डॉ. मयंक चतुर्वेदी।

 उन होम गार्ड्स को नहीं पता था कि वे लौटकर अपने घर नहीं जा पाएंगे, वे तो प्रतिदिन की तरह आज भी अपनी ड्यूटी कर रहे थे, लेकिन हिंसक जिहादी आततायियों ने उनकी हत्‍या कर दी। सिर्फ इसलिए कि ये  होम गार्ड्स  इन जिहादी आततायियों की मानसिकता से मेल नहीं रखनेवालों के देव महादेव की शिवयात्रा में अपनी ड्यूटी कर रहे थे। ब्रजमंडल यात्रा के दौरान जो बवाल हुआ, उस नूंह -मेवात हिंसा में दो होम गार्ड्स की मौत होने के साथ ही 20 से ज्यादा पुलिसकर्मी बुरी तरह घायल हैं। 60 से अधिक गाड़ियों को आग लगा दी गई।  योजना से किया गया यह उपद्रव कोई एक जिले में नहीं हुआ है। नूंह से होता हुआ आसपास के कई जिलों में हिंसा पहुंची और मंदिरों को निशाना बनाया गया।

दुखद है कि इस विशेष समुदाय में पुरुष तो पुरुष महिलाएं भी यहां हिंसात्‍मक कार्य में साथ देती हुई पाई गईं। जिसमें कि यात्रा पर किए जा रहे पथराव और हिन्‍दुओं को निशाना बनाने में मुस्‍लिम महिलाएं भी इस इस्‍लामिक भीड़ का साथ देती हुई नजर आई हैं। इनके ह्दयों में उन महिलाओं के लिए कोई दया नहीं दिखी जोकि नूंह के नल्हड़ शिव मंदिर में  दो हजार से ज्यादा की भीड़ में फंस गईं थीं और जिन्‍हें पुलिस द्वारा सुरक्षित बाहर निकालने का प्रयास किया जा रहा था।

ये जिहादी इस्‍लामिक उपद्रवी स्कूल बस को भी अपना निशाना बनाने से नहीं चूकते। तोड़फोड़ करने के बाद बस को लूट ले जाते हैं।  यह लूटने का सिलसिला कई दुकानों में चलता है। लूटो और आग लगाओं के काम में जैसे इन्‍हें महारथ हासिल है!  नूंह स्थित गुरुग्राम-अलवर नेशनल हाइवे पर हीरो कंपनी के शोरूम से 200 बाइक लूट ली गईं। कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाया। रास्‍ते भर नूंह में भड़की हिंसा की इस्‍लामिक चिंगारी यहां बने कई हिन्‍दू आस्‍था केंद्र मंदिरों को तोड़ती है।

इन मतांधों की हिम्‍मत तो देखिए! पुलिस थाने तक को निशाना बनाने से नहीं छोड़ा । नूंह के साइबर थाना पर भी हमला कर दिया गया। जिहादी उपद्रवियों ने पथराव ही नहीं किया, बाहर खड़ी गाड़ियों में आग लगा दी। पुलिसकर्मियों ने सैकड़ों की इस भीड़ से कैसे अपनी जान बचाई होगी, यह तो वही जाने, लेकिन इस घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।  जिसमें कि सबसे बड़ा प्रश्‍न है उन्‍हें नहीं किसी से भय? वे कहीं भी आग लगा सकते हैं। दुकाने लूट सकते हैं। गाड़ि‍यां फूंक सकते हैं । नूंह, मेवात के कस्बे नगीना और फिरोजपुर-झिरका समेत गुरुग्राम तक जगह-जगह की गई आगजनी वास्‍तव में आज हमारे धर्मनिरपेक्ष देश के सामने बड़ी चुनौती के रूप में है।

ये मजहबी उन्‍माह किस सीमा तक लोगों के भीतर समा चुका है, वस्‍तुत: इसका पता यहां हरियाणा सरकार के शांति बहाली के लिए लगाई गई धारा 144 से ही नहीं लगता बल्‍कि इंटरनेट बंद करने से लेकर केंद्र सरकार से अतिरिक्‍त फोर्स की सहायता, पैरामिलिट्री फोर्स तक मंगवाना पड़ जाने से समझा जा सकता है । नूंह में जो हुआ क्‍या वह पहली बार है ? देश में ज्‍यादातर जगह जहां भी मुस्‍लिम एरिया हैं, वहां यदि इस प्रकार की इस्‍लाम को छोड़कर अन्‍य किसी धर्म समुदाय की धार्म‍िक यात्राएं निकलती हैं तो आपको नूंह दोहराया जाता हुआ दिखाई दे जाता है। बार-बार धमकी दी जाती है, पुलिस, फोर्स हटाकर देख लो !..कभी महाकाल की सवारी निकालने को लेकर धमकी और न जानें ऐसी कितनी ही धमकियों को अब तक देखा जा चुका है।

आखिर परेशानी क्‍या है ? क्‍या बहुसंख्‍यक हिन्‍दुओं को जिन्‍होंने स्‍वयं से आगे होकर सर्वपंथ सद्भाव में विश्‍वास रखा है, जिन्‍होंने स्‍वयं से अपने लिए धर्मनिरपेक्ष समाज और शासन व्‍यवस्‍था चुनी, यह उनकी सबसे बड़ी भूल है? जो उन्‍हें आज यह दिन देखने पड़ रहे हैं।  निश्‍चित ही जिन्‍होंने ये कृत्‍य किया वह अब सफलता का जश्‍न बना रहे होंगे कि कैसे पूरी व्‍यवस्‍था को हमने खबर भी नहीं होने दी और उन लोगों को अपना निशाना बनाने में सफल हो गए, जिनका विश्‍वास उनके विश्‍वास से मेल नहीं खाता है। ये इस्‍लामिक कट्टरता मजहब के नाम पर देश का विभाजन करा देती है, फिर भी चेन नहीं पड़ रहा?

जहन में अनेक प्रश्‍न कोंध रहे हैं ; ऐसा तभी क्‍यों होता है जब कोई हिन्‍दू यात्रा निकल रही होती है? सोचिए! यदि भारत में ताजिए या इसी प्रकार की दूसरे मजहबी लोगों की यात्रा पर भी बहुसंख्‍यक समाज के लोगों द्वारा पत्थरबाजी होना शुरू हो जाए, पेट्रोल बम फेंके जाएं तो देश में क्‍या होगा? विचार करें! हम किस सामाजिक व्‍यवस्‍था की दुहाई दे रहे हैं? कौन से समाज में रह रहे हैं?

एक तरफ उस भारत की तस्‍वीर है जो दुनिया को अपना लोहा मनवाने के लिए आतुर है तो दूसरी ओर इस तरह की वीभत्स और हिंसा से भरा हुआ दृष्‍य, जिसमें मानवता कराह रही है। अब यह पता लगाना शासन का काम है कि वह अतिशीघ्र जानें कि यह सोची समझी साजिश है या कुछ और । क्‍या यह कोई प्रयोग अथवा चेतावनी तो नहीं, जिसमें उन सभी की प्रोपर्टी, उनके संसाधनों को लूटना पहले से ही तय कर‍ लिया गया है जिनका विश्‍वास इस्‍लामिक मजहब में नहीं है।

हम सब विचार करें। सरकारें, शासन व्‍यवस्‍था, समाज और राजनेता कि आखिर यह नूंह जैसा काण्‍ड देश भर में बार-बार क्‍यों  हो रहे हैं? यह कैसी भावनाएं हैं, जोकि जरा से में आहत हो जाती हैं? कभी राम नवमी चल समारोह पर पत्‍थर, कभी हनुमान यात्रा तो कभी कावड़ियों  पर पत्‍थर बरसाना, कभी दुर्गा यात्रा को निशाना बनाया जाना! भारत के कौने-कौने से ऐसी खबरें हर रोज आती हैं। देखने में यही आ रहा है कि जहां मुस्‍लिम बहुल क्षेत्र हैं वहां इस प्रकार की समस्‍याएं आम होती जा रही हैं। सरकारों की सभी गुप्‍तचर एजेंसियां इन आतताईयों और मतांधों के सामने फेल  और सरेण्‍डर करती हुई जान पड़ती हैं।

आज इसकी गहन पड़ताल करना जरूरी है कि ये मानसिकता कहां से उपजती है, कौन से कारण इसके पीछे जिम्‍मेदार हैं? क्‍या कोई एक किताब, समूह, संगठन, संप्रदाया या व्‍यक्‍त‍ि इसके पीछे हैं या अनेकों ऐसी किताबें हैं जो दूसरे धर्म, मत, पंथ, संप्रदाय के लोगों को बर्दाश्‍त ही नहीं करना चाहती। वस्‍तुत: वह अपने लोगों की मानसिकता ही इस प्रकार की कर देती है, कि दूसरे उसे शत्रु के समान नजर आते हैं। ऐसे में आज केंद्र के साथ राज्‍य सरकारें इस मुद्दे पर जितना अधिक ध्‍यान देंगी, भारतीय संस्‍कृति और समाज के साथ संपूर्ण मानवीयता के लिए यह उतना अच्‍छा होगा।(एएमएपी)