गीतांजलि श्री को बुकर पुरस्कार पर सेलिब्रेशन वाली फीलिंग क्यों नहीं।
अशोक झा।
पुरस्कार चाहे कोई भी हो, किसी को उसके दिए जाने की जब खबर छपती है तो उसके पक्ष-विपक्ष में विचारों का उछलना बहुत ही आम है। फिर अगर यह बुकर पुरस्कार है और किसी भारतीय को मिला है- उसमें भी पहली बार किसी हिंदी की पुस्तक को जिसकी लेखक कोई महिला है- तो आलोचना के कई आयाम अनायास ही जीवित हो उठते हैं।
बुकर पर आरोप- यह पूंजी शोषण की कमाई
साहित्यप्रेमियों के लिए गीतांजलि श्री के उपन्यास ‘रेत समाधि’ (Tomb of Sand) पर ‘बुकर पुरस्कार से सम्मानित कृति’ लिखा देखना कितना गौरवान्वित करने वाला होगा अब। लेकिन जब गीतांजलि श्री को रेत समाधि के लिए बुकर पुरस्कार देने की घोषणा हुई तो हिंदी पट्टी में कई तरह की प्रतिक्रियाएँ आने लगीं। लेखक और अनुवादक को बधाई के साथ साथ दबी ज़बान में कुछ ऐसी प्रतिक्रियाएँ भी आयीं जो इस तरह के मौक़ों पर आने से नहीं चूकती हैं।
सोशल मीडिया पर लोगों ने गीतांजलि श्री को बधाई दी, और फ़ेसबुक पर कई लोगों की तरह मुझे भी ऐसा कुछ देखने को मिला जिसमें बुकर पुरस्कार की जन्मपत्री निकालकर यह कहा गया था कि गीतांजलि श्री को मिले इस पुरस्कार पर हम लोगों को ज्यादा चिचियाने की जरूरत नहीं है। यह दासों के शोषण और अन्य पूँजीवादी हथकंडे से जमा की गयी पूँजी से दिया जानेवाला पुरस्कार है। मतलब यह कि इस पुरस्कार पर गऱीबों के खून के छींटें हैं। इससे इनकार नहीं किया जा सकता। करोड़ों रुपये पुरस्कार राशि में देने की ताक़त ऐसी ही पूँजी से आ सकती है। और बड़ी पूँजी कहीं की हो- किसी की भी हो- उसका चरित्र एक जैसा होता है। बिना कहीं गड्ढा किये आप मिट्टी का ढेर नहीं लगा सकते। डायनामाइट का आविष्कार करने वाले ऐल्फ़्रेड नोबल के नाम पर नोबल पुरस्कार है।
ये पुरस्कार कौन परम शुद्ध हैं
अब जब बुकर की आलोचना में हम यह सब कह सकते हैं तो नैतिकता के लिहाज़ से यह भी ज़रूरी हो जाता है कि अपने यहाँ दिये जाने वाले एक बेहद प्रतिष्ठित पुरस्कार की जन्मपत्री में भी संक्षेप में झांक लें। यह पुरस्कार है मूर्तिदेवी और ज्ञानपीठ पुरस्कार जिसकी स्थापना इस देश के साहू जैन परिवार ने की है। साहू शांति प्रसाद जैन ने। यह परिवार बेनेट कोलमैन कंपनी का मालिक है जो टाइम्स ग्रुप के तहत देश का बहुत बड़ा या शायद सबसे बड़ा मीडिया हाउस है।
साहू शांति प्रसाद जैन और उनके सुपुत्र अशोक जैन दोनों ही इस मायने में विशिष्ट हैं कि विदेशी मुद्रा कानून के उल्लंघन में दोनों ही जेल जा चुके हैं। अब यह कोई देश हित में किया गया सम्मान सूचक अपराध तो है नहीं जिसकी वजह से वे जेल गए। पर इनकी काली कमाई से दिये जाने वाले पुरस्कार पर हमारे देश के लेखक गर्व महसूस करते हैं। किसी ने इस पुरस्कार को लेने से इनकार किया है ऐसा रिकार्ड शायद नहीं है।
ज्ञानपीठ से अपने पुस्तकों का प्रकाशन और इससे मिलने वाले पुरस्कार कितने प्रतिष्ठित हैं इसको बताने की जरूरत नहीं है। ज्ञानपीठ पुरस्कार देश का सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार है और किसी भी लेखक का यह सपना होता है कि वह यह पुरस्कार प्राप्त करे।
बिहार के डालमिया नगर में इस परिवार की सीमेंट फैक्ट्री ने स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य को कैसे बर्बाद किया है, यह भी किसी से छिपा नहीं है। पर इस परिवार के प्रति हम कभी कोई दुर्वचन नहीं निकालते। और पुरस्कार को कमतर नहीं आंकते।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)