकार को नया कानून बनाना चाहिए जिसमें आतंकवाद के समर्थकों को भी आतंकवादी घोषित किया जाना चाहिए। उनके खिलाफ उन्हीं धाराओं में कार्रवाई होनी चाहिए। जितने विपक्षी दल हैं वे या तो चुप हैं या परोक्ष रूप से पीएफआई का समर्थन करने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि पीएफआई पर प्रतिबंध का समर्थन आश्चर्यजनक रूप से कई मुस्लिम संगठन कर रहे हैं क्योंकि उन संगठनों को अपने अस्तित्व पर खतरा नजर आ रहा था। वे इसलिए समर्थन नहीं कर रहे हैं कि वे पीएफआई को बुरा मानते हैं बल्कि उनको खुशी इस बात से हुई है कि उनका अस्तित्व बच जाएगा। पीएफआई शक्तिशाली हो जाता तो वे कमजोर हो जाते। उनकी कोई प्रासंगिकता नहीं रह जाती। इसलिए ये समर्थन कर रहे हैं- आप किसी गलतफहमी में मत पड़िएगा।

फर्क साफ है

दूसरी बात, यूपीए सरकार और बीजेपी सरकार का- या यूं कहें कि मनमोहन सिंह, सोनिया सरकार और नरेंद्र मोदी सरकार में- फर्क साफ है। बुनियादी फर्क यह कि उस समय सरकार को पता नहीं होता था कि आतंकवादी क्या कर रहे हैं। मुंबई जैसा हमला हो गया और उससे पहले की भी बात करूंगा अटल बिहारी वाजपेई की सरकार के समय में संसद पर हमला हो गया, कंधार घटना हो गई। यूपीए सरकार के समय में तो एक समय हर महीने कहीं न कहीं बम ब्लास्ट हो जाता था। यह नया नॉर्मल (सामान्य बात) हो गया था, खासतौर से हिंदू त्योहारों पर। लोग यह मानकर चलते थे हिंदू त्योहार आ रहा है तो किसी न किसी शहर में बम ब्लास्ट होगा। यूपीए सरकार के समय में सरकार को और एजेंसियों को पता नहीं होता था कि आतंकवादी क्या सोच रहे हैं। आज यह स्थिति है कि मोदी सरकार में आतंकवादियों को पता नहीं होता है कि सरकार क्या सोच रही है- क्या कर रही है। इतना बड़ा ऑपरेशन और उसकी भनक किसी को न लगे यह कोई सामान्य बात नहीं है। हम लोगों को लगता है कि यह सामान्य बात है क्योंकि हम लोग बहुत जल्दी किसी चीज का सामान्यीकरण कर देते हैं। जम्मू कश्मीर से अंजुच्छेद 370, 35ए हट गया तो हमने मान लिया कि हां यह हो गया, एक काम था। ऐसे कहा जा रहा था जैसे कोई बड़ी बात न हो। अयोध्या में भव्य राम मंदिर बन रहा है तो उसको भी हमने सामान्य मान लिया कि हां हो गया, इसमें कौन सी बड़ी बात है। जो भी बड़ा काम हो रहा है उसको हम इतनी आसानी से पचा ले रहे हैं जैसे यह कोई बड़ी बात न हो, बड़ी उपलब्धि न हो। ठीक है हो गया, सरकार को करना ही चाहिए था और सरकार है किसलिए। फिर यह ताना दिया जाता है कि आपको 303 सीटें किसलिए दी थी। 303 सीटें देने के बाद आपको धैर्य रखने की भी जरूरत है। अगर इस सरकार को समझना है- अगर मोदी की कार्यशैली को समझना है- तो धैर्य रखिए। आपके पास धैर्य नहीं है तो मोदी का समर्थन मत कीजिए। ये जो अधीर लोग हैं वे सबसे बड़े मोदी विरोधी हैं। मोदी देश के लिए जो कर रहे हैं उसमें ये सबसे बड़ा नुकसान पहुंचाते हैं।

PFI समर्थकों को पहचानिए

अब एक मुद्दा और उठेगा कि पीएफआई के पॉलिटिकल विंग एसडीपीआई को प्रतिबंधित क्यों नहीं किया गया। एसडीपीआई एक राजनीतिक पार्टी के रूप में रजिस्टर्ड है। उस पर एक्शन चुनाव आयोग ले सकता है। वह लेगा या नहीं लेगा या कब लेगा यह बाद की बात है। उस पर गृह मंत्रालय या भारत सरकार एक्शन नहीं ले सकती। पीएफआई पर प्रतिबंध उन लोगों का मुंह बंद कराने के लिए है जो कह रहे थे कि पीएफआई के बारे में इतनी बातें बोलते हो कि आतंकवादी संगठन है, देश का विभाजन, इस्लामीकरण कराना चाहता है, 2047 तक यहां गजवा-ए-हिंद लाना चाहता है तो आप इस पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाते। यह आपके हाथ में है, आपकी सरकार है आप प्रतिबंध लगाइए, तो देखिए कि हो गया प्रतिबंधित। अब आप उन लोगों पर नजर रखिए जो पीएफआई का परोक्ष रूप से समर्थन कर रहे हैं- सीधा समर्थन करने की हिम्मत किसी की है नहीं है। शिवानंद तिवारी जैसे बददिमाग लोग हों तो यह अलग बात है, जो कह सकते हैं कि पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगना सामान्य बात है। उनके लिए पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगना सामान्य बात है तो देश का इस्लामीकरण होना भी सामान्य बात होगी। जो देश के बारे में नहीं सोचता है, जो देश की एकता-अखंडता के बारे में नहीं सोचता है, देश के प्रति जिसकी निष्ठा नहीं है वह इस तरह के बयान दे सकता है। जो इस देश का विभाजन चाहता है, बुरा चाहता है वह पीएफआई का समर्थन कर सकता है।

ऐसे लोगों को पहचानिए और सबसे ज्यादा ऐसे सनातनी को पहचानिए जो पीएफआई का समर्थन कर रहे हैं। आपके पास जो ताकत है हां और ना बोलने की, वोट की- उसका इस्तेमाल कीजिए। आपके पास जनादेश देने की ताकत है उसको पहचानिए, उसका इस्तेमाल कीजिए। इससे उनको ताकत मिलेगी जो एक्शन ले रहे हैं। उनको यह महसूस होना चाहिए कि देश के हित में, देश की एकता और अखंडता को बचाने के लिए देश के लोग उनके साथ खड़े हैं।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अख़बार’ न्यूज़ पोर्टल और यूट्यूब चैनल के संपादक हैं)