राम जी तिवारी।
भविष्य के ईंधन के रूप में हाइड्रोजन अभूतपूर्व गति से स्वच्छ और सुरक्षित ऊर्जा विकल्प के तौर पर स्थापित होने की ओर अग्रसर है। हाइड्रोजन एक बहुमुखी ऊर्जा वाहक है, जो विभिन्न महत्वपूर्ण ऊर्जा चुनौतियों से निपटने में मदद कर सकता है। हाइड्रोजन का उत्पादन लगभग सभी ऊर्जा संसाधनों से किया जा सकता है, हालांकि आज तेल शोधन और रासायनिक उत्पादन में हाइड्रोजन का उपयोग ज्यादातर जीवाश्म ईंधन से किया जाता है, जिसमें CO2 उत्सर्जन होता है। ऐसे में कम कार्बन उत्सर्जन से हाइड्रोजन के उत्पादन की दिशा में भारत सहित समूचा विश्व प्रयासरत है।
जब देश की राजधानी दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी में शुमार हो और पूरा उत्तर भारत वायु प्रदूषण की चपेट में हो तो यह गंभीर चिंता का विषय है। विशेषकर दिल्ली-एनसीआर। ऐसे में महनगरों में प्रदूषण को कम करने के लिए समाधान के रूप में हाइड्रोजन आधारित ईंधन तकनीक का विकास करना प्राथमिक लक्ष्य होना चाहिए। वाहनों के लिए अब पेट्रोल के बजाय हाइड्रोजन आधारित जापानी तकनीक को अपनाना चाहिए। हाइड्रोजन शहरों में वायु गुणवत्ता और ऊर्जा सुरक्षा में सुधार करने में भी मदद कर सकता है। हाइड्रोजन बिजली व्यवस्था में परिवर्तनीय नवीकरणीय ऊर्जा के एकीकरण का भी समर्थन करता है।
हाइड्रोजन एक स्वच्छ ईंधन है, जो ईंधन सेल में खपत होने पर केवल पानी पैदा करता है। इसका उत्पादन विभिन्न प्रकार के घरेलू संसाधनों से किया जा सकता है, जैसे प्राकृतिक गैस, परमाणु ऊर्जा, बायोमास, सौर और पवन जैसी अक्षय ऊर्जा। हाइड्रोजन हल्का, भंडारण योग्य, ऊर्जा-सघन है, और प्रदूषकों या ग्रीनहाउस गैसों का कोई प्रत्यक्ष उत्सर्जन नहीं करता है। लेकिन हाइड्रोजन के लिए स्वच्छ ऊर्जा में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए, इसे उन क्षेत्रों में अपनाया जाना चाहिए जहां यह लगभग पूरी तरह से अनुपस्थित है, जैसे परिवहन, भवन और बिजली उत्पादन।
हाइड्रोजन स्वच्छ, सुरक्षित और किफायती ऊर्जा भविष्य प्राप्त करने में किस प्रकार जीवाश्म ईंधन को विस्थापित करने में मदद कर सकता है; इस पर वैश्विक शोध, सहयोग और दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत है। पिछले कुछ वर्षों में, वैश्विक स्तर पर सरकारों द्वारा हाइड्रोजन ऊर्जा अनुसंधान, विकास पर वैश्विक खर्च में वृद्धि हुई है, हालांकि यह ऊंट के मुंह में जीरा है।
हाइड्रोजन को जीवाश्म ईंधन और बायोमास, पानी से, या दोनों के मिश्रण से निकाला जा सकता है। प्राकृतिक गैस वर्तमान में हाइड्रोजन उत्पादन का प्राथमिक स्रोत है, जो लगभग 70 मिलियन टन के वार्षिक वैश्विक समर्पित हाइड्रोजन उत्पादन के लगभग तीन चौथाई के लिए जिम्मेदार है। यह वैश्विक प्राकृतिक गैस के उपयोग का लगभग 6 फीसदी है। प्राकृतिक गैस से हाइड्रोजन की उत्पादन लागत कई तकनीकी और आर्थिक कारकों से प्रभावित होती है, जिसमें गैस की कीमतें और पूंजीगत व्यय दो सबसे महत्वपूर्ण हैं।
ईंधन का सबसे महत्वपूर्ण घटक उसकी लागत है, जो उत्पादन लागत का 45 फीसदी से 75 फीसदी के बीच होती है। मध्य पूर्व, रूस और उत्तरी अमेरिका में कम गैस की कीमतें हाइड्रोजन उत्पादन को प्रोत्साहित करती हैं। जापान, कोरिया, चीन और भारत जैसे गैस आयातकों को उच्च कीमतों के साथ संघर्ष करना पड़ता है, इससे हाइड्रोजन के उत्पादन की लागत बढ़ जाती है।
वैश्विक ऊर्जा प्रणाली को कार्बन मुक्त करने के प्रमुख स्तंभ, ऊर्जा दक्षता, परिवर्तन, विद्युतीकरण, नवीकरणीय ऊर्जा, हाइड्रोजन एवं हाइड्रोजन आधारित तकनीकि में अथाह संभावनाएं हैं। शुद्ध शून्य उत्सर्जन परिदृश्य में हाइड्रोजन प्रदूषकों के उत्सर्जन में कमी लाने में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। हाइड्रोजन की मांग में वृद्धि और इसके उत्पादन के लिए स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को अपनाने से हाइड्रोजन आधारित तकनीकि से 2050 तक शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।
हाइड्रोजन पृथ्वी पर केवल मिश्रित अवस्था में पाया जाता है। इसलिए उत्पादन इसके यौगिकों के अपघटन से होता है। इस विधि में ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है। विश्व में करीब 96 फीसदी हाइड्रोजन का उत्पाटन हाइड्रोकार्बन के प्रयोग से हो रहा है। केवल चार फीसदी हाइड्रोजन का उत्पादन जल के विद्युत अपघटन के जरिये होता है। तेल शोधक संयंत्र एवं उर्वरक संयंत्र दो बड़े क्षेत्र हैं जो भारत में हाइड्रोजन के उत्पादक तथा उपभोक्ता हैं। हाइड्रोजन का उत्पादन सामान्यतया तीन विधि से होता है। तापीय, विद्युत अपघटन और प्रकाश अपघटन विधि है।
हाइड्रोजन ईंधन के मामले में कई अच्छाइयों के साथ चुनीतियां भी जुड़ी हैं। क्योंकि हाइड्रोजन स्वतंत्र रूप में नहीं पाया जाता है। इसलिए इसके निर्माण कि विभिन्न विधि में बिजली की आवश्यकता होती है। इसके अलावा बहुत कम ऊर्जा घनत्व के चलते हाइड्रोजन को पर्याप्त मात्रा में स्टोर करने के लिए बड़ी जगह की आवश्यकता होती है। साथ ही हाइड्रोजन एक रंगहीन-गंधहीन गैस है ऐसे में सुरक्षा की दृष्टि से गैस रिसाव पता लगाने के लिए विशेष उपकरणों की आवश्यकता पड़ेगी। इससे भी लागत में बढ़ोतरी होगी।
पिछले साल 15 अगस्त को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पर्यावरण सुरक्षा की दिशा में ग्रीन हाइड्रोडन के क्षेत्र के लक्ष्य प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन की घोषणा की। उन्होंने कहा कि भारत को हरित हाइड्रोजन के उत्पादन और निर्यात के लिए एक वैश्विक केंद्र बनाना है। ये उर्जा के क्षेत्र में भारत की एक नई प्रगति को आत्मनिर्भर बनाएगा और पूरे विश्व में स्वच्छ ऊर्जा ट्रांसमिशन की नई प्रेरणा भी बनेगा। हालांकि, घोषित लक्ष्य, घरेलू आवश्यकताओं और नियोजित क्षमताओं को देखते हुए, साल 2030 तक हरित हाइड्रोजन का प्रमुख निर्यातक बनना संभव नहीं होगा।
बहरहाल, भारत की हरित हाइड्रोजन महत्वाकांक्षा पर संशय के बादल हैं। देश की योजना 2030 तक प्रति वर्ष 50 लाख टन हरित हाइड्रोजन का निर्माण करने की है। यह यूरोपीय संघ के 2030 के 10 मिलियन टन के लक्ष्य का आधा होगा। वहीं भारत के ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने कहा है कि भारत को कम से कम 10 गीगावॉट इलेक्ट्रोलाइजर क्षमता की आवश्यकता होगी।
वैश्विक परिदृश्य की बात करें तो यूरोपियन यूनियन ने 2030 तक 40 गीगावाट हाइड्रोजन इलेक्ट्रोलाइज़र क्षमता के लिए प्रतिबद्ध है। स्पेन, जर्मनी और फ्रांस ने 2030 तक क्रमशः 4 , 5 और 6.5 40 गीगावाट ग्रीन हाइड्रोजन स्थापित करने की अपनी प्रतिबद्धता की घोषणा की है। आंकड़ों से पता चलता है, अलग-अलग देशों में, केवल चिली ने अब तक भारत को पछाड़ दिया है, 2030 तक 25 गीगावाट इलेक्ट्रोलिसिस लक्ष्य रखने की योजना है। जाहिर है, भारत ने यूरोपीय देशों की तुलना में अपने कड़े लक्ष्य निर्धारित किए हैं। ऐसे में सरकारी और प्राइवेट सेक्टर को अनवरत प्रयास से लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। (एएमएपी)