1,080 पॉजिटिव रोगियों की पहचान।
निपाहरोधी वैक्सीन पर काम कर रहा है आईसीएमआर।
अस्पतालों को मेडिकल बोर्ड बनाने का निर्देश
केरल स्वास्थ्य विभाग ने बताया है कि उसने पॉजिटिव रोगियों की कॉन्टैक्ट लिस्ट में कुल 1,080 व्यक्तियों की पहचान कर सैंपल एकत्र करना शुरू कर दिया है।एहतियात के तौर पर, कोझिकोड में सभी शैक्षणिक संस्थान अगले रविवार तक एक सप्ताह के लिए बंद रहेंगे, जबकि ऑनलाइन कक्षाएं सुनिश्चित की जाएंगी। इस बीच, निपाह मामलों का इलाज करने वाले सभी अस्पतालों को एक मेडिकल बोर्ड बनाने का निर्देश दिया गया है, जो दिन में दो बार बैठक करेगा और रिपोर्ट स्वास्थ्य विभाग को सौंपेगा।
संक्रमण पर नज़र रखने के लिए 19 समितियां बनाई गई
स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने कहा कि अन्य जिलों में लगभग 29 लोग निपाह संक्रमित लोगों की संपर्क सूची में हैं। उन्होंने कहा कि संपर्क सूची बढ़ने की संभावना है और 30 अगस्त को मरने वाले व्यक्ति के दाह संस्कार में शामिल होने वाले 17 लोगों को क्वारंटीन कर दिया गया है। जॉर्ज कहना है कि ऐसे मरीज़ जिनमें लक्षण नज़र आते हैं तो उन्हें मेडिकल कॉलेज भेजा जाएगा। हमने टेलीमेडिसिन की व्यवस्था की है। इसके साथ ही निपाह वायरस के संक्रमण पर नज़र रखने के लिए 19 समितियां बनाई हैं। हाई रिस्क कैटेगरी वाले किसी शख़्स में अब तक किसी तरह के लक्षण नहीं दिखे हैं। हमारे पास मेडिकल कॉलेज में 75 कमरों को आइसोलेशन के लिए तैयार किया गया है। वहीं, मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराए गए 13 लोगों में हल्के लक्षण पाए गए हैं।
मोनोक्लोनल एंटीबॉडी की 20 और खुराक खरीदी जाएगी
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने कहा है कि निपाह पर नियंत्रण के लिए वह ऑस्ट्रेलिया से मोनोक्लोनल एंटीबॉडी की 20 और खुराक खरीदेगी। आईसीएमआर के डीजी राजीव बहल ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया से खरीदी जा रही दवा को संक्रमण के शुरुआती चरण के दौरान दिए जाने की जरूरत है। भारत में अब तक किसी को भी यह दवा नहीं दी गई है। उन्होंने बताया कि निपाह में संक्रमित लोगों की मृत्यु दर कोविड में मृत्यु दर की तुलना में बहुत अधिक (40 से 70 प्रतिशत के बीच) है। आईसीएमआर इस वायरल बीमारी के खिलाफ टीका विकसित करने की भी योजना बना रहा है।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के चीफ डॉक्टर राजीव बहल ने कहा कि निपाह वायरस से होने वाली मौतों की दर कोरोना से भी ज्यादा है। उन्होंने कहा कि भारत के बाहर निपाह वायरस से संक्रमित हुए 14 लोग मोनोक्लोनल एंटीबॉडी लेने के बाद पूरी तरह से ठीक हो गए हैं. दवा को सुरक्षित करने के लिए बाहर सिर्फ केवल चरण 1 का परीक्षण किया गया है. हालांकि, अभी तक प्रभावकारिता परीक्षण नहीं किया गया है।
फर्जी खबरें पोस्ट करने वालों पर मामला दर्ज
इस बीच, केरल पुलिस ने इस संबंध में एक व्यक्ति के खिलाफ कथित तौर पर वायरस से संबंधित फर्जी खबरें पोस्ट करने का मामला दर्ज किया है। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, कोइलांडी निवासी अनिल कुमार ने कथित तौर पर सोशल मीडिया के माध्यम से फर्जी खबर प्रसारित की, जिसमें दावा किया गया कि निपाह वायरस फार्मा कंपनियों द्वारा बनाई गई एक नकली कहानी है। वहीं केरल उच्च न्यायालय ने महामारी के मद्देनजर शुक्रवार को राज्य सरकार से कहा कि यदि आवश्यक हो सबरीमाला तीर्थयात्रा के लिए दिशानिर्देश जारी किए जाएं।
उल्लेखनीय है कि मस्तिष्क को नुकसान पहुंचाने वाला वायरस संक्रमित चमगादड़, सूअर या लोगों के शरीर के तरल पदार्थ के संपर्क से फैलता है। इस वायरस का पहली बार 2018 में पता चला था। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक़ निपाह वायरस (NiV) एक तेज़ी से उभरता वायरस है, जो जानवरों और इंसानों में गंभीर बीमारी को जन्म देता है. NiV के बारे में सबसे पहले 1998 में मलेशिया के कम्पंग सुंगाई निपाह से पता चला था । वहीं से इस वायरस को ये नाम मिला। उस वक़्त इस बीमारी के वाहक सूअर बनते थे। लेकिन इसके बाद जहां-जहां NiV के बारे में पता चला, इस वायरस को लाने-ले जाने वाले कोई माध्यम नहीं थे. साल 2004 में बांग्लादेश में कुछ लोग इस वायरस की चपेट में आए। इन लोगों ने खजूर के पेड़ से निकलने वाले तरल पदार्थ को चखा था और इस तरल पदार्थ तक वायरस को लेने जानी वाले चमगादड़ थे जिन्हें फ्रूट बैट कहा जाता है।
अब तक कोई इलाज नहीं
इस वायरस के एक इंसान से दूसरे इंसान तक पहुंचने की पुष्टि भी हुई. और ऐसा भारत के अस्पतालों में हुआ है । इंसानों में NiV इंफ़ेक्शन से सांस लेने से जुड़ी गंभीर बीमारी हो सकती है या फिर जानलेवा इंसेफ़्लाइटिस भी अपनी चपेट में ले सकता है। इंसानों या जानवरों को इस बीमारी को दूर करने के लिए अभी तक कोई इंजेक्शन नहीं बना है। सेंटर फ़ॉर डिसीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के मुताबिक़ निपाह वायरस का इंफ़ेक्शन एंसेफ़्लाइटिस से जुड़ा है, जिसमें दिमाग़ को नुक़सान होता है।
ये हैं बीमारी के लक्षण
इस वायरस से संक्रमित होने के बाद व्यक्ति 3 से 14 दिन तक तेज़ बुख़ार और सिरदर्द का सामना कर सकता है। ये लक्षण 24 से 48 घंटों में मरीज़ को कोमा में पहुंचा सकते हैं। इंफ़ेक्शन के शुरुआती दौर में सांस लेने में समस्या होती है जबकि लगभग आधे मरीज़ों में न्यूरोलॉजिकल दिक्कतें भी होती हैं। साल 1998-99 में इस वायरस की चपेट में 265 लोग आए थे। अस्पतालों में भर्ती हुए इनमें से क़रीब 40% मरीज़ ऐसे थे जिन्हें गंभीर नर्वस बीमारी हुई थी और उन्हें बचाया नहीं जा सका था। आम तौर पर इंसानों में ये वायरस इंफेक्शन की चपेट में आने वाले चमगादड़ों, सूअरों या फिर दूसरे इंसानों से फैलता है। मलेशिया और सिंगापुर में इसके सूअरों के ज़रिए फैलने की जानकारी मिली थी जबकि भारत और बांग्लादेश में इंसान से इंसान का संपर्क होने पर इसकी चपेट में आने का ख़तरा ज़्यादा रहता है।(एएमएपी)