सावन पर विशेष ।

के. विक्रम राव।

अगर कार्ल मार्क्स ने औघड़, राख रचाये, बाघचर्मधारी, अर्धनग्न, श्मशानवासी अनासक्त वैरागी महादेव की मात्र फोटो देख ली होती तो वे कभी न लिखते कि आस्था या अकीदा आमजन का अफीम है। करोड़ों के परमाराध्य, लोकवल्लभ शिव कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी तो हैं ही, वे अवघड़दानी भी हैं। कनक महामणियों से भूषित शंकर सही मायने में समतावादी है। आज के समाजवादियों से कहीं अधिक वस्तुनिष्ठ और सत्यवादी हैं। हालांकि वे अतुलनीय हैं फिर भी हिन्दूओं के तैतीस कोटि देवताओं के परिप्रेक्ष्य में वे भिन्न व विलक्षण हैं।


परस्पर विरोधी विचार को समरस बनाने में माहिर

Explained: Amarnath Yatra, the Annual Pilgrimage Scrapped Amid COVID-19

मसलन परस्पर विरोधी विचार और कार्य को संग लाने और समरस बनाने में शिव माहिर है। संहारक है, संवारते भी हैं। एक बार वे पार्वती को अमरता का रहस्य बता रहे थे। दो गणों ने सुन लिया। भोलेनाथ रूष्ट हो गये। शाप दे डाला कि विहंगम योनि में जाओ। दोनों कबूतर बनकर अमरनाथ की गुफा में आ गये। आज भी दिखते हैं। कामदेव का किस्सा सर्वविदित है। मगर रति के आंसू से पिघलकर पति को प्रद्युम्न के रूप में शंकर ने नवजीवन दिया। पुष्पों में बसा दिया। सांप आया शरण में गरूड से आतंकित हो कर। उसे गले से चिपटा लिया और जब भी विष्णु मिलने आये तो दिखा दिया कि शरणागत पूर्णतया महफूज है। बाबा भोले इतने कि जिससे खुश हुए तो उसे ऊंचा कर दिया। आशुतोष कहलाते है, शीध्र प्रसन्न हो जाने वाले। भस्मासुर की कहानी याद कीजिए। अगर विष्णु बचाने अवतरित नहीं होते तो बम शंकर हो जाते।

मार्क्सवादी परिभाषा का सर्वहारा और शिव

Ganja song - Vole Baba ganja song Bhole nath - YouTube

अब लौटें उस मार्क्सवादी परिभाषा पर कि शिव क्या सर्वहारा के अधिक प्रिय हैं। गांजा-भांग जिसका आहार हो, भूतप्रेत जिसके संगीसाथी हों, तन ढकने के पर्याप्त परिधान भी न हो। ऐसे व्यक्ति को कौन सरमायेदार कहेगा? राजमहल की जगह श्मशान, सिंहासन के बजाय बैल, सर पर न किरीट, न आभूषण। बस भभूत और सूखी लटे-जटायें। शिव गरीब नवाज है। महात्मा गांधी भी आधी धोती पहनते थे क्योंकि साधारण जन के समीप थे, बाबा भोलेनाथ की भांति। विजयवाड़ा के गांव में 1921 में बापू ने एक किसान को घुटने तक मटमैली, फटी धोती पहने देखा और बस उसी दिन से तय कर लिया था कि जब तक हर भारतीय को तन ढकने का कपड़ा पूरा नहीं मिलेगा गांधीजी भी अधनंगे रहेंगे।

कैलाशपति की अदा

Why Sri Krishna Built Dwarka And Shifted From Mathura To Dwarka? | Hindu Blog

जोड़कर देखिए लीला पुरूषोत्तम द्वारकाधीश वासुदेव श्रीकृष्ण के पीताम्बर को, मर्यादापुरूषोत्तम अवधपति दशरथनन्दन राम के रत्नजटित वस्त्रों को और प्रचण्ड, प्रगल्भ शिव के बाघाम्बर से। बस यही अदा कैलाशपति की है जो मनमोह लेती है। आज के संदर्भ में शिव मेरी राय में समस्त जम्बू द्वीप के एकीकरण के महान शिल्पी है। जब भाषा, मजहब, जाति और भूगोल को कारण बनाकर भारत को सिरफिरे हिन्दू तोड़ रहे हों तो याद कीजिए कैसे सती के शरीर के हिस्सों को स्थापित कर शक्तिपीठों का गठन हुआ तथा समूचा राष्ट्र-राज्य एक सूत्र में पिरोया गया। उधर पूर्वोत्तर में गुवाहाटी की कामाख्या देवी से शुरू करे तो नैमिष  में ललितादेवी और उत्तरी हिमालय तक सारा भूभाग जो प्रदेशों और भाषाओं के नाम से अलग पहचान बनाये है, एक ही भारतीय गणराज्य के भाग हैं। भले ही तमिलभाषी आज उत्तरी श्रीलंका के हमराही लिट्टेवालों से हमदर्दी रखते थे। और हिन्दीभाषियों को दूर का मानते रहे, रामेश्वरम में उपस्थित शिवलिंग इन दो सिरों को जोड़ता है। आज के राजनेता दावा करें, दंभ दिखायें, मगर सत्यता यह है कि अयोध्या के राम ने सागरतट पर शिव को स्थापित कर भारत की सीमायें निर्धारित कर दीं। एक बात की चर्चा हो जाय। रेत का शिवलिंग बनाकर राम ने उसमें प्राण प्रतिष्ठान करने हेतु उस युग के महानतम शिवभक्त, लंकापति दशानन रावण को आमंत्रित किया गया। रावण द्विजश्रेष्ठ था मगर पुत्र मेघनाथ ने पिता को मना किया कि वे शत्रु खेमे में न जायें। प्राणहानि की आशंका है। पर रावण ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय कानून और युद्ध नियमों के अनुसार निहत्थे पर वार नहीं किया जाता है। रामेश्वरम का महज धार्मिक महत्व नहीं है, कूटनीतिक और मनोवैज्ञानिक भी है। छह सदियों पूर्व गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा: “जो रामेश्वर दरसु करिहहिं, ते तनु तजि मम लोक सिधारहि।” इतना बड़ा आकर्षण है कि गंगाजल को रामेश्वरम में अर्पित करे तो मोक्ष मिलेगा। अतः निर्लोभी और विरक्त हिन्दू भी दक्षिण की यात्रा करना चाहेगा। गोस्वामी जी की एक काव्यमय पंक्ति ने राष्ट्रीय एकीकरण और शैव-वैष्णव सामंजस्य में इतना गजब का कार्य कर डाला जिसे न भारत सरकार ने और न तो किसी संगठन ने कभी किया हो।

आदर्श गृहस्थ, एक पत्नीव्रती

How Mata Parvati Found Lord Shiva Her Husband Know Teej Pooja Vidhi - Hartalika Teej: माता पार्वती की इस पूजा के बाद पति के रूप में मिले थे भगवान शिव, आप भी

शिवलिंग से आशय लक्षणों से भी है। शिवालय में जाने-आने की कोई पाबंदी नहीं है जो अन्य मंदिरों में होती है। न छुआछूत, न परहेज और न कोई अवरोध। सब शिवमय है। शिव एक आदर्श गृहस्थ हैं। पार्वती ने कठिन तपस्या से उन्हें पाया और सम्पूर्ण प्यार भी हासिल किया। केवल एक पत्नीव्रती है शिव तथा उनके केवल दो पुत्र है। बड़ा नियोजित, सीमित कुटुम्ब है। अन्य उदाहरण भी हैं। यशोदानन्दन की तीन पत्नियों और राधा तथा हजारों गोपिकायें अलग से सखा थीं। अयोध्यापति ने तो धोबी के प्रलाप के आधार पर ही महारानी को निर्वासित कर दिया था। नारी को सर्वाधिक महत्व शिव ने दिया जब पार्वती को अपने बदन में ही आधी जगह दे दी। अर्धनारीश्वर कहलाये। लेकिन एक शिकायत शिव से उनके पुत्र कार्तिकेय ने की जब वर्चस्व और स्नेह का मसला उठा। शिव ने कहा कि पृथ्वी लोक की जो परिक्रमा पहले करेगा उसे पारितोष मिलेगा। बेचारे कार्तिकेय स्पर्धा के नियम मानकर अपने पक्षी-वाहन पर निकल चले। उधर मूषक पर सवार स्थूलकाय गणेश ने शिवपार्वती की परिक्रमा कर तर्क के आधार पर भाई को हरा दिया। शायद गणेश के प्रति पिता शिव को अधिक सहानुभूति रही थी। आखिर माता की आज्ञा पालन करने के अंजाम में उसका सर काट दिया गया था। हाथी का सर लगाना उस दौर की पहली आर्गन ट्रांसप्लान्ट सर्जरी (अवयव निरोपण पद्धति) थी।

पर्यावरण के रक्षक

शिव प्रकृति के, पर्यावरण के रक्षक और संवारनेवाले हैं। किसान का साथी है बैल जिसे शिव ने अपना वाहन बनाकर मान दिया। नन्दी इसका प्रतीक है। पंचभूत को शिव ने पनपाया। क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा, वे तत्व हैं जिनमें संतुलन बिगाड़कर आज के लोगों ने प्रदूषण, विकीर्णता और ओजोन परत की हानि कर दी है। यदि सब सच्चे शिवभक्त हो जाये तो फिर पंच तत्वों में सम्यक संतुलन आ जाये।

कभी हिमालयी वादियों में लोकधर्म था शैवमत

The connection between himalayas and Lord shiva

भले ही अलगाववादी आज कश्मीर को भारत से काटने की साजिश करे, वे ऐतिहासिक तथ्य को नजरन्दाज नहीं कर सकते। शैवमत कभी हिमालयी वादियों में लोकधर्म होता था। जब शिव यात्रा पर निकले तो नन्दी को पहलगाम में, अपने अर्धचन्द्र को चन्दनवाड़ी में और सर्प को शेषनाग में छोड़ आये। अमरनाथ यात्री इन्हीं तीनों पड़ावों से गुजरते हैं।

शिव कला के सृजनकर्ता हैं। ताण्डव नृत्य द्वारा नई विधा को जन्म दिया। नटराज कहलाये। डमरू बजाकर संगीत को पैदा किया। इतने कलावन्त है कि हर कुमारी शिवोपासना करती है कि शिव जैसा पति मिले। जनकनन्दिनी ने ऐसा ही किया था कि राम मिल गये।

सृजन और निधन शाश्वत नियम

एक चर्चा अक्सर होती है। अन्य देवताओं का जन्मोत्सव मनाया जाता है, मगर शिव का विवाहोत्सव ही पर्व क्यों हो गया? शिव दर्शाना चाहते हैं कि सृजन और निधन शाश्वत नियम हैं। उन्हें कभी भी विस्मृत नहीं करना चाहिए। कृष्ण ने अगहन चुना, मगर शिव ने श्रावण मास को पसंद किया क्योंकि तब तक सारी धरा हरित हो जाती है। सिद्ध कर दिया कि जल ही जीवन है। हिन्दी में एक मुहावरा बन गया है शिव की बारात चली। ऊबड़ खाबड़ जनों को बटोरकर भोलेनाथ पार्वती को ब्याहने चले थे। लेकिन शुभ कामना का भी उदबोधन है “शिवस्तु पंथा।” सब कुशल क्षेम रहे।

भग्नावशेष सोमनाथ का पुनर्निर्माण

Jay Somnath | www.somnath.org

श्रद्धालुजन द्वादश ज्योतिर्लिग की पूजा करते है। इसमें आज के सार्वभौम लोकतांत्रिक गणराज्य की दृष्टि से सोमनाथ सर्वाधिक गौरतलब है। वह इस्लामी साम्राज्यवादियों के हमले का शिकार रहा था। अंग्रेजों के भाग जाने के बाद पहला कार्य सरदार वल्लभभाई पटेल ने किया कि भग्नावशेष सोमनाथ का पुनर्निर्माण कराया। तब विवाद चला था कि सेक्युलर भारत में क्या मन्दिर का पुनर्निर्माण कराने में सरकारी मंत्री का योगदान हो? जवाहरलाल नेहरू चाहते थे कि सोमनाथ निर्माणकार्य से सरकारी तंत्र दूर ही रहे। सरदार का जवाब सीधा था। सोमनाथ मंदिर विदेशी आक्रमण का शिकार था। स्वाधीन राष्ट्र की अस्मिता और गौरव का प्रश्न है कि सोमनाथ में शिवलिंग स्थापित हो। आलोचक खामोश हो गये। आज पुनर्निमित सोमनाथ का ज्योतिर्लिंग भारत की ऐतिहासिक कीर्ति का प्रतीक है। शिव के मायने भी हैं प्रतीक। इसीलिए सोमनाथ का शिवलिंग सागर की लहरों से धुलकर देदीप्यमान रहता है, भले ही उत्तर में बाबा विश्वनाथ अभी भी मुगल आक्रामकों से बाधित हों।

—————-