मुंबई, सूरत, भोपाल के अलावा अन्य कई देशों तक होने लगा है निर्यात।

मोती उत्पादन में अब हमारा देश दुनिया के अन्य देशों को पीछे छोड़ते हुए सिरमौर बनता जा रहा है। महाराष्ट्र के अलावा मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और राजस्थान में मोती की खेती के लिए कई प्रशिक्षण शिविर चलने लगे हैं। इन शिविरों में प्रशिक्षण लेकर अनगिनत लोगों ने मोतियों का उत्पादन शुरू करके अपनी क्रय शक्ति मजबूत की है। मोतियों के बड़े बाजार में शुमार हो चुके मुंबई, सूरत, भोपाल के अलावा अन्य कई देशों तक निर्यात होने लगा है।राष्ट्रीय स्तर पर मोती उत्पादक किसान का पुरस्कार ले चुके अहमदनगर के अशोक मनवानी के अनुसार इस खेती के लिए समुद्री तटों से सस्ते में सीपिया आसानी से खरीदी जा सकती है, और छोटे पैमाने के साथ-साथ बड़े स्तर पर भी यह खेती की जा सकती हैं।

भारत कुदरती हकदार

पर्ल एक्वाकल्चर के वैज्ञानिक डॉ. अजय सोनकर के अनुसार हमारे देश में सीपों की दुर्लभ प्रजातियां हैं। पिंक टाडा मार्गेरेटिफेरा, पिंक टाडा मैक्सिमा और टीरिया पैंग्विन जैसी दुर्लभ प्रजातियां बड़ी मात्रा में उपलब्ध हैं। भारत मोती उत्पादन में दुनिया का अग्रणी देश बने, जिसका वो कुदरती हकदार है। यहां असंभव माने जाने वाले 22 मिमी आकार का काला मोती बनाकर जापान सहित दुनिया के तमाम मोती उत्पादक देशों को अचंभित कर दिया है।

आसान है खेती करना

मोतियों की खेती एक्वाकल्चर व्यवसाय का हिस्सा है। इसे मछली पालन के साथ में किया जा सकता है। खेती के लिए किसान को पहले सीप लेनी होती है। इसके बाद प्रत्येक सीप में छोटी-सी शल्य क्रिया करनी पड़ती है। इस शल्य क्रिया के बाद सीप के भीतर एक छोटा-सा नाभिक तथा मेटल ऊतक रखा जाता है। फिर सीप को बंद किया जाता है। मेटल ऊतक से निकलने वाला पदार्थ नाभिक के चारों ओर जमने लगता है। अंत में यह मोती का रूप लेता है।

कुछ दिनों के बाद सीप को चीर कर मोती निकाल लिया जाता है। मोती की खेती के लिए सबसे अनुकूल मौसम शरद ऋतु यानी अक्टूबर से दिसंबर तक का समय माना जाता है। वर्तमान में हमारे देश के कई प्रदेशों में मोतियों की खेती करने के लिए प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए जा चुके हैं। झारखंड सरकार ने तो आदिवासी लोगों के लिए वंदन विकास योजना के तहत किसानों को मोती की खेती करना सिखा दिया है। (एएमएपी)