यूं ही नहीं है दुनिया को उम्मीद।
हितेश शंकर।
भारत को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। सोने की चिड़िया कहने का तात्पर्य भौतिक वैभव से था। लेकिन यह ऐश्वर्य भारत के पास कोई इसलिए नहीं आ गया था कि तब के भारतीय कोई बहुत धुरंधर व्यापारी हुआ करते थे। यह ऐश्वर्य भारत के ज्ञान-भंडार का एक प्रतिफल था। इसलिए जब कोई विदेशी आक्रांता हमारे भौतिक ऐश्वर्य को लूटकर ले गया तो वह हमारे लिए कोई दीर्घकालिक चिंता की बात नहीं थी। कारण, अगर ज्ञान है, हुनर है तो ये तो फिर कमा लिए जाएंगे। लेकिन भारत को सबसे बड़ा नुकसान उसके ज्ञान से उसे वंचित कर देने से हुआ।
भारतीय ज्ञान परंपरा में सबकी चिंता की जाती है। हमारे लिए कोई पराया नहीं, चर-अचर कोई भी नहीं। हमें सबके साथ मिलकर जीने की शिक्षा दी जाती है। इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस की थीम भी यही है ‘केवल एक पृथ्वी’। पर्यावरण दिवस 5 जून को मनाया जाता है।
भारत के पास दुनिया की समस्याओं का निदान
भारत का पाला ऐसे अमानवीय आक्रमणकारियों से पड़ा, जिन्हें भारत के ज्ञान पर गुस्सा आता था। दुश्मन की सेना पर हमला करना, उसे मार देना तो समझ में आता है, लेकिन शिक्षा के स्थान को तबाह कर देना तो बर्बरता है, हत्या से भी बुरा और सभ्यता को कालखंड में पीछे धकेल देने वाला। इससे पूरी मानवता पीछे जाती है। कोई बख्तियार खिलजी गुस्से में नालंदा विश्वविद्यालय को जला देता है और वहां की लाखों किताबें तीन माह तक जलती रहती हैं। तो, अंग्रेज जो ‘हमें सभ्य बनाने की दैवीय जिम्मेदारी’ निभाते हुए हमें लूटते-खसोटते हैं और हमारी शिक्षा पद्धति को बदलकर मैकाले की शिक्षा व्यवस्था के जरिये हमें एक ‘निर्देशों’ का पालन करने वाली फौज में तब्दील करने का चक्रव्यूह रचते हैं। लेकिन एक बात तय मानिए, दुनिया की जितनी भी समस्याएं हैं, उनका जड़ से निदान अगर कहीं है, तो वह भारत भूमि पर ही है।
समस्त जीवों, संपूर्ण प्रकृति के साथ तालमेल
इसका कारण है। भारतीय ज्ञान परंपरा में सबकी चिंता की जाती है। हमारे लिए कोई पराया नहीं, चर-अचर कोई भी नहीं। हमें सबके साथ मिलकर जीने की शिक्षा दी जाती है। योग के पूरे दर्शन का आधार ही समस्त जीवों, संपूर्ण प्रकृति के साथ तालमेल बैठाकर जीना है। योग को सिर्फ शारीरिक व्यायाम समझना तो इसे न समझने के बराबर है। योग तन को मन से, और मन को ब्रह्म यानी प्रकृति से जोड़ने का माध्यम है। योग व्यक्ति के अंदर सामाजिकता के भाव को जगाता है। कर्मयोग, ज्ञानयोग, अष्टांग योग जैसे योग विज्ञान के विभिन्न अंग व्यक्ति को बेहतर सामाजिक प्राणी बनने में मदद करते हैं। योग व्यक्ति के व्यवहार और विचारों में अहिंसा, सत्य, संयम आदि गुणों के विकास में मदद करता है। यह मनुष्य में उदारता और सभी के प्रति संवेनशील बनने का भाव पैदा करता है। तो अगर विश्व को कटुता के भाव को कम करके सहचर्य की ओर बढ़ना है, तो भारत के योग दर्शन की ओर बढ़ना होगा।
पहला सुख निरोगी काया
भारतीय ज्ञान परंपरा में शरीर को निरोग रखने को खासा महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि अगर तन बीमार हुआ तो मन भी स्वस्थ नहीं रह सकेगा। और अगर मन स्वस्थ न रहा तो वर्तमान में हासिल सुख का क्या और भविष्य में इच्छित सुख का क्या? इसलिए भारत में आचार-विचार के स्वास्थ्य की बात की गई। रसोई को हमारे स्वास्थ्य की चाबी माना गया। रसोई में खाने में मिलाए जाने वाले मसालों को हम औषधि मानते रहे हैं जिसमें ज्यादातर व्याधियों का इलाज है और ज्यादातर व्याधियों को होने से रोकने के उपाय भी। और अगर फिर भी किसी बीमारी के चक्कर में पड़ ही गए तो आयुर्वेद का ज्ञान है। आयुर्वेद एक पूर्ण चिकित्सा पद्धति है और यह इतनी प्राचीन है कि उस समय पश्चिम में चिकित्सा विज्ञान ने जन्म भी नहीं लिया था। ईसा से 700 साल पहले तक्षशिला में अपनी तरह का दुनिया का पहला विश्वविद्यालय हुआ करता था जहां वैसे तो 60 से ज्यादा विषयों की पढ़ाई होती थी, लेकिन आयुर्वेद के मामले में तो यह अव्वल था। इसके 1200 साल बाद का नालंदा विश्वविद्यालय भी ज्ञान का अद्भुत केंद्र था और यहां का आयुर्वेद विभाग भी बड़ा उत्कृष्ट था। फिर हमारे पास सुश्रुत का ज्ञान था जो न केवल जड़ी-बूटियों से इलाज की बात करता था बल्कि तमाम तरह के ऑपरेशन और उन ऑपरेशन में इस्तेमाल होने वाले खास तरह के उपकरण-औजारों का बात करता था।
ऐसी जीवनशैली जिसमें सभी शंकाओं का समाधान
भारत की समतामूलक और सह-अस्तित्व वाली ज्ञान धारा एक ऐसी जीवनशैली का आधार है जिसमें व्यक्ति और समाज से लेकर राष्ट्र और समस्त विश्व की सभी शंकाओं का समाधान है। दुनिया में अगर शांति और व्यवस्था आनी है तो वह भारतीय दर्शन से ही आएगी जो सबके स्वास्थ्य, सबकी प्रगति की चिंता करते हुए प्रकृति के प्रति भी उतनी ही संवेदनशील है। पर्यावण समेत दुनिया के समस्त रोगों का रामबाण भारत के पास ही है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और ‘पाञ्चजन्य’ के सम्पादक हैं)