पांच साल में 50155 कर्मियों ने छोड़ी नौकरी।
रिपोर्ट में सामने आए हैं ऐसे कारण
बल मुख्यालय द्वारा आत्महत्या के मामलों के पीछे की वजह जानने के लिए विभिन्न केसों का अध्ययन कराया गया था। बल मुख्यालय की रिपोर्ट में सामने आया है कि अधिकांश केसों में कार्मिक, पारिवारिक कलह, विवाहोत्तर संबंध, प्यार में नाकाम होने और कर्ज के दलदल में फंसने की वजह से मानसिक तनाव ग्रस्त हो जाते हैं। ऐसे में कार्मिक अंतत: आत्महत्या जैसा घोर घृणित कदम उठा लेते हैं। हालांकि बल महानिदेशालय द्वारा पूर्व में भी समय-समय पर ऐसे निर्देश जारी किए जाते रहे हैं। बल की तरफ से कहा गया है कि सभी स्तरों पर ऐसे तनाव ग्रस्त कार्मिकों की पहचान की जाए। इन कार्मिकों को मनोरोग विशेषज्ञ द्वारा परामर्श दिलाया जाए। जब तक वह कर्मी, तनाव मुक्त न हो जाएं, उन्हें विशेष निगरानी में रखें। ऐसे कार्मिकों को हथियार की पहुंच से दूर रखा जाए। मनोवैज्ञानिक सलाह के लिए टेलीफोन नंबर भी जारी किया गया है। भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय द्वारा जारी मानसिक स्वास्थ्य एवं पुनर्वास के लिए टोल फ्री नंबर दिया गया है। सीमा सुरक्षा बल एवं एम्स के एमओयू द्वारा मुफ्त परामर्श के लिए भी कुछ फोन नंबर जारी किए गए हैं।

पांच साल में 654 से ज्यादा जवानों ने की आत्महत्या
केंद्रीय अर्धसैनिक बलों सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी, सीआईएसएफ, असम राइफल्स और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड में जवानों व अधिकारियों द्वारा आत्महत्या करने के मामले कम नहीं हो पा रहे हैं। गत पांच वर्ष में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के 654 से अधिक जवानों ने आत्महत्या कर ली है। आत्महत्या करने वालों में सीआरपीएफ के 240, बीएसएफ के 174, सीआईएसएफ के 89, एसएसबी के 64, आईटीबीपी के 51, असम राइफल के 43 और एनएसजी के तीन जवान शामिल हैं।
बजट सत्र के दौरान गृह मंत्रालय की संसदीय समिति ने अपनी 242वीं रिपोर्ट में कहा था कि आत्महत्या के केस, बल की वर्किंग कंडीशन पर असर डालते हैं। सेवा नियमों में सुधार की गुंजाइश है। जवानों को प्रोत्साहन दें। रोटेशन पॉलिसी के तहत पोस्टिंग दी जाए। लंबे समय तक कठोर तैनाती न दें। ट्रांसफर पॉलिसी ऐसी बनाई जाए कि जवानों को अपनी पसंद का ड्यूटी स्थल मिल जाए। अगर ऐसे उपाय किए जाते हैं तो नौकरी छोडक़र जाने वालों की संख्या कम हो सकती है।(एएमएपी)



