इजरायल के तरफ से बीते चौबीस घंटे में ग़ज़ा पर भारी बमबारी हुई है. संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने शुक्रवार को जॉर्डन की तरफ़ से पेश इसराइल और हमास के बीच मानवीय आधार पर तुरंत संघर्ष विराम लागू करने के प्रस्ताव को बहुमत से स्वीकार कर लिया ।हालांकि संयुक्त राष्ट्र में इस प्रस्ताव पर मतदान के दौरान भारत अनुपस्थित रहा।

इस प्रस्ताव के समर्थन में 120 देशों और विरोध में 14 देशों ने वोट किया

भारत के अलावा इस प्रस्ताव पर मतदान के दौरान ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, डेनमार्क, इथियोपिया, जर्मनी, ग्रीस, इराक़, इटली, जापान, नीदरलैंड्स, ट्यूनीशिया, यूक्रेन और ब्रिटेन समेत 45 देश अनुपस्थित रहे.ग़ज़ा में मानवीय आधार पर संघर्ष विराम के समर्थन में म्यांमार, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश और चीन समेत भारत के सभी पड़ोसी देशों ने वोट किया. फ्रांस ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया है.अमेरिका एकमात्र बड़ा और प्रभावशाली देश है जो इस प्रस्ताव पर मतदान के दौरान इसराइल के समर्थन में रहा.कई यूरोपीय देश, जो इसराइल की जवाबी कार्रवाई का समर्थन कर रहे हैं, वो भी इस प्रस्ताव पर मतदान से दूर रहे इस प्रस्ताव में ग़ज़ा के लिए निर्बाध आपूर्ति और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग भी की गई है। दूसरी तरफ़ हमास को आतंकवादी संगठन घोषित करने के लिए कनाडा की तरफ़ से लाये गए प्रस्ताव को पर्याप्त समर्थन नहीं मिल सका। हमास के हमले के बाद भारत ने कहा था कि वह इसराइल के साथ खड़ा है।

हमले के बाद भारत की प्रतिक्रिया

7 अक्तूबर को इसराइल पर हमास के हमले को भारत ने ‘आतंकवादी हमला’ बताया था और ‘आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई’ में इसराइल का समर्थन किया था. इस हमले में 1400 से अधिक लोग मारे गए थे और 200 से अधिक को अग़वा कर लिया गया था। इसके कुछ दिन बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर स्पष्ट किया था कि फ़लस्तीनियों और इसराइल को लेकर भारत के रुख़ में कोई बदलाव नहीं आया है.भारत के विदेश मंत्रलालय ने कहा था कि भारत ‘फ़लस्तीनियों के लिए स्वतंत्र और स्वायत्त देश फ़लस्तीन की मांग के समर्थन में है.’ विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था, “भारत हमेशा से फ़लस्तीन के लोगों के लिए एक संप्रभु, स्वतंत्र देश फ़लस्तीन की स्थापना के लिए सीधी बातचीत करने की वकालत करता रहा है. एक ऐसा देश बने जिसकी अपनी सीमा हो और फ़लस्तीनी वहां सुरक्षित रह सके. जो इसराइल के साथ भी शांति के साथ रहे.”संयुक्त राष्ट्र में भी भारत के दूत ने ये कहा था कि भारत ग़ज़ा में लोगों के मारे जाने को लेकर चिंतित है और भारत ने ग़ज़ा के लिए मानवीय सहायता भेजी है। इसराइल-फ़लस्तीनी विवाद पर अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए भारत ने कहा था कि वह इस ‘विवाद के शांतिपूर्ण समाधान के पक्ष में है और द्विराष्ट्र समाधान का समर्थक है।

वर्ष 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था फ़लस्तीन का दौरा
संयुक्त राष्ट्र में फ़लस्तीनियों का समर्थन करता रहा है भारत

इसी साल अप्रैल में भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में लाए गए उस प्रस्ताव के पक्ष में वोट किया जिसमें इसराइल को 1967 के बाद से क़ब्ज़े वाले इलाक़ों को छोड़ने के साथ नई बस्तियों की स्थापना और मौजूदा बस्तियों के विस्तार को तुरंत रोकने के लिए कहा गया। भारत ने उस प्रस्ताव के पक्ष में भी मतदान किया जिसमें फ़लस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन किया गया था। ऐतिहासिक रूप से भारत का रुख फ़लस्तीनियों की तरफ़ रहा है। भारत साल 1974 में ‘फ़लस्तीन मुक्ति संगठन’ को फ़लस्तीनी लोगों के एकमात्र और वैध प्रतिनिधि के रूप में मान्यता देने वाला पहला ग़ैर-अरब देश बना था। संयुक्त राष्ट्र महासभा के 53वें सत्र के दौरान भारत ने फ़लस्तीनियों के आत्मनिर्णय के अधिकार पर मसौदा प्रस्ताव को न केवल सह-प्रायोजित किया बल्कि इसके पक्ष में मतदान भी किया था ।भारत ने अक्टूबर 2003 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के उस प्रस्ताव का भी समर्थन किया जिसमें इसराइल के विभाजन की दीवार बनाने के फ़ैसले का विरोध किया गया था। मई 2017 में फ़लस्तीनी प्रशासन के प्रमुख महमूद अब्बास भारत दौरे पर आए थे।

भारत ने कब-कब दिया समर्थन

2011 में भारत ने फ़लस्तीन के यूनेस्को के पूर्ण सदस्य बनने के पक्ष में मतदान किया था.2012 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के उस प्रस्ताव को सह-प्रायोजित किया था जिसमें फ़लस्तीन को संयुक्त राष्ट्र में मतदान के अधिकार बिना “नॉन-मेंबर आब्ज़र्वर स्टेट” बनाने की बात थी। सितंबर 2015 में भारत ने फ़लस्तीनी ध्वज को संयुक्त राष्ट्र के परिसर में स्थापित करने का भी समर्थन किया था। फ़रवरी 2018 में नरेंद्र मोदी फ़लस्तीनी क्षेत्र में जाने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने. उस दौरान मोदी ने कहा था कि उन्होंने फ़लस्तीनी प्रशासन के प्रमुख महमूद अब्बास को आश्वस्त किया है कि भारत फ़लस्तीनी लोगों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। मोदी ने कहा था, “भारत फ़लस्तीनी क्षेत्र के एक संप्रभु, स्वतंत्र राष्ट्र बनने की उम्मीद करता है जो शांति के माहौल में रहे.”ये तस्वीरें शुक्रवार रात को की गई बमबारी के बाद के हालात की हैं

ग़ज़ा के ताज़ा हालात

इसी बीच शुक्रवार को इसराइल की थल सेना ग़ज़ा में दाख़िल हुई है. इसराइली एयरफोर्स ग़ज़ा पर भारी बमबारी कर रही है. ग़ज़ा में इंटरनेट और मोबाइल फ़ोन बंद है और ताज़ा ज़मीनी हालात के बारे में बहुत कम जानकारियां मिल पा रही हैं। बीबीसी संवाददाता रश्दी अबुअलूफ़ के मुताबिक़ उत्तरी ग़ज़ा में अफ़रा-तफ़री का माहौल है और जैसी बमबारी पिछले 24 घंटे में हुई है, ऐसी पहले कभी नहीं हुई है. अब तक ग़ज़ा में सात हज़ार से अधिक लोग मारे गए हैं. इसमें शुक्रवार के बाद का आंकड़ा शामिल नहीं है। ग़ज़ा में ना ईंधन है, ना पानी. अस्पताल बुरी हालत में हैं. लाखों लोगों ने संयुक्त राष्ट्र के शिविरों में शरण ले रखी है. संयुक्त राष्ट्र को भी मौजूदा हालात की वजह से काम करने में दिक़्क़तें आ रही हैं।  इन हालात में ग़ज़ा में मानवीय मदद पहुंचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव अहम है लेकिन इसके लागू होने को लेकर संशय है।

भारत के अनुपस्थित रहने पर उठे सवाल

एक तरफ़ भारत की नीति फ़लस्तीनियों के प्रति सहानुभूति की रही है वहीं पिछले कुछ सालों में भारत इसराइल की तरफ़ झुकता दिखा है। इसराइल और फ़लस्तीनियों के बीच चल रहे हिंसा के इस दौर ने भारत के लिए एक असमंजस की स्थिति पैदा की है।  ऐसे में सवाल उठ रहा है कि मानवीय आधार पर आए इस प्रस्ताव से भारत क्यों दूर रहा? जबकि भारत मानवाधिकार से जुड़े मुद्दों पर स्पष्ट स्टैंड लेता रहा है। विश्लेषक मानते हैं कि भारत की कोशिश है कि वह कूटनीतिक स्तर पर एक संतुलन बनाये रखे।

इजराइल ने रातभर गाजा पर किए तगड़े हवाई हमले, इंटरनेट और मोबाइल सेवा बाधित

जवाहर लाल यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफ़ेसर मुदस्सिर क़मर कहते हैं, “भारत के इसराइल से मज़बूत संबंध हैं और फ़लस्तीनियों को लेकर खुला स्टैंड है. भारत अकेला ऐसा देश नहीं है जो अनुपस्थित रहा. जर्मनी और ब्रिटेन जैसे देश भी अनुपस्थित रहे. इसकी एक वजह तो ये है कि ये प्रस्ताव अरब देशों की तरफ़ से लाया गया था. भारत इस मुद्दे पर एक संतुलन बनाये रखना चाहता है.”

भारत के सभी पड़ोसी देशों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया. विश्लेषक मानते हैं कि भारत इस प्रस्ताव से दूर रहकर अपने नैतिक मूल्यों से पीछे हटा है। दिल्ली की जामिया यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार मोहम्मद सोहराब कहते हैं, “ये प्रस्ताव मानवीय आधार पर था. मानवीय कॉरिडोर बनाने की मांग की गई थी. ये नागरिकों और बच्चों की सुरक्षा के लिए था. इस तरह के मानवीय मुद्दे पर प्रस्ताव से पीछे हटकर भारत उस नैतिक स्टैंड से पीछे हटा है जिसे भारत ऐतिहासिक रूप से अपनाता रहा है और जो भारतीय सभ्यता का मूलमंत्र भी है. ये भारत के मानवीय मूल्यों से पीछे हटने जैसा है. दुनिया में संदेश ये गया है कि भारत अपनी सभ्यता के मूल्यों से पीछे हट रहा है।

‘बदल रही है नीति’

प्रोफ़ेसर सोहराब कहते हैं, “भारत की नीति हमेशा से ही फ़लस्तीनियों के लिए अलग राष्ट्र का समर्थन करने की रही है. भारत ने सुरक्षा परिषद में भी अपने इस नीति को ज़ाहिर किया था. लेकिन इस प्रस्ताव से पीछे हटना बताता है कि भारत की नीति बदल रही है.” हालांकि विश्लेषक ये भी मानते हैं कि इस समय भारत के लिए इसराइल से रिश्ते भी बेहद अहम है और भारत नहीं चाहेगा कि वो ‘युद्ध में फंसे अपने मित्र देश को नाराज़ करे.’ प्रोफ़ेसर मुदस्सिर क़मर कहते हैं, “भारत इसराइल से किसी भी तरह अपने रिश्ते ख़राब नहीं करना चाहेगा. इसके कई पहलू हैं. भारत के इसराइल के साथ बेहद नज़दीकी सुरक्षा संबंध है. इसराइल भारत को हथियार देता है, आतंकवाद को लेकर जानकारियां साझा की जाती हैं. भारत के द्विपक्षीय संबंध इसराइल के साथ हाल के सालों में बहुत मज़बूत हुए हैं. मौजूदा हालात में भारत के लिए इसराइल के साथ संबंधों को नज़रअंदाज़ करना संभव नहीं है.” अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने हाल के दिनों में कहा है कि हमास के हमले का एक मक़सद प्रस्तावित भारत-मध्यपूर्व-यूरोप कॉरिडोर को नुक़सान पहुंचाना भी है। मुदस्सिर क़मर कहते हैं, “इसके ठोस प्रमाण नहीं है कि हमास ने ये हमला आईएमईसी को नुक़सान पहुंचाने के लिए किया है. लेकिन मौजूदा हालात और इस जंग का असर भारत के अरब देशों के साथ रिश्तों पर पड़ सकता है।

कूटनीति में विरोधाभास?

वहीं प्रोफ़ेसर सोहराब मानते हैं कि भारत के लिए अपनी विदेश नीति में संतुलन बनाये रखना आसान नहीं है.प्रोफ़ेसर सोहराब कहते हैं, “हमास के हमले के तुरंत बाद भारतीय प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया और खुलकर इसराइल का समर्थन किया. इसके कुछ दिन बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने बयान देकर कहा कि भारत फ़लस्तीनियों के मुद्दे के भी साथ है. भारत की कूटनीति में अभी एक विरोधाभास दिखाई दे रहा है. ये स्थिति भारत के लिए बेहद जटिल है और जैसे-जैसे ये जंग आगे बढ़ेगी, भारत के लिए अपने मौजूदा स्टैंड को बनाये रखना मुश्किल होता जाएगा.” भारत में सोशल मीडिया पर लोग इसराइल के प्रति भारी समर्थन ज़ाहिर कर रहे हैं. वहीं फलस्तीनी लोगों के समर्थन में पोस्ट करने वाले कई लोगों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई की गई है।

इसराइल के ज़मीनी अभियान के बाद हालात बदल सकते हैं

प्रोफ़ेसर सोहराब कहते हैं, इसमें कोई शक़ नहीं है कि भारत इस समय इसराइल के समर्थन में हैं. भारत अपने पारंपरिक उसूलों से समझौता कर रहा है। वहीं भारत की मौजूदा कूटनीतिक स्थिति को विश्लेषक भारत के अपने हितों को सुरक्षित करने के प्रयास के रूप में भी देखते हैं। मुदस्सिर क़मर कहते हैं, “हाल के सालों में भारत ने अपनी विदेश नीति में स्पष्ट रूप से अपने हितों को तरजीह दी है. इसराइल के साथ भारत के सुरक्षा हित जुड़े हैं. वैचारिक तौर पर भी इसराइल के लिए समर्थन है. हालांकि जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ेगा और परिस्थितियां बदलेंगी, भारत का नज़रिया और स्टैंड भी बदल सकता है.”

इसराइल ने ग़ज़ा में ज़मीनी अभियान शुरू कर दिया है. इस युद्ध के मध्य पूर्व के अन्य इलाक़ों में फैलने की आशंका भी है. मुदस्सिर क़मर कहते हैं, “यदि ये युद्ध फैला तो भारत की इसे लेकर नीति भी बदल सकती है। (एएमएपी)