डॉ. मयंक चतुर्वेदी।
प्यू रिसर्च सेंटर का शोध कहता है कि 2060 तक पूरी दुनिया में मुसलमानों की कुल आबादी 2015 की तुलना में 70 प्रतिशत अधिक होगी। सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या वाले देशों में इंडोनेशिया पहले नंबर पर है, उसके बाद पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश का नंबर आता है। जो आज भारत में मुस्‍लिम जनसंख्‍या वृद्ध‍ि को हल्‍के में ले रहे हैं, उन्‍हें समझना होगा कि यदि 1947 के पूर्व मुसलमानों की संख्‍या भारत में नहीं बढ़ी होती, तो कभी पाकिस्‍तान अस्‍तित्‍व में ही नहीं आता। यह न सिर्फ एक एतिहासिक तथ्‍य है, बल्‍कि सामाजिक सच भी है।

बारहवीं शताब्दी तक मालदीव पर हिंदू राजाओं का शासन रहा, लेकिन आज यह एक मुस्लिम देश में बदल चुका है। कोई गैर-मुस्लिम मालदीव का नागरिक तक नहीं बन सकता। सभी को पता है कि अभी यह मालदीव भारत को ही आंख दिखाने का प्रयास कर रहा था। इंडोनेशिया दुनिया के किसी भी देश की तुलना में मुसलमानों की सबसे बड़ी आबादी वाला देश है। पहले ये भी हिंदू धर्म को माननेवाला देश था। इंडोनेशिया में मुस्लिमों की संख्या 24 करोड़ से ज्यादा है। आप सोच सकते हैं कि जनसंख्‍या बढ़ने का प्रभाव अंतत: क्‍या पड़ता है।

बढ़ती मुस्‍लिम आबादी 1: खतरे की घंटी सिर्फ भारत के लिए ही नहीं

पाकिस्तान और बांग्लादेश को भी देख सकते हैं, हिन्‍दू सनातन संस्‍कृति को माननेवाले आज मुसलमान हो चुके हैं। बात सिर्फ मुसलमान होने तक सीमित नहीं है, इन्‍होंने अपनी परंपरा और बुजुर्गों तक को बदल दिया। अपने इतिहास के अध्‍ययन में ये कभी नहीं बताते कि वे कल क्‍या थे और उनकी कितनी अधिक प्राचीन समृद्ध हिन्‍दू सनातन धर्म से जुड़ी ज्ञान परंपरा रही है, बल्‍कि यहां के अधिकांश मुस्‍लिम, हिन्‍दुओं को अपने शत्रु के रूप में देखते हैं। अरब से आए लुटेरों के साथ अपने एतिहासिक संबंध बताते हैं, उन्‍हें इतिहास में महानायक सिद्ध करने की कोशिश करते हैं।

भारत में जहां भी मुसलमानों की संख्‍या बढ़ी, वहीं शरिया लागू करने की कोशिशें शुरू, टकराव भी वहीं ज्‍यादा है।

भारत में जिन राज्‍यों में मुसलमानों की जनसंख्‍या अच्‍छी-खासी है, वहां हिन्‍दुओं या अन्‍य मत, पंथ, धर्मावलम्बी के साथ उतने ही अधिक टकराव आपको देखने को मिलते हैं। भारत के जिस भी राज्‍य में डेमोग्राफी में बदलाव हुआ है, वहां भयंकर परिणाम आज सामने आ चुके हैं। भारत में कई ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं, जहां किसी इलाके में मुस्लिमों की जनसंख्या अधिक है, वहां सारे नियम-कानून उनके ही मुताबिक चलाए जाने का प्रयास होने लगता है। इन स्‍थानों पर आप जाएंगे, तो आपको यही अनुभव में आएगा कि भारत के इस हिस्‍से में शरिया लागू है। पश्‍चिम बंगाल के सीमावर्ती जिले, झारखण्‍ड, बिहार, उत्‍तरप्रदेश का कैराना, कश्‍मीर, तमिलनाड़, मध्‍यप्रदेश में श्‍योपुर का कुछ हिस्‍सा है, जहां मदरसों में अवकाश शुक्रवार को रखा जा रहा है। महाराष्‍ट्र, गुजरात, हरियाणा, केरल, तेलंगाना या अन्‍य राज्‍य ही नहीं, बल्‍कि देश की राजधानी दिल्‍ली में मुस्‍लिम इलाकों की स्‍थ‍िति का आप अवलोकन कर लें, यही नजारा दिखाई देगा।

बढ़ती मुस्‍लिम आबादी 2: स्कैंडनेवियाई देशों में इस्लामीकरण का खतरा

वस्‍तुत: इस संबंध में वरिष्‍ठ पत्रकार रजत शर्मा की बातों को गहराई से समझने की आवश्‍यकता है। भारत जैसे विविधताओं वाले देश में, जहां हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी और दूसरे समुदाय मिल-जुलकर रहते हैं, मिली-जुली आबादी है, वहां जनसंख्या का असंतुलन होने से बहुत सारी समस्याएं पैदा होती हैं। समाज का ताना-बाना टूटता है। संसाधनों पर कब्जे की लड़ाई शुरू होती है और इस तरह की समस्याएं उन इलाकों में ज्यादा देखी गई हैं, जहां आबादी का अनुपात बिगड़ गया है। असम और केरल इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं। पश्चिम बंगाल के कुछ इलाके, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार में सीमांचल, राजस्थान में भरतपुर और हरियाणा में नूंह क्षेत्र, जहां जहां आबादी में असंतुलन हुआ, वहां से अक्सर लड़ाई, दंगे और सांप्रदायिक तनाव की खबरें आती हैं।

वे साफ कहते हैं कि ये कोई सिर्फ भारत की बात नहीं है, दुनिया में ऐसे कई देश हैं, जो इस समस्या से जूझ रहे हैं। इसलिए हमें भी सावधान रहने की ज़रूरत है। आज जिस रिपोर्ट (प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की धार्म‍िक आधार पर वैश्‍विक जनसंख्‍या की स्टडी) का जिक्र हमारे देश में हो रहा है, उसी तरह की रिपोर्ट दुनिया के कुछ समाजशास्त्रियों ने जारी की है, जिसमें कहा गया है कि अगर इसी रफ्तार से मुसलमानों की आबादी बढ़ती रही तो 2060 तक दुनिया में मुसलमानों की आबादी ईसाइयों से ज्यादा हो जाएगी। अगर इसी रफ्तार से मुसलमानों की आबादी बढ़ती रही, तो 2070 तक भारत दुनिया में सबसे ज्यादा मुसलमानों की आबादी वाला देश बन जाएगा।

बढ़ती मुस्‍लिम आबादी 3: इस्‍लामिक आतंक से सुलग रहा है पश्चिमी युरोप

अंत में यही कि सवाल मुसलमानों की जनसंख्‍या बढ़ने का नहीं है? सवाल इस्‍लाम से डरने का भी नहीं है? किंतु आज चिंता यह है कि मजहबीकरण के कारण से जिस तेजी के साथ दुनिया से मानवीय विविधता का सौंदर्य नष्‍ट या विलुप्‍त होता जा रहा है, संस्‍कृतियां समाप्‍त हो रही हैं, कलाएं नष्‍ट हो रही हैं, परम्‍पराएं विनाश की ओर जा रही हैं, यदि इसी प्रकार चलता रहा तो दुनिया में कुछ ही नाममात्र से धर्म, मजहब, पंथ रह जाएंगे। चिंता इस बात की है कि इसके कारण से अनेक ज्ञान की शाखाएं हमेशा के लिए विलुप्‍त हो जाएंगी, जिनको गढ़ने में मानव सभ्‍यताओं को सैकड़ों वर्षों तक श्रम करना पड़ा था। इस्‍लाम को लेकर अभी तक अध्‍ययन इसी निष्‍कर्ष पर पहुंचे हैं कि इसके पहुंचने के बाद अंतत: यही रह जाता है, बाकी सब नष्‍ट हो जाता है या नष्‍ट होने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। बस, डर इसी बात का है कि मानव सभ्‍यता के लिए जैसे इस्‍लामिक मान्‍यताओं की अपनी कुछ विशेषताएं हो सकती हैं, वैसे ही अन्‍य का भी अपना-अपना महत्‍व है, उनकी अपनी सादगी और खास उपयोगिता है, इसलिए उनका भी मानव सभ्‍यता और उसके विकास के लिए बना रहना जरूरी है। इन सभी की खूबसूरती और प्रकृति ही हमारी पृथ्‍वी को विशेष बनाती है और सच्‍चे अर्थों में मानव धर्म को व्‍याख्‍यायित करती हैं। (समाप्त)

(लेखक ‘हिदुस्थान समाचार न्यूज़ एजेंसी’ के मध्य प्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं)