डॉ. कुमार विश्वास ।
राम विनम्र रहते हैं, शालीन रहते हैं, मुस्कुराते हैं। इसी आत्मविश्वास में उनकी जीत है। यह ब्रह्म की महिमा नहीं तो और क्या है जो अनगिनत सिद्धि-संपन्न, त्रैलोक्य विजेता रावण को एक वानर से संवाद में फिसड्डी साबित कर देती है। क्या कमाल का शब्द-चित्र है कि दुराचारी रावण के सम्मुख एक सामान्य वानर अंगद प्रभु की महिमा बखान रहे हैं और उस महापराक्रमी असुर का समस्त तेज उस वानरी सात्विकता के सामने शून्य हो जाता है।
हमारे शास्त्रों में सात्विकता के सबल उद्घोषक ऐसे कई क़िस्से दर्ज हैं पर केशवदास की रामचंद्रिका का यह प्रसंग मुझे सर्वाधिक पसंद है। आप भी सुनिए, अनंत की असीम माया को अनुभूत करिए और अपने-अपने मन-बुद्धि, साधन-संपत्ति के अहंकार से परे विशुद्ध भावना की भव्य भाषा में नवरात्र पर देवी माँ को अपना प्रणाम निवेदित करिए।
संवाद कौशल
राम डिप्रेशन से बाहर लाए अंगद को। आजकल कम्युनिकेशन स्किल (संवाद कौशल) सिखाया जाता है। आज की सबसे बड़ी समस्या रह है कि बीटेक एमटेक कर लेंगे लेकिन लड़का या लड़की कम्युनिकेट (संवाद) नहीं कर पा रहा। अपनी बात नहीं कह पा रहा। मां से नहीं कह पा रहा, पिता से नहीं कह पा रहा, गर्लफ्रेंड से नहीं कह पा रहा, बीवी से नहीं कह पा रहा… नौकरी में नहीं कह पा रहा। ऐसी बहुत सी घटनाएं हम देख रहे हैं जिनमें न कह पाने के कारण वह आत्महत्या कर रहा है, डिप्रेशन में जा रहा है।
अंगद को उन्होंने कम्युनिकेटर बनाकर रावण के पास भेजा। इसी से पता चलता है कि राम कितने सकारात्मक हैं। युद्ध शुरू होना है। विभीषण राम से कहते हैं कि युद्ध के लिए रणनीति बना लेते हैं कि कौन किस तरफ से बढ़ेगा, कैसे-क्या करना है। इतने बड़े व्यक्ति से लड़ना है। तो राम कहते हैं- ‘अभी नहीं। मैंने बालि के पुत्र अंगद को दूत बनाकर रावण के पास भेजा है। मुझे उम्मीद है रावण मान जाएगा। सीता को वापस दे देगा। हम उससे क्यों युद्ध करें।’ये राम हैं।
आतंकवाद से लड़ाई
एक बात और ध्यान देने की है कि इस समय देश में एक बड़ी राजनीतिक हलचल चल रही है जिससे हम सब जुड़े हुए हैं। राम ने अपने पूरे जीवन में किसी भी छोटे राक्षस को मारते समय उससे बातचीत (निगोशिएट) नहीं की। खर, दूषण, सुबाहु- सबको सीधा मारा। उन्होंने एक ही आदमी से बातचीत की- रावण से। क्योंकि राम जानते थे कि आतंकवाद से लड़ाई में स्लीपर सेल के साथ समझौता नहीं किया जाता। उसको तो खत्म ही किया जाता है। और हमारी सरकारें, व्यवस्थाएं क्या कर रही हैं? स्लीपर सेल से बात कर रही हैं। तो अगर ‘राम-राज्य वालों’ को समझना है तो राम से ही समझें। उन्होंने अपने देश में रहने वाले किसी स्लीपर सेल से बात नहीं की। लंका, दूसरा देश था। उससे बातचीत जरूरी थी। उससे कहना जरूरी था तो बात की, जैसा कि हम पाकिस्तान के मामले में करते हैं। इतने समय से बातचीत करते हैं और उसके बाद फिर अपना काम भी दिखाते हैं।
लीडरशिप डेवलपमेंट
अंगद को राम ने रावण के पास भेजा। यहां राम का लीडरशिप डेवलपमेंट और कम्युनिकेशन स्किल डेवलपमेंट देखने लायक है। अंगद ने रावण के दरबार में जो पहली ही बात कही, उस पर आप हंस भी सकते हैं। रावण ने कहा कि मेरा और राम का क्या मुकाबला। तू जानता भी है कि मैं कौन हूं। वो तेरा फकीर, तपस्वी… वह मुझसे लड़ेगा। अंगद ने कहा, सर आप बिल्कुल ठीक बोल रहे हो। आपका और उनका कोई मुकाबला नहीं। रावण बहुत खुश हुआ कि दूत हमारे दुश्मन का भेजा हुआ है और हमारे पक्ष में बोल रहा है। उसकी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं था बोला, अंगद तुम बिल्कुल ठीक बोल रहे हो। मेरा और उसका कोई मुकाबला नहीं। यहां कम्युनिकेशन स्टाइल देखिए जो राम ने डेवलप कराया है, अंगद कहते हैं-
सिंधु तरयो उनको बनरा… बंदर भी नहीं कहा कि उसमें थोड़ा ग्रेस आ जाएगा-बनरा। हनुमान चाचा हैं अंगद के लेकिन रावण के दरबार वह उनको बंदर भी नहीं कह रहे, चाचाजी भी नहीं कह रहे क्योंकि डिप्रेशन में रावण को लाना है। तो कहते हैं-
सिंधु तरयो उनको बनरा, तुझपे धनु रेख गई न तरी।
उनका तो बंदर पूरा समुद्र पार कर आया और उनके छोटे भाई ने एक रेखा खींच दी थी तू उसे ही पार नहीं कर पाया। इसलिए तेरा और उनका क्या मुकाबला…?
सिंधु तरयो उनको बनरा तुझपे धनु रेख गई न तरी।
बानर बांधत सो न बंध्यो उन बारिधि बांध के बाट करी।।
अजहूं रघुनाथ प्रताप की बात तुम्हें दशकंठ न जाए परी।
तेलनि तूलनि पूंछ जरी न जरी, गढ़ लंक जराय जरी।।
तेरा सारा तेल लगा, तेरा सारा कपड़ा लगा, एक बंदर की पूंछ जलाने के चक्कर में तूने अपना पूरा नगर जलवा लिया। अब बता?
कलयुग केवल नाम अधारा
अगर साहस, सकारात्मकता, संवाद की कलात्मकता व सात्विकता की शक्ति को महाकवि केशवदास जैसे रससिद्ध आचार्य की काव्यकला का सानिध्य मिल जाए तो उस अक्षर-संगम में रामकथा का सर्वसिद्ध रस अनायास ही शतगुणित हो जाता है। रावण-अंगद संवाद में इस सुखद संयोग व सौन्दर्य को समग्रता से अनुभूत करने के लिए नवरात्र के इस पुण्य-काल से उपयुक्त समय भला और क्या होगा? इसे आप अपने दोस्तों तक भी जरूर पहुँचाइएगा क्योंकि हो सकता है कि किसी का मन होंठों तक आकर कुछ कहने सुनने में हकला रहा हो! हमारे पूर्वज वैसे भी कह गए हैं :
‘कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर नर उतरहि पारा!’
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