कई बार संपादक जी आग्रह होता है कृपया छोटा लिखिएगा, बड़ा लिखेंगे तो पाठक भाग जाएंगे।
बालेन्दु शर्मा दाधीच।
क्या आपने कभी महसूस किया है कि सोशल मीडिया के इस दौर में हमारे मस्तिष्क की फोकस करने की क्षमता लगातार सिकुड़ती चली गई है। आज के दस बारह साल पहले इंटरनेट पर ब्लॉगों का दौर था। लोग लंबे-चौड़े ब्लॉग लिखते थे, कविताएँ, कहानियाँ, समीक्षाएँ आदि लिखते थे। उस जमाने में न जाने कितने लाख या करोड़ अच्छे आलेख तैयार किए गए। फिर फेसबुक जैसे सोशल नेटवर्किंग माध्यमों का दौर आया और हम ब्लॉगों के लंबे आलेखों से फेसबुक की एक-एक पैराग्राफ की टिप्पणियों पर आ गए। ब्लॉगों की दुनिया में सन्नाटा छा गया।
लेकिन हम फेसबुक पर ही नहीं रुके। इन्स्टाग्राम ने हमें सिखा दिया कि फोटो डालना काफी है, टिप्पणी की कोई ज़रूरत नहीं है। इनशॉर्ट्स जैसे मोबाइल एप्स ने हमें सिर्फ 60 शब्दों में खबरें पढ़ना सिखा दिया। ट्विटर ने हमारी टिप्पणियों को पहले 140 और फिर 280 कैरेक्टर्स तक समेट दिया। हम लगातार छोटे से छोटी टिप्पणी करने लगे जिसमें कोई गहन विमर्श, चिंतन, मनन या कोई ढंग की बात कहने की गुंजाइश नहीं थी। हमें इसकी ज़रूरत भी महसूस नहीं होती। और आगे बढ़ते हैं। अब हम व्हाट्सऐप्प पर एक-एक दो-दो लाइन के संवाद करते हैं।
जिन व्यापक, विस्तृत, दीर्घ, गहन और शोधपूर्ण आलेखों से हमारा ज्ञानवर्धन हो सकता है, उन्हें इंटरनेट पर हमने एक अलग नाम देकर जाति-बाहर कर दिया है। इन्हें कहा जाता है- Long Form Content, यानी लंबे आकार के आलेख। सही अर्थों में कहा जाए तो ऐसे आलेख जो हमारा बहुत सारा वक्त बर्बाद करेंगे और जिनकी कोई पूछ नहीं है। क्या जमाना आ गया है? ज्यादा मेहनत करके लिखे गए आलेख अब बेकार माने जाते हैं और इधर-उधर से उठाई गई छिटपुट सतही टिप्पणियाँ सोशल मीडिया पर ससम्मान फॉरवर्डित होती हैं। अब वेबसाइटों पर आठ सौ या एक हजार शब्दों के भी लेख नहीं मिलते। मुझसे कई बार लेख लिखने के लिए कहा जाता है तो संपादक जी का आग्रह होता है कि कृपया छोटा लिखिएगा। छोटा? यानी तीन सौ से साढ़े चार सौ शब्दों तक का। बड़ा लिखेंगे तो पाठक भाग जाएंगे। मेरे लेख की रेटिंग तो जो गिरेगी सो गिरेगी ही, उस वेबसाइट की भी छवि बिगड़ जाएगी।
क्या आप जानते हैं कि इंटरनेट पर पाठकों द्वारा किसी लेख या खबर को पढ़ने में लगाया जाने वाला औसत समय कितना है? यह है पंद्रह सैकंड। डिजिटल मीडिया में एक नियम है और वह यह कि पाठक आपके लेख की मेरिट का फैसला तीन सैकंड के भीतर करता है। वह एक सरसरी नज़र डालता है और तीन सैकंड के भीतर तय करता है कि इसे पढ़ा जाए या आगे बढ़ लिया जाए। सोशल मीडिया पर यह बाइट साइज ज्ञान और बाइट साइज फिल्मों का जमाना है। बाइट साइज का मतलब जानते हैं ना आप? वैसे तो तकनीकी दुनिया में बाइट का मतलब एक कैरेक्टर को सेव करने के लिए कंप्यूटर की हार्ड डिस्क में लिया जाने वाला स्पेस है। लेकिन यहाँ पर बाइट साइज से तात्पर्य है बेहद छोटा।
सबसे नया और सबसे ज्यादा लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म क्या है? वह है यूट्यूब शॉर्ट्स, फेसबुक शॉर्ट्स और इंस्टाग्राम रील्स। इन्होंने टिकटॉक से प्रेरणा ली है, जिसमें तीन सैकंड से लेकर 15 सैकंड तक के वीडियो पोस्ट किए जाते थे। टिकटॉक की सफलता ने दूसरे बड़े प्लेटफॉर्मों को भी आकर्षित कर लिया। यहाँ आते हैं तीन, पाँच, आठ, दस और तीस सैकंड के वीडियो। और ये सब बहुत लोकप्रिय हो रहे हैं। दिशा स्पष्ट है।
सोशल मीडिया के चार बुनियादी तत्व हैं। पहला नेटवर्किंग, दूसरा कम्युनिकेशन या संचार, तीसरा कंजम्प्शन या उपभोग और चौथा क्रिएशन। हम सबने पहले तीन में महारत हासिल कर ली है लेकिन चौथे में हम बहुत पीछे हैं। आइए हम चौथे स्तंभ पर फोकस करें और कन्टेन्ट क्रिएशन या सामग्री के निर्माण में जुटें। हम दूसरों के द्वारा इस्तेमाल न हो जाएं बल्कि इन अद्भुत माध्यमों से खुद भी लाभ उठाना सीखें। और हाँ, हम सब कन्टेन्ट क्रिएशन में जुटेंगे तो शायद हमारी हिंदी जो इस समय इंटरनेट पर भाषाओं की दृष्टि से 38 वें नंबर पर है, शीर्ष दस में जगह बना सकेगी।
(लेखक जाने माने तकनीकीविद हैं और माइक्रोसॉफ़्ट में ‘निदेशक-भारतीय भाषाएं और सुगम्यता’ के पद पर कार्यरत हैं)