के. विक्रम राव।
गत सप्ताह तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद के नगर महापालिका चुनाव में अभियान के दौरान भाजपा नेता योगी आदित्यनाथ ने जनता को आश्वस्त किया था कि हैदराबाद का प्राचीन नाम भाग्यनगर वापस रखा जायेगा। जैसा इलाहाबाद का प्रयागराज तथा फैजाबाद का अयोध्या। योगीजी की इस ऐतिहासिक घोषणा पर ऐतराज नहीं होना चाहिए। शहर का नाम भाग्यनगर रखा था सुल्तान कुली कुतुबशाह ने। अपनी प्रेयसी नृत्यांगना भागमती पर। उन्होंने 1589 में इसे स्थापित किया था। बाद में इसे उनके पुत्र हैदर ने अपने नाम कर दिया था। अत: नवनिर्वाचित महानगर पालिका में यदि बहुमत पाकर भाजपा भाग्यनगर नाम फिर रखती है तो इस्लामी सुल्तान की हिन्दू मलिका का सम्मान ही करेगी।

शहर अलबेला

आज भले ही हैदराबाद इस्लामी कट्टरता का पर्याय बन गया हो, पर एक दौर में यह शहर अलबेला था। यह एक रिझावना, रंगरूप का चमन रहा, जिसमें नफीस लखनऊ की जवानी है, तवारीखी दिल्ली की रवानी भी। देश का पांच नंबर वाला यह शहर कैसे बना, यह एक रूमानी दास्तां है। उर्दू और तेलुगु के माने हुए कवि नवाबजादा मोहम्मद कुली कुतुबशाह का तैलंग तरुणी भाग्यवती बाला  से इश्क हो गया था। मूसा नदी को घोड़े से पार कर वे अपनी महबूबा से मिलने जाते थे। रियासती गद्दी पर नवाब साहब के आते ही भाग्यमती हैदरमहल बनी। प्रेम की निशानी में नए शहर का नाम भाग्यनगर, बाद में हैदराबाद रखा गया। चार मीनारवाले इस स्थान को इतिहासकार फरिश्ता ने ”हिंदुस्तान का सुंदरतम नगर” कहा था।
तुलना में जहां मुंबई और कोलकत्ता फीके लगते हैं, हैदराबाद इस प्रदेश का नखलिस्तान है। पड़ोस से सटे सिकंदराबाद के साथ यह जुड़वां शहर एक मिसाल है। दोनों शहरों में फासला रहा नहीं, फिर भी दो विश्वविद्यालय, दो भाषाएं, दो संप्रदाय और दो औषधि प्रणालियां हैं। लिबास भी भिन्न है। एक में रंगीन अचकन और पायजामा है तो दूसरे में धोती व कुर्ता।

पहला भाषावार राज्य

इस प्रथम भाषावार राज्य ने भाषा को वैमनस्य का कारण कभी नहीं बनाया। प्रथम आंध्र विधानसभा में छह भाषाएं मान्य थीं: उर्दू, हिंदी, मराठी, कन्नड, अंग्रेजी और तेलुगु इनके अलावा तमिल, मलयालम, पंजाबी, फारसी और तुर्की भी बोली जाती है। कई दफा मराठी साहित्य सम्मेलन हैदराबाद में सम्पन्न हुये।

दुर्भाग्य की शुरुआत

मुस्लिम आक्रमण के बाद निजामशाही यहां स्थापित हुई और तभी से तेलंगाना का दुर्भाग्य शुरू हुआ। अय्याश और धर्मांध निजाम ने आमजन के शोषण से वैभवपूर्ण साम्राज्य रचा, जिसने भारत के स्वतंत्र होते ही पाकिस्तान में विलय का निर्णय किया। गनीमत थी कि सरदार वल्लभभाई पटेल ने भारतीय सेना की टुकड़ी भेजकर रजाकार नेता काजिम रिजवी की साजिश को खत्म किया और बूढ़े निजाम मीर उस्मान अली खान से (जो अपने को रुस्तमे-दौरां, अरस्तु जमां और फतेह-जंग कहता था) आत्मसमर्पण करवाया। जवाहरलाल नेहरू ने इस पाकिस्तान सर्मथक निजाम को हैदराबाद (तेलंगाना) का प्रथम राजप्रमुख मनोनीत कर दिया था।

तेलंगाना की उपेक्षा

निजामशाही के मराठीभाषी और तेलुगुभाषी भूभागों पर नजर डाले। विलय के पूर्व मराठवाड़ा और तेलंगाना निजाम के शासन में थे। महाराष्ट्र सरकार ने मराठवाड़ा का विकास करवाया, लेकिन सीमा से सटे तेलंगाना की आंध्र प्रदेश शासन द्वारा वर्षों से की गई उपेक्षा स्पष्ट दिखती है। असंतोष ने जनाक्रोश का रूप, जब आंध्र प्रदेश की सत्तारूढ़ तेलुगु देशम् पार्टी के विधायक और विधानसभा के उपाध्यक्ष के. चंद्रशेखर राव ने पद त्यागकर तेलंगाना राष्ट्र समिति को संगठित किया है। (तेलुगु में राष्ट्र का अर्थ प्रदेश है)। करीमनगर में एक विशाल जनसभा में पृथक् तेलंगाना राज्य की मांग के समर्थन में संघर्ष का बिगुल बजाया गया। मंदिरों, गुरुद्वारों और गिरजाघरों में चंद्रशेखर राव ने उपासना करवाई। आंदोलन के समर्थकों ने घर की मुंडेर पर दीप प्रज्वलित कर आंदोलन को नया आयाम दे डाला। मजलिसे इत्तिहादे मुसलमीन ने पृथक् तेलंगाना का समर्थन नहीं किया था। चंद्रशेखर राव ने हैदराबाद की मक्का मस्जिद में जनसभा के आयोजन का प्रयास किया कि तेलंगाना के बत्तीस प्रतिशत मुसलमान इस आंदोलन का समर्थन करें।
परिदृश्य तेलंगाना का है। भाषा के आधार पर गठित भारत के प्रथम राज्य आंध्र प्रदेश को उसी की भाषा बोलने वालों ने विभाजन के कगार पर धकेल दिया। आंध्र के लोगों की भाषा तेलुगु से तेलंगाना नाम निकला है। उसे बोलने वाले लोगों को दो राज्यों (तेलंगाना तथा तटवर्ती आंध्र) में विभाजित कर भाषायी प्रदेश की अस्मिता, आधार तथा औचित्य को समाप्त कर दिया गया। इसी कारण से हैदराबाद भी महानगर से केवल एक नगरी बनती जा रही है। ऐतिहासिक त्रासदी होगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। लेख उनकी फेसबुक वॉल से साभार)