सरबजीत सिंह: 1963 – 2 मई 2013

रमेश शर्मा
सरबजीत सिंह वो निर्दोष भारतीय नागरिक था जो नशे की हालत में धोखे से पाकिस्तान की सीमा में चला गया। जेल में कठोर यातनाएं देकर कैदियों ने हत्या कर दी। जब उसका शव भारत आया तो उसके शरीर के सभी आंतरिक अंग गायब थे।

किसी भी सरकार की विदेश नीति और नेतृत्व कैसा होना चाहिए? कहाँ मानवीय पक्ष को प्राथमिकता हो, कहाँ सख्त तेवर दिखाये जाएं- ये दोनों उदाहरण  भारत की विभिन्न सरकारों की कार्यशैली में देखने को मिलते हैं। एक उदाहरण निर्दोष नागरिक सरबजीत सिंह का है जो धोखे से पाकिस्तान चला गया। उसे बंदी बनाकर जेल भेज दिया गया जहाँ तेइस वर्षों तक जेल में कठोर यातनाएँ देकर कैदियों ने मार डाला और भारत सरकार केवल विरोध पत्र लिखने के अतिरिक्त कुछ न कर सकी। भारत का ही दूसरा उदाहरण विंग कमांडर अभिनंदन का है जो एयर स्ट्राइक के लिये विमान लेकर पाकिस्तान सीमा में गये थे। बंदी बनाये गये लेकिन यह भारतीय नेतृत्व का दबाव था कि केवल 60 घंटों में ही पाकिस्तान ने अभिनंदन को ससम्मान भारत वापस भेज दिया।

जिन दिनों सरबजीत पाकिस्तान की जेल में था तब भारत में हर दल की सरकार रही। सबसे लंबी दो सरकारें काँग्रेस की रहीं। पहले प्रधानमंत्री नरसिंहराव की और फिर दस वर्ष मनमोहन सिंह की सरकार रही। पर सरबजीत का भाग्य न बदला। पाकिस्तानी जेल में उसे सतत यातनायें मिलीं। सरबजीत सिंह का जन्म पंजाब के तरनतारन जिला अंतर्गत गांव भीखीविंद में हुआ था। यह एक किसान परिवार था लेकिन पिता सुलक्षण सिंह ढिल्लो अपने गाँव से दूर उत्तर प्रदेश परिवहन विभाग में नौकरी करने लगे। मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण कर सरबजीत गांव लौट आये और खेती करने लगे। अपनी आय बढ़ाने के लिये एक ट्रेक्टर खरीदकर भाड़े पर दूसरे गांवों में भी खेती करने लगे। 1984 में विवाह हुआ और दो बेटियों के पिता बने। जीवन खुशी से बीतने लगा। समय के साथ उन्हें शराब पीने की आदत लग गई और यही आदत पूरे घर का सुख चैन और उनकी जान ले बैठी।

Aishwarya, Randeep Remember Sarabjit Singh on His 3rd Death Anniversary

वह 28 अगस्त 1990 का दिन था। वे पाकिस्तान सीमा से लगे गांव में भाड़े पर ट्रैक्टर चला रहे थे। शाम को काम समाप्त कर शराब पी, भोजन किया। शाम को लौटने लगे। तब सीमा पर तार की बाड़ नहीं लगी थी। सरबजीत नशे में रास्ता भटक गये और पाकिस्तान सीमा में घुस गये। पाकिस्तानी सेना पकड़ लिया। उन पर जासूसी का आरोप लगाकर सात दिन प्रताड़नाएँ दी गईं। उन पर आरोप लगाया गया कि वे सरबजीत सिंह नहीं मंजीत सिंह हैं। पाकिस्तान में इस नाम से एक एफआईआर थी। सेना ने इसी नाम से अदालत में पेश किया और आरोप लगाया कि आरोपी सही नाम नहीं बता रहा। सेना ने सरबजीत सिंह को अदालत में मंजीत सिंह के नाम से पेश किया। अदालत में उन्हें भारतीय गुप्तचर संस्था रॉ का एजेंट बताकर लाहौर, मुल्तान और फैसलाबाद बम धमाकों का आरोपी भी बनाया गया। इन आरोपों पर अदालत ने अक्टूबर 1991 में उन्हें फांसी की सजा सुना दी।

सरबजीत सिंह के परिवार ने भारत सरकार से भी संपर्क किया और मानवाधिकार संगठनों से भी। प्रमाण के साथ बताया गया कि वे मंजीत सिंह नहीं सरबजीत सिंह हैं। लिखापढ़ी आरंभ हुई। भारत सरकार और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने पत्र भी लिखे। इससे फांसी की सजा टलती रही पर सरबजीत रिहा न हो सके।

1990 से 2013 तक यद्यपि भारत में विभिन्न राजनैतिक दलों की सरकारें रहीं। काँग्रेस के नेतृत्व में नरसिंहराव सरकार, मनमोहन सिंह सरकार और भाजपा नेतृत्व में अटलजी की सरकार। लेकिन ये सभी सरकारें राजनैतिक अस्थिरता के दौर में रहीं और पाकिस्तान सरकार पर कोई दबाव नहीं बना सकीं। इसका पूरा लाभ पाकिस्तान ने उठाया। 1990 से लेकर 2013 तक भारत में न केवल निर्दोष सरबजीत सिंह पर क्रूरता हुई अपितु पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी घटनाएँ भी बढ़ी। पाकिस्तान ने अनेक झूठ रचे। फर्जी दस्तावेज तैयार किये। ऐसे गवाह भी खड़े किये कि सरबजीत सिंह ही असली मंजीत सिंह है। और वह खुशी मोहम्मद के नाम से पाकिस्तान में आया था। 2005 में एक दावा तो यह भी किया कि सरबजीत सिंह उर्फ मंजीत सिंह ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है। इस खींचतान और लिखापढ़ी के बीच फांसी की सजा तो टली पर सरबजीत सिंह को रिहाई न मिली।

Wife of Sarabjit Singh, who died in Pakistan jail in 2013, killed in road  accident - India Today

रिहाई की उम्मीद और फांसी की आशंका के बीच सरबजीत सिंह लाहौर सेन्ट्रल जेल में यातनाएँ सहते रहे। लेकिन रिहाई उम्मीद कमजोर हो गई। 26 अप्रैल 2013 को लाहौर जेल के कुछ कैदियों ने सरबजीत सिंह पर हमला बोल दिया था। रीढ़ की हड्डी सहित उनके शरीर की कई हड्डियाँ टूट गईं थीं। बहुत गंभीर स्थिति में अस्पताल लाया गया। वे कोमा में थे और उनकी रीड की हड्डी भी टूट चुकी थी। फिर भी हॉस्पिटल में उन्हें वेंटीलेटर पर रखा। 29 अप्रैल 2013 को भारत सरकार ने एक बार फिर पकिस्तान से रिहा करने की अपील की। जिसे पकिस्तान सरकार ने खारिज कर दिया।

1 मई 2013 को जिन्ना अस्पताल के डॉक्टरो ने सरबजीत सिंह को ब्रेनडेड और 2 मई 2013 को मृत घोषित कर दिया। उनका शव भारत आया। भारत में शव का पोस्टमार्टम हुआ। भारतीय डॉक्टर यह देखकर आश्चर्यचकित रह गये कि उनके शरीर के अधिकांश मुख्य अंग निकाल लिये गये थे। क्यों निकाले- इसका उत्तर कभी न मिला और न पाकिस्तान ने स्वीकार किया। सरबजीत सिंह के परिवार को पंजाब और केंद्र सरकार ने आर्थिक सहायता दी। पंजाब में तीन दिन का शोक भी घोषित हुआ। पर सरबजीत सिंह के प्राण के साथ भारत की प्रतिष्ठा भी न बच सकी।

इस संदर्भ में वर्ष 2019 की उस घटना का उल्लेख संभवतः उचित होगा जब एयर स्ट्राइक के दौरान विंग कमांडर अभिनंदन पाकिस्तान में गिरफ्तार हो गये। तब भारत सरकार का दबाव ही था कि पाकिस्तान ने केवल साठ घंटे के भीतर ससम्मान वापस किया। बाद में अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट में कहा गया कि यदि पाकिस्तान विंग कमांडर अभिनंदन को रिहा न करता तो भारत ने पाकिस्तान पर आक्रमण की तैयारी कर ली थी। पाकिस्तान की जेल में जब सरबजीत सिंह की क्रूरतापूर्वक हत्या हुई तब भारत में मनमोहन सिंह की सरकार थी और जब विंग कमांडर अभिनंदन भारत लौटे तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार थी। हालांकि सरबजीत सिंह की पहली पुण्यतिथि के पूर्व ही उनकी हत्या के आरोपी और लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के संस्थापक हाफिज सईद के करीबी सहयोगी अमीर सरफराज तांबा की रविवार14 अप्रैल, 2024 को लाहौर में अज्ञात बंदूकधारियों ने हत्या कर दी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)