माता के आगमन को लेकर हर-तरफ तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। बाजारों में माता के साज-सज्जा का सामान, पूजा सामग्री की दुकानें लग चुकी हैं। दुर्गा माता के भक्तों के लिए नवरात्रि खास पर्वों में से एक है। कहते हैं कि सच्चे और साफ दिल से आराधना करने वाले भक्तों को माता का आशीर्वाद आवश्यक मिलता है। प्रत्येक साल शारदीय नवरात्रि आश्विन मास में मनाया जाता है। इस साल शारदीय नवरात्रि 15 अक्टूबर से 24 अक्टूबर तक मनाई जाएंगी। नवरात्रि पर्व पर लोग मइया के दर्शन के लिए माता के मंदिर जाते हैं। अगर आप भी मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं, तो देश के इन प्रसिद्ध और चमत्कारी मंदिरों में अवश्य जाएं और शक्‍ति आराधना करके भरपूर ऊर्जा, प्रसन्‍नता और आनन्‍द प्राप्‍त करें ।

नैना देवी मंदिर, बिलासपुर

हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में नैना देवी माता का मंदिर स्थित है। विश्व विख्यात शक्तिपीठ श्री नैना देवी मंदिर समुद्र तल से लगभग 5000 फीट की ऊंचाई पर विद्यमान है। इस मंदिर में मां नैना देवी की मूर्ति स्थापित है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर को लेकर यह कहा जाता है कि इस जगह पर माता सती के नेत्र गिरे थे। इसी वजह से इस मंदिर का नाम नैना देवी पड़ा। हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु पंजाब, हिमाचल, हरियाणा, दिल्ली, यूपी, बिहार,उत्तराखंड और अन्य प्रदेशों माता के दर्शन के लिए आते हैं। इतना ही नहीं विदेशों से भी कई श्रद्धालू माता के दर्शन के लिए आते हैं।

स्थानीय लोग एवं भारतीय सनातन साहित्‍य में इस स्‍थान को लेकर अनेक जगह प्रचलित कथा मिलती है। प्राचीन काल में जब माता सती के पिता राजा दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन करवाया था तो उस समय सभी देवताओं को उन्होंने इस यज्ञ में भाग लेने के लिए न्योता दिया लेकिन माता सती और भोले शंकर को इस यज्ञ में नहीं बुलाया।  इससे सती  बहुत क्रोधित हुईं और उन्‍होंने  राजा दक्ष प्रजापति के यज्ञ में जाने के लिए भगवान शिव से हठ किया, जिसके बाद वे अपने पिता के हो रहे यज्ञ में चली गईं, वहां उन्‍होंने सभी देवताओं के लिए स्थान प्रदान किए गए हैं, देखा लेकिन भोले शंकर के लिए कोई स्थान नहीं था तो वह बहुत क्रोधित हुईं और स्वयं यज्ञकुंड में कूद गईं ।  शिव शंकर भगवान को इस बात का पता चला तो वह बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने माता सती के अर्धजले शरीर को अपने त्रिशूल पर उठाकर पूरे ब्रह्मांड का भ्रमण किया । यह देखकर विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र के द्वारा माता सती के अंगो को छिन्न-भिन्न कर दिया और जहां-जहां पर माता सती के अंग गिरे वहां पर शक्ति पीठों की स्थापना हुई।

जब माता ने किया था महिषासुर का वध

माता श्री नैना देवी के नाम को लेकर और भी कई तरह की मान्यताएं हैं। जैसे कि जब माता श्री नैना देवी ने महिषासुर का वध किया था तो सभी देवताओं ने खुश होकर जय नैना मां उद्घोष किया इसलिए भी माता श्री नैना देवी के तीर्थ स्थल का नाम श्री नैना देवी पड़ा। प्राचीन काल से एक और कथा प्रचलित है कहते हैं जब नैना नामक गुर्जर ग्वाला अपनी गाएं चराता था तो अचानक एक गाय के थनों से अपने आप पिंडी पर दूध  निकलना शुरू हुआ और माता ने उसे रात को सपने में दर्शन दिए और कहा कि यहां पर मंदिर की स्थापना करना,  फिर इस मंदिर की स्थापना हुयी और नैना गुर्जर के नाम पर ही इसका नाम श्री नैना देवी रखा गया।श्री नैना देवी मंदिर में कई चमत्कारों की भी चर्चा होती है, जो इसे अनुभव करता है, वह इसे लेकर बाहर संवाद भी करता है, आप जहां जाएंगे, थोड़ी सी साधना करेंगे आपको भी दिव्‍य अनुभूतियां होंगी।  कहते हैं कि घर में 100 हवन  करने के बराबर यहां किए गए हवन कुंड में एक हवन की मान्यता है। श्रद्धालुओं की आंखों में किसी भी प्रकार की परेशानी हो या कोई बीमारी तो वह भी यहां ठीक होते हुए देखा गया है।

कामाख्या मंदिर, गुवाहाटी

कामाख्या मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर असम के गुवाहाटी शहर की नीलांचल पहाड़ियों पर मौजूद है। इस मंदिर को सिद्ध शक्ति पीठ के रूप में जाना जाता है। यहीं वजह है कि इस मंदिर में तांत्रिक क्रियाओं को सीखने के लिए जाते हैं। नवरात्रि के पर्व पर दुर्गा पूजा के दौरान यहां पर अंबुबाछी मेला लगता है, जो काफी लोकप्रिय है। कामाख्या मंदिर सभी शक्तिपीठों का महापीठ माना जाता है। इस मंदिर में आपको देवी दुर्गा या मां अम्बे की कोई मूर्ति या चित्र नहीं दिखेगा। बल्कि इस मंदिर में एक कुंड बना है जो हमेशा फूलों से ढ़ंका रहता है। इस कुंड से हमेशा जल निकलता रहता है। चमत्कारों से भरे इस मंदिर में देवी की योनि की पूजा की जाती है और योनी भाग के यहां होने से माता यहां रजस्वला भी होती हैं।

हर साल यहां अम्बुबाची मेला लगाया जाता है। मेले के दौरान यहां पास ही में स्थित ब्रह्मपुत्र का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है। पानी का यह लाल रंग कामाख्या देवी के मासिक धर्म के कारण होता है। फिर तीन दिन बाद दर्शन के लिए यहां भक्तों की भीड़ मंदिर में उमड़ पड़ती है। आपको बता दें की मंदिर में भक्तों को बहुत ही अजीबो-गरीब प्रसाद दिया जाता है। दूसरे शक्तिपीठों की अपेक्षा कामाख्या देवी मंदिर में प्रसाद के रूप में लाल रंग का गीला कपड़ा दिया जाता है। कहा जाता है कि जब मां को तीन दिन का रजस्वला होता है, तो सफेद रंग का कपड़ा मंदिर के अंदर बिछा दिया जाता है। तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह वस्त्र माता के रज से लाल रंग से भीगा होता है। इस कपड़े को अम्बुवाची वस्त्र कहते हैं। इसे ही भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है।

राष्ट्र जागरण और गौरक्षा के लिये जीवन समर्पित

यह शायद भारत का इकलौता मंदिर है, जहां शासक होती हैं महिलाएं और दास होते हैं पुरुष। महिलाओं को यहां पहले दर्शन भी करने दिया जाता है। कहते हैं कि जब सती का मूलाधार यहां गिरा था तो यहां बहुत बड़ा पहाड़ था। यह मूलाधार किसी उल्कापिंड की तरह यहां गिरा तो क्या हुआ, बता रहे हैं पंडित भुवेश शर्मा का कहना है कि यह इलाका नील पर्वत कहलाता है। यह पर्वत तीन हिस्सों में है । जहां मां का मूलाधार गिरा, उसमें है शिव पर्वत। जहां मां भुवनेश्वरी का मंदिर है, वह है ब्रह्मा पर्वत और पीछे एक पहाड़ है, उसे कहते हैं विष्णु पर्वत। यह त्रिमूर्ति धारक है। पहले यह पर्वत बहुत ऊंचा था। जब मूलाधार यहां गिरा तो यह पहाड़ धंसता गया।इसके साथ ही आपको बतादें कि काली और त्रिपुर सुंदरी देवी के बाद कामाख्या माता तांत्रिकों की सबसे महत्वपूर्ण देवी है। कामाख्या देवी की पूजा भगवान शिव के नववधू के रूप में की जाती है, जो कि मुक्तिको स्वीकार करती है और सभी इच्छाएं पूर्री करती है। इस मंदिर में यह मान्यता प्रचलित है, कि जो भी बाहर से आये भक्तगण जीवन में तीन बार दर्शन कर लेते हैं उनको सांसारिक भवबंधन से मुक्ति मिल जाती है। यह मंदिर तंत्र विद्या के लिए भी जाना जाता है। यही वजह है कि मंदिर के कपाट खुलने पर दूर-दूर से साधु-संत और तांत्रिक भी दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं।

दक्षिणेश्वर काली मंदिर, कोलकाता

दक्षिणेश्वर काली मंदिर, काली माता का प्रसिद्ध मंदिर है। पश्चिम बंगाल के कोलकाता के नजदीक दक्षिणेश्वर में हुगली नदी के किनारे यह मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर में माता भवतारिणी की मूर्ति स्थापित की गई है, जो मां काली का स्वरूप है। यह दक्षिणेश्वर काली मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है. यहां आने वाले श्रद्धालुओं पर मां की असीम कृपा बनी रहती है। मंदिर में मां काली के अवतार मां भवतारिणी की पूजा की जाती है। 25 एकड़ में फैले इस मंदिर में हर रोज देश भर से हजारों श्रद्धालु आते हैं। यह मंदिर दक्षिणेश्वर में स्थित है और इसलिए इसे दक्षिणेश्वर काली मंदिर के नाम से जाना जाता है।

आपको बता दें विवेकानंद जी के गुरु रामकृष्ण परमहंस का इस मंदिर से बहुत ही गहरा नाता है। दक्षिणेश्वर काली मंदिर में देश के कोने-कोने से लोग आते हैं। लंबी-लंबी कतारों में घंटो खड़े होकर देवी माँ काली के दर्शन का इंतज़ार करते हैं। कहते हैं कि दक्षिणेश्वर काली मंदिर में रामकृष्ण परमहंस को दक्षिणेश्वर काली ने दर्शन दिया था। दक्षिणेश्वर काली मंदिर से लगा हुआ परमहंस देव का कमरा है, जिसमें उनका पलंग तथा दूसरे स्मृतिचिह्न सुरक्षित हैं। दक्षिणेश्वर काली मंदिर के बाहर परमहंस की धर्मपत्नी श्रीशारदा माता तथा रानी रासमणि का समाधि मंदिर है और वह वट वृक्ष है, जिसके नीचे परमहंस देव ध्यान किया करते थे।

माता ज्वाला देवी मंदिर, कांगड़ा

माता ज्वाला देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित है। इस मंदिर में ज्वाला हमेशा निकलती रहती है। माता के 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहां माता ज्वाला के रूप में विराजमान हैं और भगवान शिव यहां उन्मत भैरव के रूप में स्थित हैं। इस मदिर का चमत्कार यह है कि यहां कोई मूर्ति नहीं है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रहीं 9 ज्वालों की पूजा की जाती है। आजतक इसका कोई रहस्य नहीं जान पाया है कि आखिर यह ज्वाला यहां से कैसे निकल रही है। कई भू-वैज्ञानिक ने कई किमी की खुदाई करने के बाद भी यह पता नहीं लगा सके कि यह प्राकृतिक गैस कहां से निकल रही है। साथ ही आजतक कोई भी इस ज्वाला को बुझा भी नहीं पाया है।
ज्वाला देवी मंदिर में बिना तेल और बाती के नौ ज्वालाएं जल रही हैं, जो माता के 9 स्वरूपों का प्रतीक हैं। मंदिर एक सबसे बड़ी ज्वाला जो जल रही है, वह ज्वाला माता हैं और अन्य आठ ज्वालाओं के रूप में मां मां अन्नपूर्णा, मां विध्यवासिनी, मां चण्डी देवी, मां महालक्ष्मी, मां हिंगलाज माता, देवी मां सरस्वती, मां अम्बिका देवी एवं मां अंजी देवी हैं।

मां ज्वाला देवी के मंदिर का निर्माण सबसे पहले राजा भूमि चंद ने करवाया था। इसके बाद 1835 में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसार चंद ने इसका पुननिर्माण करवाया था। ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान मंदिर की ज्वाला जानने के लिए जमीन के नीचे दबी ऊर्जा का पता लगाने के लिए काफी कोशिश की गई लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं लगा। स्‍वाधीन भारत में भी कई भूगर्भ वैज्ञानिक भी तंबू गाड़कर बैठ ज्वाला की जड़ तक पता लगाने के लिए बैठ गए थे लेकिन उनको भी कोई जानकारी नहीं मिली। यह बातें सिद्ध करती हैं कि यह चमत्कारिक ज्वाला है। यहां साधना करने से आपको आत्‍मिक शांति तो मिलती ही है साथ ही आपमें संकल्‍प सिद्धि का संकल्‍प भी दृढ़ होता है।(एएमएपी)