मध्य पूर्व में इजरायल के गाजा में हमले तेज होने लगे है. पहले से ही आशंका जताई जा रही है कि अगर यह युद्ध ना रुका तो इसके मध्य पूर्व के अन्य देशों तक फैलने का खतरा है. ईरान भी खुल कर कह चुका है कि अगर इजरायल ने हमले नहीं रोके तो उसके कई मोर्चों पर गंभीर नतीजे भुगतने होंगे।

लेकिन क्या ईरान इजरायल पर हमला करेगा. क्या वह इस बार इजरायल को नेस्तोनाबूद करने की कसम को पूरा करने के लिए युद्ध में कूदेगा जो वह समय समय पर खाता रहा है. मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए इन संभावनाओं पर इजरायल और अमेरिका के लिए विचार करना बहुत ही जरूरी है।

कितना जोखिम होगा ईरान के लिए

इस मुद्दे पर दायकेन यूनिवर्सिटी के मध्य पूर्व मामलों के विशेषज्ञ शाहराम अकबराजादे ने अपने विश्लेषण में बताया है कि ईरान की अपनी धमकियों पर अमल किए जाने की कितनी संभावनाएं हैं और ऐसा करना उसके लिए कितना जोखिम भरा होगा. फिलहाल ईरान की धमकी का अर्थ यही निकाला जा रहा है कि वह जल्दी ही अपने साथियो और प्रॉक्सियों के जरिए इजरायल के खिलाफ युद्ध में उतरने का इरादा रखता है।

हलके में नहीं लिया जाएगा ईरान को

हिजबुल्लाह पहले ही इजरायल के साथ निचले स्तर पर उलझा हुआ है, जबकि सीरिया में असद की सत्ता ईरान की सहयोगी है. इसमें कोई शक नहीं हालात इतने नाजुक हैं कि इजरायल और अमेरिकी ईरान की चेतावनी या धमकी को हलके में नहीं ले सकते हैं. वे इस बात पर जरूरी विचार कर रहे होंगे कि ईरान के युद्ध में शामिल होने पर क्या करना होगा।

ईरान कर सकता है संकोच

चाहे ईरान की परमाणु संयंत्रों पर सर्जिकल स्ट्राइक की पैरवी हो या ईरान के परमाणु वैज्ञानिक की हत्या इजरायल पहले ही ईरान के काफी भड़का चुका है. लेकिन ईरान के गाजा युद्ध में शामिल होने से युद्ध सीधे उसी के मुहाने पर पहुंच जाएगा. अकबरजादेह, कन्वरसेशन में प्रकाशित अपने लेख में बताते हैं कि तमाम चेतावनियों के बाद भी ईरान खुद युद्ध में सीधे उतरने में संकोच ही करेगा। ईरान के नेता आयातुल्लाह अली ख़ामेनेई बार बार कह रहे हैं कि इजरायल का गाजा पर हमला मध्यपूर्व में एक बड़े संकटा का कारण बनेगा।

आदर्शवाद और व्यवहारिकता के बीच

ईरान अपनी आदर्शवादी सोच और राजनैतिक व्यवहारिकता के बीच एक संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है. इस खतरे से खेलकर वह युद्ध में झुलस सकता है. ईरान इजरायल के अस्तित्व तक को नकारता है. इस साल जून में ईरान ने एक मिसाइल का परीक्षण कर दावा किया था कि वह एक सुपरसॉनिक मिसाइल है और 400 सेकेंड में तेल अवीव को तबाह कर सकती है।

जोखिम से अनजान भी नहीं

इस तरह की भाषा वैसे तो ईरान के सत्ताधारी कट्टरपंथियों के लिए बहुत ही अनुकूल है, लेकिन यहां कि कुछ लोग भी सत्ता पर इस इजरायल पर हमले का वादा पूरा करने के लिए आवाज उठा रहे हैं. लेकिन ईरान जोखिम से अनजान भी नहीं है वह जानता है कि इजरायल पर हमले के लिए उसे कितनी बड़ी कीमत चुकनी पड़ सकती है. इतना ही नहीं ईरान के नागरिकों में भी विरोध विद्रोह में बदल सकता है. देखा गया है ईरान के कई लोगों को गाजा या लेबनान से ज्यादा अपनी चिंता है।

गाजा में हालात गंभीर होने पर भी ईरान इजरायल पर हमला करेगा इसमें संदेह है।

हद पार करने से बचता रहा है ईरान

गौर करने वाली बात यह है कि ईरान की सत्ता अमेरिका और इजरायल के साथ हद पार करने से बचती रही है. 2030 में ईसान के युद्ध के हीरो माने जाने कासिम सुलेमानी की अमेरिका द्वारा हत्या करने के बाद भी ईरानी सत्ताधारियों ने अमेरिका को अंजाम भुगतने की चेतावनी दी थी. लेकिन वास्तव इसकी करनी बहुत हलकी थी, केवल इराक में अमेरिकी सैनिकों की टुकड़े वाली दो एयरफील्ड पर चेतावनी देकर हमला किया था. इजरायल के भी बार बार सीरिया में ईरानी ठिकानो पर हमले के बाद भी ईरान ने “बड़ा कदम” नहीं उठाया।

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ईरान इस मौका का लाभ उठाकर खुद को फिलिस्तीनियों का खैरख्वाह साबित करना चाहता है. अमेरिका और इजरायल के विरोध के दम पर ही ईरान ने मध्य पूर्व में अपनी पैठ बढ़ाई है. इसके बाद भी ईरान का नेतृत्व अपनी सीमाएं समझता है. यही वजह है कि वह सीधे सैन्य टकराव की स्थिति से बचता रहा है. लेकिन परदे के पीछे से वह सक्रियता कायम रख सकता है. वैसे भी यह मान कर नहीं चला जा सकता है कि हिज्बुल्लाह पूरी तरह से ईरान के नियंत्रण में होगा। (एएमएपी)