युवक के प्रश्न का श्री श्री रविशंकर ने दिया ये जवाब।
अजय विद्युत।
अभी हाल की बात है। आर्ट ऑफ़ लिविंग के संस्थापक और विश्व प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर के एक सत्संग के बाद प्रश्न-उत्तर सेशन चल रहा था। प्रायः गुरुदेव के सत्संग में कुछ भजनों का दौर होता है। फिर गुरुदेव कुछ रोजाना काम में आने वाले विषयों पर और अध्यात्म पर चर्चा करते हैं। और उसी दौरान ऑडियंस के कुछ प्रश्नों के उत्तर भी देते हैं। या आप कह सकते हैं कि अपने अनुयायियों और वहां उपस्थित लोगों की जिज्ञासाओं का समाधान सुझाते हैं।
एक युवक उठकर पूछता है, “गुरु जी, जो प्रारब्ध में लिखा है अगर वही मिलना है, तो 24 घंटे में कितनी मेहनत करनी चाहिए?

श्रीश्री मुस्कुराते हुए उस युवक को देखते हैं। फिर उसी प्रसन्न मुद्रा में कहते हैं, “देखो, तुम्हें किसने कहा कि प्रारब्ध में जो लिखा है वही मिलना चाहिए। आखिर पुरुषार्थ का भी तो अपना कुछ काम है। मैंने इस बारे में कई बार बताया, तुमने नॉलेज शीट नहीं पढ़ी है क्या…? दिख रहा है…। सबसे पहले नॉलेज शीट मैंने इसी पर कहा था। (‘नॉलेज शीट’ में गुरुदेव के ज्ञान के पत्रों को पुस्तक रूप में संजोया गया है। इसमें वे तमाम समस्याओं, स्थितियों और भावों का विश्लेषण कर समाधान बताते हैं।)
गुरुदेव कहते हैं, “देखो, जैसे हम सूजी का हलवा बनाते हैं और हलवा बनाते वक्त मीठा अगर कम हो जाए… तो क्या करोगे? चीनी डालते हो। और अगर ज्यादा मीठा हो गया हो तो…? तो फिर थोड़ी सूजी डालोगे। घी कम हो, तो घी डालोगे।”
प्रश्न पूछनेवाले से ही श्री श्री सवाल करते हैं “…लेकिन एक बार जब सूजी पक जाती है, तो उसको फिर उल्टा कर सकते हो क्या?”

“नहीं कर सकते”, गुरुदेव बताते हैं, “ऐसे ही जीवन में कुछ कर्म हैं जिनको हम बदल सकते हैं। मीठा कम हो तो और ज्यादा डाल सकते हो, घी कम हो तो और घी डालो- यह सब पुरुषार्थ है। पर, एक बार जो सूजी पक गई, उसको तुम वापस ला सकते हो क्या? अच्छा यह भी छोड़ो। हलवा तो तुमने कभी बनाया नहीं होगा।”
उस युवक से गुरुदेव पूछते हैं, “अच्छा तुम्हारा हाइट (कद) कितना है?” वह युवक उत्तर में कहता है, “छह फुट चार इंच ।” फिर पूछते हैं ,”और… तुम्हारा वेट (वजन) कितना है? युवक का जवाब, “83 किलो है।”
गुरुजी मुस्कुराते हैं, “तुम्हारा वजन 83 किलोग्राम है। अब तुम अपनी हाइट को बढ़ा सकते हो क्या?
युवक कुछ देर के लिए असमंजस में पड़ जाता है, “पक्का… नहीं।”
श्री श्री- “क्या तुम्हारी हाइट बढ़ सकती है? नहीं बढ़ सकती। लेकिन तुम्हारा वेट तुम बढ़ा सकते हो- घटा सकते हो… कि नहीं! क्या यह प्रारब्ध है?” फिर कहते हैं कि “तुम्हारा हाइट तुम्हारा प्रारब्ध है, लेकिन तुम्हारा वेट तुम्हारा प्रारब्ध नहीं है।”

“मान लो किसी आदमी का वजन डेढ़ सौ किलो है और वह कहे कि यह डेढ़ सौ किलो वजन मेरा प्रारब्ध है। वह रोता फिरे कि मैं क्या करूं मैं डेढ़ सौ किलो का हो गया रे। …अरे भाई, ये रोटी, मीठा, मक्खन कम करो। कैसे वजन कम नहीं होता है। मगर हम पांच फुट 4 इंच के हैं और हम कहें कि नहीं जी, हमें सात फुट का होना चाहिए। कितना भी कूदो-फांदो-उछलो… कुछ भी करो- नहीं हो पाएगा। 21 साल के बाद तो जितने चाहे इंजेक्शन लगवा लो तब भी हमारी हाइट तो बढ़ने वाली है नहीं। इसको तो स्वीकार करना ही पड़ेगा। करना पड़ेगा कि नहीं?”
चेहरे पर सदा तैरती एक मीठी सी मुस्कान। वह युवक के साथ ही सभागार में उपस्थित लोगों को इंगित करते हुए कहते हैं, “हां, इस तरह जीवन में कुछ डेस्टिनी (प्रारब्ध) है। बारिश हो रही है- यह डेस्टिनी है। लेकिन भीगना, ना भीगना- यह तुम्हारा पुरुषार्थ है। अरे, छाता लेकर जाओ। क्यों भीगोगे? अरे जी बारिश हो रही है मैं क्या करूं- इससे कुछ नहीं होगा। छाता ले लो भाई। बुद्धि का उपयोग करो।”
संक्षेप में, श्री श्री रविशंकर का संदेश है कि प्रारब्ध (भाग्य) का रोना छोड़कर, अपने पुरुषार्थ पर ध्यान दें, वर्तमान में कर्म करें और ज्ञान के मार्ग पर आगे बढ़ें।



