#pradepsinghप्रदीप सिंह।

देश की राजनीति में इस समय बहुत बड़े बदलाव हो रहे हैं। चूंकि उनकी गति धीमी है इसलिए जब तक आपकी नजर बहुत पैनी नहीं होगी तब तक आपके लिए उनको देखना या महसूस करना मुश्किल होगा। देश में कुलीन राजनीति का जो सिलसिला पिछले 75 साल से चल रहा था अब उसके अस्तित्व पर संकट है। कोई व्यक्ति हो, संस्था हो, संगठन हो, या देश हो- जब किसी के अस्तित्व पर संकट आता है तो वह सब कुछ भूल जाता है। वह हर तरह के हथकंडे अपनाता है। किसी तरह से बचने की कोशिश करता है। कहावत है- डूबते को तिनके का सहारा। तो अगर उसे तिनका भी मिल जाए तो उसकी कोशिश होती है कि शायद इससे बच जाएंगे। इस समय देश में यही हो रहा है।

सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं

पीएमएलए (प्रीवेंशन आफ मनी लांड्रिंग एक्ट) एक ऐसा कानून है जो भ्रष्टाचार की जड़ पर हमला करता है। उसी को रोकने के लिए इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। चुनौती देने वालों को बहुत उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलेगी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एक कदम और आगे बढ़ कर कहा कि पीएमएलए जिस भ्रष्टाचार को रोकने के लिए बनाया गया है वह किसी आतंकवादी कार्रवाई से कम नहीं है। आतंकवाद से जुड़े लोग जो करते हैं, उससे ज्यादा देश की एकता व अखंडता का नुकसान भ्रष्टाचार कर रहा है. इसलिए उसको रोकना बहुत जरूरी है। कानून का यह सामान्य सिद्धांत है कि आप तब तक निर्दोष हैं जब तक आप दोषी सिद्ध नहीं किए जाते। लेकिन पीएमएलए में इस सिद्धांत को सिर के बल खड़ा कर दिया गया है- कि आप तब तक दोषी हैं जब तक आप अपने को निर्दोष साबित नहीं कर देते। इसके अलावा पीएमएलए में जमानत देने के सख्त प्रावधान हैं। यही पेंच है। इस कानून के शिकंजे में आए या जिन्हें आशंका है कि वे आ सकते हैं- इन पेंचों को ढीला कराना चाहते हैं। इसी को आधार बनाकर इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। पर वहां कोई राहत नहीं मिली।

‘सौती का रिस कठौती पर’

उसके बाद से बौखलाहट देखिए। दो घटनाएं हुई। दो दिन में दो बयान आए। एक महबूबा मुफ्ती का- जो पीडीपी की नेता हैं- जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं- और आतंकवादियों से संबंध के लिए जानी जाती हैं। महबूबा का बयान क्या है और उन्होंने हमला किस पर किया है- पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद पर। जब तक कोविंद राष्ट्रपति थे तब तक महबूबा नहीं बोलीं। लेकिन उनके राष्ट्रपति पद से हटने के बाद उन्होंने कहा है कि उन्होंने बीजेपी का एजेंडा चलाया और संविधान को कुचल दिया। किया क्या था रामनाथ कोविंद ने- उनहोंने अनुच्छेद 370, 35ए और सीएए पर संसद से पास विधेयकों को मंजूरी दे दी। महबूबा मुफ्ती की नजर में इन सब संसद से पारित विधेयकों को मंजूरी देना राष्ट्रपति द्वारा संविधान को कुचलना है।

यह क्यों बोला जा रहा है इसे समझना जरूरी है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक कहावत है- सौती का रिस कठौती पर। इसका मतलब है कि सौत यानी पति की दूसरी पत्नी का गुस्सा बर्तन पर उतारा जा रहा है। कठौती एक काठ का बर्तन होता है जिसे ट्रे की तरह समझ लीजिए। महबूबा का बयान या प्रतिक्रिया उसी तरह की है। असल समस्या यह है कि ईडी के शिकंजी में महबूबा मुफ्ती भी हैं। अभी तक ईडी और पूरी संस्कार के मन में यह आशंका थी कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए में कुछ बदलाव कर दिया या उसके कुछ प्रावधानों में ढील दे दी तो इन लोगों के खिलाफ कार्यवाही करना मुश्किल हो जाएगा। अब कार्यवाही रुकने वाली नहीं है- चाहे महबूबा मुफ्ती हों, पी चिदंबरम हों, चिदंबरम के बेटे कार्ति हों या फारुक अब्दुल्ला हों। मैं यहाँ केवल राजनीतिक लोगों की ही बात कर रहा हूँ। ये तमाम लोग ईडी के शिकंजे में हैं और आप मानकर चलिए कि ये सब जेल जाने वाले हैं।

सोच समझकर फिसली जुबान

दूसरा बयान लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी का आया। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के लिए राष्ट्रपत्नी शब्द का इस्तेमाल किया। बाद में उन्होंने कहा कि यह ‘स्लिप ऑफ टंग’ (जबान का फिसल जाना) है। लेकिन यह जबान का फिसल जाना बिल्कुल नहीं है। सोनिया गांधी ने लोकसभा में कहा कि अधीर रंजन ने माफी मांग ली है। लेकिन अधीर रंजन ने कोई माफी नहीं मांगी। फजीहत से बचने की खानापूर्ति के तौर पर अगले दिन शुक्रवार 29 जुलाई की शाम अधीर रंजन ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखा कि मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि मेरी जुबान फिसल गई थी। मैं माफी मांगता हूं। दरअसल यह एक महिला की- एक आदिवासी महिला की- प्रतिष्ठा गिराने के लिए जानबूझकर किया गया कृत्य है।

ये हमला किस पर हो रहा है? किस समाज के लोगों पर हो रहा है? आदिवासी और दलित समाज के लोगों पर- पिछड़ों और गरीबों पर। ऐसा क्यों हो रहा है उसकी वजह समझने की कोशिश कीजिए। पिछले 75 साल से जो तंत्र बनाया था- बल्कि वह अंग्रेजों का बनाया हुआ था उसमें कोई बड़ा बदलाव नहीं किया- अब बिखर रहा है। उस तंत्र में यह था कि इलीट- जो संभ्रांत-विशिष्ट वर्ग है- उसी को शासन करने का है। उसके नीचे जो आम लोग हैं- उनको शासित होने का अधिकार है- उससे ज्यादा नहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसा क्या किया जो उनको इतनी गालियां पड़ रही हैं- इतनी आलोचना, निंदा हो रही है। उनके खिलाफ नफरत इस हद तक पहुंच गई है कि ये देश के खिलाफ भी जाने को तैयार हैं? उसकी वजह यह है कि मोदी ने इस तंत्र को ठीक उल्टा कर दिया है। एक समय कांशीराम सामाजिक संरचना के बारे में पेन दिखाकर बताते थे कि अभी तक समाज व्यवस्था का जो क्रम है उसमें सबसे ऊपर ब्राह्मण और सबसे नीचे दलित हैं। इसको वह उल्टा करना चाहते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जाति को नहीं वर्ग को उल्टा कर दिया। कुलीन वर्ग नीचे जा रहा है और वंचित वर्ग ऊपर आ रहा है। इन लोगों को समस्या इस बात से है।

पद के लिए वफादारी ही मानदंड

कांग्रेस ने अपने पचास-पचपन सालों के शासन में जो राष्ट्रपति बनाए वे किस तरह के लोग रहे। देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु की मर्जी से नहीं- बल्कि नेहरू के बावजूद- राष्ट्रपति बने। उनको दूसरा कार्यकाल भी नेहरू के तमाम विरोध के बावजूद मिला। यह उनकी प्रतिष्ठा थी। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन मेरिट के आधार पर राष्ट्रपति बने। वह नेहरू जी को पसंद भी थे और इस पद के पर्याप्त योग्य भी थे। लेकिन- उसके बाद के दौर को देखिए। जितने भी राष्ट्रपति बनाए गए- उनमें एक-दो अपवाद को छोड़कर- क्राइटेरिया क्या था? उनके चयन का आधार क्या था? उसका एक ही आधार था- गांधी परिवार के प्रति वफादारी। आप वफादार हैं तो आप राष्ट्रपति बन सकते हैं और आप चाहे जितने योग्य हों, अगर परिवार के प्रति वफादार नहीं हैं, तो आपके लिए कुछ भी बनना मुश्किल है- यह संदेश था। इसलिए देश की राजनीति में ‘परिवार’ की वफादारी, चापलूसी और गणेश परिक्रमा करने वालों की फौज दिन पर दिन बढ़ती गई। उसका नतीजा है कि कांग्रेस बर्बाद हो रही है, खत्म हो रही है- वह एक अलग मुद्दा है। लेकिन इससे समाज में संदेश क्या भेजा? अधीर रंजन चौधरी ने जिस अभद्र भाषा का प्रयोग किया है वह उसी की बानगी है। वह कांग्रेस के नेता हैं। जब प्रतिभा पाटिल राष्ट्रपति बनी थीं- वह भी महिला थीं- तब उनके मुंह से ऐसा शब्द निकला था क्या? यह सामान्य ज्ञान की बात है और आठवीं दसवीं के बच्चे से पूछेंगे तो वह भी बता देगा कि पदनाम जेंडर न्यूट्रल होते हैं। प्रधानमंत्री को आप प्रधानमंत्राणी नहीं कहते। इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी थीं तो कांग्रेस में किसी ने ऐसा कहा था क्या? ऐसा नहीं है कि अधीर रंजन को इस सामान्य ज्ञान की जानकारी नहीं है। उनका मकसद दूसरा है। अगर सोनिया गांधी और राहुल गांधी से इंफोर्समेंट डायरेक्टरेट (ईडी) ने पूछताछ न की होती- उनके खिलाफ मुकदमा न चल रहा होता- तो आपको इस तरह के शब्द सुनने को नहीं मिलते।

ऐसा पहली बार…

इलीट क्लास का जो साम्राज्य बना हुआ था वह भरभरा कर गिर रहा है। वह केवल गिर ही नहीं रहा है। ऐसा नहीं हो रहा है कि वंचित वर्ग ऊपर आ रहा है। बल्कि वह जो डिज़र्व करता है, उसका जो हक है- वह उसे मिल रहा है। ऐसा पहली बार हो रहा है। चाहे महबूबा मुफ्ती हों, फारूक अब्दुल्ला हों, या कांग्रेस के नेता हों- किसी ने पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद पर सवाल नहीं उठाया जिन्होंने इमरजेंसी के प्रस्ताव पर संसद तो छोड़ दीजिए, बिना कैबिनेट की मंजूरी के आधी रात को दस्तखत किया। उन पर सवाल उठाने वाला आपको कोई कांग्रेसी नहीं मिलेगा। कोई तो उनके बारे में भी कहता कि संविधान को रौंद दिया और कांग्रेस का एजेंडा चलाया। क्यों रामनाथ कोविंद के बारे में यह बात कही जा रही है। सिर्फ इसलिए के वह दलित समाज से आते हैं। इनको लगता है कि उनको गाली देना, अपमान करना, उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाना- यह सब इनका जन्म सिद्ध अधिकार है। यह जो ‘सेंस ऑफ इंटाइटलमेंट’ है यह इनके पतन का कारण है। जिन लोगों की बदौलत जिनकी ताकत पर ये लोग सत्ता में- शासन में रहे, उन्हीं को कुचलने का प्रयास करते रहे। सोच क्या थी? सोच यह थी कि उनको गरीब रखो। वे हमेशा हमारे आगे हाथ फैलाते रहें और हम टुकड़े देते रहें तो वे हमारे कब्जे में रहेंगे। उनको अशिक्षित, बेरोजगार रखो। इस तरह का प्रयास आजादी के बाद से चल रहा है। आप 28 जुलाई को संसद में सोनिया गांधी की बौखलाहट को देखते जब वह भाजपा के नेता रमा देवी के पास बात करने गईं और वहां की स्मृति ईरानी पहुंचीं। जिस तरह से उन्होंने स्मृति ईरानी से बात की वह अंदर की बौखलाहट, गुस्सा, खीझ- इस सब का नतीजा था। पूरा विपक्ष जिस तरह का व्यवहार कर रहा है वह बताता है कि उसको समझ में आ रहा है कि जिस आधार पर अपनी सत्ता बनाई थी, जिस सिद्धांत पर उन्होंने इसे खड़ा किया था- वह सब खत्म हो गया है, उसको लोगों ने रिजेक्ट कर दिया है।

वंचित वर्ग से इतना ही नाता

अब सरकार की जिम्मेदारी थी कि वह ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करे। वह कार्यवाही शुरू हो गई है। कुलीनों की बनाई इस व्यवस्था को कभी भी कोई सही, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, राष्ट्रभक्त व्यक्ति पसंद नहीं आता। कांग्रेस को और बहुत से और लोगों को डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम पसंद नहीं आए। अगर उनकी चलती तो कलाम को राष्ट्रपति न बनने देते। जब उनकी चली तो उन्होंने दूसरे कार्यकाल के लिए कलाम को राष्ट्रपति नहीं बनने दिया। इससे आप अंदाजा लगाइए कि इनकी सोच क्या है? इनकी सोच महिला विरोधी, दलित विरोधी, आदिवासी विरोधी और पिछड़ा विरोधी है। कुल मिलाकर ये लोग वंचित वर्ग के विरोध में खड़े हैं। ये वंचित वर्ग से इतना ही नाता चाहते हैं कि उनका वोट इनको मिलता रहे। पश्चिम बंगाल में, दिल्ली में क्या हो रहा है? हाई कोर्ट की टिप्पणी देखिए। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल में अगर थोड़ी भी शर्म होती तो अब तक ईडी द्वारा गिरफ्तार सत्येंद्र जैन को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया होता। उनसे यह नहीं हो पा रहा। उनको इस बात का एहसास ही नहीं है कि स्थितियां बदल रही हैं। इस वर्ग को एक समय जो लेफ्ट लिबरल बिरादरी से नेशनल और इंटरनेशनल कवर मिलता था, अब उस बिरादरी की अपील और ताकत लगातार घटती जा रही है। इन शक्तियों ने हार मान ली है ऐसा नहीं है। ये अभी भी सक्रिय हैं- कभी पीएफआई के जरिए, कभी आईएसआई के जरिए तो कभी पाकिस्तान के जरिए। किसी ना किसी बहाने से ऐसी सारी संस्थाओं को इन व्यक्तियों का समर्थन है जो देश के विरोध में काम कर रहे हैं। इनको लगता है कि इन्हीं का समर्थन करके मोदी को हटाया जा सकता है। मोदी इनके राजनीतिक अस्तित्व के लिए खतरा बन गए हैं इसलिए मोदी का हटना जरूरी है। इसके लिए ये कोई भी कीमत चुकाने को, किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।

निर्णायक दौर मे संघर्ष

आने वाले दिनों में आपको यह लड़ाई, संघर्ष और तेज होता हुआ दिखेगा। यह संघर्ष निर्णायक दौर मे पहुंच रहा है। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले आप इसे एक नए मुकाम पर देखेंगे। और 2024 के बाद जो देखेंगे- शायद हम और आप आज उसकी कल्पना नहीं कर रहे हैं। बदलाव का चक्र, परिवर्तन का पहिया घूमना शुरू हो गया है। उसकी गति अभी तक दिखाई नहीं देती थी, अब दिखाई देने लगी है- इसलिए खलबलाहट बढ़ी है। जो ऊपर थे वे नीचे आ रहे हैं और नीचे वाले- जिनको ऊपर होना चाहिए था- वे अब ऊपर पहुंच रहे हैं। देश में इस बदलाव का स्वागत करना चाहिए। उनकी बौखलाहट पर संतोष जाहिर करना चाहिए। चाणक्य ने कहा था कि दुश्मन के खेमे में अगर खलबली है तो समझिए कि राजा कुछ अच्छा कर रहा है। अब आप समझ लीजिए कि कहां खलबली है और कहां अच्छा हो रहा है।