आपका अखबार ब्यूरो।
“भारत को ये तय करना है कि भारत कहां खड़ा है। क्या वो एक मूकदर्शक बना रहेगा।… देश को इस पर विचार करना होगा।… हमें एक ऐसे विश्व का निर्माण करना है, जिसमें समृद्धि, सुख शांति हरेक व्यक्ति के लिए, व्यक्ति ही नहीं हरेक प्राणी को मिलना चाहिए। इसके लिए एक नए रिवॉल्यूशन की, मानसिक रिवॉल्यूशन की जरूरत होगी।” यह बात पूर्व केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रो. (डॉ.) मुरली मनोहर जोशी ने कही। वह इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के कलानिधि विभाग द्वारा आयोजित पांचवें “श्री देवेन्द्र स्वरूप स्मारक व्याख्यान” में मुख्य वक्ता के तौर पर बोल रहे थे। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता आईजीएनसीए के अध्यक्ष श्री रामबहादुर राय ने की। इस अवसर पर आईजीएनसीए के कलानिधि प्रभाग के अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) रमेश चंद्र गौर भी उपस्थित थे।
गौरतलब है कि प्रख्यात चिंतक, पत्रकार और इतिहासकार श्री देवेन्द्र स्वरूप की स्मृति में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र पिछले चार वर्षों से “श्री देवेन्द्र स्वरूप स्मारक व्याख्यान” का आयोजन करता आ रहा है। इस वर्ष “श्री देवेन्द्र स्वरूप स्मारक व्याख्यान” का विषय था- “बदलते हुए वैश्विक परिदृश्य में भारत”। श्री देवेन्द्र स्वरूप जी का जन्म मुरादाबाद के काठ ग्राम में 30 मार्च 1926 को हुआ था। वे एक शिक्षक, इतिहासकार, खोजी तथा ज्ञान की सामूहिक चेतना के संरक्षक, सृजनात्मक चिंतन के बहुआयामी व्यक्तित्व थे।
“श्री देवेन्द्र स्वरूप स्मारक व्याख्यान” में प्रो. (डॉ.) मुरली मनोहर जोशी ने “बदलते हुए वैश्विक परिदृश्य में भारत” विषय पर व्याख्यान देते हुए पिछले ढाई सौ सालों में बदलती विश्व व्यवस्था का विश्लेषण किया और कहा कि श्रम और श्रम के उद्द्श्य में अलगाव हो गया। श्रम का विपणन (मार्केटिंग) एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। वाष्प इंजन के अविष्कार के बाद दुनिया की गति में तेजी आई। जब से यंत्रों के आविष्कार हुए, तब से दुनिया की गति और तेज हो गई और औद्योगिकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ। उन्होंने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह मानव के विकास का सूचक नहीं है, शोषण का सूचक है। जो कुछ हो रहा है, वास्तविकता से परे है। क्या जीडीपी वास्तविक इंडेक्स है, क्या मार्केट वास्तविक इंडेक्स है? उन्होंने कहा, “हम किधर जा रहे हैं, कहां जा रहे हैं? विश्व अशांत क्यों हैं? विश्व हिंसक क्यों है?” उन्होंने कहा कि जो चीज खुशी नहीं दे सकती, उसे बदलने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि एक संतुलित विश्व की आवश्यकता है, जिसमें यंत्र भी होगा, समृद्धि भी होगी, शांति भी होगी। हाहाकार नहीं होगा। भारत इस स्थिति में है कि दुनिया को संतुलित जीवन का दृष्टिकोण दे सके। गुरु नानक ने 500 साल पहले संदेश दिया था- नाम जपो, कीरत करो, वंड छको। यानी ईश्वर का स्मरण करो, श्रम करो और जो है, उसे बांटकर खाओ। उससे पहले उपनिषदों ने भी ये संदेश दिया था। डॉ. जोशी ने इस संदर्भ में योग का उदाहरण भी दिया, उन्होंने कहा कि भारत ने दुनिया को “योग” दिया और दुनिया ने उसे हाथोंहाथ लिया, क्योंकि दुनिया परेशान है। दुनिया को हमारे सूत्र की आवश्यकता है। हमने विश्व को एक कुटुंब माना और हमने कहा कि जीवन को टुकड़ों में बांट कर नहीं देख सकते। जीवन समग्र है। इसलिए समग्र दृष्टि वाला चिंतन चाहिए।
इस अवसर पर श्री रामबहादुर राय ने कहा कि मुरली मनोहर जोशी को सुनना सीखने की दृष्टि से, सोचने की दृष्टि से एक अद्भुत अनुभव होता है। कार्यक्रम के अंत में आईजीएनसीए के कला निधि विभाग के श्री ओ. एन. चौबे ने सभी वक्ताओं और आगंतुकों का स्वागत किया। मंच संचालन श्रीमती यति शर्मा ने किया।